आलेख जाने लग जाए मरहूम कब ... सपना मांगलिक नामः सपना मांगलिक जन्मतिथिः 17.02.1981, भरतपुर शिक्षा-एम.ए ब ी.एड (डिप्लोमा एक्सपोर्ट ...
आलेख
जाने लग जाए मरहूम कब...
सपना मांगलिक
नामः सपना मांगलिक
जन्मतिथिः 17.02.1981, भरतपुर
शिक्षा-एम.ए ब ी.एड (डिप्लोमा एक्सपोर्ट मेनेजमेंट)
संस्थापकः जीवन सारांश समाज सेवा समिति, शब्द-सारांश (साहित्य एवं पत्रकारिता को समर्पित संस्था)
प्रकाशित कृतियांः (तेरह) पापा कब आओगे, नौकी बहू (कहानी संग्रह) सफलता रास्तों से मंजिल तक, ढाई आखर प्रेम का (प्रेरक गद्य संग्रह) कमसिन बाला, कल क्या होगा, बगावत (काव्य संग्रह) जज्बा-ए-दिल भाग प्रथम, द्वितीय, तृतीय (गजल संग्रह) टिमटिम तारे, गुनगुनाते अक्षर, होटल जंगल ट्रीट (बाल साहित्य) बोन्साई (हाइकु संग्रह)
संपादनः तुम को ना भूल पायेंगे (संस्मरण संग्रह) स्वर्ण जयंती स्मारिका (समानांतर साहित्य संस्थान), बातें अनकही (कहानी संग्रह )
सम्मानः अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित पताः एफ- 659, बिजलीघर के निकट, कमला नगर, आगरा-282005
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‘‘काम खत्म कर लूं मैं, सभी शाम से पहले
जाने कब लग जाए मरहूम, मेरे नाम से पहले
बच्चे हैं छोटे अभी, करने हैं जरूरी काम भी पूरे
कुछ लकड़ियां तो जुटा लूं, क्रियाक्रम के इंतजाम से पहले’’
मेरी लिखी यह कविता कश्मीर घाटी के लोगों के जीवन की वो कड़वी सच्चाई है जिससे वह लोग हर दिन हर पल रूबरू होते हैं. आजादी के बाद से ही जिस तरह से कश्मीर घाटी को भारत पाकिस्तान के बीच विवादित क्षेत्र घोषित करवाने के लिए पाकिस्तान ने पूरा जोर लगाया हुआ है, उसके सभी प्रयासों के बाद भी उसे कुछ खास मिलता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है. इससे हताश होकर वह अपने कुछ अत्यधिक धार्मिक संत जिन्हें वो जिहादी भी कहते हैं, द्वारा दहशतगर्दी और मार-काट करवाकर माहौल बिगाड़ने की हर संभव कोशिश भी करता रहता है. आये दिन के कर्फ्यू के कारण बाधित जन जीवन, रोजमर्रा की वस्तुओं के लिए तरसता जीवन, टीवी, फिल्म इत्यादि के बंद होने से देश दुनिया की खबरों से महरूम, मनोरंजन के साधनों को तरसता इंसान, अखबार, इन्टरनेट, इत्यादि बंद किये जाने के बाद कैसे और किससे बांटे अपना दर्द अपनी तकलीफें? जब स्कूल से वंचित बचपन को कुछ और नजर ही नहीं आयेगा तो भूख, आक्रोश में तो कभी बहकावे में आकर वो पत्थर तो क्या बंदूक भी उठा सकता है. क्या कसूर है उन मासूमों का जिन्हें गुमराह किया जा रहा है?
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वास्तव में घाटी में जो घुटन और आतंक का माहौल पाकिस्तानियों के द्वारा पैदा किया गया है, उससे कश्मीर के भोले भाले लोगों की सोचने समझने की शक्ति ही खत्म होती जा रही है. कश्मीरी अपने भविष्य के बारे में नहीं सोच सकते, क्योंकि जब उनका आगामी एक पल या आज ही महफूज नहीं है तो वह बेचारे कल का क्या सोचेंगे. आतंकवादी भी यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि यदि आम लोगों की रोजी रोटी आराम से चलती रहेगी तो वे जेहाद के बारे में सोचना भी नहीं चाहेंगें और उनकी नीति बुरी तरह विफल हो जाएगी. इसलिए ही वह लगभग हर साल किसी न किसी बहाने से कश्मीरियों के लिए कमाई वाली वार्षिक अमरनाथ यात्रा के समय ही इस तरह से घाटी को अशांत करने की कोशिश करते हैं. जम्मू कश्मीर पुलिस में भी कश्मीरी युवा हैं और अलगाववादियों के समर्थन में सड़कों पर हाथों में पत्थर लिए सामने आने वाले भी कश्मीरी युवा ही हैं, पर एक कश्मीर को शांत रखने की कोशिशों में हैं तो दूसरे पाक के प्रभाव में आकर अपनों से ही लड़ने पर आमादा हैं.
कश्मीर में कई हफ्तों से आंशिक अथवा पूरा कर्फ्यू लागू किया जाता है. बहू बेटियों की मर्यादा तार तार की जाती है, आवासी को प्रवासी बनाया जाता है, कश्मीरियों और सुरक्षा बलों एवं सेना दोनों ही तरफ की दर्जनों जानें जा चुकी हैं. पूरे राज्य में गुस्से और अलगाव की एक लहर है. आज कश्मीर की खूबसूरत वादी उथल-पुथल के एक ऐसे दौर से गुजर रही है, जिसे सभी राजनीतिक दलों तथा भारतीयों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए. मगर आज भी कई राजनैतिक दल शहीदों की चिताओं से अपनी चुनावी रोटियां सेंक रहे हैं.
प्रधानमन्त्री का यह कहना कि कश्मीरियों की समस्या का समाधान एकता और ममता से ही हो सकता है. मैं उनकी इस नीति को दूरगामी और कल्याणकारी समझती हूं, क्योंकि कभी किसी रोग में बड़ी से बड़ी दवाई काम नहीं करती और कभी छोटा सा घरेलू नुस्खा ही काम कर जाता है. और प्रधानमंत्री जी की यह नसीहत वही घरेलू नुस्खा है, क्योंकि जब तक वहां की माएं अपने पुत्रों को शिक्षा प्रदान करने के स्थान पर चंद कागज के टुकड़ों की खातिर जिहादियों के हवाले करती रहेंगी और खुद कश्मीरी जब तक संगठित होकर अपने आपको पाकिस्तानियों के हाथों की कठपुतली बनने से नहीं रोकेंगे, तब तक कश्मीर को आतंक्मुक्त नहीं किया जा सकेगा. वो कहते हैं न की ‘अपने मरे बिना स्वर्ग प्राप्त नहीं होता’ ठीक वैसे ही अब कश्मीरियों को भी फैसला कर लेना चाहिए की वो आखिर चाहते क्या हैं?
‘आहों का अंदाज नया था
लेकिन जख्म पुराने निकले
जिनको पकड़ा हाथ समझकर
वो केवल दस्ताने निकले.’
विज्ञान व्रत की यह गजल पाकिस्तानियों की धूर्तता को सही तौर पर बयां करती है. पाकिस्तान के सन्दर्भ में यह तो मोदी जी अबतक समझ ही चुके होंगे की ‘लातों के देव बातों से नहीं मानते’ इसलिए कोई भी मन की बात पाकिस्तानियों से करने की न सोचें और न ही दोस्ती का कोई पैगाम ले के शरीफ की दावत में शरीक होने जाएं, क्योंकि पाकिस्तान हमेशा ही हमारी दरियादिली को हमारी कमजोरी समझता आया है. और जब जब हमने दोस्ती का हाथ बढाया है, उसने पीठ में छुरा जरूर घोंपा है. पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित तथा हथियारों से लैस किये गये आतंकियों की सीमा पार से होती घुसपैठ रोकने की अपनी क्षमता बढ़ानी चाहिए. इसके लिए सुरक्षा बलों की जो भी जरूरतें हों, उनकी तेजी से तथा सतत आपूर्ति की जानी चाहिए. दूसरा हमें प्रदेश में सामान्य स्थिति बहाल करने की कोशिशें करनी ही चाहिए, जिससे कि हिंसा और आतंक की भाषा में बातें करनेवालों को समझ में आये कि अब उनकी दाल यहां गलने वाली नहीं है. और हमारी सेना के जवान इस कठिन काम में लगे हैं ही. कश्मीरियों में ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करने का बीड़ा मीडिया और जनसंचार के तमाम
माध्यमों को उठाना होगा. इस दिशा में कश्मीर रेडियो की सराहना करनी होगी कि वह कर्फ्यू के दौरान भी जनता में हिंदी सिनेमा के देशभक्ति और सकारात्मक सोच वाले गीतों को प्रसारित कर मनोरंजन के साथ साथ सकारात्मकता का प्रसार भी कर रहा है. साथ ही हमें पेलेट गन के अंधाधुंध इस्तेमाल की भी समीक्षा करनी चाहिए, जिसकी वजह से दर्जनों कश्मीरी अंधे अथवा अपंग हो चुके हैं. हमारे सशस्त्र बलों द्वारा भीड़ के नियंत्रण के लिए कोई कम मारक, लेकिन उतना ही प्रभावी साधन अवश्य ही हासिल किया जा सकता है. बलूचिस्तान और गिलगिट के साथ ही ऐसे अन्य कई छोटे छोटे देश हैं जिनको अगर भारत साथ में लेकर चले तो संयुक्त राष्ट्र संघ और अमेरिका जैसे देशों पर पकिस्तान के खिलाफ कार्यवाही का दबाब अवश्य ही पडेगा. इसलिए संगठन में शक्ति की
अवधारणा को ध्यान में रखते हुए ही भारत कूटनीति के साथ पकिस्तान पर ऐसा प्रहार करे कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. कश्मीर में शिक्षा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि कर वहां के युवाओं को कौशल प्रशिक्षण और रोजगार प्रदान कर विकास की गति को तीव्र करने का प्रयास किया जाना चाहिए. सीधी सी बात है कि ‘खाली दिमाग शैतान का घर’. जब युवा शिक्षा और रोजगार में व्यस्त होंगे, परिवार में पैसा और सुख सुविधायें होगी तो कौन अपनी जान खतरे में डाल आई एस आई के इशारों पर नाचना पसंद करेगा? वक्त है कि हम जम्मू-कश्मीर पर गौर कर वहां के लोगों के दिल-दिमाग जीतने हेतु मरहमी नीतियां अपनायें. पक्ष और विपक्ष राष्ट्रहित के लिए आपसी मतभेदों को भूल कश्मीर की समस्या पर एकजुट विमर्श कर रास्ता निकालने की कोशिश करें. न कि दूसरे के प्रयत्नों को असफल कर अपना फायदा निकालने की कोशिश करें.
‘भंवर में घूमती कश्ती के हम ऐसे मुसाफिर हैं,
न हम इस पार आते हैं न हम उस पार जाते हैं.’
जय कृष्ण तुषार जी का यह शेर कश्मीरियों की मनोस्थिति को काफी हद तक बयां कर देता है. कश्मीर के लोग अपने आपको बाकी प्रदेशों से कटा हुआ और अलग थलग महसूस करते हैं. जरूरी है कि कश्मीरी बच्चों को और वहां के सामाजिक संगठनों को भारत यात्रा कराई जाए, जिससे कि वह अपने इस भारत की बसुधैव कुटुम्बकम की भावना को आत्मसात कर शान्ति और सुहार्द बनाये रखने में सहयोग प्रदान करें. सेना में जो लोग विभीषण का कार्य कर रहे हैं और वहां की स्त्रियों के साथ ज्यादती करते हैं, उन्हें कठोर दंड दिया जाना चाहिए; क्योंकि जब एक विभीषण के कारण रावण जैसे बुद्धिमान और शक्तिशाली राजा को पराजय मिली थी तो पाकिस्तानी एजेंटों द्वारा आये दिन भारत की गुप्त सूचना प्राप्त होना और आतंकी हमले साबित करते हैं कि भारत में एक नहीं अनेक विभीषण हैं. जिन्हें पहचानना और पहचान कर सजा देना अत्यंत जरूरी है. वहां सूचना प्रसारण तन्त्र और शिकायत और समाधान प्रणाली में सुधार और त्वरित निपटारे की भी खासी जरूरत है जिससे कि सूचना प्राप्त होते ही तुरंत कार्यवाही की जा सके. कश्मीर में बड़े बड़े उद्योग घरानों के द्वारा इवेंट आयोजित किये जाने चाहिए. टीवी चैनलों को प्रतिभा खोज कार्यक्रमों के लिए वहां के लोगों को जानकारी और आवागमन की सुविधा प्रदान करनी चाहिए. अंतिम और सबसे जरूरी बात वहां के लोगों को यह जतलाना कि कश्मीर कल भी भारत का अंग था आज भी है और कल भी रहेगा. और इसमें निवास करने वाले सभी लोग हमारे अपने भाई बहन हैं जिन्हें हम दिल से आगे बढ़ते और सही रास्तों से कामयाबी हासिल करते देखना चाहते हैं.
और अंत में, मैं बस यही कहूंगी कि कोई ऐसी समस्या नहीं होती जिसका समाधान न हो. कश्मीर भी आतंकमुक्त कश्मीर जरूर बनेगा. बस हमें एकजुट होकर इसके लिए प्रयास करने होंगे. एक कवि की लिखी मेरी पसंदीदा पंक्तियां याद आ रही हैं-
‘आदमी जब ठान लेता स्वयं के मन में
छिद्र कर सकता अंगुली से वो गगन में
मुंह खोल सोख लेता है वो सागर का पानी
लांघ सकता है हिमालय एक पल में.’
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