डॉ. शुभ्रता मिश्रा वास्को-द-गामा, गोवा प्रारम्भ से ही चाहे वह संस्कृत साहित्य रहा हो या हिन्दी साहित्य अथवा विश्व की अन्य किसी भी भाषा का ...
डॉ. शुभ्रता मिश्रा
वास्को-द-गामा, गोवा
प्रारम्भ से ही चाहे वह संस्कृत साहित्य रहा हो या हिन्दी साहित्य अथवा विश्व की अन्य किसी भी भाषा का साहित्य हो, उसमें प्रकृति का वर्णन बिम्ब-प्रतिबिम्ब, पृष्ठभूमि, अलंकार, आलंबन, उद्दीपन, उपमान, प्रतीक, मानवीकरण, मानव-भावनाओं का आरोप, उपदेश तथा रहस्य के रुप में प्रयोग किया जाता रहा है। सही मायनों में कहें तो साहित्य की प्रकृति के प्रति सदैव सहृदयता रही है। भारतीय साहित्य में प्रकृति-सौन्दर्य का वर्णन कालिदास के समय से वर्णित होता आ रहा है। अंतर सिर्फ इतना है कि कालिदास और उनके बाद आए कवियों ने प्रकृति में मानवीय भावनाओं को चित्रित किया और वर्तमान में कुछ दशकों से साहित्यकार मानवीय संवेदना को प्रकृति में ढूँढ रहे हैं। क्योंकि आज की मानवीय संवदेना कहीं न कहीं विज्ञान की आधुनिक प्रवृत्ति से मर्यादित हुई है। अतः अंटार्कटिका जैसे विज्ञान से अधिक निकटता रखने वाले विषय में प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से साहित्य के दर्शन होना किंचित् अनूठा अनुभूत नहीं होगा।
शशि-किरणों से उतर-उतरकर,
भू पर कामरूप नभ-चर,
चूम नवल कलियों का मृदु-मुख,
सिखा रहे थे मुसकाना।
प्रकृति चित्रण में सर्वश्रेष्ठ माने जाने वाले हिन्दी के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की उपर्युक्त पँक्तियाँ जब प्रकृति के बिम्ब-ग्रहण कराने की चेष्टा करती हैं, तब लगता है कि प्राकृतिक सौन्दर्य की श्री से सम्पन्न इस पृथ्वी पर एक ऐसा स्थान भी है, जो न केवल रहस्यों व विस्मयों की भूमि है, बल्कि पृथ्वी की अंतिम विशाल बंजरभूमि भी है। हिम का विशाल विस्तार, प्रचण्ड जलवायुविक परिस्थितियाँ तथा भूमण्डल के अन्य भागों से इसकी दूरस्थ एकांतता वस्तुतः इसे एक ‘अन्य विश्व’ के रूप में निरूपित करती है। लेकिन साहित्यिक विम्ब की दृष्टि से कदाचित इसे नगण्य ही निहारा गया है।
पृथ्वी के प्राकृतिक सौन्दर्य से सराबोर यह स्थल और कोई नहीं वरन् इसका अपना सातवाँ महाद्वीप अंटार्कटिका है। यह महाद्वीप अपनी अतिशीतता, अतिशुष्कता, अतिप्रचण्डता, अतिवातता तथा अन्य समस्त महाद्वीपों की तुलना में अपनी अत्यधिक अगम्यता के लिए जाना जाता है। सामान्यतौर पर यह महाद्वीप ‘श्वेत मरूस्थल’ अथवा ‘हिमझंझावातों का गृह’ या ‘पैंग्विन भूमि’ या ‘हिमीय महाद्वीप’ या ‘दक्षिणी महाद्वीप’ या ‘विश्व का विशालतम प्रशीतित्र’ नामों से प्रसिद्ध है।
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अप्रतिम प्राकृतिक सौन्दर्य से समृद्ध अंटार्कटिका पृथ्वी का एकमात्र ऐसा महाद्वीप है, जहाँ कोई सरकार नहीं है, जहाँ किसी एक देश का प्रभुत्व नहीं है, वह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुराष्ट्रों के मध्य समरसता, सहयोग और सौहार्द्रपूर्ण ढंग से मात्र और मात्र वैज्ञानिक अन्वेषणों के लिए प्रयोग किया जा रहा भूभाग है। यहाँ केवल शांतिपूर्ण कार्यों के लिए ही वैज्ञानिक अनुसंधान किए जाते हैं। वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों पर समस्त विश्व के देशों का समान अधिकार है, कोई भी राष्ट्र उनका दोहन नहीं कर सकता। वहाँ स्थापित सभी देशों के स्टेशनों में काम कर रहे लोग एक दूसरे के साथ प्रेम ओर भाईचारे के साथ रहते हैं, आवश्यकता पड़ने पर निःस्वार्थ सहायता करते हैं। एक दूसरे के पर्वों को मिलजुकर मनाते हैं। विश्व की राजनीतिक व कूटनीतिक स्वार्थता से परे अंटार्कटिका की भूमि किसी ईश्वरीय सत्ता से संचालित प्रकृति-प्रदेश से कम नहीं है। यह अन्तर्राष्ट्रीय समरसता के उदाहरण का एक अप्रतिम प्रतिमान है। अंटार्कटिका में होने वाली गतिविधियाँ 23 जून 1961 से प्रभाव में आए अंटार्कटिक संधितंत्र के तहत सम्पादित की जाती हैं। अंटार्कटिक संधितंत्र अंटार्कटिका के लिए एक विधीय ढाँचा निर्मित करता है तथा अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को अंटार्कटिका में स्वतंत्र अभिगमन एवम् अनुसंधान अधिकारों की प्रत्याभूति प्रदान करता है।
इस विविक्त तथा चरम महाद्वीप के लिए मानव की यात्रा की शुरुआत ज्ञान की खोज तथा इसके रहस्योद्घाटनों के उद्देश्य से तो अवश्य की गई, परन्तु इसकी दूरस्थ एकांतता ने सम्भवतः कविहृदयों को पहुँचने ही नहीं दिया। पर जिसने भी इसे देखा, अनुभव किया और अपने नयनों में उतारा, फिर चाहे वह वैज्ञानिक या अभियानकर्ता ही रहा हो, अंटार्कटिका के सौन्दर्य को प्रस्तुत किए बिना नहीं रह सका है। अंटार्कटिका से लौटे वे मुग्ध लोग बस इतना ही बतला पाते हैं कि चारों ओर से बर्फ से जमे महासागर में प्रवाहमय हिम-शिलाखण्डों से टूटकर बिखरे हिम के विशाल खण्डों से परिपूर्ण अंटार्कटिका का एक सामान्य दृश्य ही इसे असामान्य विलक्षण चित्रोमय रूप प्रदान करता है। हिमाच्छादित दक्षिणी महासागर इस भूमिचित्र के प्राकृतिक सौन्दर्य में श्रीवृद्धि करता है। यह शीत अद्वितीय सौन्दर्य बार-बार आगमन हेतु आपको अपनी ओर आकृष्ट करता है।
साहित्य में कवि-परम्परा के अनुसार प्रायः जलाशयों के वर्णन में कमलों, भ्रमरों, पक्षियों तथा जलचरों का वर्णन किया जाता है। लेकिन साहित्यिक परम्पराओं को यहाँ तोड़ना पड़ेगा क्योंकि इस महाद्वीप में कोई भी वृक्ष, घास या सामान्य बड़े प्राणी नहीं पाए जाते हैं। अंटार्कटिका में वनस्पती व प्राणी जीवन की विरलता के प्रमुख कारण इसकी चरम जलवायुवीय परिस्थितियाँ, उपयुक्त आवासों की कमी और सम्भवतः उनके परिक्षेपण हेतु एक अवरोध की भाँति इसकी विश्रांत पृथकता भी हैं। सामान्यतौर पर अंटार्कटिका के निवासी समझे जाने वाले विशाल स्थलीय प्राणी पैंग्विन व सील वास्तव में यहाँ के निवासी नहीं हैं, बल्कि बेल्जिका अंटार्कटिका नामक एक पंखरहित कीट यहाँ का वास्तविक निवासी है, जो 2.6 मिलीमीटर की अधिकतम लम्बाई तक वृद्धि करता है। अंटार्कटिक स्थलीय प्राणियों के अन्तर्गत बरूथियों (माइट्स) की पचास, कोलेम्बोला (स्प्रिंगटेल्स) की बीस, मिजेस (छोटे कीट) की दो, मेटाजोआ की अट्ठाईस, टारडीग्रेडों (अत्यंत लघु जलीय अकशेरूकी) की अट्ठाईस प्रजातियाँ तथा निमेटेडों व प्रोटोजोआ की अनेक प्रजातियाँ शामिल हैं। अंटार्कटिका दुनिया का मच्छरों से रहित स्थल है। यह आर्कटिक से भिन्न है, जहाँ लोग भोजन प्राप्त कर सकते हैं, और जहाँ हजारों वर्षों से आर्कटिक में निवास कर रहे एस्किमों की जनसँख्या है। दूसरी ओर, अंटार्कटिका दे्शज मानवीय आवासों से पूर्णतया रहित है।
साहित्य में प्रकृति का शाब्दिक चित्रण, आदित्य की प्रातःकालीन अरुणिमा की शोभा और प्रकृति के साथ मानव-हृदय का तादात्म्य अंटार्कटिका के सौंदर्य से भी उतना ही मेल खाता है। यहाँ की विश्रांत निस्तब्धता योग और वियोग की भावनाओं के उद्दीपन में एक स्पष्ट रहस्यवाद को जन्म देती हैं एवम् हृदय को हर्षित और आंदोलित करती हैं। हिन्दी साहित्य में प्रकृति के कण कण में व्याप्त सौन्दर्य की मुखरता में छायावाद का प्रभाव, रहस्यानुभूति और मानवीय सौंदर्य का यथार्थवादी चित्रण जैसी प्रवृतियों के दर्शन होते हैं। अंटार्कटिक महासागर के लाखों उत्प्लावित विशाल हिमशिलाखण्ड ऐसी ही किसी प्रवृत्ति से परिपूर्ण से प्रतीत होते हैं। कुछ हिमशिलाखण्ड श्वेत चमकदार आभायुक्त होते हैं, जबकि कुछ हल्के हरे या गुलाबी अथवा स्वर्णिम कांति से शोभायमान होते हैं।
चरमताओं के इस महाद्वीप में लगभग छः माहों तक निरन्तर दिन व छः माहों तक निरन्तर रात्रि रहती है, इसका निम्नतम 89.6 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान और हिमझंझावातों के दौरान 190 किलोमीटर प्रति घण्टे की वायुगतियाँ ही इस महाद्वीप को पृथ्वी का अद्वितीय स्थल बनाती हैं। महाद्वीप का 98 प्रतिशत से भी अधिक भाग हिमाच्छादित है। यहाँ विश्व का लगभग 90 प्रतिशत बर्फ मौजूद है, जो समस्त पृथ्वी के अलवणीय जल का 70 प्रतिशत जल बनाता है। अंटार्कटिका एक द्वीपीय महाद्वीप है, जो लगभग दक्षिण ध्रुव के केंद्र पर स्थित है। यह एक स्पन्दमान महाद्वीप है। महाद्वीप के चारों ओर का जमा हुआ महासागर दक्षिणी महासागर अथवा अंटार्कटिक महासागर के नाम से जाना जाता है। अंटार्कटिक शीतकाल के दौरान दक्षिणी महासागर बर्फ से जम जाता है। प्रकृति ने मानो स्वयं अंटार्कटिका को इस विशाल महासागर की बाहुओं से चारों ओर से घेरकर उसके सौन्दर्य को सुरक्षित रख पाने का प्रबन्ध सा कर रखा है। दक्षिणी महासागर की रौद्र प्रचण्डता को पारकर अंटार्कटिका में एक अनन्त परमशांति को पाना जीवन के परमरहस्य को अनुभूत कर पाने के मानिंद है।
भूगर्भीय इतिहास के अनुसार लाखों वर्षों पूर्व, अंटार्कटिका, भारत, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलेण्ड तथा दक्षिण अमेरिका एक दूसरे से जुड़े हुए थे और यह अधिमहाद्वीप ‘गोंडवाना लेण्ड’ के नाम से जाना जाता था। कुछ 18 करोड़ वर्षों पूर्व भूपटल के अंदर बलों द्वारा खिंचाव के परिणामस्वरूप यह पृथक हो गया था। पाँच करोड़ वर्षों पूर्व अंटार्कटिका ऊष्ण जलवायु, सदाबहार वनों तथा विभिन्न प्रकार के अनेक जीवजन्तुओं से युक्त महाद्वीप था, परन्तु आज यह सातवाँ महाद्वीप एक श्वेत मरूस्थल है।
झीलों और हिमनदों के सौन्दर्य को साहित्य की विविध विधाओं में तराशा गया है। कैलाश मानसरोवर झील का वर्णन पौराणिक समय से लेकर अब तक के साहित्य में सर्वोत्तम प्राकृतिक झील के रुप में होता आया है। विश्व साहित्य में भी झीलों के सौन्दर्य अपने अपने ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं। अंटार्कटिका में 150 से भी अधिक झीलें हैं प्रियर्द्यिनी झील (भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इन्दिरा प्रियर्द्यिनी गाँधी के नाम पर इसका नामकरण किया गया है) भारत के स्थायी स्टेशन मैत्री के सामने श्रीमाचेर मरूद्यान में स्थित है। लेम्बर्ट हिमनद, जो कि लगभग 40 किलोमीटर चौड़ा है और 400 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक बहता है, यह न केवल अंटार्कटिका का ही बल्कि विश्व का सबसे बड़ा हिमनद है। अंटार्कटिका की झीलें और हिमनद विरह और वियोग के माध्यम से निस्तब्ध एकांतता का अनुभव कराते हैं, जो मनुष्य को सीधे आध्यत्म से जोड़ते हैं। जहाँ कोई मोह नहीं है, कोई लोभ नहीं है, सिर्फ झीलों के जलों की शांत कर देने वाली मधुर ध्वनि है, तो वहीं विचलन की आकस्मिकता की भयावहता से मुक्त कर देने की क्षमता रखने वाले हिमनदों की विशालता है।
अंटार्कटिका का वैज्ञानिक अध्ययन सतत् जारी है। साहित्यिक दृष्टिकोण से यदि अंटार्कटिका को निहारा जाए तो मानव और प्रकृति के परस्पर सम्बन्धों की नयी अवधारणा के साथ प्रकृति के चित्रण को अनुप्राणित करने वाले राग-तत्त्व ही परिवर्तित हो जाते हैं। कहा जाता है कि यदि गलती से भी कोई अंटार्कटिक हिमझंझावात में फँस जाए, तो यह उसके जीवन का सबसे भयावह अनुभव होगा । वहाँ हवा में उपस्थित हिम कण शरीर को शूलों की भाँति चुभते हैं। देखा गया है कि वहाँ एक दाढ़ीदार चेहरे पर बड़ी मात्रा में हिम संचयित हो जाती है, जो बाद में धीरे धीरे बर्फ में बदल जाती है, जिसको दाढ़ी से निकालना बहुत मुश्किल और कष्टदायक होता है। इस तरह यहाँ प्रकृति के एक अद्भुत् और अकल्पनीय अनुभव को जान पाना कितना कठिन होगा और बिना अनुभव के उसे साहित्य के जीवंत रुप में लिख पाना उससे भी कहीं अधिक कठिन होगा। यद्यपि साहित्य में प्रकृति-बोध जब काव्य या अन्य रुप में उभरकर सामने आता है, तब उसमें वो परिवेश समाहित होता है, जिसमें वह रहता है, जिन पलों को वह उसमें जीता है, जिन भोगों को वह उसमें भोगता है और जिन संस्कारों को वह उसमें ग्रहण करता है। परिवेश अलग होते जाते हैं, प्रकृति परिवर्तित होती जाती है, साहित्य की अनुभूतियाँ अद्भुत होती जाती हैं। अनुभव-सत्यता पर अंतश्चेतन अनुभूति पृथ्वी पर अंटार्कटिका जैसे स्थल पर ही हो सकती है।
अंटार्कटिका की धरती और आकाश एक से एक बढ़ कर विचित्रताओं से भरे हुए हैं। वहां के दिन रात हमारे जैसे नहीं होते/न ही वैसी अटल हैं दिशाएँ, सूरज तक पूरब से नहीं निकलता न पश्चिम में ढलता है| कुछ आँधियां समय को देख कर चलती हैं और कुछ तूफ़ान हफ्तों तक चलते रहते हैं। बादल घिरते तो हैं पर गरजते नहीं। यहां इन्द्रधनुष दिन में नहीं, वरन् रात्रि में अपनी छटा बिखेरते हैं और एक जगह स्थिर होने की बजाय नृत्य करते से प्रतीत होते हैं। अंटार्कटिका में भ्रम ऐसा की दूरी का पता ही नहीं चलता या फ़िर दिशा बोध ही समाप्त हो जाता है या अकस्मात् ऐसा लगने लगता है मानो सब कुछ आसमान से लटक गया है। इन समस्त अंटार्कटिक विचित्रताओं के श्रवण मात्र से शरीर में जब रोमांच अनुभूत होने लगता है, तो नयनाभिराम दृश्यदर्शन साहित्य की श्रीवृद्धि में मौन कैसे रह पाएँगे।
अब तो ऑस्ट्रेलिया, चिली, दक्षिण अफ्रीका या अर्जेंटीना से विशेष जहाजों अथवा विशेष हवाई विमानों द्वारा अंटार्कटिका की पवित्र धरती का स्पर्श हर श्रीवत्स के लिए सम्भव हो गया है। हाँ, यह उतना ही सच है कि कवि प्रायः श्रीवत्स तो नहीं वागीश्वरीवत्स ही होते हैं, तो अंटार्कटिका के प्रत्यक्ष दर्शन कर उनका साहित्यिक वर्णन कर पाना थोड़ा दुरुह हो सकता है, परन्तु असम्भव तो नहीं ही। अंटार्कटिका तक पहुँचाने और सुरक्षित वापस लाने के लिए इन देशों की अनेक कम्पनियाँ क्रियाशील हैं। सामान्यतौर पर आम पर्यटक चिली में पंटा एरेनास से किंग जॉर्ज द्वीप के लिए उड़ान भरके और वहाँ एक शिविर में रात भर विश्रामकर अंटार्कटिका के दर्शन कर लौट सकते हैं।
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संक्षिप्त परिचय
डॉ. शुभ्रता मिश्रा मूलतः भारत के मध्यप्रदेश से हैं और वर्तमान में गोवा में हिन्दी के क्षेत्र में सक्रिय लेखन कार्य कर रही हैं। उन्होंने डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से वनस्पतिशास्त्र में स्नातक (B.Sc.) व स्नातकोत्तर (M.Sc.) एवम् विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से वनस्पतिशास्त्र में पीएच.डी (Ph.D.) और पोस्ट डॉक्टोरल अनुसंधान कार्य किया।
डॉ. शुभ्रता मिश्रा की अँग्रेजी भाषा में वनस्पतिशास्त्र व पर्यावरणविज्ञान से संबंधित अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सन् 2004 से हिन्दी में सतत् वैज्ञानिक लेखन कर रही हैं। डॉ. मिश्रा के हिन्दी में वैज्ञानिक एवम् सामयिक लेख विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमितरुप से प्रकाशित होते रहते हैं। उनकी अनेक कविताएँ भी विभिन्न कविता-संग्रहों में संकलित हैं।
प्रकाशित हिन्दी पुस्तकें
भारतीय अंटार्कटिक संभारतंत्र
धारा 370 मुक्त कश्मीर यथार्थ से स्वप्न की ओर
सम्मान
वीरांगना सावित्रीबाई फुले राष्ट्रीय फेलोशिप सम्मान (2016)
नारी गौरव सम्मान (2016)
राजीव गाँधी ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार-2012 (2014 में प्रदत्त)
मध्यप्रदेश युवा वैज्ञानिक पुरस्कार (1999)
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