‘‘जीवित! क्या तुम इस शब्द का अर्थ स्पष्ट कर सकती हो?’’ प्रोफेसर समीर ने खिल्ली उड़ाने वाले स्वर में पूछा। ‘‘हाँ, क्यों नहीं!’’ सरिता क...
‘‘जीवित! क्या तुम इस शब्द का अर्थ स्पष्ट कर सकती हो?’’ प्रोफेसर समीर ने खिल्ली उड़ाने वाले स्वर में पूछा।
‘‘हाँ, क्यों नहीं!’’ सरिता का सलोना मुखड़ा आवेश से तमतमा उठा।
‘‘अच्छा, तो बताओ फिर?’’ व्यंग्य-भरी मुस्कान प्रोफेसर समीर के चेहरे पर तिर गई।
‘‘खाने-पीने और चलने-फिरने के अलावा जीवित होने का सबसे बड़ा प्रमाण है अपनी जैसी संतति उत्पन्न करना, और यह सब किसी बाहरी बल के प्रभाव से नहीं वरन् स्वयमेव घटित होना। मनुष्य और अन्य जीव-जन्तुओं में सोचने-विचारने और परिस्थितियों के अनुसार निर्णय करने की क्षमता भी होती है, जिसे हम बुद्धि कहते है’’ सरिता ने सोचकर कहा।
‘‘यदि एक ऐसी मानव-मशीन का निर्माण किया गया जो कृत्रिम बुद्धि रखने के साथ-साथ अपने जैसी और मशीनों का निर्माण भी कर सके या दूसरे शब्दों में कहें तो उत्पन्न कर सके, तो क्या तुम उसे जीवित नहीं कहोगी?’’ प्रोफेसर समीर ने गंभीर होकर पूछा।
सरिता उलझन में पड़ गई। ‘‘लेकिन भावनात्मक रूप से तो मशीन शून्य ही रहेगी। भावनाएँ, संवदनाएँ और संज्ञान उसमें कैसे आएगा?’’
‘‘यह सिद्ध हो चुका है कि मस्तिष्क के विभिन्न भागों में निर्मित और स्रावित होने वाले हारमोन भावनाओं को उत्पन्न और नियंत्रित करते े हैं। अर्थात भावनाएँ कुछ विशिष्ट रासायनिक पदार्थों के अधीन हैं। अतः यह भी उस कथित जीवित मशीन में होना पूरी तरह संभव है।
‘‘यह सब मैं नहीं जानती, पर मुझे इस उक्ति में, कि मानव प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ कृति है, पूरा विश्वास है। मनुष्य में उत्तम और कोई नहीं हो सकता’’ सरिता ने निश्चयपूर्वक कहा।
‘‘नहीं, वह हर सूरत में मनुष्य से श्रेष्ठ कृति होगी। उसके कृत्रिम मस्तिष्क की स्मृतियों के भंडारण और परिस्थितियों की क्षमता मानव से कई गुना अधिक और तीव्र होगी। उसका भावनात्मक स्तर मनुष्य जैसा ही होगा। सच्चे अर्थ में वह एक सुपर ह्यूमन कृति होगी’’ प्रोफेसर समीर ने दृढ़तापूर्वक कहा।
‘‘और ऊर्जा?’’ सरिता ने पूछा
[ads-post]
‘‘मनुष्य परोक्ष रूप से सूर्य द्वारा ऊर्जा लेता है, अर्थात् पेड़-पौधों के माध्यम से, भोजन द्वारा। वह कृति सूर्य द्वारा प्रत्यक्षतः ऊर्जा प्राप्त करेगी। अब बताओ, जीवित प्राणी का ऐसा कौन-सा लक्षण है जो उसमें नहीं?’’ प्रोफेसर समीर ने हँसकर कहा।
‘‘तार्किक रूप से तो सभी हैं’’ सरिता को स्वीकार करना पड़ा।
‘‘अब या तो तुम्हें उसे भी जीवित करना होगा या जीवित शब्द को ही व्यर्थ ठहराना होगा’’ विजयी भाव से प्रोफेसर समीर बोले।
‘‘हाँ, विज्ञान और तर्क ने जीवित शब्द से उसका अर्थ छीन लिया है’’ सरिता किसी गहरे विचार में खो गई।
उसके मनोभावों से अनजान प्रोफेसर समीर ने कहा, ‘‘वह कृति चिरयुवा और अमर होगी। उसके जीवन और समापन का अधिकार मानव के हाथ में होगा।’’
व्यवहारिक रूप से ऐसी मानव-मशीन बनाना संभव है
क्या? सरिता ने प्रश्न किया।
‘‘सिर्फ संभव ही नहीं है, बल्कि मैं उसे बनाने के बहुत निकट पहुँच चुका हूँ और पूरा होने के बाद तुम्हें ही समर्पित करूँगा। जानती हो क्यों?’’ प्रोफेसर समीर की आँखों में प्रेम
छलछला उठा।
‘‘क्या?’’ सरिता की आँखों में लज्जा की लालिमा उतर आई।
‘‘क्योंकि मानव को प्रकृति से अधिक क्षमतावान सिद्ध करने की प्रेरणा मुझे तुमसे ही मिली है। प्रकृति की तुम जैसी अनूठी कृति ने मेरे मन में प्रतिस्पर्द्धा की भावना जगा दी थी और स्वभाववश मानव प्रकृति को परास्त होता ही देखना चाहता है। मैं भी यही चाहता था कि मेरी रचना मात्र एक रोबोट नहीं, बल्कि मनुष्य द्वारा रची गई श्रेष्ठतर सृष्टि सिद्ध हो सके।’’
प्रोफेसर समीर दर्प-भरे स्वर में कहे जा रहे थे। सरिता
के मुख पर चिंता की परछाइयाँ फैलने लगीं।
लॉन में फैली सर्दियों की धूप की सुखद गरमाहट अब समाप्त होने लगी थी। सरिता ने शॉल कसकर लपेट लिया। डूबते सूरज की लालिमा में उसका चेहरा दमकने लगा। प्रोफेसर समीर एकट उसे निहार रहे थे।
‘‘लगता नहीं सरिता कि हम सात वर्ष का वैवाहिक जीवन बिता चुके हैं।’’
‘‘लेकिन हमारा विवाह हुए तो अभी सात माह ही बीते हैं’’ सरिता ने किंचित् आश्चर्य से कहा।
‘‘क्या मतलब?’’ प्रोफेसर समीर हैरान हो उठे।
‘‘क्योंकि इन सात वर्षों में हम लगभग सात माह ही साथ रह सकें। बाकी समय तो आपने अपनी प्रयोगशाला में ही बिताया है’’ सरिता ने स्पष्ट किया।
‘‘ठीक कहा तुमने’’ प्रोफेसर समीर के मुख पर विषाद की
छाया फैल गई।
‘‘अरे, आप तो बीसवीं शताब्दी के मानव की तरह भावुक होने लगे। मत भूलिए कि हम इक्कीसवीं शताब्दी के नागरिक हैं’’ सरिता खिलखिलाहट हँस पड़ी।
इक्कीसवीँ शताब्दी का यह उत्तरार्द्ध है। संचार-क्रान्ति अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुकी है। जीवन के हर क्षेत्र में कम्प्यूटर के बिना किसी भी कार्य की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। सभी कंप्यूटर अंतर्राष्ट्रीय संचार-नेटवर्क द्वारा परस्पर जुड़ चुके हैं। ‘इन्फॉरमेशन सुपर हाइवे’’ पर सूचनाओं की अति विशाल भंडार सदैव सबके लिए उपलब्ध हैं मानव अपने कार्यस्थल तक आने-जाने की बाध्यता समाप्त कर चुका है। घर ही अब कार्यालयों का रूप ले चुके हैं। घर बैठे-बैठे कंप्यूटर-नेटवर्क के माध्यम से इच्छित दिशा-निर्देश देकर सभी देकर सभी कार्य निबटाए जा सकते हैं। अति आवश्यक होने पर भी कभी-कभार ही लोग घर से बाहर निकलते हैं। परिवहन अत्यंत सीमित हो चुका है। परिचितों व आत्मीय जनों में मिलने के लिए सशरीर उपस्थिति की अनिवार्यता नहीं रह गई है। साइबर स्पेस में ही लोग एक-दूसरे से मिल लेते हैं। कैसा अजीब विरोधाभास है कि विश्व एक गाँव बन चुका है, पर लोग एक-दूसरे की सशरीर जीवंत उपस्थिति के अनुभव से दूर होते जा रहे हैं। आजकल बैंकों, प्रयोगशालाओं, अस्पतालों, कार्यालयों व घरों में अधिकांशतः रोबोट ही कार्य करते हैं। मानव-कर्मचारियों की संख्या नगण्य है। विज्ञान की उन्नत शाखा के रूप में ‘रोबोटिक्स’ निरंतर प्रगति कर रहा है। रोबोट की नस्ल सुधारने के प्रयास जारी हैं। रोबोटिक्स की चोटी के विशेषज्ञों में से ही एक है प्रोफेसर समीर, जो रोबोट को ‘सुपर ह्यूमन’ का रूप देने में लगे हैं। सर्दियाँ बीत चुकी थीं। दिन-भर की तीखी धूप के बाद शाम के समय कुछ ठंडक हो गई थी। घरेलू परिचायक रॉबी, जो कि एक रोबोट था, लॉन के पौधों की देख-रेख में व्यस्त था। सरिता अपने कक्ष में कंप्यूटर-नेटवर्क पर डॉक्टर पद्मनाभन के साथ किसी गहन विचार-विमर्श में तल्लीन थी, जो कि एक विख्यात समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक थे।
‘‘आपको क्या लगता है, रोबोट की नवीनतम पीढ़ी मानव का स्थानापन्न बनेगी?’’ सरिता ने जानना चाहा।
‘‘यदि ऐसा हुआ तो यह मानव के पतन का प्रारंभ होगा।’’
डॉक्टर पद्मनाभन ने अपनी सम्पति दी।
‘‘क्या वे मानव के सहयोगी नहीं बनेंगे?’’ सरिता की जिज्ञासा शेष थी।
‘‘एक सीमा तक ही ऐसा होगा। इसके बाद वे मानव को दुर्बल और अकर्मण्य बना देंगे। कृत्रिम मेधायुक्त रोबोट तो भविष्य में मानव के लिए खतरनाक भी सिद्ध हो सकते हैं।’’
‘‘आपका संकेत किस ओर है?’’ सरिता ने पूछा कि रॉबी ने आकर उनके वार्तालाप में बाधा डाल दी। ‘‘प्रोफेसर समीर आपसे तुरंत मिलना चाहते हैं।’’ पिछले तीन सप्ताह से प्रोफेसर समीर प्रयोगशाला मं अपने
सहायकों के साथ दिन-रात कार्य कर रहे थे। ‘‘कोई बात नहीं। हम फिर मिलेंगे’’ वे मुस्कराए। रॉबी के साथ सरिता अतिथि-कक्ष में पहुँची तो प्रोफेसर समीर एक युवती के साथ बैठे बातें कर रहे थे। युवती अत्यंत सुन्दर थी। उसकी आवाज में कोयल की कूक थी और हाव-भाव में एक अद्भुत अनूठापन।
‘‘यह रीबी हैं- मेरी प्रयोगशाला सहायिका’’ प्रोफेसर समीर ने सरिता से उसका परिचय कराया।
‘‘नमस्ते’’ सरिता ने अभिवादन करते हुए हाथ मिलना चाहा। प्रत्युत्तर में रीबी ने भी हाथ बढ़ा दिया। उसका स्पर्श सरिता की किंचित् कठोर और ठंडा लगा।
‘‘क्या लेंगी आप, गरम या ठंडा?’’ सरिता ने शिष्टाचार-वश पूछा ही था कि प्रोफेसर समीर ठहाका मारकर हँस पड़े। सरिता ने आश्चर्य से उनकी ओर देखा।
‘‘खा गईं न धोखा! अरे, यह तो रोबोट है!’’ कहते हुए प्रोफेसर समीर ने रीबी के बालों में अंगुलियाँ डालकर किसी बिंदु पर दबाव डाला। रीबी तुरंत जड़ हो गई। सरिता ने अविश्वास से उसे छूकर देखा। कहीं कोई हरकत नहीं थी। उनकी पुतलियाँ स्थिर थीं।
‘‘अब विश्वास हुआ तुम्हें!’’ कहते हुए उन्होंने फिर रीबी को सक्रिय कर दिया।
वह सोफे पर सरिता के सम्मुख बैठ गई।
‘‘इसका सौंदर्य तो वर्णनातीत है। मानव का प्रकृतिप्रदत्त सौंदर्य इसके आगे कहीं नहीं ठहरता’’ सरिता के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर रीबी की आँखों में चमक आ गई।
‘‘नहीं सरिता, मानव का प्राकृतिक सौंदर्य ही वास्तविक है। यह तो प्रयोगशाला में तैयार किया गया बनावटी सौंदर्य है। प्रकृतिप्रदत्त सौंदर्य के आगे इस सौंदर्य का भला क्या मूल्य है’’ सरिता को आलिंगन में लेते हुए प्रोफेसर समीर ने भीगे स्वर में कहा।
सरिता कुछ कहने की जा रही थी कि उसकी आँखें रीबी की आँखों से टकराई वहाँ हताशा की भावना झलक रही थी।
‘‘आप जीनियस हैं प्रोफेसर समीर! रीबी को बनाकर आज अपने सिद्ध कर दिया कि रोबोट-विज्ञान में आपके समकक्ष कोई नहीं। कभी ईश्वर से रुष्ट होकर विश्वामित्र ने समानांतर सृष्टि की रचना की थी। आज पुनः वह रीबी के रूप में आपने रची है’’ सरिता रीबी की प्रतिक्रिया देख अभिभूत हो उठी थी। रीबी ने ध्यान से सरिता की बात सुनी। ‘‘मुझे अस्तित्व में लाने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद प्रोफेसर समीर!’’ उसके मुख पर अनुराग और समर्पण के भाव थे।
प्रोफेसर समीर ने मुस्कराकर रीबी के गाल थपथपा दिए।
‘‘अच्छा, चलता हूँ। दुनिया-भर से इस अनुसंधान के विषय मं प्रश्न किए जा रहे हैं। मुझे एक वीडियो सम्मेलन आयोजित कर उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करना होगा’’ वे उठकर बाहर जाने लगे।
सरिता एकटक रीबी की ओर देख रही थी। उसकी आँखों से उभरते भाव उसे उत्कंठित कर रहे थे। प्रोफेसर समीर से यह छुपा न रहा।
‘‘सरिता, तुम कहीं रीबी की सुंदरता से ईर्ष्या तो नहीं कर रहीं? वैसे तुम्हारा स्थान यह मशीन कभी नहीं ले सकती, भले ही इसे जीवित कहा जा सकता हो’’ हँसते हुए प्रोफेसर समीर ने चुटकी ली और बाहर निकल गए। रीबी की आँखों में उभरते प्रतिशोध को वे देख नहीं सकें।
रात की कालिमा बढ़ने लगी थी। कालचक्र की गति सदैव की भाँति अविराम थी। ठंडी और स्पंदनहीन रात के काले आकाश पर टिमटिमाते तारे निस्संग हठयोगियों की भाँति सदियों से अपने स्थान पर अटल थे। समय का सर्वाधिक भयावह खंड प्रोफेसर समीर का जीवन वीरान कर अंत में विलीन हो चुका था। अपने कक्ष में बैठे प्रोफेसर समीर कंप्यूटर-नेटवर्क पर डॉक्टर पद्मनाभन के साथ बातें कर रहे थे।
‘‘....... और यह अंतिम वार्तालाप था जो मैंने जीती-जागती सरिता के साथ किया था। इसके बाद मैंने उसे जीवित अवस्था में नहीं देखा। मैं अब भी समझ नहीं पाया कि रीबी ने सरिता की हत्या क्यों कर दी?’’ सब कुछ बता देने के बाद प्रोफेसर समीर के मुख पर थकान और पीड़ा का चिह्न झलकने लगे।
‘‘मुझे इसी बात का डर था। मैं सरिता को सावधान करना चाहता था, पर उस दिन हमारी बातचीत में व्यवधान आ गया और वह सब हो गया, जो नहीं होना चाहिए था’’ स्क्रीन पर उभरते हुए डॉक्टर पद्मनाभन के स्वर में निराशा थी।
‘‘आप भावी होनी को कैसे जानते थे?’’ प्रोफेसर समीर आश्चर्यचकित हो उठे।
‘‘अंधाधुंध भागते विज्ञान के पास आज इतना समय कहाँ है कि रुककर वह अपने आविष्कार के परिणाम को जान सके। मानव एक व्यवस्थित समाज में शिशु के रूप में जन्म लेता है। अपनी व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए सदियों के अनुभव से सीखकर मानव ने नीति, नियम और नैतिक मापदंड बनाए हैं। संस्कारों के रूप में इसे वह मानव-शिशु को सिखाता रहता है। निरंतर चलने वाली इस प्रक्रिया में जब तक शिशु एक व्यस्क मानव बनता है, वह विवेक और स्वयं पर संयम रखना सीखता है। यही विवेक और संयम उसे अपनी उद्दाम, अहितकारी आकांक्षाओं और मनोवेगों पर अंकुश लगाने की शक्ति देता है।’’
डॉ. पद्मनाभन अपनी बात का प्रभाव जानने के लिए रुके। प्रोफेसर समीर को ऐसी बातें कभी सोची भी नहीं थीं। वे मात्र वैज्ञानिक थे। अपने आविष्कार को समाजशास्त्र और मनोविज्ञान की कसौटी पर तो उन्होंने परखा ही नहीं था। संस्कारों द्वारा परिष्कृत और परिमार्जित होकर ही मानव सभ्य और सुसंस्कृत बन पाता है। इसके अभाव में तो वह आदिम वासनाओं और संवेगों का पुतला बन रह जाएगा और अपनी भावनाओं को क्रूर, बर्बर व असमाजीकृत ढंग से व्यक्त करेगा। दूसरों शब्दों में कहें तो वह एक अपरिमार्जित जीवित रोबोट होगा’’ डॉक्टर पद्मनाभन ने स्पष्ट किया।
प्रोफेसर समीर की समझ में अब आ रहा था कि उनसे कहाँ चूक हुई।
‘‘रीबी के मन में अपने रचनाकार के प्रति प्रेम और सरिता के प्रति ईर्ष्या की भावना उत्पन्न हो गई थी। अपने अभीष्ट की प्राप्ति की राह में सबसे बड़ी बाधा उसे सरिता की नजर आई। अतः वांछित वस्तु की प्राप्ति करने के सहज मानवीय संवेगवश उसने सरिता को मार डाला। उचित या अनुचित का विवेकजन्य अंतर्द्वंद्व उसके कृत्रिम मस्तिष्क में नहीं था’’ डॉ. पद्मनाभन ने अपनी बात पूरी की।
‘‘यह रीबी में यह सब कुछ फीड किया जा सकता तो आज सरिता मेरे साथ होती’’ प्रोफेसर समीर का गला रुँध गया।
डॉक्टर पद्मनाभन के मुख पर सहानुभूति के भाव उभर आए।
‘‘जब मानव स्वयं ही पूर्ण नहीं है तो वह ऐसी मानवीकृत मशीन कैसे बना सकता है जो स्वयं में संपूर्ण हो। व्यक्तिगत विशिष्टताओं के कारण त्याग, नैतिकता और मूल्यों की व्याख्या एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में ही भिन्न हो जाती है। एक समाज के लिए जो कुछ अनैतिक है वही दूसरे के लिए नैतिक। प्रत्येक व्यक्ति इस विषय मे किसी न किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित रहता है। रीबी को आप स्वयं अपनी मान्यताओं के अनुरूप किसी साँचे में ढाल सकते थे, पर वह पूरे मानव-समाज को स्वीकार्य तो नहीं हो सकता था।’’
‘‘आप ठीक कह रहे हैं’’ प्रोफेसर समीर निरुत्तर हो गए, ‘‘यों भी, ऐसे आविष्कार का क्या लाभ, जो प्रकृति में पहले से विद्यमान है। कदाचित् मानव के अहम की संतुष्टि है, प्रकृति को उसकी प्रतिकृति रचकर दिखाने का अहंकार, कि मैं तुमसे श्रेष्ठ हूँ। परंतु मानव सदैव ही प्रकृति का अनुगामी होता है, स्वामी नही बन सकता’’ व्यग्ंय-भरी मुस्कान के साथ डाक्टर पदम्नाभन ने विदा ली और उनका चेहरा स्क्रीन से गायब हो गया। प्रोफेसर समीर स्तब्ध हो उठे। उनके मर्मस्थल पर सटीक प्रहार हुआ था। वे उठकर अपने शयनकक्ष में आए। एक कोने में रीबी निस्पंद खड़ी थी। उन्होंने उसके मुख पर हाथ फिराया। सरिता का स्पर्श कितना सुखद और जीवंत लगता था, उन्होंने सोचा और रीबी की बाँह के नीचे लगा छोटा-सा लीवर खींच दिया। रीबी का शरीर तपकर लाल हो गया और धीरे-धीरे पिघलकर बहने लगा।
‘‘तुम्हारी जरूरत नहीं मुझे’’ वे फुसफुसाए।
मानव द्वारा रची हुई समानांतर सृष्टि का समापन हो चुका था।
-
(विज्ञान कथा - जनवरी - मार्च 2017 से साभार)
--
-------------------------------------------
अपने मनपसंद विषय की और भी ढेरों रचनाएँ पढ़ें -
आलेख / ई-बुक / उपन्यास / कला जगत / कविता / कहानी / ग़ज़लें / चुटकुले-हास-परिहास / जीवंत प्रसारण / तकनीक / नाटक / पाक कला / पाठकीय / बाल कथा / बाल कलम / लघुकथा / ललित निबंध / व्यंग्य / संस्मरण / समीक्षा / साहित्यिक गतिविधियाँ
--
हिंदी में ऑनलाइन वर्ग पहेली यहाँ (लिंक) हल करें. हिंदी में ताज़ा समाचारों के लिए यहाँ (लिंक) जाएँ. हिंदी में तकनीकी जानकारी के लिए यह कड़ी (लिंक) देखें.
-------------------------------------------
COMMENTS