नव वर्ष तुम्हारा मंगलमय, सुखप्रद, सार्थक हो शुभ आना प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘ प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘ ओ.बी. 11, एमपीईबी...
नव वर्ष तुम्हारा मंगलमय, सुखप्रद, सार्थक हो शुभ आना
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो. 9425484452
नव वर्ष तुम्हारा कालचक्र तो निर्धारित करता आना
पर आकर के जग के ऑगन को तुम खुशियों से भर जाना।
पीडित हैं सब आतंकवाद से दुख से भारी सबके मन
बीते वर्षो सी विपदायें तुम आकर फिर मत दोहराना।
देखे हैं जग ने कई दुर्दिन, सब देश दुखी हैं पीडा से
मुसका सकने के अवसर दे नई सुविधायें दे हर्षाना।
देना सुबुद्धि का वह प्रकाश जो मिटा सके सब अॅंधियारा
नासमझों को देकर सुबुद्धि ममता का मतलब समझाना।
है स्वार्थ जाल में जकडे सब, अकडे फिरते करने मन का
अपने मत के हैं हठी अधिक, पसरा पागलपन मनमाना।
कुछ की अनुचित नादानी से, बहुतों के घर वीरान हुये
दिगभ्रमित मूढमति लोगों को हिलमिल कर रहना सिखलाना।
आये और गये तो साल कई, पर पा न सके सब जन उमंग
गति रही सदा इस जीवन की खाना पीना औं मर जाना।
देकर विचार शुभ उन्नति के, नव मौसम लाकर के अनुपम
भाईचारे का मंत्र सिखा, हर मन को पुलकित कर जाना।
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मिटती आई है लड़ भिड़कर यह दुनियॉ ओछी चालों से
सुख शांति की पावन प्रीति बढा दुख-दर्द को दूर भगा जाना।
इस जग के हर घर, हर जन को अपनी यादों से भर जाना
नव वर्ष तुम्हारा मंगलमय, सुखप्रद, सार्थक हो शुभ आना।
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सुशील शर्मा
नव वर्ष -पुरानी यादें नए दायित्व
कैलेंडर से उतरता वर्ष।
दे रहा है मन को हर्ष ।
कुछ विस्मृत सी यादें ।
कुछ चीखती फरियादें ।
काले धन पर चोट है ।
आज भी बिकता वोट है ।
नोट बंदी का ऐलान है ।
लाइन में खड़ा इंसान है ।
आतंकियों से फाइट है ।
सीमा पार सर्जीकल स्ट्राइक है ।
जेनयू की शर्म है ।
नीच होते कर्म है ।
पाकिस्तान की फ़ांस है ।
चीन की अटकी साँस है ।
पक्ष कटिबद्ध है ।
विपक्ष अवरुद्ध है ।
परिजनों की पीर है ।
मन बहुत अधीर है ।
कहीं ख़ुशी कहीं गम है ।
हँसते हुए भी आँखे नम है ।
चुनौतियों का चक्कर है ।
ख़ुशी और गम में टक्कर है ।
रोती सिसकती संवेदना है ।
मन में घुटती वेदना है ।
समाज का ध्रुवीकरण है ।
दिखावे का आकर्षण है ।
'सुल्तान'से 'दंगल'है ।
बाकी सब कुशल मंगल है ।
चटुकारिता चौमुखी है ।
मनुष्य बहुमुखी है ।
सच लिखना दायित्व है ।
सहमा सा साहित्य है ।
सम्मान बिकता है ।
सृजन सिसकता है ।
स्मृतियों के दंश हैं ।
भविष्य के सुनहरे अंश हैं ।
नववर्ष का आगमन है ।
संभावनाओं का आचमन है ।
सत्य के संकेत हैं ।
सभी श्याम श्वेत हैं ।
सुरभित व्यक्तित्व हैं ।
सुरक्षित अस्तित्व हैं ।
सुसंस्कृत व्यवहार हैं ।
संपन्न परिवार हैं ।
मन कृत संकल्प हैं ।
खुशियों के विकल्प हैं ।
सच के सिद्धान्त हैं ।
अस्तित्व सीमांत हैं ।
गुड़ियों के खिलौने हैं ।
बचपन सलौने हैं ।
शिक्षा का अधिकार है ।
बढ़ते व्यापार हैं।
सांझी सी साँझ है ।
प्रेम की झांझ है ।
सीमा पर वीर हैं ।
बाँकुरे रणधीर हैं ।
शत्रु हैरान है ।
झूठ परेशान है ।
साहित्य समृद्ध है ।
सत्य वचनबद्ध है ।
शब्दों के अर्थ हैं ।
शंकाएँ व्यर्थ हैं ।
प्रगति के सोपान हैं ।
लक्ष्यभेद विमान हैं ।
नवीनताओं का सृजन है ।
अहंकारों का विसर्जन है ।
व्यवस्थित अवधारणाएं हैं ।
असीमित संकल्पनाएँ हैं ।
सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं हैं।
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मेराज रजा
नये साल में
नयी उम्मीदें
नया उमंग
नया उल्लास
दुआ करें
खुशियो की बारिश में
नित्य नहाये सब
ना हो कोई उदास।
नये साल में
नयी राहें
नयी मंजिले
नयी इबारत
दुआ करें
चांद- तारों से भी आगे
तरक्की के बांध धागे
चमके भारत।
नये साल में
नये आयाम
नये सोपान
नित्य गढे हम
और साथ ही
कालाधन बाद में
पहले सफेद कर लें
अपना काला मन।
Merajraja.bazidpur@gmail.com
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विनोद कुमार दवे
यह नया वर्ष है खुशियों का
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नवजात शिशु सा डरा-डरा
उम्मीदों से भरा-भरा
ख्वाबों का शज़र हरा-हरा
दस्तक दे रहा जरा-जरा
रोशन रंगीं फुलझड़ियों का
यह नया वर्ष है खुशियों का
ओस कणों से भीगा-भीगा
कुछ मीठा कुछ तीखा-तीखा
जरा भरा जरा रीता-रीता
नमकीन जरा सा फीका-फीका
बे स्वाद जीवन में आस का
यह नया वर्ष है मिठास का
नन्हीं कलियों सा खिला-खिला
अल्हड़ यौवन सा खुला-खुला
प्रिय प्रिया सा मिला-मिला
चीनी पानी सा घुला-घुला
रूठे पतझर में बहार का
यह नया वर्ष है प्यार का
परिचय -
साहित्य जगत में नव प्रवेश। पत्र पत्रिकाओं यथा, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, अहा! जिंदगी, कादम्बिनी , बाल भास्कर आदि में रचनाएं प्रकाशित।
अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत।
पता :
विनोद कुमार दवे
206
बड़ी ब्रह्मपुरी
मुकाम पोस्ट=भाटून्द
तहसील =बाली
जिला= पाली
राजस्थान
306707
मोबाइल=9166280718
ईमेल = davevinod14@gmail.com
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दोहे रमेश के नववर्ष पर
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पन्नो में इतिहास के, लिखा स्वयं का नाम !
दो हजार सोलह चला,..यादें छोड तमाम !!
दो हजार सोलह चला, ले कर नोट हजार !
दो हजार के नोट का,. .दे कर के उपहार !!
दो हजार सोलह चला, छोड सभी का साथ !
हमें थमा कर हाथ में,... नये साल का हाथ !!
जाते-जाते दे गया, घाव कई यह साल !
निर्धन हुए अमीर तो, भ्रष्ट हुए कंगाल !!
हो जाए अब तो विदा, कलुषित भ्रष्टाचार !
यही सोचकर हो रही, लम्बी रोज कतार !!
ढेरों मिली बधाइयाँ,........बेहिसाब संदेश !
मिली धड़ी की सूइंयाँ,ज्यों ही रात "रमेश"!!
मदिरा में डूबे रहे, ......लोग समूची रात !
नये साल की दोस्तों, यह कैसी सुरुआत !!
नये साल की आ गई, नयी नवेली भोर !
मानव पथ पे नाचता, जैसे मन मे मोर !!
नये साल का कीजिये, जोरों से आगाज !
दीवारों पर टांगिये, .नया कलैंडर आज !!
घर में खुशियों का सदा,. भरा रहे भंडार !
यही दुआ नव वर्ष मे,समझो नव उपहार !!
आयेगा नववर्ष में, .....शायद कुछ बदलाव !
यही सोच कर आज फिर, कर लेता हूँ चाव !!
रमेश शर्मा, मुंबई.
9820525940.rameshsharma_123@yahoo.com
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बृजेन्द्र श्रीवास्तव "उत्कर्ष"
नया सबेरा
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नए साल का,नया सबेरा,
जब, अम्बर से धरती पर उतरे,
तब,शान्ति,प्रेम की पंखुरियाँ,
धरती के कण-कण पर बिखरें,
चिडियों के कलरव गान के संग,
मानवता की शुरू कहानी हो,
फिर न किसी का लहू बहे,
न किसी आँख में पानी हो,
शबनम की सतरंगी बूँदें,
बरसे घर-घर द्वार,
मिटे गरीबी,भुखमरी,
नफरत की दीवार,
ठण्डी-ठण्डी पवन खोल दे,
समरसता के द्वार,
सत्य,अहिंसा,और प्रेम,
सीखे सारा संसार,
सूरज की ऊर्जामय किरणें,
अन्तरमन का तम हर ले,
नई सोंच के नव प्रभात से,
घर घर मंगल दीप जलें//
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शालिनी मुखरैया
नया जहाँ
सितारोँ के आगे इक नया जहाँ और बसाया जाय
जहाँ रह्ते हो सिर्फ इंसान
ऐसा इक नया घर बनाया जाय
बहुत हुआ नफरत का शोर ,
हैवानियत की इंतेहाँ
इंसान को इंसान से फिर मिलाया जाय
दे कर खुदा ने हज़ारोँ नेमतेँ भेजा था
हम सभी को इस धरती पर
न कद्र कर सके हम उसकी
कभी हावी हुआ सब पर
यूँ लालच का ज़हर
रगोँ मेँ बह्ता हुआ लहू पानी हुआ
हर रिश्ता कमज़ोर हुआ ,
नफरत का ज़ख्म नासूर हुआ
ऐसे दुखते ज़ख्म पर प्यार का मरहम लगाया जाय
इंसान को इंसान से फिर मिलाया जाय
दुनिया का हर मज़हब
देता प्यार की ही सीख है
जो इज़्ज़त दे इंसान को ,
वो खुदा के करीब है
सच्चाई , नेकी और इंसानियत
हर धर्म के उसूल हैँ
किसी भी राह को अपनाओ,
हर इबादत खुदा को कुबूल है
2
इंसानियत ही हो धर्म सभी का
ऐसा इक चलन चलाया जाय
इंसान को इंसान से फिर मिलाया जाय
बैर हो उसके बन्दोँ मेँ कभी
यह खुदा को कभी मंज़ूर नहीँ अगर मिल कर रहेँ सभी
तो बन जायेगी फिर जन्नत यहीँ
इंसान को इंसान का ,हम कदम होना चाहिये
जो भट्का कभी अपनी राह से
इल्म अपनी गल्तियोँ का उसको होना चाहिये
भूला कर गिले शिक्वे सभी
विश्वास का इक दरिया बहाया जाय
इंसान को फिर इंसान से मिलाया जाय
सित्तारोँ के आगे इक नया जहाँ और बसाया जाय
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शालिनी मुखरैया
विशेष सहायक
शाखा मेडीकल रोड
अलीगढ
01.10.2016
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शालिनी तिवारी
ऐसा ही कुछ करना होगा
लम्बे अर्से बीत चले हैं,
इनसे कुछ सबक लेना होगा,
उम्मीदों की सतत् कड़ी में,
इस बार नया कुछ बुनना होगा,
अपने समाज के अन्तिम जन को,
अब तो बेहतर करना होगा,
शिक्षित और जागरूक बनाकर,
इनके हक में लड़ना होगा,
कुछ न कुछ पाने का सबका,
अपना अपना सपना होगा,
सूख चुके आँसुओं को अब तो,
मुस्कानों में बदलना होगा.
सुख समृद्धि सौहार्द्रता का,
दृश्य दिखे तो अच्छा होगा,
गगन चूमती उम्मीदों को ,
आयाम मिले तो अच्छा होगा,
मेरी बहनें बढ़ चढ़ करके,
इतिहास रचें तो अच्छा होगा,
शोध जगत दुनिया को अपना,
लोहा मनवाए तो अच्छा होगा,
भारत की संस्कृतियों को हम सब,
अपनाए तो अच्छा होगा,
भारत माँ के गौरव का परचम,
लहराए तो अच्छा होगा.
परमपिता से यही आस है,
इस बरस किसी का दिल न दहले,
स्त्री को सम्मान मिले और,
ख़ामोशी मुस्कान में बदले,
कुछ पद्चिह्न छुटे हम सबके,
अड़िग पथिक बन हम सब चल लें,
स्वर्णिम युग का क्रन्दन हो और,
भारत विश्व गुरू में बदले,
हिन्दी के इस पुत्री 'शालिनी' को,
आशीर्वचन अब देना होगा,
नए वर्ष में संकल्पित होकर,
ऐसा ही कुछ करना होगा.
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अखिलेश सोनी, इंदौर
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गीत: स्वागत है नव वर्ष धरा पर...
नव वर्ष की प्रथम भोर
करती है अंतरमन विभोर
हो जीवन में उत्कर्ष
स्वागत है नव वर्ष धरा पर
स्वागत है नव वर्ष
प्रथम रश्मियाँ अपने संग
लायें आशा और उमंग
भरें जीवन में हर हर्ष
स्वागत है नव वर्ष धरा पर
स्वागत है नव वर्ष
फैले मानवता का धर्म
शिखर छू लें सब सत्कर्म
यही हो जीवन का निष्कर्ष
स्वागत है नव वर्ष धरा पर
स्वागत है नव वर्ष
- अखिलेश सोनी, इंदौर
परिचय: अखिलेश सोनी
जन्म तारीख : 17 अप्रैल 1973
जन्मस्थान : पिपरिया, ज़िला-होशंगाबाद (मध्यप्रदेश)
विधा : ग़ज़ल / गीत / कविता /
सम्प्रति : सॉफ्टवेर कंपनी में यूजर इंटरफ़ेस डिज़ाइनर
पारिवारिक परिचय:
माता : श्रीमती लक्ष्मी सोनी
पिता : श्री ओमप्रकाश सोनी (व्यंग्यकार / साहित्यकार / वरिष्ठ पत्रकार)
पत्नी : श्रीमती सपना सोनी
पुत्र : ओजस एवं तेजस
शिक्षा : उर्दू साहित्य से एम.ए (बरकतउल्लाह यूनिवर्सिटी, भोपाल)
भाषाज्ञान : हिंदी / अंग्रेजी / उर्दू
वर्तमान पता : 77 जगजीवनराम नगर, पाटनीपुरा चौराहे के पास, इंदौर-452001 (मध्यप्रदेश)
स्थायी पता : ओम प्रिंटिंग प्रेस, जैन मंदिर के पास, मंगलवार बाजार, पिपरिया-461775 ज़िला-होशंगाबाद (मध्यप्रदेश)
मोबाइल नम्बर : +91 9479517064
ई-मेल : akhileshgd@gmail.com
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-भरत कुमार "तरभ"
नयी सोच ,नयी उमंगें ।
नये सपने ,नयी राह
जिसमें हो सत्य।
जिसमें ना हो कड़वाहट की दरार।
जिससे ना टूटे रिश्तों की डोर।
न हो बुरी आदतें,न हो बुरे विचार।
जिससे मिले सीख अनेक को।
हो विचार मन में यह,जिससे
राह बने आसान।
जिससे होगा एक नया आगाज।
जिससे ना छूटे अपनों का साथ।
-भरत कुमार "तरभ"
सांथू,जालौर, राजस्थान
शालिनी जी की कविता दिल के यह बोल दिल को छू गये।
जवाब देंहटाएंलम्बे अर्से बीत चले हैं, इनसे कुछ सबक लेना होगा।