एक बार भगवान शंकर व माता पार्वती विचरण करते हुए एक पर्वत पर बैठे थे। इधर-उधर की बातें होने लगीं। संसार के बारे में चर्चा हो रही थी। तभी मात...
एक बार भगवान शंकर व माता पार्वती विचरण करते हुए एक पर्वत पर बैठे थे। इधर-उधर की बातें होने लगीं। संसार के बारे में चर्चा हो रही थी। तभी माता पार्वती के पैर पर पानी की एक बून्द गिरी। माता ने आश्चर्य से ऊपर देखा। आसमान साफ था। ऊपर कोई पक्षी भी दिखाई नहीं दिया। फिर यह पानी की बूंद कहां से आई। माता ने बहुत सोचा परंतु पानी की बून्द का रहस्य समझ में न आया। उन्होंने अपनी शंका भगवान शंकर से कही। भगवन ने देखा तो उन्हें भी कुछ समझ में न आया। माता ने जिद की तथा बूंद के रहस्य का पता लगाने के लिए कहा। शंकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए।
जब शंकर जी ने अपने नेत्र खोले तो माता पार्वती ने फिर अपनी जिज्ञासा जाहिर की तथा पूछा कि यह पानी की बूंद कहां से आई।
शंकर भगवान ने कहा – “अभी थोडी देर पहले नीचे समुन्द्र में एक मगरमच्छ ने छलांग लगाई थी। जिससे पानी उछल कर ऊपर की ओर आया और आपके पैर पर पानी की बूंद पड़ गई।”
“यह कैसे हो सकता है ?” मां पार्वती ने शंका जाहिर की। “क्या मगरमच्छ इतना बलशाली है कि उसकी छलांग लगाने से पानी इतना ऊपर उछल कर आ गया ? समुद्र तो यहां से बहुत दूर है।”
“हां पार्वती, ऐसा ही हुआ है।” भगवान ने शांत भाव से उत्तर दिया।
“परंतु यह बात मेरे गले नहीं उतर रही। मैं इस की जांच करना चाहती हूं। मैं स्वयं जाकर देखना चाहती हूं।” पार्वती ने आज्ञा मांगने के आशय से कहा।
“हां पार्वती, मैं ठीक कह रहा हूं। ऐसा ही है।’ भगवान ने पार्वती को फिर समझाया।
“परंतु मुझे विश्वास नहीं हो रहा। मैं अपनी शंका का समाधान करना चाहती हूं।” पार्वती ने कहा “मैं स्वयं जाकर सच्चाई जानना चाहती हूं।”
भगवान शंकर “जैसी आपकी इच्छा।” कहकर फिर अंतर्ध्यान हो गए।
माता पार्वती नीचे समुद्र तट पर पहुंच गईं। उन्होंने देखा कि एक मगरमच्छ किनारे पर ही तैर रहा है। उन्होंने झट उस मगरमच्छ को बुला कर उससे पूछा -“क्या तुमने अभी कुछ देर पहले पानी में छलांग लगाई थी ?”
“हां माता श्री, क्या मुझसे कोई भूल हो गई है ? कृप्या मुझे क्षमा कर दें।” मगरमच्छ ने हाथ जोड़ दिये।
“नहीं वत्स, तुमसे कोई भूल नहीं हुई। मैं अपनी एक शंका का निवारण करने आई थी।” पार्वती ने कहा।
“कैसी शंका माता श्री ?” मगरमच्छ ने प्रश्न किया।
“मैं ऊपर शंकर भगवान के साथ बैठी थी कि मेरे पैर पर पानी की एक बूंद आकर गिरी। आसमान भी साफ था तथा ऊपर कोई पक्षी भी नहीं उड़ रहा था। मैंने जब शंकर जी से इसका रहस्य पूछा तो उन्होंने ही यह सब बताया।” पार्वती आश्चर्य से मगरमच्छ को देख रहीं थीं। “लेकिन यदि तुम्हारे पानी में कूदने से जल इतना ऊपर आया है तो इसका मतलब यह हुआ कि तुम बहुत बलशाली हो।” माता ने फिर कहा।
“नहीं मां, मैं कहां बलशाली हूं। मेरे जैसे और मेरे से भी अधिक बलशाली कई मगरमच्छ इस समुद्र में रहते हैं। समुद्र हम सबको समेटे हुए है। तो बलशाली तो समुद्र हुआ न।” मगरमच्छ दीनता से बोला।
“तुम ठीक कहते हो।” यह कहकर पार्वती मां समुद्र के पास जाकर बोलीं – “समुद्र-समुद्र, तुम बहुत बलशाली हो।”
समुद्र हाथ जोड़कर खडा हो गया। “क्या बात है माता, आप ऐसा क्यों कह रहीं हैं ?”
“मैं ऊपर शंकर भगवान के साथ बैठी थी कि मेरे पैर पर पानी की एक बूंद आकर गिरी। आसमान भी साफ था तथा कोई पक्षी भी नहीं उड़ रहा था। मैंने जब शंकर जी से इसका रहस्य पूछा तो उन्होंने बताया कि अभी थोडी देर पहले नीचे समुन्द्र में एक मगरमच्छ ने छलांग लगाई थी। जिससे पानी उछल कर ऊपर की ओर आया यह उसी पानी की बूंद है।” माता पार्वती ने आगे कहा – “सोचो वह मगरमच्छ कितना बलशाली है। और ऐसे कई मगरमच्छों को तुम समेटे हुए हो। अतः तुम बहुत बलशाली हो।”
“माता आप ऐसा कहकर सिर्फ मेरा मान बढाना चाहती हैं। यह आपका बड़प्पन है। मैं तो कुछ भी नहीं। अब देखिए न, यह सामने पर्वत खडा है। समुद्र में इतनी ऊंची-ऊंची लहरें ऊठती हैं पानी के थपेडे दिन-रात इसको टक्कर मारते रहते हैं। फिर भी यह कई वर्षों से इसी प्रकार निश्चल खडा है। इस पर मेरी लहरों और थपेडों का कोई असर नहीं होता। मुझ से तो बलशाली यह पर्वत है।” समुद्र ने कहा।
‘ओह, मैंने तो यह सोचा ही नहीं था। वाकई, पर्वत बहुत बलशाली है।” यह कहकर पार्वती जी पर्वत के पास जाकर बोली –“पर्वत बेटा, मैने सुना है कि तुम बहुत बलशाली हो।”
“यह आप कैसे कह सकती हैं माता जी।” पर्वत ने नम्रतापूर्वक प्रश्न किया
“मैं शंकर भगवान के साथ वहां ऊपर बैठी थी कि मेरे पैर पर पानी की एक बूंद आकर गिरी। मैने जब शंकर जी से इसका रहस्य पूछा तो उन्होंने बताया कि नीचे समुन्द्र में एक मगरमच्छ ने छलांग लगाई थी। जिससे पानी उछल कर ऊपर की ओर आया। वह मगरमच्छ कितना बलशाली है। और ऐसे कई मगरमच्छ समुद्र में अठखेलियां करते हैं। उसी समुद्र की लहरों के हजारो-लाखों थपेडों का भी तुम पर कोई असर नहीं होता। तब तो तुम ही बलशाली हुए न।” पार्वती मां ने सारी कहानी सुनाते हुए पर्वत से पूछा।
“नहीं-नहीं माता जी। सच्चाई तो यह है कि मेरे जैसे कई छोटे-बडे पर्वत इस पृथ्वी पर कई वर्षों से खडे हैं। और पृथ्वी हम सब का भार अपने ऊपर लिए निश्चल खडी है। तो पृथ्वी हमसे भी अधिक बलशाली हुई।” पर्वत ने अपना तर्क दिया।
पार्वती सोच में पड़ गईं। वो सोचने लग गई मैं भी कहां भूली हुई थी। बलशाली तो पृथ्वी है चलो पृथ्वी के पास चलते हैं। मां पृथ्वी के पास जाकर कहने लगीं – “अरे पृथ्वी रानी। मैं तो भूली पडी थी। मुझे पहले ख्याल ही नहीं आया। तुम तो बहुत बलशाली हो।”
“वो कैसे मां।” पृथ्वी ने प्रश्न किया।
“मैं शंकर भगवान जी के साथ ऊपर पर्वत पर बैठी थी कि मेरे पैर पर पानी की एक बूंद आकर गिरी। मैंने जब शंकर जी से इसका रहस्य पूछा तो उन्होंने बताया कि नीचे समुन्द्र में एक मगरमच्छ ने छलांग लगाई थी। जिससे पानी उछल कर ऊपर की ओर आया। वह मगरमच्छ कितना बलशाली है। और ऐसे कई मगरमच्छ समुद्र में विचरण करते हैं। उसी समुद्र की लहरों के हजारों-लाखों थपेडों को यह पर्वत सहते हैं। इन जैसे कई पर्वतों का और हम सब का भार तुमने अपने ऊपर लिया हुआ है। इसलिए इसमें शक की कोई गुंजाईश ही नहीं है। तुम ही सबसे बलशाली हो।” पार्वती मां ने पृथ्वी को समझाया।
पृथ्वी पार्वती की बात सुनकर नत-मस्तक होकर बोली –“ मैं कहां बलशाली हूं मां ? मैं तो स्वयं ही शेषनाग पर टिकी हुई हूं। जब शेषनाग ज़रा सा भी अपना सिर हिलाते हैं तो मैं डोल जाती हूं। बलशाली तो शेषनाग जी हैं।”
पार्वती जी का माथा ठनका। व सोचने लगीं। अरे वाकई, पृथ्वी सही कह रही है। इतनी बडी पृथ्वी का सारा का सारा भार शेषनाग ने अपने शीश पर ऊठा रखा है। तो बलशाली और महाशक्ति तो वही हुआ।
पार्वती जी झट से शेषनाग के पास पहुंचीं और उससे कहने लगी। – “शेषनाग जी मुझे तो आज पता चला कि आप बहुत शक्तिशाली हो।”
“वह कैसे ?” शेषनाग ने जिज्ञासा प्रकट की।
“मैं शंकर भगवान जी के साथ ऊपर पर्वत पर बैठी थी कि मेरे पैर पर पानी की एक बूंद आकर गिरी। मैने जब शंकर जी से इसका रहस्य पूछा तो उन्होंने बताया कि नीचे समुन्द्र में एक मगरमच्छ ने छलांग लगाई थी। जिससे पानी उछल कर ऊपर की ओर आया। वह मगरमच्छ कितना बलशाली है। और ऐसे कई मगरमच्छ समुद्र में रहते हैं। उसी समुद्र की लहरों के हजारों-लाखों थपेडों को यह पर्वत सहते हैं। ऐसे कई पर्वत पृथ्वी पर आसन जमाए बैठे हैं। वही पृथ्वी केवल तुम्हारे शीश पर टिकी हुई है। तुम ही सबसे बलशाली हो। तुम महान हो। तुम महाशक्ति हो” पार्वती ने सारी कहानी दोहरा दी।
शेषनाग हाथ जोड़ कर दंडवत प्रणाम करके पार्वती माता के चरणों में लोट गया और बोला –
“हे मां, आप ऐसा कहकर मुझे पाप का भागी बना रही हैं। मैं तो एक अदना सा प्राणी हूं। मेरी ऐसी बिसात कहां। असल महाशक्ति तो आपके पति शंकर भगवान हैं।”
“शंकर भगवान ? वो कैसे ?” मां ने प्रश्न किया।
“मेरे जैसे कई सर्प, कई नाग उनके गले में लिपटे रहते हैं, उनके शरीर पर रेंगते रहते हैं। आप कहां भटक गईं माता। महाशक्ति तो शंकर भगवान हैं।” शेषनाग का उत्तर सुनकर ऐसा लगा जैसे पार्वती के सोचने की शक्ति समाप्त हो गई थी। वे वापिस आकर शंकर भगवान के चरणों में गिर पडीं।
राम कृष्ण खुराना
Ram Krishna Khurana
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