हमारा सांस्कृतिक पर्व - गणगौर तीज श्रीमती शारदा नरेन्द्र मेहता ( एम . ए . संस्कृत विशारद ) गणगौर पर्व का प्रारम्भ होली द...
हमारा सांस्कृतिक पर्व-गणगौर तीज
श्रीमती शारदा नरेन्द्र मेहता
(एम.ए. संस्कृत विशारद)
गणगौर पर्व का प्रारम्भ होली दहन पूर्णिमा के दूसरे दिन से प्रारम्भ होता है। विवाहित महिलाओं को सौभाग्य प्रदान करने वाला तथा अविवाहित कन्याओं को उत्तम वर प्राप्ति का आशीर्वाद देने वाला है। इस पर्व पर गण (शिव) गौर (पार्वती) का पूजन किया जाता है। इन्हें ईसर-गौर भी कहा जाता है। इसका समापन चैत्र शुक्ल तृतीया को होता है। कुछ घरों में यह परम्परा है कि होली की राख से कंकड उठाकर होली के दूसरे दिन से इस व्रत का प्रारम्भ करते हैं। इस दिन जवारे बोए जाते हैं। प्रतिदिन इसे सींचा जाता है-
म्हारा हरिया जवारा हो राज, लंबा तीखा सरस बद्या।
ईसर जी रा बाया हो राज, गौरा देवी सींच लिया।।
प्रतिपदा से गणगौर तीज के एक दिन पूर्व तक प्रतिदिन चल समारोह निकाला जाता है। महिलाएँ और कन्याएँ सिर पर कलश रखकर उसमें फूल पाती सजाकर रखती है और चल समारोह आगे बढ़ता है। दो कन्याओं को वर-वधू के परिधान पहिनाकर जुलुस में सम्मिलित किया जाता है। सभी महिलाएँ मनोरंजन करते हुए गणगौर गीत गाती है-
खेलन दो गणगौर आलीजा म्हने पूजन दो गणगौर
म्हारी सहेलियाँ जोवे बाट कि खेलन दो गणगौर।
मालवा प्रान्त में घरों में पाटिये पर लाल कपड़ा बिछा कर उसमें कलश में थोड़ा जल भर आम के पत्ते, फूल रख कर पूजन के लिये स्थापित किया जाता है। गणगौर की प्रतीक स्वरूप शिव-पार्वती की मूर्ति रख पूजन के लिये स्थापित किया जाता है। सास ननद को वायना देने का भी कुछ घरों में रिवाज है। कंकू, मेंहदी व काजल की सोलह-सोलह टिकियाँ दीवार पर लगाई जाती है। सुहाग सामग्री अर्पित कर पूजन आरती की जाती है।
राजस्थान में गणगौर पर्व का अत्यधिक महत्व है। वहाँ का यह पर्व विदेशों में भी प्रसिद्ध है। विदेशी सैलानी प्रतिवर्ष इस पर्व में सम्मिलित होते हैं। निमाड़, मालवा तथा गुजरात में भी प्रकारान्तर से यह पर्व मनाया जाता है। तीज के दिन महिलाएँ उपवास रखती हैं। पीतल या लकड़ी का मुखौटा जो गौरी का प्रतीक होता है उसे लकड़ी की कुर्सीनुमा चैकी पर रखा जाता है। उसे सुन्दर वस्त्राभूषण से सजाया जाता है। विभिन्न सौभाग्य सामग्री से उसका पूजन किया जाता है। आटे में हल्दी डालकर दूध से गूँथ कर प्यारे-प्यारे सुन्दर गहने बड़ी तन्मयता से महिलाएँ बनाती हंै और श्रद्धा भक्ति से गौर को पूजन के समय अर्पित करती है-
आ टीकी बाई गौरा ने सोहे तो
ईसर जी बैठ धड़ाय......
नैवेद्य में मीठी वस्तु, शकर पारे व मठरी का विशेष महत्व होता है। चैकी पर बैठी हुई गणगौर का चल समारोह बैण्ड-बाजे के साथ किसी बगीचे में जलाशय के समीप पहुँचता है। वहाँ भी गणगौर की पूजन आरती होती है। गणगौर को पानी पिलाया जाता है, झाले देते हैं, पान बीड़ा खिलाया जाता है, नृत्य गान करते हैं, इस प्रकार यह पर्व पूर्ण होता है। प्रौढ़ महिलाएँ गणगौर व्रत की कथा सुनाती है। हर क्षेत्र की कथाएँ विविधता पूर्ण हैं। यह दन्तकथा भी समाज में अत्यधिक प्रचलित है-
एक बार शिव पार्वती अपनी प्रजा का दुःख दर्द दूर करने की इच्छा से पृथ्वी पर आये। उन्हें रास्ते में एक घोड़ी दिखाई दी। वह प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी। पार्वती शिवजी से बोली महाराज घोड़ी बैचेन क्यों है? शिवजी बोले देवि! इसे बच्चा हो रहा है। पार्वतीजी बोली महाराज ऐसा कष्ट है तो मेरे लिए आप गाँठ बाँध लो। शिवजी ने कहा फिर गाँठ नहीं खुलेगी। दोनों आगे बढ़ने लगे। चलते-चलते एक शहर में आये। वहाँ सुनसान था। लोगों के चेहरे पर उदासी थी। पूछने पर ज्ञात हुआ कि गर्भवती रानी प्रसव पीड़ा से परेशान है तो पार्वतीजी बोली कि मेरे लिए तो आप गाँठ बाँध लो।
शिवजी बोले सोच लो पार्वती यह दूसरी गाँठ है। फिर शिव पार्वती आगे बढ़े। वहाँ उन्हें एक गर्भिणी गाय मिली। वह भी प्रसव पीड़ा से दुःखी थी। शिवजी ने बताया इसे भी बच्चा होने वाला है। पार्वती जी बोली आप मेरे लिये तो गाँठ बाँध ही लो। शिवजी ने पार्वती को सावधान किया और कहा पार्वती सोच समझ लो। यह बाँधी हुई गाँठ खुलेगी नहीं। पार्वती नहीं मानी। समय बीत गया। शिव पार्वती वापस अपने धाम जाने लगे। रास्ते में उन्हें वही घोड़ी दिखी जो अपने बच्चे के साथ घूम रही थी। वही शहर भी मार्ग में आया। शहरवासी खुश थे। चारों ओर प्रसन्नता थी। पूछने पर ज्ञात हुआ कि रानी को बेटा हुआ है। आगे चलने पर उन्हें वही गाय माता दिखी जो अपने बछड़े को प्यार कर रही थी। इन सभी के मातृत्व को देखकर पार्वती जी उदास हो गई। शिवजी ने कहा पार्वती हम तो गाँठ बाँध चुके हैं। समय बीतता रहा। एक दिन पार्वतीजी ने उबटन लगाया। उबटन छुड़ाने पर उन्होंने उस उबटन का एक पुतला बनाया और उसे द्वार पर रख कर कहा कि मैं स्नान करने जा रही हूँ। किसी को अन्दर न आने देना। कुछ समय पश्चात् शिवजी आये। बालक ने विरोध किया तो उन्होंने उसका सिर काट दिया और अन्दर चले गये। पार्वती को जब यह घटना ज्ञात हुई तो उन्होंने शिवजी को बतलाया कि वह तो हमारा मानस पुत्र था। उसे जीवित कीजिये।
शिवजी ने अपने गणों से कहा कि ऐसे बच्चे का सिर काट कर लाओ, जिसकी माँ शिशु की तरफ पीठ कर के सोई हो। गणों ने देखा कि सभी जगह माताएँ अपने बच्चे की ओर मुँह कर के सोई थीं। केवल एक हथिनी अपने बच्चे की ओर पीठ कर के सोई थी। गणों ने उसके बच्चे का सिर काट दिया और ले आये। शिवजी ने उस बालक को हाथी के बच्चे का सिर लगा दिया। पार्वती जी बोली यह तो विचित्र आकृति है। शिवजी ने कहा कि आज से इसका नाम गणेश हुआ। सभी स्थानों में सर्वप्रथम इसका मांगलिक पूजन किया जावेगा। यह हमारे लिए बड़े आनन्द की बात है। जैसे पार्वती को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई उसी प्रकार उनके भक्तों को पुत्र प्राप्ति होवे यही हमारी ईसर-गौर से प्रार्थना है।
कथा समाप्ति के बाद महिलाएँ पूजन-आरती कर एवं नैवेद्य लगाकर व्रत का समापन करती हैं।
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श्रीमती शारदा नरेन्द्र मेहता
एम.ए. संस्कृत विशारद
103 ए व्यास नगर, ऋषिनगर विस्तार
0734.2510708 9406660280
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