माय वैलेंटाइन / कहानी / महेश हीवेट

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हे तुम ! आओ, अन्दर आ जाओI आखिर इतने सालों के बाद, आज तुम मिल ही गयीI चलो, इधर मेरे सामने बैठो, और खबरदार, जो तुम फिर हमसे दूर गयी तोI अरे, ...

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हे तुम ! आओ, अन्दर आ जाओI आखिर इतने सालों के बाद, आज तुम मिल ही गयीI चलो, इधर मेरे सामने बैठो, और खबरदार, जो तुम फिर हमसे दूर गयी तोI अरे, तुम तो आज भी गुमसुम बैठी होI कुछ तो बोलो नI क्या तुम मुझसे मिलकर खुश नहीं हो ? बिलकुल भी नहींI एक बात कहूँ यार, तुम न, आज भी बहुत खुबसूरत लग रही होI तुम्हारे साथ बिताये उन लम्हों को मैं आज भी बहुत मिस करता हूँI तुमको याद है न ? जब हम पहली बार कोचिंग में मिले थेI तुम लड़कियों के ग्रुप में, ब्लैक बोर्ड के पास बैठा करती थीI जब तुम कोचिंग के टेस्ट में क्लास टॉप कर जाती और सेकंड टॉपर तुमसे कम से कम दस अंकों पीछे रह जाता थाI

मुझे तो अच्छी तरह से याद हैI जब तुम्हारी मनमोहक मुस्कान पर हम लड़कों का पूरा ग्रुप ही दीवाना हुआ करता थाI कुछ लोगों को तुमसे दोस्ती की दिली ख्वाहिश हुआ करती थी, तो कुछ लोगों को तुमसे बेइन्तहां मोहब्बत हो गयी थी, एक तरफ़ा ही सहीI कोचिंग के बाहर खड़ी तुम्हारी साइकिल की कुछ लोग हवा निकाल दिया करते थेI फिर तुमको हवा भरता देखकर, वहीँ लोग खुद ही हवा भरने लगते थेI उनके हवा भर देने के बाद, तुम्हारे मधुलेपित होठों से थैंक्स सुनने पर उनको बिलकुल वैसा ही महसूस होता, जैसा कि तुमको क्लास टॉप करने के बाद होता थाI तुम इतनी गुमसुम क्यों हो ? क्या बस मैं ही बोलता रहूँ ? जानती हो, चाहता तो मैं भी तुमको थाI शायद एक दोस्त की तरह, या फिर जिस तरह से तुम्हारी ख़ुशी होI तुमको अपने मन में उतरने के लिए मैंने प्रणय के सभी द्वार खोल रखे थेI

तुमको याद न ? मैं तो तुमसे भी ज्यादा शर्मीला थाI लेकिन चाहता मैं भी था, कि तुमसे मेरी बातचीत होI मैं चाहता था कि तुम उन सारी बातों को मुझसे भी कहो, जिनको तुम अपनी सहेलियों से कहकर हँस दिया करती थीI जानती हो ? उस समय तुमको अपनी ओर आकर्षित करने का मेरे पास कोई रास्ता नहीं था, सिवाय क्लास टॉपर बनने केI हालाँकि मेरे लिए यह इतना आसान भी नहीं थाI क्योंकि मेरी पढ़ाई हमेशा से औसत रही थीI जो कि तुम्हारी तुलना में काफी कम थीI तुमको याद है न ? जब कोचिंग में तुम्हारे बगल वाली सीट पर मैं पहली बार बैठा थाI तुम अपने चश्मे को ठीक करने के बहाने, मुझे तिरछी नज़रों से देख लिया करती थीI सच कहूं ! तुम्हारा यूँ देखना न, मुझको बड़ा ही आनंदित करता थाI लेकिन जब भी तुम मुझे ऐसे देखा करती थी न, मैं और मन लगाकर पढ़ने की कोशिश करने लगता थाI क्योंकि मैं चाहता था कि तुम, मुझे ऐसे ही देखती रहोI

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जानती हो? अगर आने वाले टेस्ट में, मैं तुमसे ज्यादा अंकों से पीछे रह जाता न, तो मैं हमेशा के लिए क्लास में सबसे पीछे वाली सीट पर अपनी जगह बना लेता, या फिर कोचिंग ही छोड़ देताI अच्छा, एक बात बताओI तुम मुझे इतने प्यार से क्यों देखा करती थी ? मैं क्लास में नया आया था इसलिए या मैं दूसरे लड़कों की तरह लड़कियों पर भद्दे कमेन्ट नहीं कसता था इसलिए या फिर तुमको मुझ पर प्यार आ रहा थाI हालांकि प्यार आने वाली बात, मेरे समझ से बाहर थीI

अब पंद्रह दिन बीत चुके थेI तुम्हारा मुझको यूँ देखने का सिलसिला चलता रहा थाI मुझे पता था कि कोचिंग के कामों को तुम कॉलेज में हीं पूरा कर लिया करती थीI कॉलेज की क्लास में तुम्हारे साथ न होना, मुझे भी बहुत खलता थाI लेकिन मैं क्या करता ? अगर ट्यूशन पढ़ाने न जाता, तो कोचिंग में तुम्हारे बराबर बैठने का फीस कैसे चुका पाता ? जानती हो ! उन दिनों मुझे पता नहीं क्या हो गया थाI सोते-जागते, उठते-बैठते, हर वक़्त तुम्हारी रमणीय मुखमंडल, मेरे पलकों से ओझल न हो पाती थीI फिर सावन की दौड़ती धूप कि तरह, हमारे क्लास टेस्ट का दिन आ धमका थाI सुबह ट्यूशन पढ़ाकर, मैं समय से कोचिंग कि ओर चला थाI पर क्या करता, जब रास्ते में अचानक मेरे साइकिल कि चैन टूट गयीI फिर संतुलन बिगड़ा और अगले ही क्षण मैं पेड़ से टकरा गया थाI मुझे कहीं चोट भी लगी थीI इसका तो मुझे होश भी न थाI बस, दुःख इस बात से था, कि मेरी सीट पर रखी पेपर, मेरा इंतज़ार कर रही होगी और बगल की सीट पर बैठी तुम भीI

बीस मिनट कि देरी से, मैं कोचिंग पहुंचा तो देखा कि पूरा क्लास अपनी-अपनी कापियों में न्यूटन व पाइथागोरस के वक्तव्यों को लिखने में लगे थे, सिवाय तुम्हारेI सीट पर पहुंचकर मैंने तिरछी नज़रों से तुम्हारी कॉपी पर देखा और तुमने भी अपनी प्रणय किरणों से मुझे विच्छेदित कियाI उसके बाद तुम्हारे दिल को जो तसल्ली मिली थी नI वह तुम्हारे दमकते चेहरे पर बखूबी दिख रही थीI मैंने देखा कि इतनी देर बाद भी तुम कुछ ही लाइनें लिख पायी थीI तुम लिख भी कैसे पाती ? तुम्हारी पलकों को मेरे आने का इंतज़ार जो थाI अगले ही क्षण हम दोनों भौतकीय व गणितीय नियमों को सिद्ध करने में जुट गए थेI टेस्ट ख़त्म होने के बाद, तुम क्लास से बाहर चली गयी थीI मैं पूरी क्लास में, अपनी सीट पर अकेला बचा थाI तभी अचानक, मेरी ओर किसी के आने की आहट हुईI मुड़कर देखा तो तुम्हीं थीI तुम्हारी मुठ्ठी टाफियों से भरी थीI जिनको तुमने बिना कुछ कहे मेरी टेबल पर रख दिया थाI सच में, मुझे तुमसे ही पता चला था, कि लड़कियां टाफियों कि इतनी दीवानी होती हैं, खासकर तुम्हारी जैसीI

“अरे, ये चोट कैसे लगी ?” मेरी आँख कि ओर इशारा करते हुए तुमने अपनी चुप्पी को आवाज़ दिया थाI सच में, मुझे तब पता चला था, कि मेरी बायीं आँख के ऊपर खून के थक्के जमें थेI देखो, तुम सुन तो रही हो न ? भला उस पल को मैं कैसे भूल सकता हूँI जब तुम अपने रुमाल से मेरे घाव को साफ कर रही थी, और मैं चुपचाप तुमको इतने करीब से निहार रहा थाI तब सामने की मेडिकल से दो टिकिया लाकर मुझे देते हुए, उनको समय से खा लेने का हिदायत भी तुमने ही तो दिया थाI क्लास में हम दोनों को अकेले कोई देख पाताI उससे पहले ही तुम वापस अपने सहेलियों के बीच चली गयी थीI जब तुम मेरे पास से उठकर जा रही थी न, तब मैं तुमसे कुछ कहना चाह रहा थाI लेकिन मैं कुछ कह पाता, उससे पहले तुम बाहर जा चुकी थीI मैं तब तक वहीँ बैठा रहा, जब तक चपरासी क्लास बंद करने के लिये नहीं आ गयाI

अगले दिन रविवार की छुट्टी थीI लेकिन मैं उस दिन भी कोचिंग आना चाह रहा थाI बस तुम्हारी झलक पाने के लिएI मुझे पता था, मुझसे मिलने की तलब तुमको भी लगी होगीI फिर हमारा पहला वैलेंटाइन डे आया । उस दिन, तुम्हारे कोचिंग पहुंचते ही, बाहर खड़े लड़कों में से कई लोगों ने शरारत में तुम्हारी ओर चुम्बन के तोहफे उड़ाये । जिसका तुम्हें तो पता न चला, पर मैं आहत हुआI आज हमारे टेस्ट के नंबर पता चलने वाले थे । जब मैं अपनी सीट पर पहुंचा तो वहाँ एक टॉफी रखा पाया । मैं समझ गया था, कि ये तुम्हारा ‘बेस्ट ऑफ़ लक’ कहने का तरीका था । जानती हो, उस पल अनायास ही मेरे मन में तुम्हारे लिए एक शिकायत उभरकर आयी । तुम टॉफी की जगह एक फूल या एक प्रेम सन्देश भी तो रख सकती थी । सच में, मुझे बड़ा मीठा एहसास होता । तुम्हारे टॉफी से कहीं ज्यादा मीठा । जब टीचर, हमारी कॉपियों के बण्डल सहित क्लास में आये तो जैसे हमारी साँसे ही अटक गयी । हमेशा की तरह एक –एक कापियों के खुलने का सिलसिला शुरू हुआ । पिछले कुछ मिनटों में तुम मेरी ओर अनगिनत बार देख चुकी थी । मैं भी तुम्हारी ओर देखे बिना कहाँ रह पा रहा था । पचास में से चालीस अंक पाने वाले लड़के को देखकर, पूरी क्लास में सन्नाटा पसर चुका था । उस समय तुम्हारी मानसिक उलझनें, तुम्हारी खूबसूरती को फीका कर रहे थी । फिर पैंतालीस गिनती को टीचर ने ऊँची आवाज में उदघोषित किया । मैं तो कुछ समझ ही न पाया, जब देखा कि सर्वाधिक नंबर पाने वाले दो कापियों को सर ने सबको दिखाया । अगले पल हम दोनों ही क्लास टॉपर थे । सच कहूं, उस दिन से पहले मैं कभी क्लास के टॉप दस में भी न आ सका था । ये बस तुम्हारी चाहत ही थी । जो तुम्हारे बराबर लाकर खड़ा कर दिया था । मैं उस दिन को भला कैसे भूल सकता हूँ ? जब कोचिंग से छूटने के बाद, मैं बाजार में किसी काम से घूमता रहा । फिर घंटे भर बाद घर की ओर चला तो तुमको कोचिंग के बाहर धूप में बैठा पाया । मुझे देखते ही, तुम भी झट से मेरे बगल में आकर चलने लगी थी । उस दिन फिर मैं तुमसे कुछ कहना चाह रहा था । कम से कम रूमाल वाली घटना के लिए थैंक्स बोल देना चाह रहा था । पर क्या करता जब तुमको देखकर दिल की बात जुबां पर न आ पाती थी । ऐ, तुमको याद है न ? जब रास्ते में किसी को न आता हुआ देखकर, तुमने मुझे एक गिफ्ट देकर, उसे घर पर ही खोलने का आग्रह किया था । मुझे याद है, गिफ्ट लेते समय, पहली बार हमारे हाथ एक – दूसरे हुए थेI कुछ ही पल के लिए सहीI सच कहूं, उस गिफ्ट को लेकर मैं अपने घर पर बिजली की गति से पहुंचा था । अगले ही पल, उस गिफ्ट की अथाह प्रेमवर्षा से मैं तुम पर मुग्ध हो गया था । तुमको पता है ? मैं उस दिन कितना खुश हुआ था । इतनी ख़ुशी मुझे पहले कभी नहीं मिली थी । उस लेटर में तुमने, जो गुलाब की पेंटिंग बनायीं थी न, तुम्हारी तरह वह भी बेहद खूबसूरत थी । और हाँ, वो तीन शब्दों का समूह, जिन्हें तुमने दिल की गहराइयों में जाकर लिखा था । वो मेरे लिए महज़ एक वाक्य नहीं थे । उनको पढ़कर, मैं तो एकदम झूम उठा था । जानती हो, अगले ही दिन तुमको जवाब देने के लिये, मैंने पूरी तैयारी कर ली थी। बिल्कुल तुम्हारे ही तरीके से, शायद उसी जगह पर । पर मैं क्या करता, जब तुम अगले दिन कोचिंग आयी ही नहीं । उसके अगले दिन भी नहीं, और फिर कभी भी नहीं । बोलो न, तुम कहाँ चली गयी थी ? अच्छा चलो, अब मेरा एक प्रणय निवेदन स्वीकार करो । जिससे तुम हमेशा के लिए मेरे पास रह सकों । 'विल यू बी माय वैलेंटाइन, प्लीज़ ?'
हे, मेरा दिल मत तोड़ो । अब तो बस हां कर दो और हमेशा के लिए मेरी प्रेयसी बन जाओ । अरे, मुझे इतनी ठण्ड क्यों लग रही है ? तुम दिखाई नहीं पड़ रही होI मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं । 'ऑफिस जाना है या नहीं ?' मेरी रज़ाई को खींचते हुये, मेरी माँ मुझ पर चिल्ला पड़ी । ओ हो, देखो न, तुम फिर से चली गयी । तो अब फिर कब मिलोगी ? ख्वाब में ही सही ।

महेश हीवेट

Mahesh Hewett

(महेश हीवेट)

ग्राम धनैता, पोस्ट डोमनपुर,

तहसील चुनार, जिला मीरजापुर,

उत्तर प्रदेश – 231 306

मोबाइल नं. - +91-9651764863

-मेल – author4949@gmaIl.com

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रचनाकार: माय वैलेंटाइन / कहानी / महेश हीवेट
माय वैलेंटाइन / कहानी / महेश हीवेट
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