बसंत पंचमी विशेष... महाकवि निराला को सविनय समर्पित -- महाप्राण निराला की कालजयी रचनाओं को समर्पित ... ......
बसंत पंचमी विशेष... महाकवि निराला को सविनय समर्पित
-- महाप्राण निराला की कालजयी रचनाओं को समर्पित ...
... सुन बे गुलाब !!!
मेरे शहर में भी बहुत से गुलाब हैं। 'कुकुरमुत्ता ' के रचना काल में मौजूद गुलाबों से भी ज्यादा। कुछ गुलाबों को तो मैं पर्सनली जानता हूँ। पत्थर तोड़ने वाली ' वह ' भी हैं मेरे शहर में बहुत। परन्तु कुछ देखना - सुनना या सूंघना तो लोग गुलाबों के बारे में ही चाहते हैं , पत्थर तोड़ने वालों - वाली के बारे में बताने - सुनने लायक कुछ ऐसा नया तो अब भी नहीं है जिसमें सनसनी या मसाला मिले। इसलिए सेलिब्रेटिज गुलाबों पर ही फोकस करें।
इन गुलाबों में से कुछ गुलाब सफेद हैं, कुछ लाल और कुछ हाइब्रिड। ठीक वैसे ही जैसे और गुलाब जनरली होते हैं।
परन्तु इनमें से कुछ बहुत ख़ास हैं। जैसे कुछ गुलाब अपनी प्रजाति को संरक्षित रखने के लिए कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं किन्तु भाजपा के सीनियर गुलाबों की नज़र में बाहर से अंदर आये ये वही अशिष्ट हैं जो मौका पाकर खाद का खून चूसते हैं। सीनियर गुलाबों को धोका देना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है क्योंकि उन्होंने डॉन फिल्म के साथ साथ महाकवि निराला के ' कुकुरमुत्ता ' को भी पढ़ा है। संक्षिप्त में सीनियर गुलाब बहुत पढ़े - लिखे हैं।फिर भी बाहरी गुलाब गज़ब का धैर्य धरे हुए हैं। उनका सोचना है कि अब जब हम कमल के हो ही गए हैं तो हमें कमल के रामों ( सीनियर्स ) की शक्ति की पूजा तो करनी ही होगी।
कुल मिलाकर बाहरी गुलाब भी निराला को पढ़ चुके हैं।
अभी जिनका जिक्र हुआ वे सब बाहर से सफेद दिखने वाले ऐसे गुलाब हैं जिनका भीतरी रंग आसानी से कन्फर्म नहीं होता।
कुछ गुलाब भीतर से तपते अंगारे की तरह लाल होते हैं किन्तु ऊपर से जबरदस्त सफेदी ( शांति ) धारण किये होते हैं। ये सरकारी पुरुस्कारों से सम्मानित गुलाब हैं। बाहर से सफेद ( शांत) दिखने वाले इन गुलाबों का असली रंग गर देखना हो तो इनसे केवल इतना पूछ देना बहुत है कि ये पुरस्कार आप को कैसे मिल गया ? कुछ , भविष्य में गुलाब हो जाने की तैयारी में रात दिन लगे रहते हैं।ये भयंकर मेहनती होते हैं। जैसे ये पुरुस्कृत गुलाबों के साथ ज्यादा से ज्यादा अपना समय बिताते हैं। ये उच्चासन में विराजमान अधिकारी-गुलाबों की भरपूर सेवा जतन करते हैं क्योंकि इनका अनुभव कहता है कि प्रसाशनिक ओहदेदार और पूर्व पुरस्कृत गुलाबों के रिकमंडेशन लेटर / सिफारिश पत्र ही सरकारी पुरस्कार दिलाने में मुख्य भूमिका अदा करते हैं। वस्तुतः ये बेहद दूरदर्शी होते हैं।
इसी वर्ग में शामिल कुछ गुलाब आध्यात्मिक प्रकृति के हैं जो महानगरों के अपने हाईटेक आश्रमों में ध्यान व जीने की कला सिखाने के साथ-साथ आश्रमों के अंदर ही हाईप्रोफाइल गुलाबों को हाइब्रिड गुलाब पैदा कर सकने की सिद्धि भी प्रदान करते हैं। इन हाईप्रोफाईल गुलाबों को कुछ लोग खुल्ला - सांड भी कहते हैं पर ऐसे लोग दरअसल नासमझ , गँवार और निगेटिव - थिंकर होते हैं , जो किसी की सिद्धि (उन्नति )बर्दाश्त नहीं कर सकते।
विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में प्रोफेसर- गुलाब होते हैं। रिसर्च करने के नाम पर यू० जी ० सी ० से प्राप्त राशि का सदुपयोग करने में ये गुलाब सिद्धहस्त होते हैं। " गुरु गोविन्द दोउ खड़े..." वाली प्रसिद्द रचना की प्रेरणा दरअसल कवि को कॉलेजों वाले इन्हीं गुलाबों से मिली थी। ये गुलाब अपना रिसर्च पेपर सबमिट करते समय सेकण्डरी- डाटा को प्रायमरी - डाटा में कन्वर्ट करने में सचमुच गुरु होते हैं। बस्तर की जनजातियों या कवर्धा के बैगा - बेल्ट से संबंधित उनका रिसर्च पेपर बस्तर या कवर्धा के हॉटल में ही ठहरकर पूरा हो जाता है। दरअसल ये गुलाब दिव्यदर्शी होते हैं।
कुछ गुलाब बेहद लाज़वाब होते हैं। देश का नेतृत्व करने वाले ये दबंग गुलाब अपनी दबंगई संसद के अंदर अपोजिशन पर जूते, चप्पल , माईक फेंककर दिखाते हैं। ऐसे दृश्यों का लाइव प्रसारण देखकर वे और जोश के साथ अपनी संसदीय परम्परा का निर्वहन करते हैं। पूरी दुनिया में ऐसे दृश्यों से भारतीय - संसद का छीछालेदर करने - करवाने का उन्हें ये जो अधिकार प्राप्त होता है, इसे ही पॉलीटिकल - साइंस में उनका विशेषाधिकार कहते हैं।
कुछ मंच प्रेमी गुलाब होते हैं, वे कैसे भी करके किसी न किसी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि- विशेष अतिथि बनने के लिए बहुत मेहनत करते हैं । स्वयं को अतिथि बनवाने के लिए ये गुलाब कई बार कार्यक्रम के आयोजकों का खर्च भी स्वयं ही वहन करते हैं। स्वयं को सम्मानित करवाने के लिए अपनी पसंद का मोमेन्टो , शॉल ,श्रीफल खुद ही खरीदकर आयोजन के एक रात पहले , वे आयोजकों के घर तक पहुंचा आते हैं।
ऐसे मंचों में मैंने कई बार बच्चों को भी देखा है। बच्चे, मंचस्थ गुलाबों को फूल भेंट करके उनकी आरती उतारते हैं। उनके लिए स्वागत गान गाते हैं। फिर मंचस्थ गुलाब अपने आने से पहले धूप में घंटों खड़े रहकर उनकी प्रतीक्षा करने वाले उन बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं। फिर आयोजकों के निर्देश पर भूख से व्याकुल बच्चे अतिथि - गुलाबों की जय के नारे लगाते हैं। उनके भाषणों पर तालियां बजाते हैं।
उपर्युक्त वर्णित सारे गुलाबों की प्रजातियों की सुन्दरता की सुरक्षा, उनके संवर्धन व संरक्षण के लिए तैनात कांटे बेहद चिकने और चौकन्ने होते हैं। दिखने में मिलनसार इंसान की तरह नज़र आने वाले वे कांटे दरअसल विषबुझे होते हैं।
महाप्राण निराला के पात्र दशकों के बाद भी जिन्दा हैं -- गुलाब बनकर, कुकुरमुत्ते बनकर !
वे जीवन्त हैं पहले से ज्यादा, बहुत ज्यादा ताकतवर होकर !! आमीन !!!
-- योगेश अग्रवाल , राजनांदगांव Email- mitrindia@gmail.com
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