दिल्ली की गर्म तपती दोपहर को मैं अपने आफिस में कम्प्यूटर के साथ व्यस्त था। सौर ऊर्जा से चलने वाले ए.सी. ने कमरे को पर्याप्त ठण्डा ब...
दिल्ली की गर्म तपती दोपहर को मैं अपने आफिस में कम्प्यूटर के साथ व्यस्त था। सौर ऊर्जा से चलने वाले ए.सी. ने कमरे को पर्याप्त ठण्डा बना रखा था। मेरी रोबो पी.ए. रूबी कोल्ड कॉफी बनाने में मग्न थी रूबी ह्यूमन एन्डरॉयड थी और कंपनी ने मेरी फरमाइश पर उसे पिछले जमाने की मशहूर हीरोइन कंगना जैसा लुक दिया था।
तुमसे अच्छी कॉफी कोई नहीं बना सकता स्वीटी। जी करता है तुम्हारे हाथ चूम लूँ। मैंने जानबूझ कर उसे छेड़ा। ‘जरूर वकील साहब........ ‘ कहते हुए रूबी ने हाथ बढ़ाए। उसके हाथों को छूते ही करंट के तेज झटके ने मेरा दिमाग ठिकाने पर ला दिया। कंपनी ने कैसी जबर्दस्त प्रोग्रामिंग की थी उसकी। हाथ तक नहीं देखने देती थी। जरूर यह मेरी पत्नी का किया-धरा था जो रूबी से जलती थी।
मैं आजकल एक हाई प्रोफाइल केस का काम कर रहा था। निकट वर्षों में स्थापित प्रतिष्ठित ‘यूनिवर्सल बायोइन्फॉर्मेटिक कंपनी’ यूबीसी से जुड़ी एक विचित्र बात सामने आयी थी। कंपनी ने उत्कृष्ट कम्प्यूटर व जैव विशेषज्ञों की शानदार पैकेज पर नियुक्ति की थी। कुछ समय बाद अधिकतर कर्मचारी प्राकृतिक या दुघर्टनावश मृत्यु का शिकार हो गये थे। इस कारण कुछ लोग यूबीसी को अभिशप्त मानने लगे थे तो कुछ का विचार था कि यह प्रतिद्वन्द्वी कंपनियों का षड़यंत्र है। तफतीश में कोई संदिग्ध बात सामने नहीं आयी थी।
यकायक मेरे ऑफिस की खिड़की में एक कबूतर फड़फड़ाया। आजकल की इस इलैक्ट्रानिक दुनिया में किसी सूचना को छुपाना लगभग असंभव था अतः इस केस में मैंने संदेश भेजने का सदियों पुराना नानॅ-इलैक्ट्रानिक तरीका अपनाया था। धीरे से कबूतर को अन्दर लेते हुए मैंने उसके पैरों में बंधा पत्र खोल लिया। लिखा था, कंपनी का काम थ्री डी तरीके से होता है। लेकिन यहाँ कुछ गड़बड़ी के संकेत है। कल यूबीसी सिटी में मिलिए।..... आपका महादेवन।’
कोल्ड कॉफी पीकर तरोताजा हो मैं इस केस की ब्रीफिंग में लग गया। इस संदेश ने मेरी क्लाइण्ट मिसेज सावित्री के शक पर मोहर लगा दी थी। वह एक परिचित के जरिये मुझे मिली थी और यूबीसी में कार्यरत अपने पति की मृत्यु पर शंकित थीं। यद्यपि वह हृदयघात से मरे थे तथापि मिसेज सावित्री इसे सामान्य मृत्यु मानने को तैयार नहीं थी। इनका कहना था कि अपनी मृत्यु से कुछ दिन पूर्व उनके पति चिन्तित से रहने लगे थे। उन्हें लगता था कि कुछ अशुभ घटित होने वाला था।
सच कहूँ तो मिसेज सावित्री की बातों से अधिक उनकी सफेद साड़ी, सूने माथे और खाली माँग ने मुझे विवश किया और मात्र उनका मन रखने के लिए इस केस को देखने की हामी भर ली थी। परन्तु आज....... पत्र प्रेषक महादेवन मेरा सहायक था जो बतौर ऑफिसबॉय यूबीसी में प्लाण्ट किया गया था। निश्चित ही उसे कोई महत्वपूर्ण सुराग हाथ लगा था। मेरी हाई स्पीड एयर कार यूबीसी सिटी की एयर पार्किंग में उतर चुकी थी। लिफ्ट द्वारा मैं नीचे आया और अब यूबीसी के स्वागत कक्ष में बैठा रिसेप्शनिष्ट ऐश्वर्या को देख रहा था जो शायद रूबी की तरह ह्यूमन एन्डरॉयड थी। मेरे दोंनों ओर काँच के शोकेस थे जिसमें कंपनी के उत्पाद डिस्प्ले पर रखे गये थे। ये बायो-इलैक्ट्रनिक जन्तु तितली व चूहा आदि थे जिनमें न्यूरो चिप इम्लाण्ट की गयीं थीं। रिमोट द्वारा नियंत्रित कर इनमें मनचाहा खिलवाड़ किया जा सकता था। मैंने रिमोट का बटन दबाया तो चूहा खड़ा होकर गोल घूमने लगा।
एक अमीर ग्राहक बनकर मैं कंपनी से मिला था और अपने शिहुआहुआ कुत्ते को रिमोट चालित बनवाना चाहता था। कंपनी के और भी कई उत्पाद थे जैसे गर्भस्थ जीव के शरीर में खराबी आने पर डी.एन.ए. एलर्ट भेजा जा सकता था। बुद्धिमान और समझदार बायो-कम्प्यूटर थे तो मनचाहे गुणों वाले डिजायनर बच्चे प्लान किये जा सकते थे। सहसा मैं चौक उठा।
मुझ कॉफी देने आए व्यक्ति ने बड़ी सफाई से मेरी जेब में कुछ रख दिया था। वह महादेवन था। मैं सतर्क हो उठा। यूबीसी की जानकारी लेकर मैं जल्दी से बाहर निकल आया। कार में बैठकर मैंने जेब से कागज का पुर्जा निकाला........ जो कुछ जाना वह इतना विस्मयजनक है कि विश्वास नहीं होता। इन्हें रंगे हाथों पकड़ना है तो कल शाम स्पेशल क्राइम सेल के साथ यूबीसी की गुप्त वर्कशाप पर छापा मारिये। नीचे एक विस्तृत नक्शा बना था। मैं तुरन्त तैयारी में लग या। प्रतिष्ठित कंपनी का मामला था अतः सतर्कता आवश्यक थी। स्पेशल क्राइम सेल में स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अपनी रणनीति बनायी और इसे आपरेशन डेथ का नाम दिया।
.... फिर कुछ घण्टों बाद .... सही समय जगह व सही रणनीति के साथ ऑपरेशन डेथ पूरा हो चुका था। अब आला अधिकारियों और चुनिंदा पत्रकारों के बीच अपराधी सिर झुकाये बैठे थे।
‘क्या योजना थी आपकी?’ एक पत्रकार ने पूछा। ‘हमारी कम्पनी की टेक्निकल टीम को बायो-इलैक्ट्रानिक जन्तु बनाने में महारत हासिल थी। अब हमने मनुष्य पर प्रयोग करने शुरू कर दिये थे। इन्हीं प्रयोगों के दौरान हमें सूझा कि क्यों न मनुष्य के मस्तिष्क को डिजिटाइज करने का प्रयास किया जाए? मस्तिष्क के न्यूरॉन और उनके बीच कनेक्शन को स्मृतियों सहित स्कैन करके हूबहू वैसी ही डिजिटल प्रतिकृति कम्प्यूटर में बनायी जाए। हम इसमें सफल रहे। फिर हमने ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित किया जिसके द्वारा मस्तिष्क का डिजिटल स्वरूप बिलकुल वास्तविक जीवित मास्तिष्क की तरह कार्य कर सकता था। यह इतना हाईटेक था कि सुख-दुःख, संवेदनाओं व भावनाओं पर भी अपनी प्रतिक्रिया देता था। यही नहीं बल्कि इसे इच्छानुसार व नियंत्रित भी किया जा सकता था। स्मृतियाँ भी इसमें फीड या डिलीट की जा सकती थीं, कम्पनी के टैक्निकल हेड मि. रजत ने गर्व भरे स्वर में कहा’ सभी आवक थे।
‘इस तरह से देखा जाए तो हम मनुष्य को गुलाम बनाने में सफल हो गये थे। फिर हमने इसका उपयोग कंपनी के फायदे के लिये करने का निश्चय किया। करोड़ों के पैकेज पर विशेषज्ञों की नियुक्ति करने का क्या औचित्य था जब उनसे वही काम हम मुफ्त में भी ले सकते थे। दुनिया के लिये वे सभी मृत हैं पर हमारे कम्प्यूटरों में मौजूद हैं और लगातार अनुसंधान, विकास व नये उत्पाद विकसित करने में लगे हुए हैं। आज हमारे अधिकतर उत्पाद इन्हीं ‘डिजिटल डेड डूअर्स’ यानी मृत डिजिटल कर्मचारियों की देन है, सी.ई.ओ. मि. गुप्ता ने भावहीन स्वर में कहा। ‘तो यह था थ्री डी तारीका, लेकिन इसका उनकी मृत्यु से क्या संबंध था? आप मस्तिष्क की कॉपी करने के बाद उन्हें नौकरी से निकाल भी सकते थे मैने पूछा।
‘दरअसल एक तकनीकी अड़चन थी। मस्तिष्क को रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति जारी रहते हुए उसकी डिजिटल कॉपी तैयार करना संभव नहीं था। इसलिये हमें कुछ विशेष उपायों द्वारा उन्हें प्राकृतिक लगने वाली मृत्यु देनी पड़ती थी। आपको नमूना दिखाना चाहता हूँ ठण्डे स्वर में कहते हुए मि. रजत ने अपना कम्प्यूटर ऑन किया।
स्क्रीन पर प्रो. सत्य का मुस्कराता चेहरा सामने था। ‘गुड मॉनिंग कैसे हैं आप?’ मि. गुप्ता ने पूछा।
‘अच्छा हूँ, हालांकि रात को देर से सोया। बायो कम्प्यूटर की डिजायन देखता रहा। काफी लोग आये हैं। कंपनी की मीटिंग है क्या? मुझे तो कोई सूचना नहीं दी गयी। प्रो. सत्य का शिकायती स्वर सुनाई दिया।
यहाँ के दृश्य को स्कैन करके हमारा सॉफ्टवेयर इनके मस्तिष्क का संकेत भेज रहा है। वह स्वयं को यहां उपस्थित समझ रहे हैं। नहीं जानते कि ये मर चुके हैं। क्योंकि हमने इनकी मृत्यु-स्मृति मिटा दी है। यों भी शरीर का अस्तित्व मस्तिष्क के द्वारा ही अनुभव होता है। चेतना, भावना, संवदेना सब कुछ मस्तिष्क की करामात है। कहते हुए मि. गुप्ता ने कम्प्यूटर का एक बटन दबाया। तुरन्त ही प्रो. सत्य ने अपना सिर थाम लिया।
‘माफ कीजिएगा, सिर में अचानक तेज दर्द उठ आया है। घर जाकर दवा खाकर आराम करता हूँ’ दर्द की अधिकता से उनकी आंखों में छलकता पानी साफ दिखाई दे रहा था। कैसा भ्रम है? कैसा मायाजाल रचा था? कैसे थे यह रचयिता जिन्होंने मानव को उसके जीवन-मरण का अन्तर ही भुला दिया था। विष्णु भगवान द्वारा नारद मुनि को मायाजाल में फंसाने की कथा न जाने क्यों मुझे याद आ गई।
कंपनी का राज फाश हो चुका था। सभी दोषियों को गिरफ्तार कर कंपनी सील कर दी गयी थी।
दो दिन बाद..... रंगीन साड़ी, लाल बिन्दी और भरी हुई मांग के साथ मिसेज सावित्री मेरे सामने बैठी थीं।
‘आपके शक के कारण जाने कितने निर्दोषों की जान जाने से बच गई। वरना पता नहीं यह भयानक खेल कब तक चलता रहता। मैंने कहा। ‘मैं आपको धन्यवाद देना चाहती हूँ वकील साहब। आपके कारण मैं अपने पति को वापस पा सकी। नम आंखों से उन्होंने कहा।
‘ये आप क्या कह रही हैं? वह तो मृत........... मैं बुरी तरह चौंक उठा।
‘नहीं..... यह तो दृष्टिकोण की भिन्नता हैं दुर्घटना या किसी बीमारी के कारण शरीर सदा के लिए निष्क्रिय हो जाने पर भी चिकित्सा और कानून की दृष्टि से उसे तब तक मृत नहीं माना जाता जब तक उसका मस्तिष्क सही ढंग से काम कर रहा हो। क्या इस परिभाषा के अनुसार वह जीवित नहीं हैं? और फिर वह भी स्वयं को जीवित समझते हैं तो मैं उन्हें मृत कैसे मान लूं? ‘ सशरीर न सही, पर वह अब भी मेरे पति हैं और पत्नी होने के नाते मुझे अपनी अन्तिम सांस तक उनका साथ निभाना है। वैसे भी...........अपने इस डिजिटल रूप में वह सदा अमर रहेंगे, अब तो मैं सदा-सुहागन हूँ’ रुंधे गले से कहती मिसेज सावित्री का तेज अग्नि शिखा सा लहरा रहा था, सारे संशय निगलने को आतुर। उनकी अनूठी पतिभक्ति के सामने मैं स्तब्ध और नतमस्तक था। मिसेज सावित्री ने अपने डिजिटल पति को वापस पाने के लिए मुझे केस लड़ने का अनुरोध किया है। मैं जानता हूँ वह इसके लिए यमराज से भी लड़ जायेंगी। पर मैं तो एक अदना सा बन्दा हूँ मेरी कामयाबी के लिए प्रार्थना कीजियेगा.....प्लीज।
(विज्ञान कथा - जनवरी - मार्च 2017 से साभार)
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