प्राची - जनवरी 2017 : पहले पन्ने की सूचना / दिनेश बैस

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यहां वहां की पहले पन्ने की सूचना दिनेश बैस -है प्पी न्यू ईयर, स्वीट हार्ट. कलैंडर ने चहक कर हाथ बढ़ाया. -चल, परे हट। बड़ा आया हैप्पी न्यू ...

यहां वहां की

पहले पन्ने की सूचना

दिनेश बैस

दिनेश बैस

-हैप्पी न्यू ईयर, स्वीट हार्ट. कलैंडर ने चहक कर हाथ बढ़ाया.

-चल, परे हट। बड़ा आया हैप्पी न्यू ईयर कहने वाला- कील तमक गई -साल का पहला दिन, और खाली हाथ आया है हैप्पी न्यू ईयर कहने- कील ने उलाहना दिया.

कलैंडर का मुंह लटक गया- सॉरी डार्लिंग, मैं तेरे लिये बुके लेने गया था- कलैंडर सफाई देने लगा- कोई भी माली चेक या पेटीएम से पैसे लेने के लिये तैयार नहीं हुआ. सब बोले- यह चोचलेंबाजी छोड़ो, बाबू साहब. इनसे भुगतान लेकर कौन बैंक के धक्के खाता घूमेगा. नगद दो सौ रुपये हों तो यहाँ खड़े हो. नहीं तो आगे बढ़ो. हवा आने दो. हमें शाम को सब्जी लानी है. तब हमारा आज का दिन हैप्पी होगा. ईयर तो अभी बहुत दूर की बात है. देखो, अच्छे दिन के धोखे में कैस-कैसे दिन देखने पड़ते हैं. सब्जी वाला क्या हमें पेटीएम या चेक से एक किलो आलू देगा?

-फिर दारू कैसे मिल गई तुझे. सबेरे-सबेरे मुंह दुर्गंधाता चला आया है- कील पूछ रही थी.

-वह तो कल मंत्री जी की मिड नाइट पार्टी में सर्व हुई थी. न्यू ईयर तो वे भी सेलिब्रेट करते हैं न- कलैंडर बता रहा था- संस्कारवान हैं. इसलिये जाते हुये साल को भावभीनी विदाई भी देते हैं. बहुत बड़े भविष्य-ज्ञाता भी हैं मंत्री जी- कलैंडर के दिमाग पर मंत्री जी की दारू अभी भी चढ़ कर बोल रही थी- उन्हें तो छः महीने पहले ही मालूम पड़ गया था कि हजार-पाँच सौ पर अटल काल सर्पयोग है. उनकी अकाल मृत्यु निश्चित है. इसलिये उन्होंने तो तभी उनकी अंतिम-क्रिया कर दी थी. अब तो शास्त्रोक्त विधि से उनकी शुध्दि भी हो गई है. अब वे सफेद हैं. नहीं तो आज किस में गूदा है जो नये साल की खुशी में मिड नाइट पार्टी दे. सुरा और सुंदरियों की इंद्र-सभा सजाये.

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-तेरे मंत्री जी को भविष्य ज्ञात हो जाता है. वर्तमान याद नहीं रहता है या जान कर भूल जाते हैं- कील फुफकार रही थी.

-तू कहना क्या चाहती है, यार. पहला दिन ही खोटा कर रही है. पूरा साल कैसे बीतेगा तेरे साथ- कलैंडर बौखला रहा था.

-यों कह कि मुझे तेरे जैसों के साथ ही गुजारने पड़ रहे हैं साल दर साल- कील की मौलिक पीड़ा थी- तू बदलता है हर साल. मैं तो जहाँ हूँ, वहीं हूँ. हमेशा से. तेरे जैसों का बोझ उठाने के लिये अभिशप्त. मैं हूँ जो इस सत्य को जानती हूँ कि कलैंडर बदलने से समय नहीं बदलता है. क्योंकि समय बदलने का, समाज में वैज्ञानिक चेतना जगाने का जज्बा ही नहीं है हममें. हम अतीत पर गर्व करते हैं. वर्तमान से असंतु-ट रहते हैं. भविष्य की जिम्मेदारी भगवान के हवाले कर देते हैं- कील कलैंडर का नशा पूरी तरह हवा करने पर आमादा थी- समय बदलता तो तेरे संस्कारवान मंत्री जी को याद रहता कि तीस जनवरी, जिस दिन गांधी जी की हत्या की गई थी, उस दिन को सर्वोदय दिवस तथा नशा-मुक्ति-शपथ-ग्रहण-दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. वह संकल्प एक दिन के लिये नहीं होता है. जीवन का अंग बनाने के लिये होता है. इसलिये मंत्री जी मिड डे पार्टी देकर तेरे जैसों के साथ दारूबाजी नहीं करते. नोट बंद करने के बजाय दारूबंदी की शपथ लेते. अमीरों को संरक्षण देने के स्थान पर गरीबों को काम देने का संकल्प लेते-

-यार कील, तू राजनीतिबाज क्यों नहीं बनी. कितना धुआँधार भाषण दे रही है- कलैंडर माहौल को हल्का करने की जुगत कर रहा था- लेकिन कहाँ तीस जनवरी आज पहली जनवरी को लेकर बैठ गई. विश्वास कर, डार्लिंग, तीस जनवरी आयेगी तो मंत्री जी वह सब भी कर लेंगे जो न करने का तुझे परेखा है. मंत्री जी गजब के अभिनेता हैं. माहौल बदलना जानते हैं.

-चल, पहली जनवरी पर आ जा- कील चुनौती दे रही थी- बता आज क्या खास बात है?

-आज पहली जनवरी है. न्यू ईयर्स डे. और क्या है- कलैंडर बौखला रहा था.

-जिन भारतीय सैनिकों के दम पर आज तेरे जैसे मौज कर रहे हैं न- कील कलैंडर की आंखें खोल रही थी- उनके युध्द में घायल होने पर, उपचार के लिये, सेना मेडीकल कोर आज ही स्थापित हुई थी. सोच कर देख, वह नहीं होती तो तेरे धंधेबाज प्रायवेट नर्सिंगहोम तो उन्हें पूछते भी नहीं-

-ओह, रीयली, कील- कलैंडर सहमति जता रहा था- वहाँ तो नो मनी. नो फनी. मरीज मर जाये तो बिना बिल भरवाये लाश भी नहीं देते हैं-

-चल और बता क्यों हैप्पी कह रहा था- कील ने फिर खींचा.

-यार कील, यह भी कोई बताने की बात है- कलैंडर फिर इतराने लगा- सब जानते हैं कि इसी महीने छब्बीस जनवरी भी आती है, गणतंत्र-दिवस. देश में गणतंत्र होने के चलते हमें कितने नागरिक अधिकार मिले हैं. नहीं तो रा-ट्रपति या सैनिक ृाासनों का दर्द क्या होता है, यह पड़ौसियों से अच्छा कौन जानता होगा।

-मूरख, सिर्फ अधिकार ही नहीं होते हैं गणतंत्र में. कर्तव्य और दूसरों के अधिकारों की रक्षा करना भी गणतंत्र की अपरिहार्य शर्त होती है. तू जो हमेशा हमारा-हमारा का राग अलापता रहता है, उसे भूल जा. यह देश सबका है. उन सबका जो इस देश में रहते हैं. किसी एक की बपौती नहीं है देश. जमीनों के टुकड़े होने से बचाना जरूरी है लेकिन आपस में न बंटने का संकल्प लेना भी जरूरी है- कील नसीहत दे रही थी- तेरे जैसे लोगों का पढ़ने-समझने में तो कोई विश्वास है नहीं. बस परम्परा की लकीर पीटते रहते हैं. नहीं तो देखता कि तेरे पहले पन्ने पर ही सूचना है कि बारह जनवरी रा-ट्रीय युवा वर्-ा के रूप में मनाया जाता है. यह स्वामी विवेकानंद को सार्थक रूप से याद करने के लिये मनाया जाता है. इसी दिन जन्म हुआ था उनका. उन्होंने कहा है-

‘इस दुनिया में सभी भेदभाव किसी स्तर के हैं न प्रकार के. क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है.’

-विवेकानंद दुनिया की एकता की बात कर रहे थे- कील निराशा में हँसी- तुम लोग हो कि एक देश, एक समाज में ही न मालूम कितने खाने खींचे बैठे रहते हो.

कलैंडर पस्त सा था. उसका रोमांटिक मूड हवा होता जा रहा था- अरी कील, मैं कब तक पढ़ता रहूँगा. मेरे ऊपर न जाने क्या-क्या लिख दिया जाता है. छापने वालों से फुर्सत मिलती है तो टांगने वाले दूध और धोबी का हिसाब लिख-लिख कर गोदना शुरू कर देते हैं- कलैंडर का दर्द झलक रहा था.

-पढ़ेगा-समझेगा नहीं तो गंवार बना रहेगा. जो, जो कुछ समझा देगा, वह करना शुरू कर देगा- कील कलैंडर का सिर सहला रही थी- हैप्पी न्यू ईयर कहना तू सीख गया. क्योंकि तेरे जैसे सब कह रहे हैं. यह याद रखना नहीं सीखा कि इस हैप्पीनेस के लिये, आजाद देश में सांस लेने के लिये, इसी महीने में कितने-कितने लोगों ने कुर्बानी दी हैं. आजादी से पहले भी. आजादी के बाद भी- तुझे ज्ञात है- कील याद दिला रही थी- अंग्रेजों के सम्राज्य से मुक्ति के संघर्ष में, अट्ठाइस जनवरी को लाला लाजपत राय कुर्बान हो गये थे. इक्कीस जनवरी को अविभाजित भारत में, खेलने खाने के दिनों में, हेमु कालाणी को फांसी पर लटका दिया गया था.

‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा.’ का संदेश तो तुझे याद होगा- कील पूछ रही थी- यह आह्वान करने वाले नेताजी सुभाषचंद बोस इस हैप्पी जनवरी की तेईस तारीख को ही जन्मे थे. और लाल बहादुर शास्त्री को भी तू भूला तो नहीं होगा. ग्यारह जनवरी को ही हमारे बीच से वे चले गये थे.

कलैंडर सर्दी में भी गर्मी से हाँफ रहा था.

कील हंसी नहीं रोक पाई- पसीना मत पोंछ प्यारे, यह सर्दी के दिन हैं. गुनगुनी धूप में बैठ कर नई फसल की प्रतीक्षा करने के. अपने गौरवपूर्ण अतीत को याद करने के. उनसे प्रेरणा लेने के. उन पर चल कर इस देश को, इस समाज को, इस संसार को सुख-शांति के साथ रहने योग्य बनाने का संकल्प लेने के. हैप्पी न्यू ईयर कहने से ही ईयर हैप्पी नहीं हो जाता है, यह हमारे पूर्वज जानते थे. इसलिये उन्होंने हैप्पीनेस के लिये साल के ृाुरू के इस महीने को कर्म के नाम समर्पित किया है. देख. दादी-नानी की तरह कील याद दिलाने लगी- नेत्रहीनों को पढ़ना सिखाने के लिये लुई ब्रेल ने ब्रेल लिपि का अवि-कार किया. उन्हें हम चार जनवरी को याद करते हैं.

-जो भाषा हम बोलते-पढ़ते हैं, जो हमारे पूरे देश में जानी समझी जाती है, देश को जोड़ती है, उस हिंदी को विश्व तक ले जाने के लिये दस जनवरी को हम ‘विश्व-हिंदी-दिवस’ मनाते हैं- कील बता रही थी- तेरे जैसे दारूबाज धुत्त होकर, मोबाइल पर बतियाते हुये, बिना सीट-बैल्ट बांधे, ड्राईव न करें और खुद के तथा दूसरों की जान के दुश्मन न बन जायें, यह सिखाने-समझाने के लिये हम ग्यारह से सत्तरह जनवरी के बीच ‘राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा’ सप्ताह मनाते हैं. इसी बीच पंद्रह जनवरी को हम अपनी सेनाओं के शौर्य तथा सेवा को सम्मान देने के लिये थल-सेना-दिवस का आयोजन करते हैं. लड़कियों के प्रति तुम पुरुष-प्रधान समाज के दिमाग से, सड़ी गली दुर्गंध मारती, समांती मानसिकता के जाले साफ करने के लिये, चौबीस जनवरी को ‘राष्ट्रीय बालिका दिवस’ भी हम मनाते हैं. और हाँ, जैसे कील को अचानक कुछ याद आ गया हो. तरीखों के झमेलों से बचने के लिये इसी महीने के अंतिम रविवार को हम संसार को कुष्ठ रोग से मुक्त करने का संकल्प भी लेते हैं. कील थमी.

-इसका मतलब, कील- कलैंडर भौंचक्का सा था- पूरा महीना ही हैप्पी वाला होता है. साल का पहला दिन ही नहीं.

-तू आंख-कान-दिमाग से देखना-समझना शुरू करेगा तो हमारा तो पूरा साल ही हैप्पी होता है- कील के स्वर में कुछ गर्व झलक रहा था- दुनिया में हमसे अधिक सेलेब्रिटी कौन होगा- कील इतरा रही थी- बोल, नाश्ते में क्या लेगा.

-नूडल्स कैसे रहेंगे-

-नूडल्स-पिज्जा छोड़. इस भूसे को खाकर सेहत से खिलवाड़ कौन करे- कील का गृहणी रूप उभर रहा था- जाड़े के दिन हैं. मेथी की भाजी के परांठे और बथुआ का रायता बनाते हैं. हरे धनिया-मिर्च-अदरख-लहसुन की मिक्सी में नहीं, सिल-लोढ़े से पिसी चटनी से खायेंगे. साथ में घर की सेंवई की खीर का आनन्द ही कुछ और होगा. कील आचरण से स्वदेशी हो रही थी. नारे उसे पाखंड लगते थे.

सम्पर्कः 3-गुरुद्वारा, नगरा, झांसी-284003

मो. 08004271503

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रचनाकार: प्राची - जनवरी 2017 : पहले पन्ने की सूचना / दिनेश बैस
प्राची - जनवरी 2017 : पहले पन्ने की सूचना / दिनेश बैस
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