हर शहर में दो या चार महान टाइप के लोग रहते हैं । वे भी इसी टाइप के हैं । दूसरी आदतों के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है लेकिन उनकी एक आदत बह...
हर शहर में दो या चार महान टाइप के लोग रहते हैं । वे भी इसी टाइप के हैं । दूसरी आदतों के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है लेकिन उनकी एक आदत बहुत अच्छी है कि वे श्रद्धांजलि देने में पक्के हैं । उधर कोई मरा नहीं कि वे श्रद्धांजलि देने के लिए मरे जाते हैं । जिस प्रकार प्रेशर आने के बाद आदमी फड़फड़ाने लगता है, उसी तरह वे श्रद्धांजलि के प्रेशर से छटपटाने लगते हैं । कब निकले और उन्हें शांति मिले । बस, यही उनकी महानता है, जिससे मैं प्रभावित हूं ।
उन्होंने मुझे बताया था कि उनकी जिंदगी के केवल दो उद्देश्य हैं । पहला, कि देश के लोगों को अधिक-से-अधिक श्रद्धांजलि दो और दूसरा यह कि चाहे किसी की बारात में या स्वागत समारोह में भले ही न जाओ लेकिन यदि किसी को श्रद्धांजलि देने के लिए कोई सभा हो रही हो तो बिना बुलाए चले जाओ और सबसे आगे बैठो ।
इस दो महान कार्यों के लिए उन्होंने अपना जीवन बर्बाद कर दिया । यह उनका सौभाग्य था कि इधर मरने वालों की संख्या में संतोषजनक वृद्धि हुई थी और उनके श्रद्धांजलि-सृजन में निखार आ गया था । एक आदमी को श्रद्धांजलि देकर घर आए । हाथ-मुंह भी नहीं धो पाए कि खबर आती कि पड़ोसी चल बसा । वहां से श्रद्धांजलि देने गए तो पता चला कि विदेश में कोई मर गया । इधर अपने देश को निपटाया और उधर विदेश को श्रद्धांजलि देने की तैयारी में भिड़ गए । कभी-कभी तो लोगों को उनकी श्रद्धांजलि के कारण ही पता चलता था कि कोई गणमान्य चल बसा है ।
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ईश्वर ने उन्हें कद-काठी भी कुछ इसी पुनीत कार्य के अनुरूप दी है । लगता है जैसे वे इस देश में केवल श्रद्धांजलि देने के लिए ही पैदा हुए हैं । उनकी आंखें हमेशा डबडबाई रहती हैं । उन्हें देखकर महसूस होता है कि अब-तब रो ही देंगे । चेहरा देखकर कोई भी कह सकता है कि इस आदमी के परिवार में कोई जबरदस्त गमी हुई है । उनका बात करने का ढंग भी बिलकुल श्रद्धांजलि देने टाइप ही है । पिछले विधानसभा चुनाव में एक उम्मीदवार हार गए तो मैंने उनसे प्रतिक्रिया जानना चाही । वे बोले, ' आदमी अच्छा था, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है.. भगवान उनके शोक संतप्त परिवार को यह दुःख वहन करने की शक्ति दे ।''
मैंने उनसे पूछा, ' 'श्रीमान जी, आपको यह श्रद्धांजलि देने का चस्का कहां से लगा?'' वे बोले,' 'हमारा तो खानदानी धंधा है जी । पिताजी का तो इस क्षेत्र में इतना काम था कि जब तक उनकी श्रद्धांजलि नहीं हो पाती थी मरने वाले को भी न ही लगता था कि उसका मरना सार्थक हुआ है । उस समय मैं छोटा था । उनके साथ जाता था और दो मिनट का मौन रख-रखकर मेरा आत्मविश्वास पक्का हो गया... बस तभी से लगा हूं इस धंधे में ।''
थोड़ी देर के लिए वे रुके । फिर बोले, ' 'पिताजी कहते थे, बेटा-हम गरीब देश के गरीब नागरिक हैं । किसी को श्रद्धांजलि के अलावा कुछ नहीं दे सकते । इसलिए मेरे मरने के बाद तुम हमारी इस वंश परंपरा को आगे बढ़ाना ।''
इतना कहने के बाद वे दो मिनट के लिए मौन हो गए । आंखें नीची कर लीं । दोनों हाथ सामने बांधकर खड़े हो गए । मैंने पूछा, ' 'श्रीमान् जी! ये क्या कर रहे हैं आप?' वे बोले, ' 'पिताजी को एक बार और श्रद्धांजलि दे रहा हूं । उनकी कृपा और आशीर्वाद से आज मेरा नाम व्हीआईपी. लोगों में है । अभी घर पर आइए तो मैं आपको वह डायरी दिखाऊंगा जिसमें मैंने उन लोगों के नाम और पते लिखे हैं जिन्हें मैं आज तक श्रद्धांजलि दे चुका हूं ।'' मैंने मजाक में पूछा ' 'आजकल धंधा कैसा चल रहा है ?''
वे बोले, ' 'बिल्कुल मंदा है जी... देखो ना । पिछले दो महीने से कोई नहीं मरा । डाक्टर से रोज पूछता हूं कि डाक्टर जी, कोई सीरियस हो तो पहले मुझे बताना । लेकिन सरकारी अस्पतालों में भी अब खुजली खांसी के अलावा कुछ नहीं बचा ।''
' 'फिर क्या सोचा है आपने?''
' 'सोच रहा हूं कि महीना-पंद्रह दिनों के लिए पंजाब चला जाऊं । इस तरह यहां रहने से तो मैं कुंठित हो जाऊंगा । श्रद्धांजलि और साहित्य में कोई बहुत अंतर नहीं है जी । आदमी बहुत जल्दी कुंठित हो जाता है । बीच में एक ट्रेन पटरी से उतरी थी तो मैं प्रसन्न हो गया था । लेकिन बाद में पता चला कि उसमें कोई नहीं मरा । मुझे तो लगता है जी कि अपनी सरकार मरने वालों की संख्या भी सही नहीं बताती है । अब तो रोज रेलवे स्टेशन जाता हूं और देखता हूं कि कितने लोग दिल्ली जा रहे हैं । उनके नाम अपनी डायरी में लिख लेता हूं और रोज उनके घर पर पता लगाता रहता हूं कि वे लौटे हैं या नहीं । जाने कब मौका लग जाए उन्हें श्रद्धांजलि देने का । अपने देश में जिंदगी और मौत का कोई भरोसा नहीं फिर मैं क्यों बेखबर रहूं ।' '
मैं उनके इस आशावादी दृष्टिकोण से एक बार फिर प्रभावित हुआ । कितना जीवट का आदमी है । कितनी लगन है उसे अपने काम से । महान लोगों के यही लक्षण होते हैं । इसी लगन से यदि देश के नेता काम में लग जाएं तो उन्हें भी महान बनने में कितनी देर लगेगी ।
मैंने कहा, ' 'श्रीमान जी, आप बुरा न मानें तो एक सलाह दूं ।''
वे बोले, ' 'बिलकुल दीजिए जी । हम उन लोगों में से नहीं हैं कि बुरा मान जाएं । लोग
तो नेताओं की तरह हमें मुंह पर गालियां देते हैं लेकिन बदले में हम केवल ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि भगवान हमें उस गाली देने वाले को शीघ्र श्रद्धांजलि देने का अवसर प्रदान करें ।' '
मैंने कहा, ' 'टाइम पास करने के लिए आप एक काम कीजिए । इस व्यक्तिगत श्रद्धांजलियों के अतिरिक्त कुछ संस्था और स्थिति-परक श्रद्धांजलियों में भी रुचि दिखाइए । इससे एक लाभ होगा कि जब कभी श्रद्धांजलि पर कोई शोधकार्य होगा आप श्रद्धांजलि प्रवर्तक के रूप में स्थापित व्यक्ति माने जाएंगे ।' '
वे बोले, ' 'मैं समझा नहीं जी । कुछ उदाहरण देकर समझाइए । पिताजी जब किसी को श्रद्धांजलि देकर आते थे तो उसके बारे में उदाहरण सहित समझाते थे ।''
मैंने कहा, ' 'देखिए, कोई बड़ा अधिकारी रिश्वत लेते पकड़ा जाए तो आप व्यवस्था को श्रद्धांजलि दीजिए, सरकार जब कोई नया टैक्स लगाए तो आप सरकार को श्रद्धांजलि दीजिए । नसबंदी के बाद भी किसी के घर बच्चा पैदा हो जाए तो आप सिविल सर्जन को श्रद्धांजलि दीजिए, बलात्कार का कोई अभियुक्त बरी हो जाए तो आप पुलिस को श्रद्धांजलि दीजिए, कोई ट्रेन पटरी से उतर जाए तो आप रेल मंत्री को श्रद्धांजलि दीजिए, दहेज के कारण कोई बहू जल जाए तो आप समाज को श्रद्धांजलि दीजिए, कोई सांप्रदायिक दंगा हो जाए तो आप धर्म को श्रद्धांजलि दीजिए । बस, इसके बाद तो आपको श्रद्धांजलि के क्षेत्र में नए आयामों की जानकारी आप-से-आप होने लगेगी । इस बीच कोई न कोई मर ही जाएगा । कुंठा से बचने का यही तरीका है ।' '
वे प्रसन्न .हुए । बोले, ' 'पाजामा उठाए जी ।'
मैंने पूछा, ' 'क्यों ?''
वे बोले, ' 'सचमुच आप महान हैं जी । मैं आपके चरणों को श्रद्धांजलि देकर ही इसकी शुरुआत करना चाहता हूं ।
मैंने भी यह सोचकर अपने चरण आगे बढ़ा दिए कि जीते जी यह सुख भी देख लूं । अपने देश में बुद्धिजीवी को श्रद्धांजलि देना भी कोई कम महत्व का नहीं है । और जब देश के सभी लोगों को श्रद्धासुमन अर्पित हो रहे हैं तो बुद्धिजीवी और साहित्यकारों ने क्या बिगाड़ा है । उनकी भूमिका भी कोई कम महत्वपूर्ण नहीं है ।
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(हिन्दी हास्य व्यंग्य संकलन, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत से साभार)
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