हास्य-व्यंग्य / शहीद रज्जब / विष्णु नागर

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  वह पटरी पर सो रहा था। सो रहा था कि एक ट्रक उसके ऊपर चढ़ गया। वह उसी वक्त, वहीं मर गया। पता भी नहीं चला कि वह कराहा था या नहीं। ऐसा रोज हो...

  वह पटरी पर सो रहा था। सो रहा था कि एक ट्रक उसके ऊपर चढ़ गया। वह उसी वक्त, वहीं मर गया। पता भी नहीं चला कि वह कराहा था या नहीं।

ऐसा रोज होता है इस शहर में। इसके पास वाले और उसके भी पास वाले शहर की यही एक विशेषता है। आदमी मर जाता है। ड्राइवर भाग जाता है। चार लाइन की खबर छप जाती है। जो फुर्सत में होता है, वह पड़ लेता है। जो व्यस्त होता है, वह नहीं पड़ता। फर्क दोनों में से किसी को नहीं पड़ता।

लेकिन उसकी किस्मत कि वह प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र का था। खबर में यह लिखा था। किसी हितैषी ने प्रधानमंत्री के हित में यह बात पड़ ली और उन तक पहुंचा दी। बस फिर क्या देर थी। प्रधानमंत्री पुष्प-चक्र लेकर अस्पताल पहुंच गए-शव पर चढ़ाने। इस बात से अस्पताल तो अस्पताल पूरी दिल्लीमें हड़कंप मच गया। संवाददाता पछताने लगे, हाय वे क्यों नहीं उस वक्त वहां थे। फोटोग्राफर रोने लगे कि उन्हें एक महत्वपूर्ण फोटो से वंचित कर दिया गया है। बहरहाल रज्जब का शव, शवगृह से बाहर निकाला गया। बाहर खुले में रखा गया। अस्पताल वालों की ओर से भी खूब फूल-मालाएं चढ़ाई गई । शव को इत्र-फूलों से सुगंधित किया गया।

प्रधानमंत्री के बाद तो अस्पताल में मंत्रियों का तांता लग गया। होड़ मच गई कि प्रधानमंत्री के बाद दूसरे नंबर पर कौन अस्पताल पहुंचता है। मंत्रियों की कारों में रेस होने लगी। कई बार वे रेड लाइन' बसों की तरह टकराते-टकराते बचीं लेकिन टकराईं नहीं। गृहमंत्री, वित्तमंत्री से और वित्तमंत्री, रक्षामंत्री से और रक्षामंत्री, उद्योगमंत्री से पहले अस्पताल पहुंच गए। वाणिज्यमंत्री, उद्योगमंत्री से 5-6 सेकंड बाद अस्पताल पहुंच पाए। उन्हें यह नागवार गुजरा। उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय से शिकायत की कि उन्हें समय पर इसकी खबर क्यों नहीं दी गई थी। वे इस बात से इतने उत्तेजित हुए कि उन्होंने स्वयं प्रधानमंत्री से व्यक्तिगत रूप से मिलकर इसकी शिकायत की।

विपक्ष के नेता को भी इसकी खबर देर से ही लगी। उन्होंने पहले प्रधानमंत्री कार्यालय के इस व्यवहार पर खेद प्रकट करते हुए एक पत्र लिखा। फिर वे भी अस्पताल पहुंचे।

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उन्होंने न केवल शव पर पुष्प चक्र चढ़ाया बल्कि उस आदमी का नाम भी पता किया। उसके बाद पार्टी कार्यालय जाकर उन्होंने एक शोक समाचार जारी किया जो इस प्रकार था -

“हमारी पार्टी शहीद रज्जब के असामयिक और दुखद निधन पर अपनी पार्टी का ध्वज एक दिन के लिए आधा झुकाएगी। हमने शहीद रज्जब के शोकाकुल परिवार को सहायता के रूप में 1१०० रुपए देने का निर्णय भी किया है। उनकी शवयात्रा कल सुबह 11 बजे हमारी पार्टी के कार्यालय से निकलेगी। इसमें पार्टी के सदस्य हजारों की संख्या में शरीक होंगे। शहीद रज्जब का शव प्रधानमंत्री निवास के बाहर भी कुछ देर के लिए रखा जाएगा ताकि देश के साथ-साथ अपने निर्वाचन क्षेत्र की जनता की उपेक्षा करने वाले इस प्रधानमंत्री की आखें खुल सकें। हमारी पार्टी शहीद रज्जब की स्मृति में एक कोष की स्थापना भी करने जा रही है जिसमें उदारतापूर्वक दान देने की अपील सभी लोगों से की जा रही है। शहीद रज्जब की एक प्रतिमा भी उस स्थान पर स्थापित की जाएगी, जहां उसका आकस्मिक निधन हुआ है।

शहीद रज्जब खां उन बिरले इंसानों में से थे, जिन्होंने इटईं ढो-ढोकर देश की महती सेवा की है। भूखे रहकर, सड़क पर सोकर, देश को आगे बढ़ाने के प्रति उनकी निष्ठा अटूट थी। देश को उनकी अभी बहुत जरूरत थी। लेकिन नियति और प्रधानमंत्री की लापरवाही ने उन्हें हमसे छीन लिया है। उनके निधन से देश को जो अपूरणीय क्षति हुई है, उसे भरा नहीं जा सकेगा।''

प्रधानमंत्री हालांकि राजनीति के बहुत पुराने खिलाड़ी थे और वे विपक्ष के नेता को तब से जानते थे, जब वे स्वयं भी विपक्ष में थे, फिर भी उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि विपक्ष के नेता इस घटना को इस तरह का मोड़ दे देंगे। प्रधानमंत्री का उद्देश्य साफ था। चुनाव नजदीक आ रहे थे। रज्जब के शव पर पुष्प-चक्र चढ़ाकर वे अपने क्षेत्र की जनता को खुश करना चाह रहे थे। लेकिन लेने के देने पड़ गए थे। प्रधानमंत्री ने महसूस किया कि उनके हाथ से पहल निकल रही है। इस तरह तो सारा श्रेय विपक्ष ले जाएगा -यह ठीक नहीं है। ऐसा नहीं होना चाहिए।

उन्होंने जवाबी वक्तव्य दे दिया। उन्होंने देश की जनता को लाश की राजनीति करने वाली शक्तियों से सावधान किया। उन्होंने वक्तव्य में कहा '' शहीद रज्जब मेरे चुनाव क्षेत्र के व्यक्ति थे। उनसे मेरा लगाव स्वाभाविक था। उनकी इस तरह मृत्यु से मुझे गहरा धक्का लगा था। इसी कारण मैंने अस्पताल जाकर मृतात्मा के प्रति सम्मान व्यक्त करना जरूरी समझा था। अगर विपक्ष जिम्मेदार होता तो उसके नेता मेरी इन हार्दिक भावनाओं को समझते और ऐसा कोई काम नहीं करते जिससे दुख की इस घड़ी में अनावश्यक विवाद पैदा होता। यह लाश की राजनीति करने का नहीं, देश को आगे ले जाने का वक्त है। हम इस काम में तेजी से लगे हुए हैं। इससे घबराकर विपक्ष ओछी हरकतों पर उतर आया है। इससे जनता के सामने क्मिक्ष का चेहरा बेनकाब हो गया है।

बहरहाल आज प्रात: हुई मंत्रिमंडल की आपात बैठक में यह निर्णय लिया गया है कि शहीद रज्जब का शव पूरे राजकीय सम्मान के साथ कल शाम चार बजे दफनाया जाएगा। कल दोपहर एक बजे तक शहीद रज्जब के शव को प्रधानमंत्री निवास पर जनता के दर्शनार्थ रखा जाएगा। ऐसा उन लगोगे के प्रति राष्ट्र की ओर से सम्मान व्यक्त करने के लिए किया जा रहा है जो पटरी पर सोते हुए इस तरह शहीद हो जाते हैं। सरकार इस प्रकार शहीद रज्जब का ही नहीं, सारे देश की गरीब जनता के प्रति अपनी चिंता और सम्मान का इजहार कर रही है। सरकार के इस कदम से उन सबके मन में आत्मसम्मान की भावना जागेगी जो ईट-गारा ढोकर राष्ट्र की अमूल्य सेवा करते हुए आकाश की चादर के नीचे सोते हुए त्याग और बलिदान के उच्च आदर्श स्थापित कर रहे हैं।

सारे राष्ट्र की ओर से शहीद रज्जब का मरणोपरांत इस तरह सम्मान करने से लाश की राजनीति करने वालों के हाथों से एक और अवसर जाता रहेगा। यह सरकार जनता के अटूट समर्थन से बनी है और यह कभी इस तरह की राजनीति की इजाजत नहीं देगी। मंत्रिमंडल का यह भी फैसला है कि शहीद रज्जब के परिवार के हर व्यक्ति को सरकार की राहत योजनाओं में काम दिया जाएगा। अगर शहीद रज्जब के परिवार का कोई भी व्यक्ति पढ़ा-लिखा पाया गया तो उसे उपयुक्त रोजगार देने पर विचार किया जाएगा। यह भी देखा जा रहा है कि क्या नियमों के तहत शहीद रज्जब की विधवा को पेंशन दी जा सकती है। अमर शहीद रज्जब की कोई संतान पढ़ने को उत्सुक होगी तो उसे मुफ्त शिक्षा व पुस्तकें दी जाएंगी। इसके अलावा रज्जब के परिवार की सहायता के लिए समय-समय पर और भी जो प्रस्ताव सरकार के विचारार्थ लाए जाएंगे, उन पर गौर किया जाएगा।० प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य के साथ रज्जब के शव पर सरकारी कब्जा हो गया। उसके परिवार वाले उसका शव लेने गए तो उन्हें शव देने से मना कर दिया गया।

विपक्ष ने रज्जब के शव पर इस तरह सरकारी करा किए जाने की तीव्र भर्त्सना करते हुए कहा कि ' 'विपक्ष नहीं, प्रधानमंत्री 'लाश की राजनीति' कर रहे हैं। यह प्रधानमंत्री जैसे देश के उच्च पद पर बैठे व्यक्ति को शोभा नहीं देता। विपक्ष ने कभी लाश की घिनौनी राजनीति करने में विश्वास नहीं किया। सच्चाई यह हे कि विपक्ष का ध्यान जैसे ही शहीद रज्जब की दर्दनाक एवं असामयिक मृत्यु की ओर गया, उसने तुरंत बैठक बुलाई और कुछ ऐसे महत्वपूर्ण फैसले लिए जिससे रज्जब भाई का सम्मान भी हो और इस अंधी, बहरी, गूंगी सरकार का ध्यान भी देश की गरीब-पिसी हुई जनता की ओर जाए जो आए दिन ट्रकों-बसों इत्यादि के नीचे कुचलकर मरती रहती है। लेकिन प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह न करते हुए सारे मामले को अनावश्यक रूप से राजनीति का रंग दे दिया है। विपक्ष प्रधानमंत्री की घनघोर तानाशाही और असंवेदनशील नीति की आलोचना करता हे।

इसी के साथ हम शहीद रज्जब द्वारा की गई देश की सेवाओं के प्रति फिर से अपना सम्मान व्यक्त करते हैं। भारत माता को ऐसे लाखों-करोड़ों सपूतों की जरूरत है। तभी उसकी आंखों से अंतिम आँसू पोंछा जा सकेगा। हम मानते हैं कि शहीद रज्जब के राष्ट्र के प्रति योगदान को देखते हुए सरकार जो कर रही है, वह बहुत कम है। ऐसे मौकों पर प्रधानमंत्री को अपना कोष उदारतापूर्वक खोल देना चाहिए था लेकिन उन्होंने ऐसे शोक के मौके पर भी अपनी संवदेनशून्यता तथा अनुदारता का परिचय दिया है। विपक्ष का यह संकल्प था कि वह चंदे द्वारा दस हजार रुपए इकट्ठे करके शहीद रज्जब की विधवा को दे। लेकिन यह जानकर कि प्रधानमंत्री तुरंत इसका अनुकरण करते हुए रज्जब के परिवार को अधिक धन देने की घोषणा की राजनीति करने लगेंगे, विपक्ष ने अपना यह इरादा त्याग दिया है। हम जिम्मेदार विपक्ष के नाते शहीद रज्जब के मामले में सरकार के साथ कोई प्रतियोगिता करना नहीं चाहते, और प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई 'लाश की राजनीति' के घिनौने खेल में शामिल होना नहीं चाहते, इसलिए हमने शहीद रज्जब की प्रतिमा की स्थापना का अपना इरादा भी त्याग दिया है। संकट और दुख की इस घड़ी में हम कोई भी ऐसा कदम उठाना नहीं चाहते जिससे कि देश का वातावरण दूषित हो। हमने हमेशा देश के व्यापक हित को अपने सामने रखा है। वही हम अब भी कर रहे हैं।''

इसके बाद प्रधानमंत्री का वक्तव्य आया कि 'यह अच्छी बात है कि हमारे दबाव के बाद विपक्ष ने 'लाश की राजनीति' करने के अपने अशोभनीय कदम पर पुनर्विचार किया है और उसे वापस ले लिया है। हम इसका स्वागत करते हैं। हमें आशा है कि भविष्य में भी विपक्ष इसी प्रकार जिम्मेदारी की भावना से काम करेगा।

विपक्ष ने सारे मामले को इतना राजनीतिक रंग दे दिया है कि कुछ क्षेत्रों में सरकार की इस वात के लिए अनावश्यक रूप से आलोचना की जाने लगी है कि वह भी शहीद रज्जब का सम्मान नहीं कर रही है बल्कि 'लाश की राजनीति' कर रही है। हम इसे नहीं मानते। सरकार ने अपने इरादों को बहुत पहले और बहुत स्पष्ट शब्दों में बता दिया था। फिर भी सरकार किसी अनावश्यक विवाद में फंसना नहीं चाहती। अत: सरकार ने यह निश्चय किया है कि रज्जब से संबंधित सभी कार्यक्रम तथा घोषणाएं तत्काल प्रभाव से वापस ले ली जाएं। आशा है विपक्ष अब आगे इस विवाद को राजनीतिक रंग देने से बाज आएगा।

इसी के साथ सरकार ने एक आदेश जारी करके पटरी पर सोने पर रोक लगा दी है ताकि रात को वाहनों के निर्बाध आवागमन में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो। भारतीय दंड संहिता में आवश्यक संशोधन करने के लिए एक अध्यादेश अलग से राष्ट्रपति द्वारा जारी किया जा रहा है, जिसके तत्काल प्रभाव से पटरी पर सोने वालों को तीन माह की बामशक्कत कैद और 1००० रुपए का जुर्माना या दोनों देने होंगे।“

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(हिन्दी हास्य व्यंग्य संकलन, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से साभार)

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रचनाकार: हास्य-व्यंग्य / शहीद रज्जब / विष्णु नागर
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