हम लोग बेंगलोर से एर्नाकुलम जा रहे थे । ट्रेन थी, बेंगलोर-एर्नाकुलम एक्स्प्रैस । एसी-थ्री का रिजर्वेशन था। रात के दस बज चुके थे । ट्रेन अपन...
हम लोग बेंगलोर से एर्नाकुलम जा रहे थे । ट्रेन थी, बेंगलोर-एर्नाकुलम एक्स्प्रैस । एसी-थ्री का रिजर्वेशन था। रात के दस बज चुके थे । ट्रेन अपनी रफ़्तार से गंतव्य की ओर बढ़ रही थी। सभी यात्री भोजन आदि से निवृत्त होकर अपने-अपने बर्थ पर लेट चुके थे। मेरी लोअर बर्थ थी। मैंने भी पैर तान दिए और कोई पत्रिका लेकर नींद की आराधना करने लगा। मेरे ऊपर वाली दोनों बर्थ पर दो युवतियां सफ़र कर रही थीं। दोनों ने साथ बैठकर भोजन किया था। उनकी बातों से लग रहा था कि वे दोनों सहेलियां हैं। साथही यह भी कि उनके कुछ साथी दूसरी बोगी में सफ़र कर रहे हैं। मिडिल-बर्थ पर जो थी उसका नाम नैना था और ऊपर वाली बर्थ पर थी, उसका पूर्वा। भोजन के बाद पूर्वा ने कहा, "सुन नैना, मैं दो दिन से सोई नहीं हूं। आज की रात खूब सोना है मुझे। कल से फ़िर नौकरी का चक्कर शुरू हो जाएगा। इसलिए ऐसा कर। ये मेरा टिकट भी तू रख ले । टी. टी. वगैरह आया तो दिखा देना। मैं अब उठनेवाली नहीं। "
"तो जाओ न ऊपर और सो जाओ तानकर। सुबह छह बजे आएगा एर्नाकुलम। तब तक की फ़ुर्सत । वैसे भी, ऊपर के बर्थवाले को एक सुविधा रहती है। वह कितनी भी देर तक सोए, उसे कोई यह कहने नहीं आता कि भैया अब उठ भी जाओ, हमें बैठना है।"
और वे दोनों सो गईं अपनी-अपनी बर्थ पर। थोड़ी देर बाद बत्ती बंद करके मैंने भी कंबल ओढ़ लिया।
करीब साढ़े-ग्यारह बजे, एक यात्री पूर्वा के सामने वाली बर्थ से नीचे उतरा। उतरते वक्त उसने अपना पैर सीधे मेरे हाथ पर रख दिया था इसलिए मेरी नींद खुल गई। हम लोग सोए तब वह बर्थ खाली थी। शायद बादमें एलॉट कर दी गई। यात्री टॉयलेट की ओर गया और लौटकर पुन: अपनी बर्थ पर चढ़ने का प्रयास करने लगा । लेकिन वह चढ़ नहीं पा रहा था। उसकी आयु अधिक नहीं थी। हां, कुछ मोटा जरूर था । लेकिन वह खूब शराब पिए हुए है यह समझते देर नहीं लगी। मेरी सामनेवाली लोअर और मिडिल-बर्थ पर सोए दोनों सीनिअर सिटिजन-यात्री जाग चुके थे। उन्होंने उस लड़खड़ाते यात्री को बताया कि ऊपर किसतरह चढ़ना है। किसीप्रकार वह यात्री ऊपर चढ़ पाया। नैना और पूर्वा भी जाग चुकी हैं यह मेरे ध्यान में आ चुका था लेकिन किसी के कुछ कहने का प्रश्न ही नहीं था। थोड़ी देर में सबकुछ पूर्ववत हो गया।
बारह-साढ़ेबारह बजे पूर्वा की आवाज से मेरी नींद खुली। वह उस शराबी यात्री को अंग्रेजी में डांट रही थी। पल भर बाद उस यात्री को नीचे उतरकर फ़िर टॉयलेट की ओर जाते हुए देखा मैंने। मैं समझ गया कि अबकी नीचे उतरते वक्त उसने पूर्वा को भी डिस्टर्ब किया होगा।
इस बार ऊपर चढ़ते वक्त वह फ़िर लड़खड़ाया। बड़ी मुश्किल से चढ़ पाया।
कुछ समय बाद मेरी फ़िर नींद खुल गई। पड़े-पड़े ही मैंने देखा, पूर्वा उस यात्री को डांट रही है। अबकी उसके तेवर कुछ अधिक तीखे थे। यात्री अपनी बर्थपर उठकर बैठ गया था। पूर्वा ने अपना सिर कुहनी पर रखा था और ...। वह जिस प्रकार से बात कर रही थी उससे लग रहा था कि यात्री ने कुछ बदतमीजी की है। पता नहीं, जानबूझकर या शराब के नशे में नीचे उतरते-चढ़ते अनजाने में ऐसा हो गया ! यात्री ने पूर्वा से कुछ कहा जो मैं समझ नहीं पाया लेकिन सुनकर पूर्वा तड़ाक से नीचे उतर गई। उसने अपनी चप्पल पहनी और तेजी से बोगी के दरवाजे की ओर बढ़ गई। पहले एक दिशा में फ़िर दूसरी ओर जाते देखा मैंने। यात्री अपनी बैग सिरहाने लेकर लेटा ही था कि पूर्वा अटेंडेंट को लेकर उपस्थित हो गई। उसने अंगरेजी में यात्री की शिकायत करते हुए कहा कि उसने बदतमीजी की है और उसे अन्यत्र शिफ़्ट किया जाए। अबतक नैना उठकर बैठ गई थी और मैं भी। हम दोनों ने भी पूर्वा के सूर में सूर मिलाते हुए कहा कि वह यात्री शराब पिए हुए है, बार-बार नीचे उतरता है और हम लोगों को काफ़ी देर से डिस्टर्ब कर रहा है। अटेंडेंट ने यात्री से कुछ बात की। यात्री भी कुछ कहने लगा। शायद दोनों कन्नड़ या मलयालम में बात कर रहे थे इसलिए हम लोग उनका वार्त्तालाप समझ नहीं पाए।
"मैडम, यू प्लीज वेट फ़ॉर सम टाइम। आई विल कॉल द टीटी...।" कहकर अटेंडेंट चला गया। यात्री अपनी बर्थ पर लेटा रहा जबकि पूर्वा नीचे मेरी बर्थ पर एक कोने में बैठी रही।
कुछ ही देर में, अटेंडेंट टी. टी. को लेकर उपस्थित हो गया। टी. टी. ने पूर्वा की शिकायत सुनी। वह यात्री से उसी की भाषा में कुछ बात करने लगा। जवाब में, यात्री उससे बहस कर रहा है इतना ही मैं जान पाया।
" प्लीज, इसे कहीं शिफ़्ट कर दीजिए। इससे हम सबलोग परेशान हैं।" -मैंने सोचा, एक धक्का अपन भी लगा दो ताकि बला टल जाए।
"तुम अपना सामान लेकर मेरे साथ आओ। तुम्हारी कहीं और व्यवस्था कर देता हूं।" –टी. टी. ने फ़ैसला-सा सुनाते हुए यात्री से कहा।
यात्री इतनी जल्दी मान जाएगा, ऐसा नहीं लगा था लेकिन अटेंडेंट ने उसकी बैग उठा ली और उसका हाथ पकड़कर चलने लगा। पीछे-पीछे टी. टी. भी। जाते-जाते वह पूर्वा की ओर देखकर , " सॉरी मैडम..." और मेरी ओर देखकर, " नाउ यू कैन स्लीप पीसफ़ुली" कहना न भूला।
सब लोग अपनी-अपनी बर्थ पर नींदिया रानी के आगोश में पहुंच चुके थे। मेरी परेशानी यह है कि एक बार नींद खुल जाए तो दोबारा बड़ी मुश्किल से आ पाती है।
आधा-पौन घंटे बाद फ़िर टी. टी. आ गया। पूर्वा को आवाज देते हुए कहने लगा,
"सॉरी मैडम,... यह छोटा-सा फ़ॉर्म है। मैंने भर दिया है। आप केवल दस्तखत कर दीजिए।" टी. टी. ने बत्ती जला दी थी।
“किस चीज का फ़ॉर्म है ये!”- पर्स में से चष्मा निकालते हुए पूर्वा ने जानना चाहा।
"दिस इज द फ़ॉर्म ऑफ़ कम्प्लेंट फ़्रॉम द पैसेंजर । ...फ़ार द सेक आफ़ अर सेफ़ गार्ड । इफ़ ही लाजेज् कम्प्लेंट अगेंस्ट मी...।"
" आपने उसे कहां शिफ़्ट कर दिया?" मेरी उत्सुकता जाग गई थी।
" फ़ॉर द टाइम-बीइंग मैंने उसे अटेंडेंट की बर्थ पर सोने के लिए कह दिया है। अटेंडेंट से कहा, आज के दिन वह फ़र्श पर एडजस्ट हो जाए। और कहीं तो जगह है नहीं।"
"पता नहीं वह क्यों इस प्रकार बिहेव कर रहा था?"
"सर, वह अपग्रेडेड पैसेंजर है। पिया हुआ तो है ही। अपग्रेडेशन में उसीका नंबर लगा तो हम लोग भी क्या करें। ...बहरहाल, आप लोगों को परेशानी हुई इसलिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।"
पूर्वा ने फ़ार्म पढ़कर दस्तखत कर दिए। टी.टी. चला गया। बत्ती बुझा दी गई।
कुछ देर बाद टी. टी. अपने साथ एक गणवेशधारी व्यक्ति को लेकर आया। उसके गणवेशपर लगे हुए तमगों से लग रहा था कि वह टी.टी. का कोई वरिष्ठ अधिकारी हैं। टी. टी. ने पूर्वा को आवाज दी- "एक्सक्यूज मी मैम....। ही इज इनचार्ज आफ़ एसी कोच । ही जस्ट वाण्टस् टू कन्फ़र्म योर कम्प्लेंट...।"
इनचार्ज ने पूर्वा से पांच-सात सवाल पूछे और "थैंक्स् ..." कहकर दोनों चले गए।
जैसे-तैसे नींद लगी ही थी कुछ आवाज आयी । एक यात्री दोनों हाथों में सामान लेकर हमारे कूपे में आया था। उसने सामान नीचे रखा और मोबाइल की टॉर्च से बर्थ-नंबर्स पढ़ने लगा। मेरे सामनेवाली बर्थ पर लेटे यात्री ने पूछा, " मे आई हेल्प यू जंटलमैन...।"
"मैं फ़ॉर्टी-सिक्स ढूंढ रहा हूं । वह मुझे एलॉट हुई है...।"
" सबसे ऊपरवाली, जो खाली है, वही है फ़ॉर्टी -सिक्स...।"
" जी, थैंक्स...। थोड़ी मेहरबानी करेंगे अंकल...! मेरा कुछ और सामान दरवाजे के पास पड़ा है। मैं दो मिनट में लेकर आता हूं। तबतक जरा-सा ध्यान रखेंगे मेरे इस सामान पर !"
" ओ के...नो प्रोब्लेम...।" सुनकर आगंतुक सामान लेने चला गया।
मैं आंखें मूंदकर आहट लेने लगा कि एकबारगी वह यात्री सामान लेकर आ जाएं और अपनी बर्थ पर व्यवस्थित हो जाएं तो मैं सो जाऊं।
यात्री आया। उसके पास जरूरत से ज्यादा सामान था। हमारी बर्थ के नीचे इतने सामान के लिए कदापि जगह न थी। उसे अपना सामान जमाने के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी। उसके इस प्रयास में पूर्वा और नैना का सामान इधर-उधर हो गया था । वे उठीं । उनकी बैग्ज् जहां खिसका दी गई थीं, उन्होंने वहीं चेन लगा दीं । मैंने घड़ी देखी। चार बज रहे थे। सोचा, अब भी कुछ समय नींद ली जा सकती है।
कुछ देर बाद मैंने देखा, टी. टी. और वह शराबी यात्री दोनों पूर्वा को जगाने का प्रयास कर रहे थे। "एक्सक्यूज मी...एक्सक्यूज मी मैडम...।" पूर्वा उठकर बैठ गई।
" मैडम, ही वान्टस् टू एपोलोगाइज...। कहता है, जो कुछ हुआ उसके लिए माफ़ कर दीजिए। उसे अलूवा में उतरना है। उसका स्टेशन आ रहा है। "
"ठीक है न, आपका जो प्रोसिजर होगा उसके अनुसार कीजिए। मुझे कोई आपत्ति नहीं है...ओ के!"
" मैडम, ये आपका कम्प्लेंट वापस ले लीजिए। " टी. टी. ने प्रोफ़ार्मा वापिस करते हुए कहा।
" ओ के, एनी थिंग मोर..!"
" नो मैडम, थैंक्स्... बस, कम्प्लेंट वापिस लिया करके यहां दस्तखत कर दीजिए।"-एक नोट-बुक सामने करते हुए टी. टी. ने कहा।
पूर्वा ने नोट-बुक में हस्ताक्षर कर दिए।
थोड़ी देर बाद हम सब का स्टेशन आनेवाला था। पूर्वा का एक साथी हमारे कूपे में आकर सामान की चेन खोलने लगा। पूर्वा ने उसे रात का सारा वृत्तांत सुनाकर अंत में कहा, " जानते हो, सारी रात सो नहीं पायी मैं।"
"अरे यार, इससे तो अच्छा था, मुझसे आकर कहती अपनी परेशानी। बाजूवाली बोगी में ही तो था मैं। तुम वहां सो जाती। मैं यहां चला आता। कोई डिस्टर्बनस् नहीं । रातभर मस्त सोया मैं। यहां निपट लेता मैं उस शराबी से । जरूरत पड़ती तो स्साले को दो लगा भी देता।"
सुनकर पूर्वा को पता नहीं कैसा लगा लेकिन मुझे आज भी लग रहा है कि पूर्वा को वैसा ही करना चाहिए था। अगर वह वैसा करती तो न केवल उसकी और मेरी बल्कि उस कूपे के बाकी यात्रियों की भी वह रात नींद के लिए मोहताज न होती। ❒❒
-भगवान वैद्य ‘प्रखर’
30 गुरुछाया कालोनी, साईंनगर, अमरावती-444607
E-mail: vaidyabhagwan23@gmail.com
वैसे अगर पूर्वा बर्थ बदल देती तो आप लोगों को तो चैन की नींद मिल जाती लेकिन वो व्यक्ति आगे भी वैसा ही व्यवहार करता। उम्मीद है की इस घटना के बाद उसे अक्ल आ गयी होगी।यात्रा के दौरान ऐसी स्थितियों का अक्सर सामना करना पड़ता है।
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