प्राची - जनवरी 2017 : कहानी / नया साल मुबारक हो / अनंत कुमार सिंह

SHARE:

कहानी नया साल मुबारक हो अनंत कुमार सिंह   नाम : अनन्त कुमार सिंह जन्म : 07.01.1953 (ग्राम- बहेरा, पो. झरी, प्रखंड- आमस, जिला- गया, बिह...

कहानी

नया साल मुबारक हो

अनंत कुमार सिंह

 

नाम : अनन्त कुमार सिंह

जन्म : 07.01.1953 (ग्राम- बहेरा, पो. झरी, प्रखंड- आमस, जिला- गया, बिहार)

शिक्षा : एम. ए. (अर्थशास्त्र)

प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी कहानियां, आलेख, समीक्षाएं, टिप्पणियां साक्षात्कार तथा कुछ मगही कहानियां प्रकाशित.

clip_image002

प्रकाशित पुस्तकें

कहानी संग्रह

चौराहे पर - प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली - 1992

और लातूर गुम हो गया - प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली - 1997

राग भैरवी - प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली - 2002

कठफोड़वा तथा अन्य कहानियां - आलेख प्रकाशन, दिल्ली - 2007

तुम्हारी तस्वीर नहीं है यह - साहित्य संसद, नई दिल्ली - 2010

प्रतिनिधि कहानियां - जागृति साहित्य प्रकाशन, पटना - 2010

ब्रेकिंग न्यूज - भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली - 2012

बालकथा संग्रह

आजादी की कहानी, नई दिल्ली

इतिहास पुस्तक

कुंअर सिंह और 1857 की क्रांति -नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली, 2007

उपन्यास

ताकि बची रहे हरियाली, यश पब्लिकेशंस, दिल्ली - 2015

प्रकाशनधीन

नया साल मुबारक हो (कहानी-संग्रह), प्रभाव प्रकाशन

बाल कथा एवं बाल नाटक संग्रह, नाग फांस लिए घर भीतर (उपन्यास) ग्रंथ लोक

प्रसारण

दूरदर्शन से टेलीफिल्म, वार्ता प्रसारित.

आकाशवाणी से कहानियां, नाटक, रूपक आदि प्रसारित. कुछ मगही, भोजपुरी कहानियां आकाशवाणी से प्रसारित.

अनुवाद

तेलुगू, मलयालय, बांग्ला, उर्दू, पंजाबी आदि में कई कहानियां अनूदित.

पुरस्कार/सम्मान

‘और लातूर गुम हो गया’ पुस्तक पर ‘परिमल’ द्वारा ‘राजेश्वर प्रसाद सिंह कथा-सम्मान’ तथा बिहार राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा सम्मानित. विभिन्न गैर सरकारी साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं से सम्मानित.

संपादन

1990 से साहित्यिक पत्रिका ‘जनपथ’ का संपादन एवं प्रकाशन.

संप्रति

सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, आरा से सेवानिवृत. स्वतंत्र लेखन एवं साहित्यिक पत्रिका जनपथ का संपादन-प्रकाशन.

संपर्क

अनन्त कुमार सिंह द्वारा सेंट्र को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड,आरा, मंगल पाण्डेय पथ, जिला-भोजपुर-802301 (बिहार)

मो. : 0981847568

------

 

सा नहीं कि एक मशहूर शायर के बुलावे पर जाने की बाध्यता थी मुझे, दरअसल मेरी जानकारी के अनुसार उन्होंने- अरे भाई शौकत हयात ने, इस कस्बे के केवल दो रचनाकारों को आमंत्रित किया था. इसलिए न जाना बेमानी जैसा था. वैसे न जाने के पीछे तर्क यही था कि ठंड अपनी पराकाष्ठा पर (लगभग तीन डिग्री तापक्रम) पहुंच चुकी है. शीत लहर जैसी स्थिति है और उस पर तुर्रा यह कि आज पहली जनवरी है. पहली जनवरी यानी उत्सव, उत्साह, समारोह का मौसम, खुशी मनाने के अपने-अपने तरीके. ढोलक, झाल के साथ हरिकीर्तन, लोकगीत गाने का पुराना तरीका नहीं, झूमने-नाचने-गाने और खुशी-आनंद-उत्साह के साथ आधुनिकता के पार जाने की होड़. कोई किसी से कम नहीं. नए अत्याधुनिक पर्व वेलेंटाइन-डे की तरह फटाफट, धड़ाधड़ अपने को केंद्र में लाता यह यादगार, अविस्मरणीय अवसर. उसमें रात का समय. रात मतलब

अंधेरे का साम्राज्य.

लेकिन जाना तो है. शौकत भाई मेरे अजीज, बेहद आत्मीय शौकत की बहन की शादी है. आग्रह है आने का और मैंने हामी भर दी है. कहकर न जाना तो मेरे वश का नहीं.

मैं सौरभ के साथ चल दिया. चल तो दिया, लेकिन सुनिए, प्रथम ग्रासे मच्छिका पाते. जी हां, सड़क पर एक भी रिक्शा नहीं. सड़क सूनी-सूनी, बिजली आज भी नहीं, पूरी तरह अंधेरा. गली की सारी दुकानें बंद. खैर! एक से भले दो, और हम दोनों खरामा-खरामा पहुंच ही गए मंजिल के पास.

[ads-post]

वह प्यारा सा शौकत बहुत-बहुत खुश हुआ. तंदुरुस्त नाश्ता, काफी व्यस्तता के बावजूद ढेर सारी बातें की शौकत ने. मैंने गौर किया. साज-सज्जा अव्वल दर्जे की है. अच्छी-खासी भीड़ है. शहर के सम्मानित व्यक्ति, विभिन्न जाति-धर्म के लोग वहां मौजूद हैं. मुसलमान भाइयों की संख्या अधिक है, जो कि स्वाभाविक है.

‘‘अब इजाजत चाहता हूं. कवि महोदय सौरभजी को गांव जाना है. मेरे लिए भी समस्या है, आज रिक्शा संभव नहीं. ठंड भी है. और फिर दो-तीन जगह जाना भी है मुझे.’’ काफी देर तक ठहरने के बाद मैंने कहा. मेरे कहते ही चौंक से गए शौकत.

‘‘बिना खाए कैसे जाएंगे? खाना तो तैयार है, आधा घंटा में शुरू हो जाएगा.’’

‘‘अरे भाईजान! अभी-अभी तो भरपूर नाश्ता हुआ है पेट की औकात से ज्यादा और लजीज भी...अब क्या खाना? भाई बहुत-अच्छा लगा.’’

‘‘आप लोगों का आना मुझे भी अच्छा लगा, लेकिन बिना खाए लौटना बुरा लग रहा है.’’ शौकत की बात सुनकर कुछ पल के लिए मैं असमंजस में रहा, लेकिन परिस्थितियां मुंह बाए नजर आने लगीं.

‘‘ऐसा है भाईजान कि सौरभ का गांव यहां से दस किलोमीटर दूर है. जाना साइकिल से होता है. और फिर आप जानते हैं, मुझे भी दो-तीन जगह जाना है अभी...’’

राजी हो गए शौकत और हम लोग लौट गए. गोपाली चौक के बाद हम दो दिशा के राही हो गए. सौरभ उत्तर की तरफ साइकिल से बढ़ा और मैं पश्चित की तरह पैदल.

आगे बढ़ते ही चौराहे पर, बाटा की दुकान के पास, कुछ लड़के नशे में बेसुध बतकुचन कर रहे हैं. बातों से जाहिर है कि वे कोठे पर जाने की योजना बना रहे हैं. लेकिन शहर की सबसे खूबसूरत तवायफ के कोठे पर किसी दूसरे रईस की महफिल जमी है, मुजरा सुनाई पड़ रहा है, नर्तकी की आवाज और साज-बाज साथ ही कुछ बहकते हुए बेसुरे स्वर. ये लड़के वहां जाकर उस रईस को भगाकर खुद मुजरा सुनने और मस्ती लूटने की फिराक में हैं. उनकी बातों से ऐसा लग रहा है कि वे इस बात से अपमानित महसूस कर रहे हैं कि आज पहली जनवरी यानी साल के पहले दिन लाल बाई के पास उनके सिवा दूसरा कौन चला गया है.

मैं तेजी से आगे बढ़ने लगा हूं. दाईं तरफ के होटल से शोर सुनाई पड़ रहा है. यहां परमाणु कार्यक्रम बहस का विषय है शायद. उसके पक्ष में कोई तर्क देता तो विपक्ष वाले उलझ पड़ते और अपना तर्क देने लगते. कोई उसे देश की ऊर्जा और विकास के लिए अपरिहार्य कह रहा है तो कोई अमेरिकी गुलामी का प्रतीक मान रहा है. बीस-पच्चीस कदम आगे ही, चौराहे पर, अमेरिका की मंदी और विश्वमंदी पर बहस छिड़ी हुई है.

आगे तिराहा चौक पर आतंकवाद की चर्चा है. आतंकवाद के कारण में मुसलमानों को ठूंसने, साबित करने की कोशिश की जा रही है. और उसके कारण मुसलमानों को अपने स्तर से, आज ही मजा चखाने की योजना बन रही है. मिल्की मोहल्ला, जहां से मैं अभी आ रहा हूं, वहीं जाने की बात कुछ लोग कर रहे हैं...वहीं कुछ लोग उड़ीसा वगैरह की वारदात को सामने रखकर उनकी बातों को काटने की कोशिश कर रहे हैं और उनके विरोध में सीधे बोल भी रहे हैं.

वैसे सभी जगहों पर लोगों की जुबान से शराब सिर चढ़कर शोर कर रही है. चलते हुए कई बार तेज रफ्तार में जाती बाइक से बचकर, कटकर निकलना हो रहा है. एहतियात के तौर पर मैं फुटपाथ पर तो चल ही रहा हूं, लेकिन आंधी-बरसात की तरह आती बाइक से बचने के लिए नालों से सटकर चलना पड़ रहा है. ऐसे में एक बांस दूरी तय करता तो लगता इतना हो चुका, अब उतना और बढ़ना है. पल-पल भयावहता के दर्शन और संकटग्रस्त होने का आभास. जीवन का ऐसा पहला अनुभव, वह भी पहली जनवरी को.

इसी बीच सौरभ का फोन आया. घबराहट से भरी कांपती आवाज- ‘‘बड़े संकट में हूं. उज्जवलपुर गांव के बगीचे में जुआ खेलने वाली कई टोली बैठी हैं. लोग नशे में चूर हैं और हमसे आगे जाने वाले एक व्यक्ति को पकड़कर उससे पैसे छीन रहे हैं.’’

‘‘इतनी रात को गांव बधार में जुआ? छीनतई? यार तुम किसी दूसरे रास्ते से निकल जाओ!’’ मैंने कहा.

‘‘उनसे बच निकलना मुश्किल लग रहा है. पिछले साल पहली जनवरी को उसी बगीचे से उन्हें तकलीफ पहुंचती और मेरे तर्क बेमानी लगते. लेकिन यहां तो अकल्पनीय स्थितियों से दो-चार होना पड़ रहा है.’’

अब पहुंच रहा हूं नगरपालिका में काम करनेवाले सफाईकर्मियों के मोहल्ले में, जिसे आमतौर पर डोमटोली कहा जाता है. वैसे वहां डोम जाति के ही नहीं, मेस्तर जाति के भी लोग हैं. अभी वहां पहुंच भी नहीं सका हूं और शोर-शराबा, हंगामा मेरा इंतजार कर रहा हो जैसे. स्थिति मारपीट जैसी बन गई है. एक कह रहा है, ‘‘का हमरा के डोम समझ रहल बाड़े, हम मेस्तर बानी- मेस्तर. खानदानी बानी हमनी सब. हमार इजत पर जे हाथ फेरी, ओकरा के छोड़ब ना.’’ दरअसल कुछ लफंगे एक लड़की को जबरन अंधेरे में ले जा रहे थे. लड़की ने शोर मचाया. मोहल्ले के लोगों ने झट दबोच लिया लफंगों को, मारपीट भी की. अभी भी घेरे हुए हैं. वैसे दारू ये लोग भी लिये हैं और लफंगे भी.

आगे कुछ दूसरा नजारा है, ‘‘हमार मेहरारू के का देखत बाड़, तोहार बेटी त इयार के साथे गइल बाड़ी चकल्लस काटे.’’ एक कह रहा था.

‘‘आउर तोहार भतीजिया? ऊ कहवां बाड़ीं हो..ऊ भी त सांझे से फरार बाड़ीं.’’ भयंकर बतकुचन और दारू का कमाल यहां भी.

किसी तरह नागरी प्रचारिणी सभा के सामने मैं पहुंचा और उसी दिशा में कचहरी वाले रास्ते से बढ़ने लगा. महावीर मंदिर और पार्क व्यू होटल वाले रास्ते से जाने पर तेज बाइक चलाते और जश्न मनाते लोगों की संभावना थी. इस सुनसान रास्ते से बढ़ना मुझे अपेक्षाकृत सुरक्षित लग रहा है.

लेकिन, अरे बाप रे! यह क्या? सड़क के किनारे रमना मैदान परिसर के टूटे हुए अहाते के अगल-बगल कई जगह लड़कियों के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पड़े हैं लोग. अंबेडकर चौक पर मूर्ति के नीचे प्रशासन को मुंह चिढ़ाते लोग मोमबत्ती जलाकर जुआ खेल रहे हैं और उससे सटे मंदिर परिसर में भी. दोनों जगह हंगामा मचा है.

मैं काफी तेजी से वहां से निकलने की कोशिश कर रहा हूं...लेकिन, यह क्या? ओफ्फ! अब क्या होगा? चार-पांच लड़के ठीक मेरे सामने बढ़ रहे हैं, मैं उनसे किनारे कट रहा हूं, लेकिन उनका निशाना शायद मैं ही हूं. मैं उनसे दूर होता जा रहा हूं और वे मेरे करीब होते जा रहे हैं और अंततः उन लोगों ने मुझे घेर लिया है. मैं बुरी तरह अकबका गया हूं.

‘‘घड़ी निकालो,’’ लड़खड़ाती हुई आवाज में एक ने कहा.

‘‘घड़ी नहीं है.’’

‘‘नहीं है? अरे वाह सूट-बूट चकाचक बनारसी और घड़ी नहीं...’’

‘‘पैसा दो, पैसा,’’ दूसरे ने आदेश दिया.

‘‘पैसा भी नहीं है.’’

‘‘शराफत से नहीं मानोगे तो इस रिवॉल्वर से दोगे न!’’ तीसरे ने रिवॉल्वर सामने करते हुए कहा.

‘‘अरे, पहले मोबाइल दो मोबाइल और फटाफट माल निकालो,’’ चौथे ने कड़ककर कहा.

‘‘मैं कुछ नहीं दूंगा, हटो मेरे सामने से,’’ मैंने हिम्मत जुटाकर कहा. और चारों ही उलझ गए मुझसे. अब तो जो होना होगा, वह तो होगा ही, हार क्यों मानूं? ऐसा सोचकर मैं भी उनसे निबटने लगा. वे लोग डांटकर बोल रहे थे, दुस्साहस कर रहे थे, लेकिन हल्का सा धक्का देने से लड़खड़ाकर गिरे जा रहे थे. सबसे पहले मैंने रिवॉल्वर वाले को दबोचा और उससे रिवॉल्वर छीन लिया. वे हाथ चला रहे हैं लगातार, लेकिन उसमें अधिकांश हाथ हवा में ही लहरा रहे हैं.

किसी तरह उन्हें ठेल-ढकेलकर आगे बढ़ा और मौका मिलते ही मैं अपनी शक्ति-भर दौड़ने लगा. उनका रिवॉल्वर अभी मेरे हाथ में है. अंधेरे और ऊबड़-खाबड़ रास्ते के बावजूद जान बचाने की गरज से मेरे अंदर पता नहीं कहां से इतना दम-खम आ गया है. वैसे मैं हांफ रहा हूं. सांसों पर काबू नहीं है. मैं भाग रहा हूं और वे मेरा पीछा कर रहे हैं. लग रहा है, अब मैं गिर पड़ूंगा. गिरने के बाद तो जान बचनी नहीं है. वे लोग मेरे पीछे हैं.

संयोग से एक गाड़ी की रोशनी दिखाई दी. मैंने कुछ राहत महसूस की. शायद पुलिस की गश्ती गाड़ी हो...हां! पुलिस की ही गाड़ी है, जो ठीक मेरे सामने रुक गई है. बलबलाकर पुलिस के जवान जीप से बाहर निकल आए हैं.

‘‘क्या हो रहा है?’’ एक सिपाही ने डपटकर कहा, मानो मैं मुजरिम होऊं.

‘‘ये लोग मुझसे पैसे, मोबाइल छीन रहे थे!’’ मैंने अकबकाकर कहा.

‘‘और आप, अभी यहां क्या करने आए थे?’’ दूसरे सिपाही ने सवाल दागा.

‘‘मैं एक शादी से होकर आ रहा हूं.’’ मैंने बताया.

‘‘शादी? अब सुनिए इनकी बिन मौसम बरसात? अभी शादी का लगन कहां? क्यों सरासर झूठ बोल रहे हैं आप.’’ तीसरे ने व्यंग्य किया.

‘‘मैं सच कह रहा हूं. मैं शादी से ही आ रहा हूं. और ये शोहदे मेरे पीछे पड़ गए.’’

‘‘चुप रहिए झूठ नहीं बोलिए...’’ एक सिपाही ने झिड़की दी.

‘‘सुनिए! जबान संभालकर बोलिए. मैं पीड़ित हूं, मुजरिम नहीं, मैं मिल्की मोहल्ला से शादी से लौट रहा हूं.’’

‘‘वह तो मुसलमानों का मोहल्ला है.’’

‘‘हां, मैं मुसलमान भाई के यहां से ही आ रहा हूं. शौकत हयात की बहन की शादी है आज.’’

‘‘आप मुसलमान हैं?’’

‘‘नहीं.’’ मैंने कहा.

‘‘तब नेता हैं? आम हिंदू तो नहीं जाता मुसलमान के घर!’’ सिपाही ने तर्क दिया.

‘‘यह आपकी समझ हो सकती है,’’ मैंने चिढ़कर कहा.

‘‘अरे, तुम लोग जाओ, भागो यहां से,’’ एक सिपाही ने उन शोहदों से कहा.

‘‘हवलदार साहब! यह क्या कह रहे हैं आप? ये लोग ही तो अपराधी हैं. इन्हें क्यों भागने को कह रहे हैं आप?’’ मैंने प्रतिरोध किया.

‘‘अपराधी? अपराधी कौन है, इसका फैसला तो कोर्ट करेगा. कोर्ट से पहले हम करेंगे, हमारे बड़े साहब करेंगे. अभी चलिए बड़े साहब के पास...हां, यह भी सोच लीजिए, आपके हाथ में रिवॉल्वर भी है. आर्म्स एक्ट में अंदर जाने पर पता चलेगा कि अपराधी कौन है...हुंह! अपराधी!’’

‘‘यह रिवॉल्वर तो उन लोगों का है हवलदार साहब. आप मुझमें और उनमें अंतर नहीं देख रहे हैं. मैं तो पढ़ने-लिखने वाला आदमी हूं, लेखक हूं, अपराधी नहीं हूं मैं!’’ किसी तरह हकलाते हुए मैं कह सका.

‘‘सुनिए! गूंगी साधने से या फिर बहस करने से मामला बिगड़ जाएगा. सीधे-सीधे रास्ते की बात कीजिए, उस पर अमल कीजिए...’’ एक दूसरे सिपाही ने राय दी.

‘‘चलिए, चलिए...बहुत हो गया. अब आप मानेंगे नहीं. बड़े साहब के पास पेश किया जाएगा आपको,’’ कहते हुए एक सिपाही मेरे नजदीक आ गया.

‘‘हाथ नहीं पकड़िए...मैं भाग नहीं रहा. चल रहा हूं आपके बड़े साहब के पास,’’ मैंने कहा.

कुछ पल के लिए सभी सिपाही, जिन्हें जान-बूझकर मैं हवलदार भी कह रहा था, एक-दूसरे का मुंह ताकते रहे और फिर चारों सिपाही एकाएक मेरी जेबों पर टूट से पड़े. बिल्कुल अप्रत्याशित, मेरी कल्पना से परे, और ऐसे में मैं किंकर्तव्यविमूढ़! खुदरा तक नहीं छोड़ा सिपाहियों ने, कलाई घड़ी निकाल ली. शुक्र है मोबाइल को अपने हाथ में लेकर फिर मेरी जेब में रख दिया. इसी दरम्यान शोहदों का रिवॉल्वर, जो मेरे पास था, झपट लिया एक ने.

जीवन में इस तरह का मेरा पहला अनुभव. वैसे मैं विरोध कर रहा था, चीख रहा था, लेकिन मेरी चीख को एक सिपाही ने मेरे मुंह पर हथेली से जकड़ लिया था. एक मुझे पकड़े हुए था और दो जेबों के ऑपरेशन में थे.

‘‘तुम...आप...आप लोग ऐसा क्यों कर रहे हो? क्या मैं अपराधी हूं? तुम लोग अच्छा नहीं कर रहे हो...मैं...मैं...’’

‘‘सुनो, भाषण मत दो. अभी तुम जिस हालत में पुलिस के सामने हो, उसमें तुम दोषी हो, सोलहों आने दोषी. सबूत जुटाने की जरूरत नहीं. तुम्हारे हाथ में रिवॉल्वर, रात का समय, सुनसान इलाका, जाहिर है तुम लूट रहे थे लोगों को. तुम लुटेरे हो, गुंडा हो. तुम्हारे मुंह से दारू की बास भी आ रही है!’’ एक सिपाही ने तर्क प्रस्तुत किया.

‘‘यह सरासर झूठ है,’’ मैंने कहा.

‘‘सुनो! ज्यादा बनो नहीं. बड़े साहब अपराधियों के सामने जालिम हो जाते हैं. उनके पास जाओगे तो मामला बिगड़ जाएगा. कोर्ट का चक्कर और जेल की चक्की और पहले तो आज रात भर थाने में कुटम्मस. तुम्हारा भला इसी में है कि तुम चुप रहो और चुपचाप भाग जाओ यहां से...’’ एक सिपाही ने बताया.

‘‘भागो...भाग जाओ...जितनी जल्दी हो सके भागो यहां से,’’ कहते हुए एक सिपाही ने मुझे बुरी तरह धक्का दिया. मैं गिरते-गिरते बचा. और फिर दो-तीन सिपाही मिलकर मुझे वहां से हटाने लगे.

लुटा-पिटा, अपमानित हुआ मैं काठ सा हो गया, पूरी तरह संज्ञाशून्य. न कुछ सोच पा रहा हूं और न ही शरीर में किसी प्रकार की गति है. शून्य अंधेरे में ताक रहा हूं. कर्मेंद्रियां और ज्ञानेंद्रियां काम करना बंद कर चुकी हैं, उन्हें लकवा मार गया हो जैसे.

बिजली गुल हो गई है. कुहासा और भी ज्यादा गाढ़ा हो गया है. हवा थम गई है, लेकिन ठंड बढ़ी हुई है. बावजूद इसके मेरे बदन पर पसीना छलक आया है. मैं खड़़ा हूं, खड़ा रहने को बाध्य हूं जैसे. और रात की नीरवता बढ़ती जा रही है.

समवेत ठहाका और फिर एकाएक सुनाई पड़ती है एक सिपाही की आवाज- ‘‘नया साल मुबारक हो भाई! नया साल मुबारक हो, मुबारक!’’

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - जनवरी 2017 : कहानी / नया साल मुबारक हो / अनंत कुमार सिंह
प्राची - जनवरी 2017 : कहानी / नया साल मुबारक हो / अनंत कुमार सिंह
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZeJBJN6Iw4GYgpkQbEVK5SmZCTOvR_5L0OCisCiTVFJwySzOQ8VtrLWUCqB1HSUzdouKcTqvngkUsVT2CKPJyrEQ9-GDaCLVmjSNvD8zBQK0WUwPRUNJI2AMxeoNw3tVjP-B6/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZeJBJN6Iw4GYgpkQbEVK5SmZCTOvR_5L0OCisCiTVFJwySzOQ8VtrLWUCqB1HSUzdouKcTqvngkUsVT2CKPJyrEQ9-GDaCLVmjSNvD8zBQK0WUwPRUNJI2AMxeoNw3tVjP-B6/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/03/2017_31.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/03/2017_31.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content