आलेख कश्मीर साज है या आवाज डॉ . चेतना उपाध्याय ध रती पर प्राकृतिक हरीतिमा को लपेटे, सौंदर्यानुभूति से परिपूर्ण कश्मीर, जो कि प्रारंभिक क...
आलेख
कश्मीर साज है या आवाज
डॉ. चेतना उपाध्याय
धरती पर प्राकृतिक हरीतिमा को लपेटे, सौंदर्यानुभूति से परिपूर्ण कश्मीर, जो कि प्रारंभिक काल से ही धरती पर स्वर्ग की सी पहचान साथ लिए है, यहां आतंक के साये में दहक रहा है. ना जाने कहां गई वो खुशनुमा बयार जो रोम रोम पुलकित कर जाती थी. हर पल अल्हड़ हवानी से फुदकती वो वादियां, वृद्धावस्था से भी खौफनाक मंजर पेश कर रही हैं. हिंदू-मुस्लिम सांस्कृतिक एकता का प्रतीक कश्मीर आज विखंडन के कगार पर पहुंचकर आतंक के साये में शांत सौम्य जीवन की गुहार लगाता प्रतीत हो रहा है. यहां प्रकृति के बीच भी इंसानी सांस प्राकृतिक वायु को तरस रही है.
सर्व धर्म-सम-भाव लिए हमारी भारती संस्कृति यहां कण-कण में छाई है. यहां कभी मंदिरों के घंटों की आवाजें आध्यात्मिकता का बोध कराती हैं तो कहीं मस्जिदों की अजान रूहानियत का अहसास पैदा करती है. यहां के रहवासियों को शाकाहारी/मांसाहारी विभेदता के बावजूद भी ईद की सिंवइयों की मिठास दीपावली के शक्करपारों से कम नहीं महसूस होती.
1947 में जब हिंदुस्तान से पाकिस्तान पृथक हुआ था, यदि पृथकता का अहसास यहां के रहवासियों में होता तो मुस्लिम धर्म समर्थक उस वक्त ही पाक का रुख अख्तियार कर लेते. पर ऐसा उस वक्त कुछ भी नहीं हुआ. ना ही हिंदू डरे ना मुस्लिम भागे. हिंदू तो कहां जाते? पाक की सरहदें हिंदुस्तान से पृथक हुई थीं. पाकिस्तान हिंदुस्तानी मां के गर्भ से जन्मा बालक ही तो है. गर्भनाल से पृथक होते ही बालक स्वतंत्र आकाश प्राप्त कर लेता है, फिर भी मां के आंगन में बालक की मासूमियत भरी किलकारियां ही गूंजती सुनाई देती हैं. वह उससे पृथक् नहीं हो पाती. मगर यदि बालक विकास को प्राप्त हो अपने पौरुष के बलबूते कोमलांगिनी नारी जिसे मां का दर्जा प्राप्त है कि सांसों पर अपना कब्जा जमाए तो उसे आतंकवादी ही कहा जा सकता है.
यही हालात आज तक अधिकृत कश्मीर में दृष्टिगोचर हो रहे हैं. मातृत्व की सांसों पर कुठाराघात राजनैतिक, कूटनीतिक हमला है, जिसे बर्दाश्त किया जाना संभव नहीं.
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जम्मू कश्मीर भारत का सबसे उत्तरी राज्य है. कश्मीर की घाटी भारत के हिमालय और पीए पंजाल पर्वत श्रृंखला के बीच बसी है. यह अपने प्राकृतिक सौंदर्य, प्राचीन मंदिरों, हिंदू धार्मिक स्थलों, महल, किले और बहुत से सुंदर-सुंदर उद्यानों के लिए प्रसिद्ध है. डल झील, श्रीनगर, पहलगाम, गुलमर्ग, यूसमार्ग और मुगल गार्डन यहां के पर्यटन उद्योग के दृष्टिकोण से भी विख्यात धरोहर हैं. किंतु आज आतंकवाद के साये ने इस पर्यटन उद्योग पर भी करारा प्रहार किया है. यहां जन्मे बालकों को भी प्रकृति की खुशनुमा गोद मयस्सर नहीं हो पा रही. उनके बाल सुलभ खेल, किलकारियां, भूख, शिक्षा, सांस्कारित परवरिश, सब कुछ भय के साये तले दम तोड़ती प्रतीत हो रही है.
लोककथाओं के अनुसार यहां स्थित झील को एक प्रसिद्ध हिंदू साधु कश्यप ने सुखा दिया था. इसके सूखने के बाद अंदर से जो भूमि प्रकट हुई उसके कारण कश्मीर राज्य अस्तित्व में आया. इसका नामकरण भी उक्त किवंदती के अनुसार साधु कश्यप के नाम के आधार पर ही हुआ. उसके पश्चात् वहां पृथक-पृथक धर्मावलंबी बसते गए व धार्मिक मान्यतानुसार धार्मिक स्थल बनते गए. जिनके आधार पर हम कह सकते हैं कि यहां हिंदू मुस्लिम समरूप ही बसे हैं. आइये यहां के कुछ विशिष्ट प्रसिद्ध स्थलों की जानकारी से इसे महसूस करने का प्रयत्न करते हैं.
1. डल झील- बेहद खूबसूरत रमणीक स्थल जिसके किनारे स्थित है हजरत बल मस्जिद. यहीं कश्मीरी सूफी संत नूरूद्दीन की याद में निर्मित ‘‘चरार-ए-शरीफ’’ प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है.
2. झेलम झील- इसके किनारे पर स्थित है शाह हमदान का खानकाह. जो कि नदार घंटियां व नक्काशीदार पत्तों की विशेषता लिए है. इसका निर्माण सिकंदर ने 1835 में किया था.
3. खीर भवानी का मंदिर- श्रीनगर से 27 किमी दूर इस मंदिर का निर्माण महाराज प्रताप सिंह ने करवाया था. इस मंदिर में हिंदू देवी रागन्य की मूर्ति है. ऐसा माना जाता है कि श्री रामचंद्र जी ने अपने निर्वासन के समय में इस मंदिर का इस्तेमाल पूजा के स्थान के रूप में किया था. इस मंदिर में भक्तों द्वारा केवल एक भारतीय मिठाई खीर और दूध ही चढ़ाया जाता है.
4. शंकराचार्य मंदिर- यह अनंतकाश शहर की ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. इसका निर्माण सूर्य राजवंश के राजा ललितादित्य ने किया था.
5. शिव खोरी- यह प्राकृतिक गुफा है जो यहां प्राकृतिक रूप में बने शिवलिंग की वजह से जानी जाती है जो कि विनाश के देवता (हिंदू धर्मानुसार) शिव का प्रतीकात्मक रूप है. यह जम्मू से 100 किमी की दूरी पर स्थित है. गुफा की छत पर सर्प देवता शेषनाग के चित्र दिखाई देते हैं. गुफा के केंद्र में एक ग्डढा है जो शिवजी की जटा या उलझे हुए बालों की गांठ का प्रतीक है.
6. शालीमार गार्डन- सम्राट जहांगीर द्वारा अपनी पत्नी नूरजहां के लिए बनवाया गया था. यह बेहद खूबसूरत बगीचा है. प्रकृति ने यहां अपना पूरा आशीर्वाद बरसाया है. इसे लवगार्डन के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है.
इन खुबसूरत प्राकृतिक स्थलों के दर्शन पश्चात् आप ईश्वरीय आभार दिए बगैर नहीं रह पाएंगे. और स्वयं ही महसूस करेंगे कि हम बेवजह ही हिंदू मुस्लिम के रूप में उलझे हुए हैं. यहां की प्राकृतिक छटा तो समान रूप से सभी में रूमानियत पैदा कर ही देती है. इसके लिए लड़ना-झगड़ना इसके सौंदर्य पर कुठारघात है. ईश्वर ने हमें इतनी खूबसूरत जगह प्रदान की है कि जहां हम अपने दैनिक जीवन से उपजे तनावों को बड़ी ही सहजता से दूर कर सकते हैं. नाहक ही इंसानी मुखौटा लगाकर हैवानी व्यवहार किये जा रहे हैं.
उपरोक्त खूबसूरत वादियों के बीच ही फलमंडी के दर्शन भी नयनाभिराम दृश्य पैदा करते हैं. लाल लाल आभा लिए स्वादिष्ट सेब बरबस ही बच्चे, बूढ़े सभी को आकर्षित कर ही लेते हैं. सेब खरीदते वक्त वहीं एक ऊंची सी दीवार पर बड़े सारे पोस्टर पर नजर पड़ी. जहां कि क्रेता-विक्रेता सभी की भारी भीड़ थी. इसका मतलब है वहां और लोगों की नजरें भी आसानी से पहुंचती ही होंगी. नजर पड़ते ही निगाहों ने कुछ पढ़ा. एकाएक विश्वास ना हुआ. अपनी पढ़ाई पर प्रश्नवाचक चिह्न लगा, पुनः पढ़ा, तो पैरों तले जमीन खिसक गई सा महसूस हुआ.
वहां बड़े-बड़े स्पष्ट अक्षरों में हिंदी व अंग्रेजी भाषा में लिखा था, ‘‘हिंदुस्तानी कुत्तों वापस जाओ’’ ऊफ...इतनी घृणा? इतनी नफरत के साए में जी रहे हैं यहां के हिंदू मुसलमान. बगैर प्रतिक्रिया दिए, लोग आ-जा रहे हैं. सांसों पर प्रतिबंधित सी घुटन साथ है. पता नहीं अगले पल क्या होगा...?
यहां डॉ. स्वामी श्यामानंद सरस्वती की गजल की कुछ पंक्तियां याद आ गई-
जिंदगी की वह घड़ी देखी
मौत सर पर है खड़ी देखी
शहर के शहर बह गए जिसमें
आंसुओं की है वह झड़ी देखी
यह हकीकत है, अपनी आंखों से
कद से परछाई भी बड़ी देखी
आपके रूप को जो झुलसा दे
धूप ऐसी कहां कड़ी देखी
कुछ समझ नहीं आ रहा यह अंतहीन सिलसिला ना जाने कब और कहां खत्म होगा. यह साज है या आवाज ना जाने कब और कैसे स्पष्ट होगा.
सम्पर्कः 49 गोपाल पथ, कृष्ण विहार
कुंदर नगर, अजमेर-305001
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