सिन्दूरी आसमान में रात दबे पांव उतरने लगी थी। यह नवम्बर का महीना था और हवा में गुनगुनी सी ठण्डक थी। पैण्ट की जेबों में हाथ डाले समीर...
सिन्दूरी आसमान में रात दबे पांव उतरने लगी थी। यह नवम्बर का महीना था और हवा में गुनगुनी सी ठण्डक थी। पैण्ट की जेबों में हाथ डाले समीर अपने में खोया हुआ चलता जा रहा था कि अचानक - ‘‘सुनिये, मां निर्मला का आश्रम कहां है?’’ व्यग्र किंतु मधुर स्वर उससे ही सम्बोधित था। वह मुड़ा और जो देखा, वह उसकी दृष्टि में प्रकृति का चमत्कार था।
लगभग साढ़े पांच फीट लम्बी उस युवती का गोरा रंग अद्भुत था, जिसमें लालिमा नहीं वरन् सुनहरी आभा थी। तीखी नाक और चुकन्दरी रंग के होंठ जो कंपकंपा रहे थे। लाल-भूरे रंग के घने बाल उसकी पीठ पर बिखरे थे, जिनकी कई लटें उसके माथे पर आ गयी थीं। वह हतबुिह् सा उसे निहारता रह गया। ऐसा आकर्षण, ऐसा तीव्र सम्मोहन उसने कभी किसी के लिए अनुभव नहीं किया था। यह सिर्फ उस युवती के अलौकिक सौन्दर्य के ही कारण नहीं था। कुछ और था, जो अनजाना और अबूझ था। उसे लगा कि अब तक वह शायद जीवन के इसी पल की प्रतीक्षा करता रहा था। सफल और सुविधासम्पन्न जीवनचर्या के बीच मन को अक्सर कचोटने वाली एक अतृप्ति, कि पाने को कुछ शेष रह गया है, कहीं कुछ छूट गया है। वह आज इस क्षण विराम पा गयी थी। सम्पूर्णता की यह कैसी अनोखी अनुभूति थी।
‘‘क्या आप नहीं जानते मां निर्मला का आश्रम...?’’ उसके घूरने से अचकचाई युवती ने अपना प्रश्न दोहराया। ‘‘जी यहीं थोड़ी दूर पर.........’’ उसने संयत होने का प्रयास करते हुए कहा। युवती के जादुई अस्तित्व ने कुछ पल के लिए उसे सारा शिष्टाचार भुला दिया। न जाने इस निर्जन सड़क पर वह कहां से प्रकट हो गयी हैं।
‘‘क्या आप मुझे वहां तक ले चलेंगे?’’ युवती ने संकोच भरे स्वर में अनुरोध किया।
‘‘जी हां.... चलिये’’ सम्मोहन से बाहर आने से यातनापूर्ण क्षण कुछ समय के लिए टल गये थे।
‘‘आप कहां से आयी हैं?’’
‘‘बहुत दूर से’’ युवती ने खोये-खोये से स्वर में उत्तर दिया। ‘‘पर कहां से?’’ उसने हैरान होकर पूछा। युवती के साथ कोई भी सामान नहीं था।
‘‘इतनी दूर से कि आप सोच भी नहीं सकते।’’ सुनकर वह चुप हो गयाऋ शायद वह बताना नहीं चाहतीं थीं।
‘‘अकेली हैं क्या, कहां ठहरी हैं?’’ उसने पूछा, पर प्रश्नों के निहितार्थ पर स्वयं ही लज्जित हो गया। न जाने वह क्या सोच बैठे। ‘‘अपने तो अब बहुत दूर रह गये हैं। यहां कुछ दिन मां के आश्रम में रहूंगी’’ युवती ने विचलित हुए बिना कहा।
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मां निर्मला के आश्रम का मुख्य द्वार दूर से ही चमकने लगा था।
‘‘अब मैं चली जाऊंगी’’ युवती के दृढ़ स्वर ने उसे वहीं से लौटने पर विवश कर दिया।
+ + + + + ‘‘अगले प्रत्याशी को दस मिनट बाद भेजना’’ उसने चपरासी से कहा और कुर्सी की पीठ पर सिर टिकाकर आराम से बैठ गया। वह थक चुका था। उसकी कुशल और परिश्रमी सहायक दोगुने वेतन पर एक बहुराष्टीय कम्पनी में जा चुकी थी। अब उसे ऐसी सहायक की तलाश थी, जो उसकी प्रतिष्ठित साफ्टवेयर कम्पनी ‘आईगेट’ में काम करने के सर्वथा योग्य हो। जांच के बाद छांटे गये सात प्रत्याशियों के साक्षात्कार वह ले चुका था, पर उसके मापदण्ड पर कोई खरा नहीं उतरा। अब मात्र दो व्यक्ति शेष थे।
उसने घण्टी बजाते हुए अगले प्रत्याशी की परिचय फाइल उठा ली और अभी उसे पलटा ही था कि कानों से वहीं परिचित मधुर स्वर टकराया।
‘‘क्या मैं अन्दर आ सकती हंू?’’ उसने आंखें उठायीं, फिर पलके झपकना भूल गया। यह वहीं थीं। वहीं कोमल मुस्कान और दैवीय सुन्दरता का आभास देता चेहरा। भीनी सी मनमोहक सुगन्ध उसे एक साथ ही व्यग्र और तृप्त कर गयी। सुखद अप्रत्याशित आश्चर्य ने उसका कण्ठ अवरुद्ध कर दिया। वह आकर सामने रखी कुर्सी पर बैठ गयी।
‘‘आज फिर आपसे भेंट हो जायेगी, सोचा न था।’’ वह सजग होकर बैठ गया।
‘‘मेरा नाम परी है सर।’’ उसने हल्की सी मुस्कराहट के साथ उत्तर दिया। यह नाम उसके लिए कितना सार्थक था, उसने सोचा। ‘‘आपको इस काम का कुछ अनुभव है?’’ परी की फाइल पलटते हुए उसने पूछा।
सहायक के रूप में मैंने कभी काम नहीं कियाऋ पर विश्वास कीजिए मिस्टर समीर, मुझे यह उत्तरदायित्व सौंपकर आप निराश नहीं होंगे’’ परी का आत्मविश्वास भी उसकी सूरत की तरह उसे प्रभावित कर गया।
और सचमुच, आने वाले कुछ दिनों में परी की प्रतिभा देखकर वह हैरान रह गया था। सहायक के रूप में वह उसके कार्यक्रम का पूरा ध्यान रखती थी। न जाने उसकी हर आवश्यकता का आभास उसे कैसे हो जाता था। कम्प्यूटर वायरस मिरैकल का एण्टी-वायरस प्रोग्राम उसने यों चुटकियों में तैयार कर दिया था, जैसे कोई बच्चों का खेल हो। परियों की तरह ही उसकी हर बात अनोखी थी। उसकी ओर देखते, बातें करते समीर के शब्द बहुधा मौन हो जाते।
‘‘क्या बात है मि. समीर? आप मेरी बात पर ध्यान नहीं दे रहे। शायद आप थक गये हैं’’ उसकी मुग्ध दृष्टि से वह असहज हो जाती। ‘‘ओह.... हां, मुझे आराम करना चाहिए’’ वह अपनी झेंप मिटाने की कोशिश करने लगता।
‘‘आप कहां की रहने वाली है। मिस परी, आपके माता-पिता कहां है?’’ उस दिन अचानक वह पूछ बैठा।
‘‘मेरे पिता नहीं है और मां’’ कहते हुए वह कमरे की खिड़की पर आकर खड़ी हो गयी। दिसम्बर की उस ठण्डी सन्ध्या में साढ़े छह बचे ही अंधेरा घिर आया था। समीर उठकर उसके पास आकर खड़ा हो गया।
‘‘वहां रहती हैं मेरी मां, और मैं यहां मां निर्मला के आश्रम में’’ परी ने काले आसमान में चमकते तारों की ओर संकेत किया। समीर व्याथित हो उठा। इसी क्षण उसे लगा कि वे दोनों किसी तन्तु के दो सिरों की तरह थे, जिन्हें आपस में बंधना ही था।
‘‘मुझसे विवाह करोगी परी?’’ समीर ने धीरे से पूछा। परी संकुचित हो उठी। उसकी मुखर आंखों में विचित्र से भाव उभरने लगे, जैसे कुछ समझ न पा रही हो। फिर परी के मौन ने उसी अपनी स्वीकृति दे दी।
+ + + + + शीघ्र ही वे विवाह बन्धन में बंध गये। रस की ऐसी दृष्टि हुई कि जन्म-जन्मान्तरों की तृप्ति हो गयी। परी का प्रेम ऐसी भुलभुलैया की तरह था, जिसमें वह यहां-वहां घूमता तो रहाऋ पर बाहर कभी नहीं निकल पाया। आत्मा के परमात्मा से मिलन जैसो इस सम्बन्ध के बाद संसार उसके लिए निस्सार था। उसे लगता शायद मोक्ष की आनन्दानुभूति ऐसी ही होती होगी। परी के सिवा उसे न कुछ सझूता न दिखायी देता। वर्ष भर का साहचर्य मन और देह की वीथिकाओं से आगे बढ़ता हुआ सृजन की ओर उन्मुख हो चला था। प्रेम की स्वाभाविक परिणति परी के गर्भ में साकार रूप से रही थी। वह स्वाभाविक रूप से इतना प्रसन्न था कि परी के माथे पर छायी चिन्ता की लकीरों को देख नहीं सका, जो दिनोंदिन गहरी होती जा रही थीं।
+ + + + + रात के साढ़े आठ बजे थे। अधिकतर बन्द रहनेवाली समीर की भव्य कोठी का द्वार आज खुला हुआ था। बाहर पुलिस की जीप खड़ी थी। आराम से टिककर बैठा वर्दीधारी चालक बीड़ी के कश लगाने में मस्त था। अन्दर बैठक कक्ष में पुलिस इन्स्पेक्टर तेजवीर सिंह अपने दो सहायकों के साथ पूछताछ में व्यस्त नजर आ रहे थे। कालोनी के कई अन्य व्यक्ति भी वहां एकत्र थे। समीर की वीरान आंखें और बुझा हुआ चेहरा उसकी व्यथा का परिचय दे रहा था। लग रहा था जैसे सर्वस्व लुटा बैठा हो। ‘‘कब से गायब हैं आपकी पत्नी ?’’ पुलिस अधिकारी ने पूछा। ‘‘सुबह मेरी आंख खुली, तो मैंने उसे बिस्तर पर नहीं पाया। सोचा घर के किसी काम में लगी होगी, लेकिन.....’’ ‘‘घर पर कोई बाहरी दरवाजा खुला था?’’
‘‘नहीं रात को हम सारे दरवाजे बन्द कर देते थे। सुबह सब कुछ वैसा ही मिला।’’
‘‘घर के अन्य सदस्य......?’’
‘‘सिर्फ एक नौकरानी और रसोइया है, जो रात का काम खत्म करने के बाद पीछे अपने आवास में जाकर सो गये थे। उन्हें भी कुछ पता नहीं था। मैंने सारे रिश्तेदारों में भी मालूम किया। कोई कुछ नहीं जानता। रही बात परी के रिश्तेदारों की, तो वह दुनिया में बिल्कुल अकेली थी।’’ समीर ने बताया।
‘‘आपको किसी पर सन्देह हैं?’’ पुलिस अधिकारी ने पूछा। ‘‘मेरी किसी से कोई व्यक्तिगत शत्रुता नहीं है। व्यावसायिक प्रतिद्वन्द्विता की बात कह नहीं सकता’’ समीर सोच में पड़ गया। ‘‘अपनी पत्नी की एक फोटो दे दीजिये।’’ समीर ने मेज पर किताबों के नीचे दबी परी की फोटो निकाल कर उन्हें सौंप दी। तेजवीर सिंह कुछ पलों के लिए सम्मोहित से हो उठे। कैसा अलौकिक सौन्दर्य था। सिर झटककर उन्होंने स्वयं को संयत करने का प्रयास किया। कोई सूत्र पकड़ में नहीं आ रहा था। घर की हर वस्तु यथावत थी। छीनाझपटी या बल प्रयोग का कोई चिन्ह नहीं था।
पति-पत्नी में झगड़े जैसी कोई बात नहीं थी। नौकरों से पूछताछ की जा चुकी थी। कोई संदिग्ध बात सामने नहीं आयी थी। ‘‘ठीक है। हम चलते हैं। कोई विशेष बात याद आये तो बताइयेगा, शायद वह मारे किसी काम की हो’’ कानूनी खानापूरी करने के बाद पुलिस चली गयी।
+ + + + +
परी को गये आज सातवां दिन था। उसे तलाश करने का हर प्रयास असफल रहा था। मां निर्मला के आश्रम में उसके बारे में कोई नहीं जानता था। परी की परिचय फाइल एकदम कोरी थी। पन्ने इतने साफ, कड़क जैसे उन पर कभी कुछ लिखा ही नहीं गया था। घर के बन्द दरवाजों के भीतर क्या वह हवा में धुल गयी? उसके साथ ही चला गया था उनका वह अजन्मा बच्चा, जिसके बारे में सपने बुनते, बातें करते वह थकता नहीं था।
रात के बारह बज चुके थे। बादलों की गर्जना और बौछार के साथ ही सांय-सांय करती हवा खिड़कियां, दरवाजे खटखटा रही थी। काश वह आ जाती। उसकी पलकों पर नन्हीं बूंदें चमकने लगीं।
‘‘मुझे इतना याद न करो समीर।’’ सहसा उसे लगा कि परी उसके पास थी, लेकिन वह कोई ध्वनि नहीं मात्र एक विचार था, जो उसके मस्तिष्क ने ग्रहण किया था। उसने आंखें खोल दीं। वही दमकता सौन्दर्य, भीनीं सुगन्ध और व्यथामिश्रित मुस्कान लिए परी उसके सामने थी।
‘‘तुम आ गयी परी।’’ वह उससे लिपट गया, लेकिन यह क्या, परी उसके आलिंगन में नहीं आयी। वह उसके शरीर के आरपार निकल गया था।
‘‘तो तुम इस दुनियां में नहीं रहीं परी......’’ उसका दिल डूबने लगा।
‘‘अरे नहीं, मैं जीवित हूं, पर तुम्हारी दुनियां में नहीं हूं। इस असीम ब्रम्हाण्ड में पाये जाने वाले ग्रहों-नक्षत्रों की संख्या हमारी कल्पना से परे है। मैं उन्हीं में से एक जाइगा ग्रह की रहने वाली हूं, जो पृथ्वी से 20 प्रकाशवर्ष दूर है। यह मेरी होलोग्राफिक इमेज है, मेरे अन्तरिक्ष यान से तुम्हारे कमरे में प्रक्षेपित की जा रही है। मैं विचार तरंगों द्वारा तुमसे बात कर रही हूं।’’
‘‘क्या कह रही हो?’’ वह मुंह फाड़े देखता रह गया।
‘‘मानव की जिज्ञासा उसे कभी शान्त नहीं बैठने देती। हम कुछ समय से ऐसे ग्रहों की खोज में लगे हुए थे, जिन पर सभ्यता और संस्कृति का विकास हुआ हों। लगभग प्रकाश की गति से चलने वाले ऐसे अन्तरिक्षयान हमारे ग्रह पर बनाये जा चुके थे, जो ब्र२ाण्डीय विकिरण से दर्जा प्राप्त करते थे। दिक्काल की संरचना हर ओर एक जैसी नहीं है। हसमें विषमताएं और समताएं हैं। इन्हीं के बीच कुछ ऐसी काल-सुरंगें हैं, जिनमें गन्तव्य तक पहुंचने में बहुत कम समय लगता है। यूं समझो कि ये अन्तरिक्ष के शॉर्टकट हैं। ऐसी ही एक काल-सुरंग मैंने ढूंढ निकाली और संयोगवश पृथ्वी पर आ गयी।’’
‘‘यानी तुम सचमुच परी थीं, आसमान से उड़कर आयीं थी’’ समीर बुदबुदाया। परी की मुस्कान और गहरी हो गयी। ‘‘मेरे साथ तुमने ऐसा क्यों किया? क्या मैं तुम्हारे लिए प्रयोग या खिलवाड़ की वस्तु था?’’ क्रोध की प्रचण्ड लहर समीर के मन में दौड़ गयी।
‘‘ऐसा न कहो समीर। तुमने मुझे वह अमूल्य उपहार दिया है, तो हमारे ग्रह के वर्तमान और भविष्य को नयी दिशा देगा। उसकी धड़कनें मैं अपने अन्दर अनुभव कर रही हूं। तुम्हारा बेटा बिल्कुल तुम्हारे जैसा है समीर’’ परी का गला रुंध गया।
‘‘लेकिन यह सब करने के पीछे तुम्हारा उद्देश्य क्या था?’’ वह सदमे से उबर नहीं पा रहा था।
‘‘मैं सब कुछ बताती हूं समीर। जानते हो धरती पर जीवन स्वयं नहीं पनपा। यह उल्कापिण्डों और धूमकेताओं द्वारा बाहरी अन्तरिक्ष से आया। इसे पैंस्पर्मिया कहते हैं। धरती की तरह हमारे ग्रह जाइगा पर भी जीवन अन्तरिक्ष से ही आया। जीवन के विविध रूप अनन्त सम्भावनाओं और संयोगों का परिणाम है। पृथ्वी पर जीवन का आगमन सरल रूप में हुआ और एककोशिकीय जीवों से धीरे-धीरे जटिल जीवों का विकास हो गया। जाइगा पर पृथ्वी की तरह जीवन का सरल एककोशिकीय रूप नहीं मिलता। इससे हमने यह अनुमान लगाया कि वहां जीवन का पर्दापण अति विकसित स्वरूप में हुआ। हमारे ग्रह पर सिर्फ पेड़-पौधों की उच्च प्रजातियां और स्त्रियां ही पायी जाती हैं, अन्य कोई जीव-जन्तु नहीं’’ समीर चकित भाव से परी की बातें सुन रहा था। पता नहीं यह स्वप्न था या सत्य।
‘‘पृथ्वी पर मनुष्यों के बीच आकर मुझे बहुत हौरानी हुई कि कुछ मामूली अन्तरों के अलावा हमारी बनावट बिलकुल पृथ्वी की स्त्रियों जैसी थी। शायद इसलिए कि हमारे जीवन का स्रोत एक ही था। हमारी जीन संरचना में भी 23 जोड़े गुणसूत्र थे, जिनमें 23वां जोड़ा एक्स-वाई गुणसूत्रों का था। प्रश्न यह था कि गुणसूत्रों पर आधारित एक जैसे जीवन स्वरूप के बावजूद यह अन्तर क्यों था? पुरुष वहां क्यों नहीं थे? जाइगा से मुझे आदेश मिला कि मैं अपना शोध जारी रखूं। फिर इसका बड़ा आश्चर्यजनक उत्तर मुझे मिला।’’
‘‘वह क्या..........?’’
‘‘प्राणियों में पाया जाने वाला एक्स गुणसूत्र वाई गुणसूत्र के विखण्डित होने से अस्तित्व में आया। जीवन के विकास क्रम में एक प्राकृतिक उत्परिवर्तन था। कालान्तर में मादा से ही नर प्राणी विकसित हुए।’’
यानी नारी नर की खान वाली बात सही है। पर ऐसा क्यों हुआ? समीर की बुद्धि मानों चकरा गयी।
प्रकृति की प्रयोगशाला में निरन्तर प्रयोग चलते रहते हैं। जिनका उद्देश्य होता है संतति को बनाये रखना। यहां पृथ्वी पर सन्तानोत्पादन के लिए प्रकृति का यह प्रयोग सफल रहा और नर... नारी ने मिलकर जीवनधारा को अक्षुण्ण रखा।’’
‘‘तो जाइगा पर प्रजनन किस प्रकार होता था?’’
‘‘लगभग वैसे ही जैसे पृथ्वी पर हाइडन्न में होता है, बडिंग या कलिका द्वारा। विशेष प्रकार के पोषक आहार लेने के बाद हमारे शरीर के किसी भाग पर कोशिकाओं के गुच्छे के रूप में एक कलिका बन जाती है। ये कोशिकाएं विभाजित होकर भ्रूण बनाती हैं, जो अण्डे के छिलके जैसे कवच से ढका रहता है। शीघ्र ही वह हमारे शरीर से अलग हो जाता है और नया जीव खोल के अन्दर आकार लेने लगता है। निश्चित समय बाद खोल के टूटने पर विकसित जीव खोल से बाहर निकल आता है।’’ परी ने बताया। ‘‘मेरा प्रश्न अब भी वहीं का वहीं है। मेरे साथ तुमने ऐसा क्यों किया ?’’ समीर अशान्त हो उठा।
‘‘पृथ्वी पर तुम्हारे सामीप्य में आकर मैंने इस सत्य को जाना कि स्त्री और पुरुष मिलकर जीवन को कितना सुन्दर बना देते हैं। उनका परस्पर अनुराग, आकर्षण और साहचर्य जीवन में सौन्दर्य और रस संचार करता है, जिसे जाइगा पर हमने कभी अनुभव नहीं किया था। दो पूरक अंशों का मिलकर एक सम्पूर्ण इकाई बन जाना और उनका संयुक्त सृजन एक ऐसी अद्भुत अनुभूति है, जिसे शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता। सच कहूं तो जाइगावासियों को इस अप्रतिम आनन्द से वंचित कर प्रकृति ने उनके साथ घोर अन्याय किया था। तुम्हें देखते ही मेरे मस्तिष्क में विचित्र सी भावनाएं जागने लगी थीं, जो जाइगावासी होने के नाते मेरे लिए एकदम नयी अनजानी अनुभूति थी। शायद यह प्रेम था। फिर जो हुआ, तुम जानते हो।’’ अनगिनत स्मृतियों के बोझ ने परी का सिर झुका दिया।
‘‘अब पहला नर शिशु जाइगा ग्रह पर जन्म लेगा, यदि सब कुछ आशानुरूप हुआ तो.....। धीरे-धीरे हमारे ग्रह पर भी लैंगिक प्रजनन का प्रारम्भ हो जायेगा। तब आनन्द समर्पण और प्रेम की उन दुर्लभ भावनाओं को जाइगा की स्त्रियां भी अनुभव कर सकेंगी, जो तुम पृथ्वीवासियों के लिए सहज प्राप्त हैं। सृष्टि का मूल तत्त्व प्रेम है। पृथ्वी की सीमा पार कर अब प्रेम का सन्देश अन्तरिक्ष तक पहुंचेगा और इसका श्रेय जायेगा तुम्हें।’’
‘‘मुझे छोड़कर मत जाओ परी।’’ समीर गिड़गिड़ा उठा। ‘‘मैं विवश हूं समीर। मेरा मस्तिष्क प्रोग्राम कर दिया गया है। मेरे क्रियाकलापों पर जाइगा से नियन्त्रण किया जा रहा है। जिस काल सुरंग से मैं पृथ्वी पर आयी थी, वह समय के उलटफेर के कारण बन्द होने वाली थी। ऐसा होने पर मेरा जाइगा वापस जाना असम्भव हो जाता और मेरे शोध का लाभ मेरे ग्रह को नहीं मिल पाता। इसीलिए मुझे तुरन्त वापस लौटने का आदेश मिला और मैं तुमसे अन्तिम विदा भी न ले सकी’’ परी की पलकों पर ठहरे आंसू हीरों की भांति झिलमिला उठें।
‘‘अलविदा समीर........’’ हाथ हिलाती परी की आकृति धीरे-धीरे ओझल होने लगी। हतबुद्धि -सा समीर उसे गायब होते देखता रह गया। परी का पता मिल गया था, पर जहां वह जा रही थी पृथ्वी की कोई पुलिस उसे वहां से वापस नहीं जा सकती थी।
(विज्ञान कथा - जनवरी - मार्च 2017 से साभार)
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