व्यंग्य की जुगलबंदी-15 अनूप शुक्ल · 22 जनवरी 2017 नये साल के मौके पर व्यंग्य की जुगलबंदी हुई तो सहज ही उसका शीर्षक नये साल पर केन्द्रित थ...
व्यंग्य की जुगलबंदी-15
नये साल के मौके पर व्यंग्य की जुगलबंदी हुई तो सहज ही उसका शीर्षक नये साल पर केन्द्रित था। पन्द्रहवी जुगलबंदी का विषय था- ’नया साल, नये सवाल।’ जब जुगलबंदी के लेख लिखे गये तब शायद अधिकतर मिल नये साल के जश्न में डूबे थे इसलिये कम लोगों ने लिखे लेख।
जुगलबंदी की शुरुआत
Nirmal Gupta
से हुई| उन्होंने अपने लेख का विषय रखा - ’नया साल टेढ़े सवाल।’ लेख में तुर्की में हुये आतंकवादी हमने, उप्र की राजनीति में चल रहे नाटक और तमिलनाडु में जयललिता के निधन की घटनाओं का जिक्र करते हुये अपनी बात कही गयी थी। लेख का लिंक यह रहा-https://www.facebook.com/gupt.nirma... लेख के कुछ अंश देखिये :
1. वे संत के भेष में आतंकवादी भेडिये थे।लेकिन यह कहने और मानने वाले भी कम नहीं कि वे प्रो एक्टिव संत ही थे।अत्याधुनिक हथियारों से लैस होकर धमाकों के जरिये दुनिया भर में अमन चैन के प्रसार के लिए तत्पर ठेकेदार।दरअसल संत तो यही लोग हैं पर इनके उपहार देने दिलाने का तरीका जरा हट कर है।
2. समाजवाद के फेमिली ड्रामे में कितने धृतराष्ट्र हैं और कौन दुर्योधन ,पता ही नहीं लग पा रहा।नये साल में नवीनतम सन्दर्भों के आलोक में मिथकीय चरित्रों की गहन पड़ताल होनी है।यह अलग बात है कि समाजवाद फिर भी बना रहेगा और उससे उठने वाले सवाल बचे रहेंगे।
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3. नये साल के पास सवाल तो जरा कम ही हैं लेकिन बवाल का सामान पर्याप्त है।सवालों की शक्ल में इतने खतंगे हैं जो फुस्स भी होते रहेंगे और धमाके भी करते रहेंगे।
समीरलाल
उर्फ़ Udan Tashtari के सामने नया साल आया तो मुंह बाये आया।आते ही पूछने लगा -क्या किया जायेगा नये में? लेख ’नये साल का नया प्रश्न’ बांचने के लिये इधर आइये- https://www.facebook.com/udantashta... हम आपको इस लेख के कुछ अंश पढवाते हैं:
1. संकल्पों की एक फौज खड़ी हो जाती है नया साल आते ही और ९९.९ प्रतिशत संकल्पों की नियति एकदम ठीक चुनावी वादों की तरह कभी न पूरा होना है.
2. हर संकल्पकर्ता हर वर्ष अपने नये के जबाब में एक नया संकल्प यह भी जोड़ देता है कि इस बार पहले की तरह नहीं होगा, इस बार तो पूरा करके ही मानूँगा. पुनः जैसा हर नेता हर चुनाव में अपने चुनावी वादे के लिए कहता है इस बार यह जुमला नहीं वादा है. मगर वक्त के साथ फिर से वादा जुमले में तब्दील हो जाता है.
3. सरकार के संकल्प हैं कि चुन चुन कर मारुँगा. कोई नहीं बचेगा सिवाय उनके जिन्हें हम बचाना चाहेंगे और आम जन के संकल्प हैं कि काश!! किसी तरह उस श्रेणी में आ जायें जिसे वो बचाना चाहते हैं.
Anshu Mali Rastogi
नये साल के लटकों झटकों से परिचित हैं यह बात उनके लेख के शीर्षक से ही पता चल जाती है- “ नया साल : नो प्रश्न, नो संकल्प “। लेख तो यहां पहुंचकर बांच सकते हैं https://www.facebook.com/notes/ansh... हम आपको लेख के कुछ अंश पढवाते हैं:
1. नए साल पर लोग किस्म-किस्म के संकल्प लेते हैं। कोई गुटका छोड़ने का संकल्प लेता है, तो कोई शराब छोड़ने का। कोई सोशल नेटवर्किंग से दूरी बनाने का संकल्प लेता है तो कोई बीवी को परेशान न करने का। कोई ज्यादा लिखने-पढ़ने का संकल्प लेता है तो कोई कभी फेल न होने का। कोई नॉन-वेज न खाने का संकल्प लेता है तो कोई राह चलती लड़की को कभी न छेड़ने का। और कुछ ऐसे भी होते हैं, जो कारण-बेकारण प्रश्न पूछने को ही अपनी आदत बना लेना चाहते हैं।
2. किसी काम को गा-बजाकर करना हमारा पुश्तैनी शौक रहा है। जब तलक चार लोगों से अपने शौक या संकल्प के बारे में जिक्र न कर लें, हमारे पेट को चैन ही नहीं पड़ता।
3. संकल्प तो कमजोर इरादों वाले लोग लिया करते हैं। इरादे मजबूत रखिए फिर संकल्प तो क्या विकल्प भी आपके आगे पानी भरेगा।
Suresh Kant
जी ने नये साल की हमारी मुहिम अपना स्वर मिलाया और गये साल के मौके पर ’अर्थसत्य’ में लिखा गया लेख टैगियाया। लेख का लिंक इधर है भाया https://www.facebook.com/permalink....
हम आपको सुरेश जी के लेख के मुख्य अंश पढ़वाते हैं:
1. नया साल इस दृष्टि से विशेष महत्व रखता है कि वह आ ही जाता है, हमारे चाहे- अनचाहे। और इस अर्थ में भी कि साल ही नया होता है। हम - आप वही के वही पुराने बने रहते हैं।
2. बिना किसी तैयारी के नये साल पर आधे-अधूरे मन से लिये गये हमारे सारे संकल्प धरासायी होने में ज्यादा देर नहीं लगाते।
3. नये वर्ष ने अलबत्ता अपना नयापन बनाये रखने के लिये खूब चोला बदला है ।
Ravishankar Shrivastava
के नये साल का जश्न उनकी पोस्ट पर पहुंचकर देखिये http://raviratlami.blogspot.in/2017...
इस लेख के कुछ अंश यहां पेश हैं:
1. यह साल सबके लिए कैशलेस आया है. क्या अमीर क्या गरीब. सब कैशलेस. कोई पहले से था, कोई अब हो गया. खुदा ख़ैर करे, बाकी के बचे खुचे प्लास्टिक मनी और मोबाइल ऐप्प से कैशलेस होने वाले हैं. तो, इस साल कैशलेस लोगों के सामने एक बड़ा सवाल होगा – लोग पूरे एटीट्यूड के साथ पूछेगे - कौन सा कार्ड, कौन सा ऐप्प यूज़ करें. यूज़ करें का प्रयोग कर पूछने में जो एटीट्यूड दिखता है वो उपयोग करें या प्रयोग करें में नहीं है.
2. कुकुरमुत्ते की तरह रिलीज हो गए पेमेंट ऐप्प में से सही ऐप्प चुनने का सवाल अच्छे-अच्छों खाँ को इस साल विचलित और विगलित करता रहेगा. क्योंकि राष्ट्रवादियों की तलवार सर पे लटकी रहेगी. अबे तू अपने स्मार्टफ़ोन में चीनी पेटम का यूज़ करता है? भीम का उपयोग कर भीम का! और फिर तलवारें लहराई जाएंगी, जुलूस निकाले जाएंगे. अब ये बात जुदा है कि सारा मजमा चीनी स्मार्टफ़ोनों के जरिए ही होगा.
3. कुछ शाश्वत-से सवाल इस नए साल में भी उठेंगे, सदा सर्वदा से ज्वलंत सवाल, इस साल भी दागे जाएंगे. मगर वे सबको एकदम नए-नवेले से ही लगेंगे. जैसे कि, इस तथाकथित व्यंग्य टुकड़े पर, व्यंग्यात्मक लहज़े में ये सवाल उठेगा – ये व्यंग्य है? क्या यही व्यंग्य है? हज़ल तो सुना था, पर, ये व्यंज़ल क्या होता है? जुगलबंदी जैसे नाटकबाजी से कभी व्यंग्य का भला हो सकता है भला?
Devendra Kumar Pandey
साल की शुरुआत फ़ुल आराम करके किये। खुशी-खुशी, उछल-उछल कर चलती बस दोनों हाथों से मोबाइल पकड़,संभल-संभल कर लिखते हुये जो लिखा उन्होंने उसे यहां बांचिये -https://www.facebook.com/devendra.p... हम तो आपको कुछ अंश पढ़वाये देते हैं:
1. बनारसी अपने आनन्द दर्शन में जीते हैं। हम नहीं उलझे अभी अखिलेश-मुलायम की राजनीति में। अभी तो नव वर्ष की खुमार में हैं। खुमारी उतरी, फालतू समय मिला तो बहस करेंगे इस सवाल पर। वैसे भी ऐसे सवालों के जवाब तो वक्त ही दे पाता है।
2. ड्राइवर समझदार लगता है। कभी कंडक्टर समझदार मिलता है , कभी ड्राइवर। दफ्तर में जैसे कभी अधिकारी समझदार मिलते हैं, कभी कर्मचारी। दोनों समझदार, दयावान मिल जांय, यह किस्मत की बात है।
3. नया साल अभी शुरू हुआ है। अभी इसने नये सवाल नहीं उठाये। अभी उलझी है पुराने सवालों में। नये सवाल आने से पहले के पलों का भरपूर आनंद लीजिये।
Alankar Rastogi
ने तो शुरुआत से ही आदमी को गलतियों का पुतला बता दिया बिना यह डिस्क्लेमर लगाये कि हमको आदमियों में न गिना जाये। “ नए साल के संकल्प और उनके विकल्प “ को यहां पहुंचकर बांचिये https://www.facebook.com/rastogi.al... हम तो आपको कुछ रोचक अंश पढवाये देते हैं :
1. हर बार नए साल के नाजुक कंधे पर हम अपनी आशाओं की ओवरलोडिंग कर देते हैं । हर बार नए साल में इतने रेजोल्यूशन बना डालते हैं कि उनकी किताब लिख डाली जाये तो नेपाल और भूटान सरीखे छोटे -मोटे देश का संविधान तैयार हो जाये ।
2. जिस ईमानदारी से हम रेजोल्यूशन बनाते हैं उससे कहीं ज्यादा शिद्दत से उनका सोल्यूशन भी निकाल लेते हैं । हमारे लिए आदतों का बनाना सालों की बात है और उनको मिटाना सेकंडो का काम । आदर्श का मुलम्मा यथार्थ के थपेड़ों से उतरते देर नहीं लगती है । हमारे पास हर नियम का संयम पूर्ण समाधान वैसे ही निकल आता है जैसे किसी तांत्रिक के पास इस दुनिया की सारी तकलीफों का समाधान निकलता है ।
3. कुछ रेजोल्यूशन तो ऐसे होते हैं जिनका सोल्यूशन ढूंढ लिया जाता है लेकिन कुछ रेजोल्यूशन कम कम्पल्शन यानी मजबूरी ज्यादा होते है ।
Kamlesh Pandey
ने साल शुरु होने के पांचवे दिन लिखा और धमकी साथ में नत्थी की (चाहें तो इसे समय-सीमा के आधार पर खारिज कर सकते हैं, पर पहले ये सिद्ध करना होगा कि नया साल पांच दिनों में ही पुराना पड गया है) किस माई के लाल में यह हिम्मत लिखा हुआ खारिज करने की। सो इसे नये साल के मौके पर ही लिखा गया माना गया। लिंक यह रहा https://www.facebook.com/kamleshpan...
लेख के कुछ अंश यहां बांचिये:
1. पुराने और नए साल के संधिकाल से पहले ग़म गलत करने के कर्मकांड के साथ-साथ कुछेक ग़म सही भी कर लेना उत्तम है
2. जिंदगी से घट गए तीन सौ पैसठ दिनों की तुलना में सर के बाल भारी संख्या में गायब मिलेंगे. बचे हुए बाल उसी तेज़ रफ़्तार से सफ़ेद हुए होंगे जैसे हाल में काला धन बेंकों में जमा होकर हुआ. पर बालों की फितरत के हिसाब से आपने उनकी रंगत काली ही बनाए रखने में कोई कसर न छोड़ी.
3. वैसे जुरुरत तो धूर्तता, चालाकी और बेशर्मी की भी है. क्या कहा? ये आपके पास नहीं हैं? गौर से देखिये आपके भीतर के किसी तहखाने में छुपे होंगे. न भी हों तो मैं क्या कर सकता हूँ? सब कुछ तो शुभकामनाओं में घोल कर नहीं दे सकता. कुछ मेहनत अपनी ओर से भी तो करें.
Alok Puranik
ने ’नये साल, नये सवाल’ के बहाने जुगलबंदी में वनलाइनर मय फ़ोटो ही ठेल दिये। एक ठो फ़ोटो का लिंक यह रहा https://www.facebook.com/photo.php?... रामगोपाल पर कई वनलाइनर रहे उनके । जैसे एक यह - जितनी बार महात्मा गांधी जेल ना गये, उससे ज्यादा बार रामगोपाल यादव सपा से निकाले गये। कुछ और चुटीले वाक्य ये रहे आलोक पुराणिक के:
1. बंटी को छोड़,उसकी तो उत्ती गर्लफ्रेंड पहले ही हैं,जितनी बार रामगोपाल यादव सपा से निकाले गये हैं।
2. फ्यूचर आईएएस संघ की मांग सिविल सेवा परीक्षा में उतनी बार बैठने दें,जितनी बार रामगोपाल यादव सपा से निकाले गये हैं।
3. 2017 के लिए सबक यह है कि गहन दुखों के लमहों में भी बंदा चाहे तो खुशी की वजह ढूंढ लेता है। नोटबंदी के मारों को कचौड़ी बेच ही लेता है।
Arvind Tiwari
जी ने नये साल पर नये सवाल जो लिखे उनको आस्वाद आप इस लिंक पर पहुंचकर ले सकते हैं https://www.facebook.com/profile.ph... इस लेख के कुछ अंश यहां आपको पढ़वाते हैं:
1. दुश्वारियां,बदगुमानिया,काइयांपन,नपुंसकता जब विश्व पर हावी हो जाती है तो साल बदल जाता है।उम्मीद की जाती है कि आने वाले साल में नंगई उतनी नहीं होगी जितनी इस साल हुई।उम्मीद रहती है कि बीते हुए साल के सवाल चुटकियों में हल हो जायेंगे और नए साल के सवालों को हल करने का मार्ग प्रशस्त होगा।होता उल्टा है।
2. हक़ीक़त में कुछ नहीं बदलता सिवाय केलेंडर के।केलेंडर के दिन हस्बेमामूल पराजय वाले होते हैं।सिर्फ साल का अंक बदल जाता है।उधर सियासत के अंक में पनाह लेने वाले साल के साथ अपना अंक बदल कर उस पार्टी के अंक में जा बैठते हैं जिसकी चुनाव जीतने की संभावना होती है।समस्त सियासत किसी पंक में फंसी नज़र आती है।कीचड़ सने वक्तव्यों से नये साल में नई उम्मीद नहीं पाली जा सकती।पुराने सवालों के साथ नए सवालों का गठबन्धन हो जाता है।
3. इस बार नए साल पर रात भर हुआ जश्न हमारा उपहास उड़ा रहा है।सुबह आठ बजे बैंकों के सामने लगी लाइन बताती है रात बीतने के बाद भी सवालों का अँधेरा है।ये सवाल वैसे ही हैं जैसे मास्टर जी छोटी कक्षाओं में दिया करते थे।मौखिक बोल कर युगपत समीकरण का पिता पुत्र की उम्र ज्ञात करवाते थे।काल्पनिक सवालों का अटपटा उत्तर आता था मतलब पुत्र की आयु हर बार पिता से ज्यादा आती थी।मास्टर जी खुद चकरा जाते।आज सियासत उसी तरह के सवाल हल करवा रही है।वह सवाल जब हल नहीं कर पाती तो घिसे पिटे चुटकुले सुनाने लगती है।पक्ष और विपक्ष इन्हीं चुटकुलों के बल पर जिन्दा है।हमारे लिए नए साल का कोई आकर्षण नहीं बचा।
अनूप शुक्ल
भी नये साल में पीछे नहीं रहे और लिख मारे ’नये साल, नये सवाल’ पर कुछ जिसे आप इधर देख सकते हैं https://www.facebook.com/anup.shukl...
इस लेख के कुछ अंश देखिये:
1. सपना देखने वाले की मजबूरी होती है कि जो दिखाया जाये उसे वह चुपचाप देख ले। सपनों में चुनाव नहीं होता।’मिड डे मील की तरह होते हैं’ सपने। जो परसा जाता है वो खाते हैं बच्चे। सपने में भी जो दिखाया जाता है वही देखना पड़ता है। सपने देखते हुये ही जिन्दगी गुजर जाती है जनता की। सपने न देखे, दिखायें जायें तो जीना दूभर हो जाये।
2. राजनीति में बातें भले ही विकास, काम-काज और अच्छे कामों की हो लेकिन चुनाव जीतने के लिये पैसा, बाहुबल और जाति समीकरण ही काम आता है वैसे ही विद्या की देवी भले ही सरस्वती मानी जायें लेकिन इम्तहान में पास कराने का काम बजरंगबली ही करते हैं।
3. नये साल में संकल्प लेने का काम भी करते हैं लोग। हमने पिछले सालों में जित्ते भी संकल्प लिये वे कभी पूरे नहीं हुये। इसलिये हमने इस बार कोई संकल्प नहीं लिया। वैसे सोचा यह भी कि कोई बेवकूफ़ी का काम करने का संकल्प ले लिया जाये। लेकिन फ़िर नहीं लिये इस डर से कि कहीं संकल्प पूरा हो गया तो मुंह दिखाने लायक न रहेंगे। कहीं कोई ऊंचनीच न हो जाये इसी डर से कोई संकल्प नहीं लिये।
जितने लोगों के दिखे लेख उनको यहां पेश कर रहा हूं। कोई छूट गया होता तो उसको फ़िर उसे शामिल कर लूंगा।
व्यंग्य की जुगलबंदी -15 में अभी इतना ही। बाकी कुछ बचा तो फ़िर कभी।
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