प्राची - दिसंबर 2016 - कहानी / दर्द / अर्चना चतुर्वेदी

SHARE:

कहानी दर्द अर्चना चतुर्वेदी ज ब से आंटी के घर से वापिस आई थी, किसी काम में मन नहीं लग रहा था. दिल उदास हो गया था. हमेशा खिली-खिली सी मुस्...

कहानी

दर्द

अर्चना चतुर्वेदी

ब से आंटी के घर से वापिस आई थी, किसी काम में मन नहीं लग रहा था. दिल उदास हो गया था. हमेशा खिली-खिली सी मुस्कुराती हुई आंटी की आंखों में छिपे दर्द और उदासी की हकीकत जानने के बाद मेरा दिल मानो फूट-फूटकर रोने को कर रहा था.

हम लोग इस कॉलोनी में नए-नए आये थे. आंटी हमारे पड़ोस वाले घर में ही थी, सो उनसे बातचीत का सिलसिला पहले दिन से ही शुरू हो गया था. धीरे-धीरे हम एक दूसरे के बारे में जानने लगे थे. आंटी कश्मीरी पंडित थीं और अंकल की तस्वीर देख कर अंदाजा लग चुका था कि वे अब इस दुनिया में नहीं थे. क्या हुआ? कैसे हुआ? जैसे प्रश्न कर उनके घाव कुरेदना मैंने उचित नहीं समझा. आंटी की एक बेटी और एक बेटा था, जिनकी शादी वे कर चुकी थी. बेटी-दूसरे शहर में रहती थी और बेटा-बहू दोनों नौकरी पर जाते थे, सो दिन भर अकेली होती थीु और पतिदेव को ऑफिस और बच्चों को स्कूल भेजकर घर के काम निबटा कर मैं भी फ्री होकर बालकनी में आंटी से गप्पेु लगाने बैठ जाती. आंटी भले ही मुझसे उम्र में बड़ी थीं पर हम दोनों मित्र जैसी हो गयीं. अपनी हर बात एक-दूसरे से कर लेते. मैं अक्सर महसूस करती थी कि आंटी बातें करते करते अक्सर उदास हो जाती थीं, किसी प्रौढ़ जोड़े को देखकर उनकी आंखों में आंसू छलछला उठते थे. मेरे मन में बहुत से प्रश्न ऐसे थे, जो मैं उनसे पूछना चाहती थी- जैसे अंकल को क्या हुआ था? या उन्होंने कश्मीर कब और क्यों छोड़ा? पर मैं चाहकर भी कुछ पूछ नहीं पाती थी. मैं ऐसा कोई भी प्रश्न करने से डरती थी जो उनके दिल को दुखाये, क्योंकि मैं इतना तो जान ही चुकी थी कि अंकल के जाने को वे आज भी नहीं भुला पाईं थीं.

ऐसे ही एक दिन आंटी मेरे घर आईं. मैं टीवी पर कोई कार्यक्रम देख रही थी, जिसमें कश्मीर की वादियां और वहां की खूब-सूरती दिखाई जा रही थी. आंटी भी गुमसुम हो देखने लगीं. मैंने अचानक चहक कर पूछ लिया- ‘‘आंटी आपका घर भी तो कश्मीर में ही था, बहुत याद आता होगा ना!’’ पूछते ही मुझे अहसास हुआ कि मैंने गलत किया है. मुझे नहीं पूछना चाहिए था पर अब क्या किया जा सकता था...मैंने सॉरी भी कहा.

पर आंटी तो मानो इस दुनिया से कहीं दूर जा चुकी थीं, अपने अतीत की दुनिया में. धीरे से बोलीं- ‘‘स्वर्ग में था और मेरा घर भी स्वर्ग ही था, पर सब खत्म हो गया. इस कश्मीर ने ही सब कुछ छीन लिया हमारा सबकुछ. हम लोगों का बसा-बसाया घर एक रात में उजाड़ दिया गया. हम अपने ही देश में शरणार्थी बन गए. महलों जैसे घर में रहने वाले टेंटों में बस गए या एक-एक कमरे में सिमट कर रह गए.’’

‘‘आंटी कौन-कौन थे आपके परिवार में?’’

[ads-post]

‘‘बहुत प्यारा परिवार था. मेरे सास-ससुर, दो देवर, एक ननद और घर के बड़े बेटे की जिम्मेदारी निभाते पति और हमारे दो बच्चे. घर का माहौल बहुत ही खुशनुमा था. वैसे भी हम कश्मीरियों में दहेज और सास बहु वाले झगड़े नहीं होते. मेरा मायका भी पास ही था, सो मां-बाप और भाई बहनों से भी जब मर्जी मिल लेती थी. देवर-ननद पढ़ रहे थे और हम दोनों पति-पत्नी नौकरी करते थे. ससुरजी की घर के बाहर ही दुकान थी. मैं जल्दी उठकर सुबह के सारे काम निपटा कर खाना बना कर ऑफिस जाती, घर के बाकी सब काम सासु मां और ननद संभालती. दोनों बच्चों को भी वही रखती. शाम को आकर कपड़े बदलकर मैं दुबारा रसोई में जुट जाती, पर उस प्यार भरे माहौल में थकान छूती भी ना थी. पति का स्वभाव तो सबसे अच्छा था. सब कुछ बहुत अच्छे से चल रहा था अचानक कश्मीर के हालत खराब होने लगे. कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ने के लिए कहा जाने लगा. 1990 में स्थितियां बद से बदतर होने लगीं. हमारी सरकारों के पास कोई विकल्प नहीं बचा या वो कुछ करना नहीं चाहते थे पता नहीं. आतंकवादी रोज लोगों को मार रहे थे. बहु-बेटियों की इज्जत लूट रहे थे. हमें रातों-रात कश्मीर छोड़कर भागने का हुक्म मिला. मेरी सास अपना घर छोड़कर कहीं जाने को तैयार नहीं थीं. बहुत मुश्किल से उन्हें मनाया जान बचना जरूरी था. बस हम लोग जो जरूरी सामान और पैसे वगैरह थे वही ले पाए. ज्यादा वजन कैसे उठाते और इतने सालों की बसी-बसाई गृहस्थी क्या एक बैग या अटैची में समेटी जा सकती थी?’’

कहकर आंटी रोने लगीं. उनकी बात सुनकर मेरी मानो रूह कांपने लगी थी. मैंने आंटी को पानी दिया. उन्हें चुप कराया और कहा- ‘‘रहने दीजिये आंटी और नहीं सुनना, प्लीज!’’

पर आंटी बोलने लगीं, ‘‘सुनो ना! मेरे मेरे सीने में वर्षों से दबा है सब. शायद कुछ बोझ ही कम हो जाए तुमसे कहकर.’’

मैं चुप-बैठकर सुनने लगी.

आंटी फिर बोलने लगीं, ‘‘उस रात हमें निकाल कर जम्मू पहुंचाया गया. वहां बहुत बुरे हालात थे. टेंट लगे हुए थे जिनमें कोई व्यवस्था नहीं थी. बहुत कम लोग ऐसे थे, जिनके रिश्तेदार अन्य शहरों में थे, क्योंकि कश्मीरी तो उस स्वर्ग में रहते थे और वही आपस में रिश्ते करते थे. जिन लोगों के रिश्तेदार बाहर थे, वे उनके पास चले गए. जो सक्षम थे उन्होंने किराये के घर खोजने शुरू किये. हमें भी बड़ी मुश्किल से दो कमरे किराये के मिले, जिसके एक कमरे में मेरे ससुराल के नौ लोग रहे और दूसरे में मां बाप और बहन भाई. हम लोगों को उम्मीद थी कि सरकार कुछ करेगी. कश्मीर तो हमारे देश में ही है. हो सकता है, हालात सुधरने पर हम अपने घर वापिस जा सकें. खैर हम जम्मू में ही अपनी थोड़ी बहुत जरूरत का सामान लेकर रहने लगे. हमारे दफ्तर बंद थे. पैसे भी खत्म होने को थे. कोई हमें कुछ भी जवाब नहीं दे रहा था. सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही थी अपने देश में ही शरणार्थी बन गए थे.

‘‘एक दिन मेरे पति ने अपने माता-पिता को बोला, ‘सोच रहा हूं एक बार घर देख आऊं, अब तो वहां सेना भी आ गयी है.’ सबने लाख समझाया पर उन्होंने एक ना सुनी और कश्मीर चले गए. वहां से दो दिन में ही लौट आये, पर जिस हालत में लौटे वो बयां नहीं हो सकती. उनकी उम्मीद टूटी थी. दो दिन तक तो बोलने की हालत में नहीं थे. कुछ खा-पी नहीं रहे थे, जैसे गहरा सदमा लगा हो. आंखें फटी सी रहतीं. बस हम लुट गए, बर्बाद हो गए, इतना ही कहते.

फिर एक-दिन टूटे फूटे वाक्यों में बताया कि घर पर आतंकवादियों का कब्जा हो चुका है. जो लोग अपने घर छोड़कर जाने को तैयार नहीं हुए, उनको जिन्दा जला दिया गया, उनकी बहू बेटियों को उनके सामने बेइज्जत किया जा रहा है. कहीं वे मार रहे हैं तो कहीं अपनी इज्जत बचाने को औरतें आत्महत्या कर रही हैं. उन सब हालातों को देखकर सदमे में थे और कुछ ही दिनों में ऐसे ही रोते कलपते हम सबको छोड़ कर चले गए.

छः महीनों के अन्दर ये दूसरा आघात था, जो हम सबको तोड़ गया. हम पूरी तरह लुटे-पिटे थे. अब सबकी जिम्मेदारी मेरे कंधों पर थी. बच्चे भी छोटे थे. सास अपना मानसिक संतुलन खो बैठी थीं तो मेरी मां अपने बोलने और सुनने की शक्ति. इस सदमे ने सबको तोड़ डाला. मेरा दुःख सुनने और समझने वाला भी ना बचा. सरकारी नौकरी थी सो पोस्टिंग दूसरे शहर में मिल गयी और हम सब सरकारी क्वार्टर में शिफ्ट हो गए. पति के दफ्तर से भी रुपये मिले, जिनसे ननद की शादी की और धीरे-धीरे गृहस्थी की गाड़ी खींचने लगी. कुछ समय बाद मंझले देवर की भी नौकरी लग गयी और वह अपना घर बसाकर रहने लगा. छोटे देवर और मां को साथ ले गया. साथ में रह गए ससुर और बच्चे. ससुरजी ने साफ इनकार कर दिया था, मुझे यूं अकेले छोड़कर जाने के लिए. दोनों बच्चे स्कूल जाते. मुझे तसल्ली थी कि कम से कम मेरी बढ़ती बच्ची की देखभाल के लिए उसके दादा जी तो हैं, पर शायद भगवान को कुछ और ही मंजूर था. एक दिन बच्चों और ससुर जी के साथ मंदिर जा रही थी होली पूजन के लिए, अचानक सड़क पर ही ससुरजी को अटैक आया और खत्म हो गए. मैं तो समझ भी नहीं पायी. फौरन लोगों की मदद से अस्पताल लेकर भागी, पर सब खत्म.’’

आंटी फिर रोने लगी थीं. ये सब सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे. मेरी आंखें भी बरसने लगी थीं. पर मानो आंटी अपना हर दर्द आज मुझसे साझा करना चाहती थीं, फिर से बताने लगी, ‘‘मैं एक बार फिर बेसहारा थी. कोई नहीं था मेरे पास. मेरे बच्चों के पास. रिश्तेदार सब अपनी अपनी लड़ाइयां लड़ रहे थे. सभी तो बेघर हुए थे. मुझे दोनों बच्चों के भविष्य की चिंता खा रही थी. नौकरी करना मेरी मजबूरी थी और बच्चों को अकेले छोड़ना भी. मैं काम दफ्तर में करती पर दिल घर में ही रहता. पर इन सब परिस्थितियों का ये असर हुआ कि मेरी 13 साल की बेटी अचानक बहुत बड़ी और समझदार हो गयी थी. वो मुझे घर को और भाई को सबको संभालने लगी. भगवान ने हमेशा मेरा इतना साथ जरूर दिया कि मुझे पड़ोसी हमेशा अच्छे दिए, जो हमारा साथ देते, बच्चों का ख्याल रखते. बस इसलिए मेरे दोनों बच्चे अच्छे से पढ़ लिख गए और अच्छी नौकरियों पर लग गए वरना सारा दिन अकेले रहने वाले बच्चे जाने किस दिशा में भटक जाते.

‘‘हां आंटी, भगवान पहले ही बहुत दुःख दे चुके थे. कुछ तो अच्छा करते आपके लिए!’’ मैंने उदास होकर कहा. फिर मैंने पूछा, ‘‘आंटी आपकी उम्र अभी रिटायमर्ेंट की तो नहीं लगती, फिर नौकरी छोड़ दी क्या?’’

‘‘नहीं रे! ये तेरा भाई है ना. इसकी नौकरी लगते ही जिद पर अड़ गया. कहने लगा, ‘अब आपको क्या जरूरत है नौकरी करने की. अब आराम करो.’

‘‘बस बहन की भी शादी हो गयी, सो इसके साथ यहां दिल्ली ही आ गयी और घर खरीद लिया. अब तो बस ये लोग खुश रहें. अब सब कुछ बन गया है, पर एक टीस सी उठती है मन में. मैं और तुम्हारे अंकल हमेशा सपना देखते थे बच्चों के बड़े होने का. पोते पोती संग खेलने का, एक-दूसरे के साथ रिटायमर्ेंट एन्जॉय करने का. पर मेरे सारे सपने चकनाचूर हो गए. थक गयी हूं इतने साल से ये मशीनी सा जीवन जी कर. आज मेरा अकेलापन बांटने को मेरा जीवन-साथी नहीं है. इस गन्दी राजनीति और गलत नीतियों ने हमारे जैसे कितने परिवारों की खुशियां छीन ली हैं. मेरा बेटा आज भी भगवान तक को नहीं मानता.

‘‘सरकार ने आज तक हमारे लिए कुछ नहीं किया, ना कोई मुआवजा ना ही जमीन. कुछ नहीं मिला. मिला तो सिर्फ तमगा ‘‘कश्मीरी विस्थापित’’ का.’’

आंटी फूट-फूट कर रोने लगी थीं और मेरे आंसू भी अविरल बहने लगे. कितना दर्द कितनी तकलीफ सही उन्होंने. लेकिन ये सिर्फ उनका दर्द नहीं. हर उस परिवार का दर्द था, जिसे अपना बसा-बसाया घर छोड़ना पड़ा. अपने ही देश में परायों सा व्यवहार सहना पड़ा. पर इस देश की गन्दी राजनीति की वजह से ना तो कश्मीर के हालत सुधरे हैं ना कभी सुधरने की उम्मीद है.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - दिसंबर 2016 - कहानी / दर्द / अर्चना चतुर्वेदी
प्राची - दिसंबर 2016 - कहानी / दर्द / अर्चना चतुर्वेदी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggG1kE7XYlVs5McMwo0hfHi-3zx9yiyEDMQg9AbxYfLOIWo39W7nYKBBH1B7N21tzvk8piB4HUEK7IbidZXh7Uk7Dx6KgM6EUWRyb5aAn4ugB4GY0dYsz0i_tE6q-1aaKFtfzg/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggG1kE7XYlVs5McMwo0hfHi-3zx9yiyEDMQg9AbxYfLOIWo39W7nYKBBH1B7N21tzvk8piB4HUEK7IbidZXh7Uk7Dx6KgM6EUWRyb5aAn4ugB4GY0dYsz0i_tE6q-1aaKFtfzg/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/01/2016_79.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/01/2016_79.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content