प्राची-दिसंबर-2016 : संपादकीय

SHARE:

  उद्बोधन सम्पादकीय में इस बार श्री इन्द्रेश कुमार के वक्तव्य (इन्द्रेश कुमार) आतंक शून्य भारत पं द्रह अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्र...

 

उद्बोधन

सम्पादकीय में इस बार श्री इन्द्रेश कुमार के वक्तव्य

image

(इन्द्रेश कुमार)

आतंक शून्य भारत

पंद्रह अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् से ही बंदूक ने भारत में खेलना शुरू कर दिया था, इसलिए हिंदुस्तान के लिए आतंकवाद की लड़ाई नई नहीं है. हमारे अस्तित्व से भयभीत विदेशी ताकतों ने शुरू से ही भारत को विध्वंसकारी तत्वों से घेरे रखने का षड्यंत्र किया है. कभी अलगाववाद, कभी माओवाद, कभी जेहादी आतंकवाद, तो कभी घुसपैठ को मानवीय मानने की वोट बैंक की राजनीति के नाम पर भारत को कमजोर करने की कोशिशें होती रही हैं.

सन् 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद संभवतया सन् 1949-50 में पहला आतंकवादी हमला बंदूक की नोक पर हमें झेलना पड़ा, वह था पूर्वोत्तर में नागालैंड और मिजोरम में. विदेशी चर्च समर्थित इस आतंकवाद का सन् 1956 में नेतृत्व किया पहले मिजो ने और बाद में लालडेंगा ने. इसे इनसर्जेन्सी यानी अलगाववाद के रूप में परिभाषित किया गया. वस्तुतः भारत के खिलाफ विदेशी चर्चवादी ताकतों ने सुनियोजित तरीके से इस अलगाववाद को हवा दी. इसका उद्देश्य ‘लैट इंडिया शुड बी ब्रोकन इनटू पीसेज’ था. चर्च ने समाज में यह भ्रम फैलाने के उद्देश्य से कि भारत एक राष्ट्र की बजाय अनेक देशों का समूह है, देश में जाति, पंथ एवं भाषा आधारित छोटी-छोटी राष्ट्रीयताओं को उभारा. भारत सरकार की कमजोर नीतियों के चलते आज तक यह जारी है और पूरे पूर्वोत्तर में इस समय इस तरह के साठ गिरोह कार्य कर रहे हैं. वहां आए दिन विस्फोट होते रहते हैं और जानमाल का नुकसान भारत झेलता रहता है. अब तक 15000 से अधिक लाशें बिछ चुकी हैं. लाखों लोग समय-समय पर पलायन के लिए मजबूर किए जा रहे हैं, करोड़ों का समाज भयभीत है, सरकार किंकर्त्तव्यविमूढ़ दिखाई देती है. शिक्षा व स्वास्थ्य के मुखौटे के पीछे विदेशी चर्च का असली चेहरा है- ‘मतान्तरण व बंदूक के आंदोलनों’ को समर्थना देना.

वर्ष 1966 में चीनी कम्यूनिज्म की शह पर चारु मजूमदार और कान्हु सान्याल के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल के नक्लबाड़ी कस्बे से बंदूक पर आधारित एक ऐसी गतिविधि की शुरुआत हुई जो क्रांति के नाम पर विद्रोह थी. इसमें किसानों और मजदूरों को जमींदारों के खिलाफ भड़काया गया. इसका लक्ष्य था ‘पावर नॉट बाई बैलट, बट बाई बुलेट.’ चीनी माओवाद पर आधारित यह विद्रोह दुनिया की साम्यवादी ताकतों का भारत के खिलाफ षड्यंत्र था जिसे कहीं-कहीं चर्च का भी समर्थन प्राप्त था. आज इन ताकतों से समर्थन प्राप्त 40 गिरोह भारत में सक्रिय हैं. पशुपति से तिरुपति तक रेड कॉरिडॉर बनाया जा रहा है. पच्चीस हजार लोगों का कत्ल हो चुका है, लाखों लोग जगह-जगह पलायन करने को मजबूर हैं. चीन ने तिब्बत को हड़प लिया है और समूचे हिमालय को हड़पने का षड्यंत्र रच रहा है. ये लोग गरीबों और पिछड़े क्षेत्र के विकास के लिए कोई काम नहीं करते. उनको भड़काना, शस्त्र सिखाना, उपलब्ध कराना और भारत में अस्थिरता यानी गृहयुद्ध की स्थिति निर्माण करना, यही माओवाद का लक्ष्य है. भारत में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू व आज तक की सरकारों ने तिब्बत को चीन का भू-भाग मानकर भारी राजनीतिक अपराध किया है. आज तिब्बत की आजादी के आंदोलन को समर्थन व ताकत देने की आवश्यकता है. इधर नेपाल की जनता ने तस्कर, खानदार के हत्यारे, हिंदुत्व के नाम पर ब्लैकमेल करने वाले, आईएसआई के दोस्त व भारत विरोधी महाराज नेपाल को तो हटा दिया परंतु माओवादी क्रूरता में फंस गए. आज नेपाल को माओवादी चंगुल से निकल लोकतंत्र की रोशनी में अपने सुंदर भविष्य की ओर जाना है. सभी भारतीय नेपाली जनता के संघर्ष में उनके साथ हैं.

[ads-post]

आतंकवाद की तीसरी घिनौनी सूरत 1972 में सामने आई, जब बांग्लादेश के रूप में अपने विभाजन से बौखलाए पाकिस्तान ने भारत माता को घायल करने में अपनी पूरी ताकत लगा दी. वर्ष 1947, 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तान भारत से मुंह की खा ही चुका था. पाकिस्तान की ओर से किए गए तीनों आक्रमणों में हम पाकिस्तान को युद्ध में हराने के बावजूद विदेशी दबाव के आगे झुक गए और हमारी यही गलती पाकिस्तान के लिए जीवनदान बन गई. ‘लैट इंडिया शुड ब्लीड थाउजेंड कट्स’ की नीति के नाम पर जनरल जिया ने आईएसआई चीफ को कश्मीर के जरिये भारत में जेहादी आतंकवादी का खेल खेलने की छूट दे दी. वहां नारा लगा ‘कश्मीर तो बहाना है, लालकिला हथियाना है.’ इसके लिए लश्कर ए तोयबा, हिज्बुल मुजाहीद्दीन, जैश-ए-मौहम्मद, हरकत-उल-अंसार, अल्लाह टाइगर आदि नामों से विभिन्न आतंकी समूह खड़े किये गए. आज देश में जेहादी आतंकवादी के 90 गिरोह काम कर रहे हैं. हूजी-सिमी का नेटवर्क पूरे भारत में फैला हुआ है. इन विध्वंसकारी ताकतों का उद्देश्य हजारों का कत्ल (अब तक 65 हजार लोगों का कत्ल किया जा चुका है), लाखों को उजाड़ना, करोड़ों को भयग्रस्त करना है और इस तरह भारत को शक्तिहीन-श्रीहीन करना है. आतंकवाद को जेहाद नाम आईएसआई ने दिया है; ताकि भारत के मुसलमानों को मजहब की आड़ में भड़काने में सुविधा हो. भारत ने तो इसे आतंकवाद या छद्म युद्ध का नाम दिया है.

चौथा आतंकवादी हमला बिना बंदूक के है. यह बांग्लादेश की संसद में शेख मुजीबुर्रहमान के द्वारा रखा गया वह प्रस्ताव है जिसमें कहा गया है कि बांग्लादेश में जनसंख्या बहुत है किंतु जंगल और मैदान कम पड़ने लगे हैं और अब ग्रेटर बांग्लादेश बनाया जाएगा. इस मंजिल को प्राप्त करने के लिए नारा लगाया गया ‘हिल्ज, फॉरेस्ट एंड प्लेन ऑफ असम, नॉर्थ ईस्ट, बंगाल और पूर्वोत्तर को हथियाना. उस साजिश के तहत आज तक भारत में ढाई करोड़ बांग्लादेश घुसपैठिए प्रवेश कर चुके हैं. इनके ऊपर 900 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष बजट का अतिरिक्त खर्च होता है और देश के 26 लाख गैर-सरकारी रोजगार पर इनका कब्जा है. ये देश के साढ़े तीन प्रतिशत प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग करते हैं. देश के 18 संसदीय क्षेत्रों और बिहार, बंगाल एवं असम के 62 विधानसभा क्षेत्रों में मतदाता के रूप में ये निर्णायक भूमिका निभाते हैं.’

आतंकवाद सिर्फ बंदूक आधारित ही नहीं है, घुसपैठ के रूप में भी यह भारतीय सामाजिक और आर्थिक तानेबाने को ध्वस्त कर रहा है तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता को असुरक्षित बना रहा है. हमारे देश में तीन तरह की घुसपैठ हो रही है- 1. नशीले पदार्थ, 2. हथियार और 3. नकली नोट यानी फेक करेंसी की. नशीले पदार्थों की तस्करी करने वाले माफिया के द्वारा युवाओं को कैरियर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है; ताकि भारत के युवाओं को नशेड़ी बनाकर उनका कैरियर यानी भविष्य बर्बाद किया जा सके. देश में करीब 40 हजार करोड़ रुपए मूल्य के मादक पदार्थ आ रहे हैं. इसके अलावा 47 हजार करोड़ रुपए मूल्य के हथियार आ रहे हैं जिनके जरिए आतंकवाद को बढ़ावा मिल रहा है. तीसरी और सबसे घातक तस्करी है नकली मुद्रा की. रिजर्व बैंक के आंकड़ों की बात करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था में इस समय तीन फीसदी जाली मुद्रा का कब्जा है. यह सिर्फ संगठित क्षेत्र का आंकड़ा है, असंगठित क्षेत्र का तो अनुमान लगाना ही संभव नहीं है. रक्षा एवं आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ इस बात को लिख एवं बोल रहे हैं.

देश की साढ़े सोलह हजार किलोमीटर लंबी थल सीमा और साढ़े नौ हजार किलोमीटर लंबी समुद्री सीमा अर्थात् कुल छब्बीस हजार किलोमीटर लंबी सीमा में से साढ़े चार हजार किलोमीटर सीमा पर मस्जिद, मकतब, मदरसे, चर्च, कान्वैन्ट और मिशनरीज अधिक संख्या में हैं और यही क्षेत्र घुसपैठ के लिए अनुकूल माहौल बनाते हैं, ऐसा दिखाई दे रहा है. इसी क्षेत्र में इस्लाम और ईसाइयत की जनसंख्या ज्यादा है. भारत सरकार की जानकारी व जमीनी सच्चाई यही है. मैं इन समुदायों के लोगों से मिलता हूं तो यही बात उनके सामने रखता हूं कि वे राष्ट्रवादी के रूप में इस समस्या को समझते हुए इसके खिलाफ माहौल तैयार करें वरना वे शक के घेरे में आ जाएंगे तथा अपना प्यारा देश और हम गरीब, पिछड़े व गुलाम बनेंगे. उन्हें यह बात समझ भी आ रही है. मजहबपरस्ती नहीं वतनपरस्ती के चश्मे से, वोट बैंक राजनीति से नहीं देश की खुशहाली व सुरक्षा की दृष्टि से देखना व सोचना होगा.

वर्ष 2008 में हिंदू आंतकवाद के रूप में नया शब्द गढ़ा गया है. जब पंजाब में 1982 में आतंकवाद आया तो उसे सिख आतंकवाद का नाम दिया गया. वर्ष 1986 से 1994 के बीच हुई घटनाओं को जेहाद और जेहादी आतंकवाद को मुस्लिम आतंकवाद का नाम दिया गया. और अब 2008 में 29 सितंबर को मालेगांव विस्फोट के बाद हिंदू आतंकवाद शब्द गढ़ा गया है. दुर्भाग्य से जब-जब समाज में इस तरह की संज्ञा दी गई तब-तब देश पर कांग्रेज का राज था. इसका सीधा सा अर्थ है कि कांग्रेज अपने स्वार्थों के हिसाब से आतंकवाद को धर्म के आधार पर परिभाषित करती रही है. इस राजनीतिक षड्यंत्र को भी समझना होगा.

तथाकथित मानवाधिकारी, बुद्धिजीवी और समाजशास्त्री एक तर्क देते हैं, वह तर्क यह है कि आतंकवाद गरीबी से आता है. विश्व की कुछ षड्यंत्रकारी ताकतें इस तर्क को बढ़ावा देती हैं और पिछड़े और गरीब देशों व समाज पर इसका दोष मढ़ देती हैं. लेकिन यह आतंकवाद का ‘इनोसेंट एंड क्रिमिनल एनालिसिस’ यानी नादान एवं अपराधपूर्ण विश्लेषण है. एक सर्वे यह बताता है कि भारत देश में आठ लाख भिखारी हैं. इनमें पौने दो लाख ईसाई औ मुसलमान हैं. दिल्ली में 53 हजार 700 भिखारी हैं. इनमें हजारों-हजार स्रातक या अधिस्रातक भी हैं. अगर गरीबी आतंकवादी बनाती तो देश के ये सभी भिखारी आतंकवादी हो जाने चाहिए थे. आप जिस लोकेलिटी में रहते हैं वहां आपके देखते-देखते कोई भिखारी आतंकवादी बना क्या? जब समस्या का गलत डायग्नोस करेंगे तो ट्रीटमेंट और मेडिसिन भी गलत ही होगा. गरीब कह रहा है, मैं भिखारी अवश्य हूं परंतु मैं ईश्वर विश्वासी हूं तथा मैं भी देश से प्यार करता हूं.

वस्तुतः आज आतंकवाद साम्राज्यवाद (इंपीरिलिज्म) का एक शस्त्र है, विस्तारवाद का एक मार्ग है और विश्व की ताकतें इसमें जरिये भारत के साथ खेल रही हैं. पिछले दिनों आजमगढ़ में एक कार्यक्रम के दौरान मैंने लोगों से बातचीत की. उन दिनों दिए गए राजस्थान के राज्यपाल के उस बयान का जिक्र छिड़ा जिसमें संघ को महात्मा गांधी की हत्या का दोषी बताया गया था. मैं यहां बताना चाहूंगा कि गांधी की हत्या का मुकदमा चलाने के लिए विशेष अदालत का गठन किया गया था. यह अदालत व उस समय की पंडित नेहरू की सरकार अनेक महीनों के भारी प्रयत्नों के बावजूद संघ को चार्जशीट ही नहीं दे पाई और मुकदमा खारिज करना पड़ा. यह मानसिक रूप से दिवालिया होने का प्रमाण था. संघ पर कोई आरोप साबित होना तो दूर की बात, संघ पर आरोप-पत्र ही नहीं बन पाया. संघ के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाने की एक परंपरा बन गई है. आरोप लगाने वाले दल और नेता ‘आर फ्रैंड ऑफ शैतान, नॉट ऑफ गॉड.’ उसी कड़ी में अब ये हिंदू आतंकवाद का नया नाम गढ़ रहे हैं. हिंदू आतंकवाद सही शब्द नहीं है, हम इसे क्यों स्वीकार करें, बल्कि हम इसे पूरी तरह नकारते हैं.

26 नवंबर 2008, मुंबई में आतंकवादी घटना हुई. उनसठ घंटे ऑपरेशन चला. चालीस घंटे के पश्चात् ही भारत व महाराष्ट्र सरकार ने स्टेटमेंट दे दिया कि इसमें कोई स्थानीय नेटवर्क का समर्थन नहीं मिला है. थोड़े दिन बीतने के साथ ही अंतुले का बयान आ गया कि- एटीएस चीफ करकरे को आतंकवादी घटनास्थल पर किसने भेजा तथा वहां इसको कुछ हिंदुओं ने मारा है, इसकी जांच हो. करकरे को साजिशपूर्वक वहां भेजने व मारने के आरोप वाला यह बयान तो पूरी तरह पाकिस्तान को बरी करने वाला था. घटना के अनेक पहलू और भी हैं- आतंकवादी तो सत्रह-अट्ठारह थे, मारे गए नौ, पकड़ा गया एक, शेष कहां गये? उन्हें छिपाने में किसका हाथ है? कसाब के खिलाफ जांच को प्रभावित करने के लिए ही नहीं बल्कि उसे निर्दोष बताकर सुरक्षित करने के लिए अंतुले ने यह बयान दिया. आतंकवादियों के किसी भी नेटवर्क को जो लोकल सपोर्ट मिला है उसकी जांच न हो और इस भूमिका का पर्दाफाश न हो, इसके लिए अंतुले ने यह बयान दिया. पूरे घटनाक्रम को कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस ने नाटकीय रूप दिया. मीडिया के सामने इस तरह से चीजें परोसी गई जिससे आम जनता व मीडिया वालों ने राष्ट्रवादी कांग्रेस और कांग्रेस विरोधी होने की बजाय एंटी पोलिटीशियन रुख अपना लिया. और धीरे-धीरे बात को घुमाने में सफलता मिल गई. पाक-समर्थक अंतुले आज भी कांग्रेस में मंत्री बने हैं. यही वह खेल है जिसे समझना होगा. मीडिया व बुद्धिजीवियों को इसे समझने में विफल होने की बाजय इस खेल का पर्दाफाश करने के लिए आगे आना होगा. लोकर सपोर्ट की जांच बंद क्यों है? क्या इसलिए कि उसमें जो लोग पकड़े जाएंगे वे मुस्लिम होने के साथ कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस व यूपीए के घटक दलों से जुड़े लोग हैं?

हिंदू आतंकवाद शब्द जिन नेताओं, दलों और प्रचार माध्यमों को ठीक लगता है और पसंद भी है, उनसे मेरा प्रश्न है कि हमने तो अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी कि ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द में राजनीतिक षड्यंत्र की बू आती है और हम इसे नकारते हैं. अगर एक अंगुली हमारी ओर इशारा करती है तो तीन अंगुलियां उनकी ओर भी इशारा करती हैं. अब उत्तर देना होगा विभिन्न दलों के हिंदू नेताओं-ज्योति बसु, बुद्धदेव भट्टाचार्य, अमरसिंह, मुलायमसिंह, करुणानिधि, जयललिता व ममता बनर्जी, लालू व राबड़ी, रामविलास पासवान, मायावती व सतीशचंद्र मिश्र, अर्जुनसिंह, दिग्विजय सिंह, अशोक गहलोत, शरद पवार, ओमप्रकाश चौटाला, नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडू, नीतिश कुमार आदि को. अगर ये सब हिंदू आतंकवाद जैसी व्याख्या को उचित मानते हैं तो फिर ये सब तथा उनके दल क्या आतंकवादी हैं? यदि ये सब आतंकवादी हैं तो इनसे देश व समाज की रक्षा करनी होगी? अगर प्रचार माध्यम इसे सही मानते हैं तो इनके मालिक और संवाददाता भी कटघरे में हैं. हमने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है. आजकल तो कुछ मुसलमानों में भी एक लहर चली है कि आतंकवाद को जेहाद नहीं माना जाए और न ही कहा जाए, ये स्वर और मुखर हो इसकी जरूरत है. आतंकवाद जेहाद नहीं फसाद है. आतंकी को पकड़कर पालिए नहीं, मारिए. मैं तो मुसलमानों से कहूंगा कि वे अपने ऊपर लगे शक के दाग को हटाने हेतु खुलकर सामने आएं.

आजकल मीडिया व सरकार में कुछ नेताओं ने एक बात पर और जोर दे रखा है, वह है किसी आतंकवादी घटना के बाद माहौल को सामान्य बताना. इस तरह से कहा जाता है कि आतंकवाद को कड़ा जवाब देते हुए जनजीवन पटरी पर चल पड़ा है. किसी राष्ट्रद्रोही घटना व हत्याकांड के बाद यदि नार्मल हो जाना ही आतंकवाद को करारा जवाब है तो फिर पाकिस्तान व अन्य को दोष देने की तथा सबक सिखाने की जरूरत क्या है? यह आतंकवाद को जवाब नहीं बल्कि उसे सहन करने वाली नपुंसकता है. मैं कहता हूं कि किसी घर में मौत होती है तो क्या वहां अंतिम संस्कार के बाद परिवारजन खाना नहीं खाते? खाते हैं. किसी घर में दुर्घटना हो जाती है तो क्या उस घर की दिनचर्या सामान्य नहीं होती? होती है. लेकिन दहशत और परिणाम थोड़े ही खत्म हो जाते हैं? नार्मल होने की बात कहना क्या है? ‘इट्स इनवीटेशन टू द टेरेरिज्स.’ यदि आप नार्मल होते रहे तो आतंकी आका ऐसे घातक हमले बार-बार करते रहेंगे.

एक तर्क और रखा जाता है. समाजवादी सरकार और एनडीए सरकार ने आतंकवादियों को डॉ. रूबिया को छुड़वाने और कंधार में फंसे भारतीयों को छुड़वाने के बदले में ससम्मान रिहा किया था. तो क्या कांग्र्रेस एवं यूपीए सरकार भी आतंकवाद के प्रति यही रवैया अपनाएगी? क्या ये वर्तमान सरकार भी अफजल और कसाब जैसे दुर्दान्त आतंकवादियों को पाकिस्तान को सौंप देगी? इट्स ए फुलिश आन्सर एंड लॉजिक. दादा की कमजोरी पोता भी दोहराएगा? पिछली सत्ता पर आरोप लगाकर वर्तमान सत्ता भी बेवकूफियां करे यह सोच मूर्खतापूर्ण है. वर्ष 1947 में बंटवारा हुआ तो हम अब फिर बंटवारा कर दें? यह गलतियों का धंधा और कमजोर नेतृत्व नहीं चलेगा. यह नहीं चलना चाहिए. हमें इच्छाशक्ति तो बनानी पड़ेगी. अगर इन गलतियों के कारण वे सरकारें चली गईं तो फिर आज की सरकार तो ढेर सारी गलतियां कर चुकी हैं तो फिर इसे सत्ता में क्यों बने रहने देना चाहिए? यूपीए सरकार सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद अफजल को माफ करने पर तुली है, पाकपरस्त अंतुले आज भी सरकार में मंत्री बने बैठे हैं. इस सरकार ने समझौता एक्सप्रेस घटना की जांच बदलने, पाकिस्तान को निर्दोष व अपने वतन वालों को कसूरवार ठहराने, कार्यवादी की बजाय प्रमाण सबूत परोसने का होटल चलाने, देशभक्तों पर कीचड़ उछालने जैसे कितने कुसूर किए हैं. क्यों सहें हम इतने कसूरों को? इन तर्कों से तो यह सिद्ध होता है कि भारत की वर्तमान सरकार एक अति कमजोर भारत तैयार करने का काम रही है और यह सरकारी शीघ्र हटाई जानी चाहिए.

सीमा पर पाकिस्तानी सैनिक हमला करें, गोलीबारी करें और भारतीय सैनिक उसका करारा जवाब दें तो क्या भारतीय सैनिकों के प्रति भी वही व्यवहार होगा जो पाकिस्तानी सैनिकों के साथ किया जाना चाहिए? हम वही कर रहे हैं. यानी हम अपने सिपाही को ही दोषी ठहरा रहे हैं. तथाकथित मानवाधिकारवादी तो दुश्मन व आतंकी के साथ खड़े होकर उसे बचाने का काम कर रहे हैं. फिर भारतीय सैनिक सीमा पर क्यों लड़ेगा व बलिदान देगा? अफजल और रक्षा में प्रतिक्रिया करने वालों को एक ही तराजू पर तौल रहे हैं. क्या दोनों आतंकवादी हैं? स्वयं को गुंडा तत्व से बचाने के लिए कोई व्यक्ति जो कार्रवाई करे क्या उसे भी गुंडा तत्व के समान ही देखा जाएगा? इतनी समान व्याख्या? अंतर तो करना पड़ेगा. समाज को यह अंतर महसूस करवाना होगा. अन्यथा देश को बार-बार ऐसे हमले झेलने पड़ेंगे. इन बातों पर सोचना चाहिए, बहस होनी चाहिए. आज पाकिस्तान, उसके द्वारा अधिकृत कश्मीर व बांग्लादेश में आतंकवादियों को प्रशिक्षण के अनेक केंद्र चल रहे हैं. हमें ईंट का जवाब पत्थर से देना होगा. इसके लिए आतंकवादी प्रशिक्षण केंद्र (टीटीसी) चाहे पाकिस्तान, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर, अफगानिस्तान, में हों या बांग्लादेश में हों, हमें उन्हें नष्ट करना ही चाहिए. इट इज अवर मॉरल, कान्स्टीट्यूशनल एंड डेमोक्रेटिक राइट.

अमेरिका ने 9/11/2001 में डब्ल्यूटीसी व पेंटागन पर आतंकी हमले से सबक लिया और कसूरवार को सबक सिखाया. वहां सात साल में आतंकी हमले की घटना दोहराई नहीं जा सकी. रूस में सन् 2004 के बाद दुबारा आतंकवादी घटना नहीं हुई. इंग्लैंड में 2006 के बाद आतंकवादी हमला नहीं हो सका. हमें लड़ाकू विमान भेजने चाहिए थे, हम फाइलें भर-भर कर विमान भेज रहे हैं दूसरे देशों को सबूत दिखाने. दूसरों को केवल सबूत देने से क्या आतंकवाद समाप्त हो जाएगा? केवल कूटनीतिक जीत से आतंक विहीन समाज नहीं होगा. क्या अमेरिका, रूस और इंग्लैंड ने विश्व में कहीं प्रमाण दिए. उन्होंने सख्त कानून से सख्त कार्रवाई कर आतंकवादी को कुचला है. इसलिए प्रमाण नहीं कार्यवाही चाहिए, वक्तव्य नहीं, कानून चाहिए, सख्त कानून से सख्त कार्यवाही चाहिए.

सोच बदलनी होगी. रक्षात्मक नहीं आक्रामक होना पड़ेगा. जब भारत-पाक और भारत-बांग्लादेश सीमा पर तारबंदी का प्रस्ताव लाया जा रहा था तो मेरी कुछ सैन्य, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों और अनेक राजनेताओं से बातचीत हुई थी। मैं इस पर सहमत नहीं था, हालांकि बाद में अनेक कारणों से हमने इस प्रस्ताव का विरोध नहीं बल्कि समर्थन किया. यहां मेरे कहने का आशय यह है कि हम तारबंदी क्यों करें? स्थितियां ऐसी बननी चाहिए कि ये दोनों देश तारबंदी की बात सोचने पर मजबूर हों या हम ऐसी परिस्थितियां निर्माण करें जिससे सन् 1947 में भारत विभाजन से उत्पन्न ये पड़ोसी देश नाजायज हरकतें बंद करें. हमें इसे समझने के लिए एक सत्य जानना होगा. जब दुनिया के शब्दकोश ठहर गए तो लोगों ने नया शब्द खोज डाला, क्योंकि यह सत्य समझाने के लिए आवश्यक था-

जो एक बार गलती करे- इंसान

जो दो बार गलती करे- नादान

जो तीन बार गलती करे- शैतान,

जो गलतियां करता जाए वह- पाकिस्तान.

अगर तारबंदी कारगर उपाय है तो इसे युद्धस्तर पर करना चाहिए न कि रूटीन में.

18 फरवरी 2007 के समझौता एक्सप्रेस में क्या हुआ? यूपीए सरकार अपने ही जाल में फंस गई. इसके द्वारा पहले नियुक्त जांच एजेंसी ने इस घटना में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी गुटों का हाथ बताया था और बाद में राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कराई गई जांच में दूसरी बात कही गई. एक सरकार, दो एजेंसियां, दो रिपोर्ट, दोनों विरोधाभासी. दूसरी रिपोर्ट में तथ्यों को घुमाने की कोशिश. सवाल यह उठता है कि घरेलू राजनीति करने के लिए पाकिस्तान और सफदर नागौरी (सिमी) को निर्दोष बताने का अपराध कांग्रेस व यूपीए ने सरेआम झूठ बोलकर क्यों किया? यूपीए सरकार के कुछ नेता सिमी को निर्दोष व नादान बताने में पूरी तरह बेशर्म बने हुए हैं. क्या ऐसे नेता आतंक शून्य भारत का निर्माण कर सकेंगे?

मित्रों, देश इस समय इसी तरह के संकट से गुजर रहा है, संभवतया दो-चार साल अभी ऐसा ही चलेगा. लेकिन डरने की जरूरत नहीं है. वनवास राम को ही हुआ था, रावण को नहीं. जेल में कृष्ण ही पैदा हुए थे, कंस नहीं. राष्ट्रद्रोही ताकतों को तो ‘ऐश’ ही करना है. तकलीफ तो हमें ही उठानी है. हमें यानी सरकार को आतंक के विरुद्ध आयरन हैंड डीलिंग करनी होगी. पाक ने कसाब को पाकिस्तानी मान लिया तो इसमें हम अपनी जीत का ढिंढोरा पीटें यह ठीक नहीं है. यह जीत नहीं, ना ही यह दुश्मन को उत्तर है. असम में तो आतंकवाद की घटनाएं रोज ही हो रही हैं, क्या कर पाए हम? लेकिन किसी समस्या के हल के लिए वस्तुस्थिति क्या है, क्या सही है, क्या गलत है यह तो जानना ही चाहिए. गलत का विरोध करना चाहिए, सही के समर्थन में खड़ा होना चाहिए. अभी तो संकट का चरम आना बाकी है. तैयार रहना होगा. चाहे राजनीतिक व प्रशासनिक मोर्चा हो या सैनिक व सामाजिक मोर्चा, हमें हर मोर्चे पर गलत बातों के खिलाफ लड़ना होगा.

आज देश में हालात ये बना दिए गए हैं कि नेता अविश्वास के घेरे में हैं, देशभक्तों पर कीचड़ उछाला जा रहा है, सेना को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश है, जांच एजेंसियां संदेह के घेरे में हैं और संतों को बदनाम किया जा रहा है. तो फिर देश चलेगा कैसे? हिंदू आतंकवाद के नाम पर जिस तरह पिछले दिनों कुछ अधिकारियों के बहाने से सेना, संत व संघ को बदनाम करने की कोशिश की गई, उस पर प्रतिक्रिया देने का सीधा अर्थ था सेना व समाज के मनोबल को कमजोर करना और यूपीए की अलगाववादी नीतियों को फलने-फूलने के लिए जमीन तैयार करना, इसलिए राष्ट्रवादी ताकतों को बहुत सावधानी से चलना होगा. भारत को कैप्चर करने के वैश्विक ताकतों के मंसूबे पूरे नहीं होंगे. आज बाह्य एवं अंदरूनी षड्यंत्रकारी ताकतों की मजबूरी है कि उन्हें संघ का विरोध करना पड़ रहा है. यही हमारी ताकत है. नेपाल में जिस तरह पशुपति मंदिर के भारतीय पुजारियों को बदलने का फैसला किया गया, पूरे नेपाल में आक्रोश पैदा हो गया, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने सबसे पहले इस पर प्रतिक्रिया की. अंततः नेपाल सरकार को निर्णय वापस लेना पड़ा. इसलिए जरूरत घबराने की नहीं है, समाज में मजबूती लाने की है, मुद्दों के राजनीतिकरण को समझने की है. जनता को ऐसे षड्यंत्रों के बारे में जागरूक करने की है और समाज में प्रतिक्रिया पैदा करने की है. समाज में इन हालात के प्रति बेचैनी बढ़े, वह इमोशनली ब्लैकमेल न हो. सन् 2007-08 में तिरुपति तिरुमाला तीर्थस्थान की विधर्मियों से रक्षा, यूपीए सरकार व मैकाले पुत्रों से राम-रामायण-रामसेतु को ऐतिहासिक व वैज्ञानिक सत्य मनवाकर, अब रामसेतु तोड़ने का अपराध नहीं हो यह सुनिश्चित करवाकर, कश्मीर घाटी में पाक झंडा लहराने वाले नेताओं व उनके दिल्ली समर्थक दलों को झुकाकर श्रीअमरनाथ तीर्थयात्रियों के लिए कश्मीर घाटी में सुविधा व्यवस्थाओं हेतु जम्मू की जनता ने संघर्ष व बलिदान का अद्वितीय इतिहास निर्माण कर पूरी तरह विजय प्राप्त की है. इस करवट बदलते समय और समाज को समझने की आवश्यकता है.

समस्या है सेना व पुलिस को अधिक मजबूत करने की. न्याय तो है, सुप्रीम कोर्ट ने अफजल को फांसी का निर्णय सुना दिया, समस्या को इस निर्णय को लागू नहीं करना है. समस्या तो विल पावर की कमजोरी है. छद्म धर्मनिरपेक्षवादी-समाजवादी और साम्यवादी ताकतें वोट बैंक की राजनीति को मध्य रख देश को बर्बाद करने में तुली हैं. हमारी ताकत इसमें लगनी चाहिए कि हम ऐसे निर्णयों को लागू करवा सकें. आशा रखो. कल अपना था और कल अपना होगा.

(यह वक्तव्य श्री इन्द्रेश कुमार जी द्वारा सन् 2008 के पहले समय-समय पर दिये गये हैं)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची-दिसंबर-2016 : संपादकीय
प्राची-दिसंबर-2016 : संपादकीय
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggG1kE7XYlVs5McMwo0hfHi-3zx9yiyEDMQg9AbxYfLOIWo39W7nYKBBH1B7N21tzvk8piB4HUEK7IbidZXh7Uk7Dx6KgM6EUWRyb5aAn4ugB4GY0dYsz0i_tE6q-1aaKFtfzg/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggG1kE7XYlVs5McMwo0hfHi-3zx9yiyEDMQg9AbxYfLOIWo39W7nYKBBH1B7N21tzvk8piB4HUEK7IbidZXh7Uk7Dx6KgM6EUWRyb5aAn4ugB4GY0dYsz0i_tE6q-1aaKFtfzg/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/01/2016_14.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/01/2016_14.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content