१-ग़ज़ल (मैं क्या करूँ) बेसबब मुस्कुराए तो मैं क्या करूँ। हुस्न मुझ पर लुटाए तो मैं क्या करूँ। मैने रोपी तो कलियाँ वफ़ाओं की थीं, ख़ार ही...
१-ग़ज़ल
(मैं क्या करूँ)
बेसबब मुस्कुराए तो मैं क्या करूँ।
हुस्न मुझ पर लुटाए तो मैं क्या करूँ।
मैने रोपी तो कलियाँ वफ़ाओं की थीं,
ख़ार ही उग जो आए तो मैं क्या करूँ।
राहे उल्फ़त सितारों ने रौशन किया,
चाँद गर रूठ जाए तो मैं क्या करूँ।
ले गया जो समन्दर यहाँ से कई,
अब वो सहरा बताए तो मैं क्या करूँ।
हर खुशी मैने अपनी उसे सौंप दी,
अब सम्हाली न जाए तो मैं क्या करूँ।
गीत लिक्खा तो था मैने उसके लिए,
हर कोई गुनगुनाए तो मैं क्या करूँ।
मुन्हसिर जिसकी नज़रों पे है ज़िन्दगी,
वो ही नज़रें चुराए तो मैं क्या करूँ।
हैं बुलाती मुझे हुस्न की वादियाँ,
अब कदम डगमगाए तो मैं क्या करूँ।
की थी कोशिश बचाने की हरदम उसे,
ज़िन्दगी रूठ जाए तो मैं क्या करूँ।
कोशिशें मेरी नाकाम होती रहीं,
वो हक़ीकत छुपाए तो मैं क्या करूँ।
जिसकी खातिर ज़माने का दुश्मन बना,
वो ही आँखें दिखाए तो मैं क्या करूँ।
हो मनाने की उम्मीद जिससे 'मिलन',
गर वही रूठ जाए तो मैं क्या करूँ.
-------मिलन.
बेसबब-बिना कारण
ख़ार-काँटे
राहे उल्फ़त-प्रेम डगर(रास्ता)
सहरा-बियाबान,जंगल
मुन्हसिर-निर्भर
हक़ीकत-सच्चाई
२- ग़ज़ल-
(रुला तो न दोगे)
हंसाकर कहीं तुम रुला तो न दोगे,
कोई जख़्म फिर से नया तो न दोगे।
हसीं वादियों के सपने दिखाकर,
कहीं यार तुम भी दग़ा तो न दोगे।
हिफ़ाजत का कर के बहाना कहीं तुम,
दिया जिन्दगी का बुझा तो न दोगे।
निहां राज़ ए दिल गर बता दूँ तुम्हें तो,
नज़र से तुम अपनी गिरा तो न दोगे।
अगर याद आयी किसी दूसरे की,
मुहब्बत मेरी तुम भुला तो न दोगे।
भरोसे पे तेरे किए जो भरोसा,
उसे ख़ाक़ में तुम मिला तो न दोगे।
बड़ी मुश्किलों से सम्हाला है मैंने,
मुहब्बत की कश्ती डुबा तो न दोगे।
मुझे ख़ौफ़ यूँ बिजलियों का बताकर,
खुद अरमान दिल के जला तो न दोगे।
'मिलन' छोड़ जाओ मेरे हाल मुझको,
मुकद्दर का लिक्खा मिटा तो न दोगे।
---------मिलन.
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३-ग़ज़ल
(क्या फ़ायदा)
सोजे नफ़रत छुपाने से क्या फ़ायदा,
बेसबब दिल जलाने से क्या फ़ायदा।
जिन्दगी ही तेरी बोझ लगने लगे,
बोझ इतना उठाने से क्या फ़ायदा।
जब समझते नहीं तेरी मज़बूरिया,
हाले दिल फिर सुनाने से क्या फ़ायदा।
जिन्दगी ही निगल जाए जो आपकी,
ऐसा वादा निभाने से क्या फ़ायदा।
हो सके जो न पूरी कभी आपसे,
वैसी कसमें उठाने से क्या फ़ायदा।
बढ़ गया फ़ासला खो गयी जिन्दगी,
बेवफ़ा मुस्कुराने से क्या फ़ायदा।
दिल जलाया है जिसने हमेशा "मिलन",
फ़िर उसे आज़माने से क्या फ़ायदा।
-------मिलन.
४- ग़ज़ल
(पराया कोई नहीं)
दामन में दाग़ और लगाया कोई नहीं।।
अपना ही था मियां वो पराया कोई नहीं ।।
करनी पड़ेंगी रात भर अख़्तर शुमारियां,
अल्लारे इतनी बात बताया कोई नहीं।।
बदख्वाह बददुआगो बदअख़लाक़ बदनजर,
कम्बख़्त वक्त ए हिज्र में आया कोई नहीं।।
घर हो रहे तबाह हैं नफ़रत की आग में,
अफ़सोस अब भी होश में आया कोई नहीं।।
दुनिया के रंगमंच के किरदार हम सभी,
अपना कोई नहीं है पराया कोई नहीं।।
आराम जिनको मिलता है दुश्मन की गोद में,
फ़र्जे वतन क्या उनपे बकाया कोई नहीं।।
तुमसे खफ़ा हैं लोग ज़माने के ऐ मिलन,
सच बोलकर तू दिल तो दुखाया कोई नहीं।।
------------मिलन.
अख़्तर शुमारियां- तारे गिनना
बदख्वाह-बुरा चाहने वाला
बददुआगो-बद्दुआ देने वाला
बदअखलाक़-बुरे चरित्र का
बद्नजर-बुरी नजर वाला
वक्ते हिज़्र-विरह के समय.
५- ग़ज़ल
(कभी मत दिल दुखाना)
तुम बुजुर्गों का कभी मत दिल दुखाना।
जिनके' क़दमों में कहे जन्नत ज़माना ।।
दूर मत करना कभी तुम खुद से' इनको,
कौन है जो फेंकता कंचन पुराना।।
ले के' निकलो तुम बुजुर्गों की दुआएँ,
घर से' बाहर हो तुम्हारा जब भी' जाना।।
छोड़ना तन्हा नहीं इनको कभी भी,
हो सके तो फ़र्ज़ बस इतना निभाना।।
शाम को घर आ के' इनके पास बैठो,
हो ज़रूरी जो दवा कुछ साथ लाना।।
है अगर करना दिलों पर राज उनके,
कुछ सुनो उनकी उन्हें अपनी सुनाना।।
जिन्दगी हँसते हुए गुज़रेगी' उसकी,
जो मिलन जीने का' इनसे राज़ जाना।।
मिलन चौरसिया 'मिलन'
मऊ, उ0प्र0।
६-ग़ज़ल
(फ़ैसला कीजिए)
यूँ न चुप चुप हमेशा रहा कीजिए।
कोई शिक़्वा ही हमसे किया कीजिए।
हादसे हो रहे हैं बहुत आजकल,
ज़िन्दगी के लिए अब दुआ कीजिए।
ढेर लाशों के बिखरे पड़े हर कहीं,
क्या पता हों, उसी में पता कीजिए।
ज़िन्दगी खो न जाए कोई इस तरह,
है जरूरी कोई फ़ैसला कीजिए।
जान निकले वतन पर ये अरमान था,
हादसे में गयी आज क्या कीजिए।
कुछ जरूरत दुआओं की कम हो सके,
कोई ईजाद ऐसी दवा कीजिए।
कब 'मिलन' पर लगे जाने किसकी नजर,
सामने अब गले मत मिला कीजिए।
--------मिलन.
७-ग़ज़ल
(मत कीजै)
गलतियों से निबाह मत कीजै।
बेवजह वाह वाह मत कीजै।।
तर्बियत याफ्ता यहाँ सब हैं,
अपनी ओछी निगाह मत कीजै।।
कल जो शर्मिन्दगी का वाइस हो,
कोई ऐसा गुनाह मत कीजै।।
बेवफाई को याद कर कर के,
आप खुद को तबाह मत कीजै।।
चाहे जितना यकीन दे कोई,
गैरपुख्ता निकाह मत कीजै।।
रात काली हजार हो जायें,
हाथ अपने सियाह मत कीजै।।
हम फ़कीरों को शाह कहते हैं,
अब लुटेरों को शाह मत कीजै।।
घर से बाहर निकल नहीं सकते,
आसमानों की चाह मत कीजै।।
जिन्दगी की 'मिलन' जरूरत है,
कौन कहता विवाह मत कीजै।।
-----मिलन.
तर्बियत याफ्ता -शिष्टाचार से परिपूर्ण
ग़ैरपुख्ता-बिना प्रमाण के
८-ग़ज़ल
(होश गवांया मैने अपना सारा था)
उस पल उसने ऐसे मुझे निहारा था।
होश गवांया मैने अपना सारा था।।
भटक रहा था बस्ती बस्ती जाने क्यूं,
दिल अपना भी जैसे इक बंजारा था।।
उसने अपना ख़त भी मुझसे माँग लिया,
तनहाई का वो ही एक सहारा था।।
तोड़ दिए वादों के साथ खिलौने भी,
जो भी मुझको या जिसको मैं प्यारा था।।
बेगानों सा देखा उसने आज मुझे,
कलतक मैं जिसकी आँखों का तारा था।।
तेरा मेरा कर के सब कुछ बाँट लिया,
मन्दिर मस्जिद मजहब या गुरुद्वारा था।।
तोड़ दिया इस दिल को उसने आज मिलन,
जो उसकी चाहत का मारा मारा था।।
------मिलन
९-ग़ज़ल
(दिल में गीता कुरान रखते हैं)
हम सितमगर का मान रखते हैं।
दिल पे सारे निशान रखते हैं।।
लौटकर घर वो आ नहीं जाते,
सबकी मुश्किल में जान रखते हैं।।
हम भी वाकिफ़ है ज़ायकों से मियां
गो कि हम भी जबान रखते हैं।।
किसमें दम है हमें जुदा कर दे,
दो बदन एक जान रखते हैं।।
दीन की बात मत करो हमसे,
दिल में गीता कुरान रखते हैं।।
जिन्दगी चार दिन की चौसर है
इसलिए आन बान रखते हैं।।
दर्द ए दिल का वो हाल क्या जानें,
जो कि खंजर जुबान रखते हैं।।
ज़द में वो भी हैं हादसों की मिलन,
जो कि ऊंचा मकान रखते हैं।।
---------मिलन.
१०-ग़ज़ल
(होती ग़ज़ल है)
अगर इश्क़ हो तो ही होती गज़ल है।
ख़यालों के बिस्तर पे सोती गज़ल है।।
दिशा है दिखाती ये भटके हुओं को,
दिलों की ख़लिस को भी धोती गज़ल है।।
जो साहित्य को हम कहें इक समन्दर,
तो सागर से निकली ये मोती गज़ल है।।
नयी पीढ़ियों को है माज़ी बताती,
अरूजो अदब को भी ढोती गज़ल है।।
है अम्नो अमां से ही रिश्ता गज़ल का,
मुहब्बत दिलों में भी बोती गज़ल है।।
अगर बहर से कोई ख़ारिज़ हो मिसरा,
तो आँसू बहाकर भी रोती गज़ल है।।
हँसाती रुलाती मिलन तंज कसती,
सभी नौ रसों में डुबोती गज़ल है।।
------मिलन.
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