हाइगा आनंदिका (हाइगा- संग्रह ) / डा. सुधा गुप्ता / निरुपमा प्रकाशन, मेरठ / २०१६ / मूल्य रु. २४० /- केवल / पृष्ठ, ८८ आनंद वर्षा करते चित्रि...
हाइगा आनंदिका (हाइगा- संग्रह ) / डा. सुधा गुप्ता / निरुपमा प्रकाशन, मेरठ / २०१६ / मूल्य रु. २४० /- केवल / पृष्ठ, ८८
आनंद वर्षा करते चित्रित हाइकु
डा. सुरेन्द्र वर्मा
हाइगा एक चित्रित और सुलेखित हाइकु है। आदर्श स्थिति यह है कि स्वयं हाइकुकार ही अपनी रचना को चित्रित और सुलेखित करे। एक चित्रमय हाइकु रचे। लेकिन ऐसा बहुत कम हो पाता है। कभी हाइकुकार चित्रकार नहीं होता और कभी चित्रकार हाइकुकार नहीं होता। इसलिए हाइगा को प्राय: अपनी आदर्श स्थिति के साथ समझौता करना पड़ता है। हाइकु के अनुरूप कोई चित्र ढूंढा जाता है और उसपर हाइकु चस्पाँ कर दिया जाता है। या, किसी कवि के हाइकु को देखकर कोई चित्रकार उसपर एक चित्र बनाने के लिए प्रेरित हो जाता है और हाइकु को हाइगा में तब्दील कर देता है। हिन्दी में अभी तक कम से कम मेरे देखने में कोई भी हाइगा संग्रह नहीं आया जिसे रचनाकार ने स्वयं ही चित्रित और सुलेखित किया हो। <हाइका आनंदिका> भी इसका अपवाद नहीं है।
नहीं, हम जल्दबाजी में ऐसा न कहें। डा. सुधा गुप्ता के अक्षर बहुत ही सुन्दर और सुडौल होते हैं। उनके एकाधिक हाइकु संग्रह उनकी खुद की हस्तलिपि में प्रकाशित हुए हैं। सभी खुश-ख़त हैं। और एक हाइकु-संग्रह < खुशबू का सफ़र > न सिर्फ उनकी हस्तलिपि में है बल्कि इसमें हर हाइकु के साथ रचना को ‘दर्शाता’ एक चित्र भी है। डा. गुप्ता का यह हाइकु संग्रह तब हाइगा - संग्रह के रूप में नहीं जाना गया था। यह १९८६ में प्रकाशित हुआ था और तब हिन्दी कवियों को हाइगा के बारे में कुछ पता ही नहीं था। डा. सुधा गुप्ता भी निश्चित ही तब हाइगा नाम से अनजान रहीं होंगी। वे तो बस अपने हाइकुओं को अधिक आकर्षक बनाने के लिए उन्हें चित्रित भर कर रहीं थीं। अनजाने में ही वे हाइगा रच रहीं थीं। उन्होंने यह संग्रह मुझे अपने हस्ताक्षर के साथ भेजा था। मेरे पास वह एक अति-मूल्यवान वस्तु की तरह आज भी सुरक्षित है।
तो वस्तु,स्थिति यह है की डा. गुप्ता ने अस्सी के दशक में ही हाइगा रच लिए थे। उनकी <हाइगा आनंदिका> बाकायदा हाइगा-संग्रह के रूप में अब तीस साल बाद आई है !
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हाइगा से मेरा परिचय २००७ में हुआ था। अमेरिका से अंग्रेज़ी में एक, वर्ष में केवल दो बार, moonset, the newspaper निकलता है। इसकी सम्पादक अन्या (an’ya) हैं। मूनसेट जापानी कविता और कला-रूपों को समर्पित है। इसमें मेरे कई अंग्रेज़ी हाइकु प्रकाशित हुए। ( एक बार “हस्ताक्षर हाइकु” (signature haiku )के अंतर्गत भी मेरा एक हाइकु प्रकाशित हुआ था।) इसी परिका के एक २००७ के अंक में मैंने सबसे पहले हाइगा के बारे में जाना। इसमें कुछेक हाइकु, हाइगा के रूप में, प्रकाशित किए गए जिनपर चित्र मूनसेट के कला सम्पादक ने बनाए थे । कई ‘तांका’ भी चित्रित किए गए थे। भारत के दो तांका /हाइकुकारों ने इसमें अपने तांका स्वयं ही चित्रित किए थे। ये दो रचनाकार थे – मारिया और राधेश्याम। तब मुझे यह भी पता चला कि हाइगा केवल चित्रित हाइकु ही नहीं होता बल्कि चित्रित तांका भी हो सकता है। बहरहाल इससे पहले मैं चित्रित हाइकुओं की हिन्दी में कई पुस्तकें देख चुका था किन्तु न तो उनके हाइकुकारों को और न ही मुझे यह पता था की वे वस्तुतः ‘हाइगा-संकलन’ हैं। मैं डा. गुप्ता के <खुशबू का सफ़र> का उल्लेख ऊपर कर ही चुका हूँ। किन्तु इसके अतिरिक्त सन २००० में भगवत भट्ट का <आखर पांखी>, सचित्र हाइकु संग्रह भी मैंने देखा था। इस संग्रह की रचनाओं का चित्रांकन ममता मानव और सुनीता सेंगर ने किया था। २००३ में मदन मोहन उपेन्द्र का हाइकु संग्रह <चिड़िया आकाश चीर गई> आया था। इसके कुछेक हाइकु बी. लाल ने चित्रित किए थे। २००३ में ही भास्कर तेलंग का हाइकु संग्रह <मन बंजारा> आया था। इसके भी कुछेक हाइकु बी लाल और जितेन्द्र साहू ने चित्रित किए थे। २००४ में भास्कर तेलंग का ही एक दूसरा हाइकु संग्रह <मकड़ जाल> आया। जिसके सभी लगभग ७०-७५ हाइकु चित्रित थे और इसका चितांकन भी बी.लाल ने ही किया था। उपरोक्त सभी संग्रह तो मेरे संज्ञान में हैं जिन्हें मैंने देखा/पढ़ा है। निश्चित ही, ऐसे चित्रित हाइकु संग्रह और भी हों। किन्तु ये सारे हाइगा-संग्रह होते हुए भी हाइकु-संग्रह ही कहलाए क्योंकि हिन्दी काव्य तब तक हाइगा नाम से परिचित ही नहीं था !
हिन्दी की पहली <हाइगा-वीथि> मुझे रेखा रोहतगी से प्राप्त हुई। इसमें रेखा रोहतगी के हाइकुओं को शची शर्मा ने चित्रित किया है। यह हाइगा के नाम से पहली पुस्तक है जिसमे सचित्र हाइकु हैं और हाइकुओं का चित्रण किसी चित्रकार ने किया है न कि कोई भी या किसी का भी चित्र या फोटोग्राफ उठाकर किसी का भी हाइकु उसपर चस्पां कर दिया गया हो जैसा की आजकल हाइगा के नाम पर भानुमती का कुनबा खूब जोड़ा जा रहा है।
डा. सुधा गुप्ता की <हाइगा आनंदिका> में आनंद प्रदान करने वाले हाइकु तो हैं ही, इन्हें प्रकाशक और चित्रकार निरुपमा जी ने बड़े प्रेम से चित्रित भी किया है। जो आँखों और मन को भाए वही चित्र अच्छा है – चित्रकारी के बारे में मेरा बस इतना ही ज्ञान है। इस कसौटी पर <हाइगा आनंदिका> खरी ही उतरती है –ऐसा मैं दावे के साथ कहा सकता हूँ।
ऐसा प्रतीत होता है कि डा. गुप्ता की इस आनंदिका में चित्रकार ने मुख्यत: उन्हीं हाइकु रचनाओं को सम्मिलित किया है जो प्रकृति विषयक हैं। इसमें कुछ हाइकु काफी पुराने भी हैं। पुराने या नए कोई भी हों डा. सुधा गुप्ता के हाइकु, खासतौर पर प्रकृति रूपों को रची गई हाइकु कवितायेँ लाजवाब होती हैं। एक उनका बड़ा पुराना लेकिन चिरनवीन हाइकु है,
चिड़िया रानी / चार कनी बाजरा / दो घूँट पानी
इसे भी आनंदिका में सम्मिलित कर लिया गया है। लेकिन ऐसे पुराने हाइकु बार बार पड़ने का जी चाहता है। आनंद देते हैं।
अनार झाड़ी / नन्हें फलों से भरी / लाज से झुकी युवा वैष्णवी / जोगिया भेष धारे / वन में खड़ी नीले घाघरे / घटाओं की छोरियां /इतरा रहीं गुलमोहर / खिला, खुला है छाता / वन कन्या का कछौटा कसे / शीशम सी युवती / धान रोपती झरोखे बैठी / फुलकारी काढ़ती / प्रकृति वधु
इससे अच्छा प्रकृति का नारी-सुलभ वर्णन और क्या हो सकता है ? पढ़ते ही कभी प्रकृति का नारी के बहाने और कभी नारी का प्रकृति के बहाने जीवंत चित्र खिंच जाता है।सुधा जी ने शायद ही प्रकृति का कोई ऐसा पहलू हो जिसे अपने काव्य में छुआ न हो !फूलों और फलों से तो उनका प्यार देखते ही बनता है। चैती फूल, ट्यूलिप, अनार की कलियाँ, शिरीष की शाखें, लाल करौंदे, कचनार, गुलमोहर, हरित दूर्वा,गेंदे का ठाठ, खूबानी, नारंगी,गेहूँ के धान, आलूचा, निम्बुआ, कनेर, आदि। संक्षेप में सुधा जी की
आमोद प्रिया / धरा खिलखिलाई / फूलों की हंसी कनेर खिले / होंगे शिव अर्पित / इस आशा में फूले निबुआ / फ़ैल गई खुशबू / दूर दराज़ गेंदा के ठाठ / स्वर्ण जागीर बख्शी / ऋतु रानी ने हरित दूर्वा / चट्टानों पर बिछी / स्पर्श कोमल गुलमोहर / धूप छतरी खुली / आग रंग की ये काँचनार / फूलों से ऐसे लदे / पत्ते गायब तुलसी चौरा / घर के आँगन (में ) / सजे महके
फूल तो फूल, पक्षी और तितलियाँ भी सुधा जी की निगाह से उड़ कर भाग नहीं सकतीं। उन्होंने अपने काव्य में इन्हें भी बखूबी पिरो दिया है। डा. सुधा गुप्ता के यहाँ फूलों का रसपान करने इन्द्रधनुषी पंखों से सजी फूल से फूल तक उड़ती रहती है तितली। (पृष्ठ २८)। सुबह सुबह चिड़ियाँ बच्चों की तरह शोर मचाती हुई अपने “बस्ते” खोलती हैं (३०)। मैंना और गिलहरियाँ पेड़ों की शाखाओं पर अपनी उमंग में उछलते कूदते हैं (३२-३३)। बाड़ कितनी ही कांटेदार क्यों न हो युवा बकरियां उसे बड़े “चाव से” खा जाती हैं (३४)। नदी किनारे बगुला एक पाँव पर “मन मारे” खडा रहता है (३८)| टोंटी में दो बूंद पानी पाकर गौरैया खुश हो जाती है (४१)। गोरी गोरी बत्तखें अपनी ‘अलमस्ती’ में तालाब में तैरती रहती हैं। किंगफिशर खूब ठन्डे,‘हिम-शीतल’ पानी में भी अपनी चोंच डुबाने से बाज़ नहीं आता। और तो और, शौकीन भालू को भी सुधा जी चटकाते लेकर बेरियाँ खाते हुए पकड़ ही लेती हैं (५६)। गाँव में रहने वाली कोई लड़की जब शहर आती है तो वह एक डरी सहमी हिरनी ही तो कही जाएगी (६५)|
डा. सुधा गुप्ता, धरती जो सारी प्रकृति का अधिष्ठान है, का गुणगान करने में कोई कोताही नहीं बरततीं –
जीवन देती / बांटती खुशहाली / माँ वसुंधरा आमोद प्रिया / धरा खिलखिलाती / फूलों की हंसी पवित्र गन्धा / अक्षत यौवना है / क्वारी (ये) धरा लौटाती श्रम / रसवंती वसुधा / ‘ब्याज’ समेत
और बदले में
फागुन आया / धरती का सोहाग / लौटा के लाया वर्षा हंसती / ओढा हरी चूनरी / वसुंधरा को चारों ओर / प्रकृति की चूनर / फैली पडी है
धरती पर भी और सुधाजी के काव्य पर भी प्रकृति का ही बोलबाला है। यहाँ नदियाँ है और ठहरे हुए पहाड़ हैं –
जल धाराएं / करती अभिषेक / वासुदेव का गाती चट्टाने / सरस जल गीत / निश्छल प्रीत रस की झारी / है नाना रूप धारी / मायावी जल
प्रकृति की यह काव्यमय छटा सुधा जी की हाइकु रचनाओं में यत्र-तत्र-सर्वत्र बिखरी पड़ी है। आनंदिका है यह छटा !
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डा. सुरेन्द्र वर्मा (मो. ९६२१२२२७७ ८)
१०, एच आईजी / १. सर्कुलर रोड इलाहाबाद -२११००१
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