हाथियों का व्ंशानुगत इतिहास : - हाथी जमीन पर रहने वाला विशाल आकार का स्तनपायी प्राणी है। आज के समय में हाथी परिवार कुल में केवल दो प्रज...
हाथियों का व्ंशानुगत इतिहास :- हाथी जमीन पर रहने वाला विशाल आकार का स्तनपायी प्राणी है। आज के समय में हाथी परिवार कुल में केवल दो प्रजातियाँ जीवित हैं। एलिफस तथा लॉक्सोडॉण्टा। तीसरी प्रजाति मैमथ विलुप्त हो चुकी है। जीवित दो प्रजातियों की तीन जातियाँ पहचानी जाती हैं। लॉक्सोडॉण्टा प्रजाति की दो जातियाँ अफ्रीकी खुले मैदानों का हाथी (अन्य नाम बुश या सवाना हाथी) तथा (अफ्रीकी जंगलों का हाथी ) होती है। एलिफस जाति का भारतीय या एशियाई हाथी होता है। कुछ शोधकर्ता दोनों अफ्रीकी जातियों को एक ही मानते हैं तो कुछ अन्य मानते हैं कि पश्चिमी अफ्रीका का हाथी चैथी जाति है। एलिफॅन्टिडी की बाकी सारी जातियाँ और प्रजातियाँ विलुप्त हो गई हैं। यह पिछले हिमयुग में ही विलुप्त हो गई थीं, हालाँकि मैमथ का बौना स्वरूप सन् 2000 ई.पू. तक जीवित रहा।
विशाल आकार :- आज हाथी जमीन का सबसे बड़ा जीव है। इसका गर्भ काल 22 महीनों का होता है, जो कि जमीनी जीवों में सबसे लम्बा है। जन्म के समय हाथी का बच्चा करीब 105 किलो का होता है। हाथी अमूमन 50 से 70 वर्ष तक जीवित रहता है, हालाँकि सबसे दीर्घायु हाथी 82 वर्ष का दर्ज किया गया है। आज तक का दर्ज किया गया सबसे विशाल हाथी सन् 1955 ई॰ में अंगोला में मारा गया था। इस नर का वजन लगभग 10,900 किलो था और कन्धे तक की ऊँचाई 3.96 मी॰ थी जो कि एक सामान्य अफ्रीकी हाथी से लगभग एक मीटर ज्यादा है। इतिहास के सबसे छोटे हाथी यूनान के क्रीट द्वीप में पाये जाते थे और गाय के बछड़े अथवा सूअर के आकार के होते थे।
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हाथी बुद्धिमत्ता का प्रतीक :- एशियाई सभ्यताओं में हाथी बुद्धिमत्ता का प्रतीक माना जाता है और अपनी स्मरण शक्ति तथा बुद्धिमानी के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ उनकी बुद्धिमानी डॉल्फिन तथा वनमानुषों के बराबर मानी जाती है। पर्यवेक्षण से पता चला है कि हाथी का कोई प्राकृतिक परभक्षी नहीं होता है, हालाँकि सिंह का समूह शावक या कमजोर जीव का शिकार करते देखा गया है। अब यह मनुष्य की दखल तथा अवैध शिकार के कारण संकट में है।
आगरा में हाथियों की लड़ाई की एतिहासिक घटना :- एन्नी मेरी शिम्मेल की पुस्तक “दॅ ऐंपायर ऑव ग्रेट मुगल्स” में एक रोचक किस्सा मिलता है। इसी घटना के बारे में सर यदुनाथ सरकार ने अपनी पुस्तक “ हिस्ट्री आफ औरंगजेब” के प्रथम खण्ड के पृ. 9-11 पर रोचक विवरण प्रस्तुत किया है। हाथियों का युद्ध शाहजहां का बहुत प्रिय खेल था। वह प्रातःकाल से इसे देखने के लिए बहुत लालायित रहता था। हाथी पहले यमुना तट पर बड़ी तेज गति से दौड़ लगाते फिर अपनी करतब दिखाते थे। इसके बाद लड़ते लड़ते वे अपनी सूड़ को आपस में फंसाकर आगरा के किले को सलामी भी करते थे। 28 मई 1633 को आगरा किले के परिखा के नीचे यमुना तट हाथी युद्ध का आयोजन किया गया था। कहा यह भी जाता है कि औरंगजेब के भाई दारा ने उसे मरवाने के लिए एक शराबी हाथी से भिड़वा दिया था, परन्तु एसा नहीं था। यह एक इत्तफाकन घटना घटित हो गयी थी।
सुधाकर और सूरत-सुंदर हाथियों की लड़ाई :- शाहजहां ने यमुना के तट पर सुधाकर और सूरत-सुंदर नामके दो हाथियों की लड़ाई का आयोजन कर रखा था। उसके तीनों पुत्र अलग-अलग घोड़ों पर दूर खड़े थे। लेकिन औरंगजेब उत्कंठा में हाथी के बहुत निकट पहुंच गया था। सूरत-सुंदर हाथी सुधाकर के आक्रमण से भाग खड़ा हुआ तो सुधाकर ने पास ही खड़े औरंगजेब पर हमला बोल दिया। वह शक्तिशाली युद्ध हाथी मुगल शाही पडाव से भगदड़ मचाते हुए उनके पास आ गया। वहां उपस्थित भीड़ में भगदड़ मच गयी थी लोग एक दूसरे के ऊपर गिर रहे थे। हाथी ने औरंगजेब को अपने पांवों तले रौंद ही देने वाला था। इस बहादुर बालक ने बजाय रोने-चीखने के, एक सिपाही का भाला लेकर हाथी के शिर की तरफ फेंका और खुद को कुचलने से बचाया। भाले की मदद से वह उस पर काबू करने की कोशिस की पर उसे उस समय सफलता नहीं मिल पायी। शाही सौनिक व कारिन्दे हाथी को शूट करने के तथा राजकुमार की सहायता के लिए के लिए भी दौड़े भी परन्तु कुछ कर ना सके। हाथी ने दांतों से उस पर हमला कर दिया और उसे घोड़े से बुरी तरह जमीन पर गिरा दिया था। औरंगजेब ने फुर्ती से घोड़े से कूदकर तलवार उठाई और हाथी पर टूट पड़ा। वह काफी ताकत से उससे लड़ता रहा। इसी बीच बड़ा भाई शुजा भीड़ को चीरते हुए उसके समीप आ गया । उसने अपने भाले से हाथी पर आक्रमण कर उसे घायल करने की कोशिस करने लगा। उसका घोड़ा ठिठक गया और शुजा को नीचे गिरा दिया। उसी समय राजा जयसिंह उनकी सहायता के लिए आ गये। उन्होने दायें तरफ से हाथी पर आक्रमण कर दिया। शाहजहां ने अपने निजी रक्षकों को चिल्लाकर बुलाया और उस स्थल पर दौड़कर पहुंचने को कहा।
इसी समय राजकुमारों की सहायता के लिए एक अदृश्य मोड़ आया कि दूसरा सूरत सुन्दर हाथी सुधाकर से लड़ने के लिए आ गया। सुधाकर के पास लड़ने की अब ताकत नहीं बची थी। उस को भाले से बेध दिया गया। वह अपने प्रतिद्वन्दी के साथ वहीं पर गिर गया। इस प्रकार इस युद्ध में हाथी को काबू किया गया। महज चैदह साल की उम्र की एक घटना ने ही औरंगजेब की ख्याति पूरे हिंदुस्तान में फैला दी थी। औरंगजेब मौत के मुह से निकलकर बाहर आ गया था। शाहजहां ने औरंगजेब को अपने सीने से लगाया उसकी इस बहादुरी पर उसके पिता ने उसको बहादुर का खिताब प्रदान किया, उसे सोने से तोला। इसके साथ ही उसको 2 लाख रूपये का उपहार भी दिया गया। इस बहादुरी पर औरंगजेब ने भी बहादुरी में इस प्रकार जवाब दिया था - युद्ध में यदि मैं मारा भी जाता तो यह लज्जा की बात होती। मौत ही तो बादशाहों पर पर्दा डालती है।
हाथीघाट का इतिहास :- भारतीय उपमहाद्वीप में मुगलों का योगदान भुलाया नहीं जा सकता है। भारत पाकिस्तान बांग्लादेश तथा उपमहाद्वीप के अन्य कई स्थानो पर इनके बनवाये अनेक स्मारक आज महत्वपूर्ण एतिहासिक धरोहरों के रुप में जाने जाते हैं। इन्हे राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय की मान्यता प्राप्त है। मुगलकाल में भारतीय तथा ईरानी कला का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। जिसका प्रभाव हिन्दू तथा मुस्लिम परम्पराओं संस्कृति और शौलियो पर देखा जा सकता है। स्वयं मुगल शासक इस कला के संरक्षक रहे तथा भारतीय कलाकारों ने खुले हाथों से इसे पुष्पित पल्लवित तथा विकसित किया है। आगरा किला और एत्माद्दौला के मध्य तथा आगरा किला और ताजमहल के बीच कभी हाथीघाट हुआ करता था। शाही जमाने में तो यहां बहुत चहल पहल होती रहती थी। हाथीघाट पर कभी मुगल शासक हाथी लड़वाकर मनोरंजन तथा मल्लयुद्ध का आनन्द लेते थे। यह जल परिवहन का एक प्रमुख बन्दरगाह भी होता था। आज यमुना अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है। इसके निर्मलीकरण के लिए इसमें पर्याप्त जल की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी। इस घाट के पुनरुद्धार के लिए बड़े स्तर पर प्रयास किया जाना चाहिए। यहां समय समय पर सांस्कृतिक तथा पारम्परिक कार्यक्रम के साथ ही साथ नियमित रुप से साप्ताहिक यमुना आरती शाम दिन ढलने पर की जा रही है। जिसमें भारी संख्या में शहर के गण्यमान यमुनाप्रेमी श्रद्धालुजन सहभागिता निभाते हैं। घाट के पार्क केसौन्दर्यीकरण, पूजनोपरान्त सामग्री वस्त्र माला मूर्ति का पारम्परिक एवं वैज्ञानिक विधि से विसर्जन करने, शहर से निकलनेवाले नालों की गन्दगी को यमुना में रोके जाने के लिए भी ये संस्थायें विगत दशकों से प्रयासशील है। जब यमुना में पर्याप्त पानी रहता था तो यहां श्रद्धालुओं की पूरी भीड़ हुआ करती थी। सुवह शाम यहां भरी संख्या में लोग सौर करने आते रहे हैं। पानी हटते ही ये घाट निर्जन होते गये यहां झाड़ियां उग गईं इनका सहारा लेकर यहां असामाजिक तत्व सक्रिय हो गये और यह उनका असामाजिक कार्यो का पूरक स्थल बन गया था। शहर में बाहर से आने जाने वाले लोग इसे शौच स्थल के रूप में अपनाने लगे थे। आये दिनों यहां रहस्यमय कत्लों व शवों का निस्तारण केन्द्र भी बन गया था। लोग यहां आने से कतराने लगे थे।
यमुना निधि तथा श्री गुरु वशिष्ठ मानव सर्वांगीण विकास सेवा समिति के प्रयासों से इस घाट पर घार्मिक तथा सांस्कृतिक अनुष्ठान फिर होन शुरु हो गये। यमुना के घाटों के पुनरुद्धार तथा सौन्दर्यीकरण के लिए यहां कई वर्षों तक सत्ययाग्रह भी किया गया था। यहां एक सुन्दर पार्क भी बना हुआ है। इस क्षेत्र में कोई अन्य पार्क ना होने के कारण यह बहुत ही आकर्षक केन्द्र के रुप में विकसति किया जा सकता है तथा यहां चहल पहल होने से असामाजिक तत्वों के यहां फटकने की गुंजाइश नहीं रहेगी। आगरा किला के पास तथा शहर के मध्य होन के कारण यहां धूमधाम से देवी तथा गणपति विसर्जन किया जाता है। शहर तथा बाहर के पर्यटक भी भारी संख्या में यहां उपस्थित होते है। हिन्दू धर्म के किसी भी पर्व जो नदी तट पर होती है, वे सभी यहां सम्पन्न की जाती हैं। सारा माहौल भक्तिमय तथा उल्लास से परिपूर्ण हो जाता है। छठ पूजा के समय यहां बहुत ही रौनक होती है। माननीय सर्र्वाच्च न्यायालय के आदेश तथा भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रयास से ताज कोरिडोर के सौन्दर्यीकरण की एक अति महत्वपूर्ण योजना अपने प्रगतिपथ पर सफलतापूर्वक चल रही है। यदि हाथीघाट को विकसित करके कोरिडोर से सम्बद्ध कर दिया जाएगा तो यह पर्यटक तथा शहर के गरिमा के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि बन सकती है।
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