कहानी / भूखों की भूख हड़ताल / डॉ. श्रीमती तारा सिंह

SHARE:

भूतों का भूख हड़ताल पिता चरणदास के स्वर्ग सिधारने के बाद ,अकेला पड़ा कलुवा के मन और बुद्धि में महींनों तक यह संग्राम चलता रहा--- ’अब मुझे...

भूतों का भूख हड़ताल

पिता चरणदास के स्वर्ग सिधारने के बाद ,अकेला पड़ा कलुवा के मन और बुद्धि में महींनों तक यह संग्राम चलता रहा--- ’अब मुझे जीना चाहिये या नहीं, और अगर जीऊँ तो क्यों और किसके लिए ? जीने का कुछ तो मकसद होना चाहिये, तभी उसकी आँखों के आगे, बिस्तर पर बीमार पड़ी माँ ( झुनियाँ ) का चेहरा कौंध जाता और दूसरे ही पल तय कर लेता,कि मुझे जीना होगा’। अपने लिए नहीं, अपनी माँ के लिए और तुरंत वह डोरी और हँसिये को कमर में बाँधकर लकड़ी लाने जंगल की ओर रवाना हो जाता। मगर रास्ते भर अपने कोमल, पवित्र, मनोहर स्मृतियों को जागृत करने वाला, पिता के साथ बिताये पल को याद कर बिफ़र पड़ता ; सोंचता---’ जब पिताजी थे, तब हमारा घर पूजा की वेदी के साथ त्याग का बलिदान-स्थल बना हुआ था , आज वह मरुतुल्य हो गया। ममता की मंडप माँ तो है, मगर बिस्तर पर मरणासन्न होकर पड़ी हुई। ऐसे में मेरे लिए घर से विमुख होकर जीना पाप होगा ,और वह भी ऐसा पाप जिसका तीनों लोकों में क्षमा नहीं।’

कलुवा रास्ते भर सोचता और सोच-विचारकर बिलख पड़ता, फ़िर अपने दोनों हाथों, अपने गालों से होकर ढ़लक जा रहे आँसू हटा ऐसे देता, मानो सर्प डँस लिया हो। साथ चल रहे उसके दोस्त रामू ने जब देखा, कलुवा रो रहा है, और अपने ही अंतर्ध्वनि से व्याकुल भी हो रहा है, तब उसने ठहरकर कलुवा से कहा----क्या बात है कलुवा ! तुम रो क्यों रहे हो ?

कलुवा सिर झुकाये, व्यथा भरे वक्षस्थल को दबाये कुछ पल चुपचाप रामू की ओर देखता रहा, फ़िर बच्चों की तरह बिफ़र उठा, बोला----- ’जब से काल का विशृंखल पवन ,मेरे पिता को मुझसे दूर उड़ा ले गया, मैं खुद को अकेला महसूस करने लगा हूँ। मेरे लिए जीना मुश्किल हो गया है, मैं जीना नहीं चाहता। घर की निर्मम शून्यता, घर की दीवारों से टकराकर इतना शोर मचाती है, कि मैं रातों को सो नहीं पाता’।

रामू ने देखा, कलुवा अपनी मर्मांत पीड़ा की अभिव्यक्ति भी नहीं कर पा रहा है। ’विधाता यह कैसा न्याय है, जिसे लोग अपने प्राण से भी ज्यादा प्यार करते हैं, उसके साथ, तुम्हारी मर्जी के बगैर रह भी नहीं सकते’। उसने कलुवा को समझाते हुए कहा--- मैं जानता हूँ कलुवा, ऊपर वाले के विश्वासघात की ठोकरों ने तुमको विक्षिप्त बना दिया है , दुनिया से विमुख कर दिया है। लेकिन तुमको जीना होगा, अपने लिए नहीं, अपनी बीमार माँ के लिए। उस देवी के लिए, जिसने तुम्हें जन्म दिया, पाला, और इस लायक बनाया कि अब तुम उनकी देख-रेख कर सको। तुम्हारे पिता की आत्मा भी शायद यही चाहेगी। फ़िर गर्वपूर्वक बोला---- ऐसे तुम चाहो तो अपने पिता से मिल सकते हो।

कलवा, रामू की बात सुनकर उछल पड़ा, पूछा---- वो कैसे ?

रामू ----- रामधारी चाचा आज बता रहे थे कि दिल्ली में जंतर-मंतर पर कल भूतों की भूख हड़ताल है, इसलिए देश भर के सारे भूत वहाँ जमा हो रहे हैं।

कलुवा, अचम्भित हो बोला----- वह कैसे ? मेरी माँ का कहना है , जाने वाले लौटकर नहीं आते , चाहे कितना ही छाती पीट लो। फ़िर रामू को झुठलाते हुए कहा--- ऐसा नहीं हो सकता।

रामू---- तो क्या, रामधारी चाचा झूठ बोल रहे हैं ?

कलुवा------ नहीं, वे झूठ नहीं बोलते ; अगर उन्होंने कहा है, तो सच है।

रामू ----- तो एक काम करते हैं, आज जंगल से घर लौटने के बाद हमलोग दोनों आदमी, रामधारी चाचा के घर जाकर फ़िर से एक बार पूछ लेते हैं।

कलुवा------ हाँ यह ठीक रहेगा।

घर लौटकर कलुवा ने सबसे पहले अपनी माँ, झुनियाँ को अपने साथी रामू के कहे को बताया। बोला ---- माँ मुझे दिल्ली जाना होगा।

माँ ने पूछा--- दिल्ली, और वो भी तुम, किसलिए ?

कलुवा ने बताया --- माँ ! दिल्ली में जंतर-मंतर पर भूतों का जुलूस निकलने वाला है, उसमें आज तक के मरे जितने भी भूत हैं, सभी आयेंगे।

कलुवा की ऊटपटांग बातों को सुनकर झुनियाँ की आँखों से टपटप कर आँसू बहने लगा। सोचने लगी--- क्या मेरा बेटा, आपे में नहीं है ? किसने इसे इतना दारू पिला दिया कि यह अपना होश तक गंवा बैठा है, इसे सच-झूठ में भी अंतर नहीं दीख रहा।

माँ को रोता देख कलुवा डर गया, सोचने लगा------’ शायद मेरे पिता से मिलना,मेरी माँ को पसंद नहीं आया। फ़िर मन ही मन कहा---क्या इसलिए कि चालीस वर्षों तक इस घर में पिताजी की बात सर्वमान्य रही, उनके जाने के बाद स्वायत्त शासन का स्वभाव,इनमें जो आ गया है, पुन: उसके छिन जाने का डर हो गया।’

कलुवा, माँ की बातों का कुछ जवाब दिये बिना वहाँ से जाने लगा, तभी झुनियाँ ने उसका हाथ पकड़कर पास बिठा लिया और अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए कहा---- बेटा, जाने वाले कभी लौटकर नहीं आते। अगर ऐसा होता , तो आज तुम्हारे पिता के पिता और उनके भी पिता , सभी हमारे साथ होते, और तो और, कर्मयोगी कृष्ण और मर्यादा पुरुषोत्तम की मूर्तियाँ,मंदिरों में क्यों होते; वे तो साक्षात हमारे बीच होते। फ़िर दृढ़तापूर्वक बोली ----- बेटा ! राजा-रंक, फ़कीर , जो कोई भी एक बार यहाँ से गया, आज तक लौटकर नहीं आया। इसलिए मन को एकाग्र कर अपने जीवनोद्योग की बात सोचो, कि आगे कैसे कटेगा ? लेकिन कलुवा कब मानने वाले में से था, उस पर तो पिता का भूत सवार हो चुका था। उसने अपनी फ़टी- पुरानी अचकन पहनी और कंधे पर एक गमछा रखकर दिल्ली के लिए निकल गया। रामधारी चाचा, रामू तथा गाँव के भी लोग सभी साथ हो गये। सुबह आठ बजे की ट्रेन थी, सो नाश्ते का भी समय नहीं मिला। पानी की बूँद भी कंठ में नहीं डाला, पिता के बिना उसका जीवन निस्सार, शुष्क और सूना जान पड़ता था। वह माँ, झुनियाँ के पेट भरने के लिए दिन-रात काम करता था। काम करते समय उसे अपनी सजीवता का लेशमात्र भी ग्यान नहीं होता था। पिता का स्वर्गवास होना, उसका भी देहत्याग करने के बराबर हो गया था। वह दिन भर भूखा, थका-मांदा, झपकियाँ लेता, दूसरी सुबह दिल्ली पहुँचा, तो देखा----दिल्ली इतना सहनशील, इतना दीन और दुर्बल नहीं है, जितना कि हमारा गाँव है। यहाँ के लोगों में ओछेपन, अविचार और अशिष्टता की मात्रा वहाँ से कहीं अधिक है। बाहर से आये हुए मेहमानों को रोटी के लिए तो दूर, कोई ठहरने तक का, पैसे बगैर जगह नहीं देता। लेकिन हमारा गाँव ऐसा नहीं है , हम अतिथि—सत्कार यथाशक्ति करने से कभी नहीं घबड़ाते।

कुछ दूर चलने के बाद सहसा उसे अपनी दाहिनी ओर बाग में लोगों की भीड़ दिखाई दी। उसे देखते ही उसके पैरों में नई शक्ति का संचार हो गया , धमनियों में नया रक्त दौड़ने लगा। वह हिरण की तरह उस ओर दौड़ा, उसे लगा, उसके पिता और उसके बीच ,बस एक कदम का फ़ासला है।

उसने वहाँ पहुँचकर देखा, वहाँ खड़े सभी लोगों की छाती पर एक तख्ती लटक रही है, लिखा है---- व्यक्ति का नाम और मरने की तारीख । उसने बारी-बारी से सभी भूतों की तख्तियों को पढ़ा, लेकिन उसके पिता उसे नहीं मिले। वह चिंतित , परेशान हो, एक भूत से पूछा---- भूत चाचा ! आप कहाँ से हैं ?

भूत ने बताया---- मैं उत्तर प्रदेश से हूँ, मगर तुम तो जिंदा आदमी हो, तुम यहाँ क्या कर रहे हो ? ये तो भूतों का जुलूस है।

उसने दूसरे भूत से पूछा---- भैया आप कहाँ से हैं ?

भूत ने बताया---मैं राजस्थान से हूँ।

साहसकर कलुवा ने फ़िर पूछा--- आपलोग यहाँ क्यों आये है ?

भूत ने कहा--- हमलोग भूख हड़ताल पर हैं।

कलुवा हँसा और बोला---- क्या बात करते हैं आप, भूत भी खाना खाता है ?

भूत ने कहा----- हाँ, क्यों नहीं, देखो मेरे भी तुम्हारी तरह पेट है, पैर, हाथ हैं. तो फ़िर खाना क्यों नहीं खाऊँ ?

तभी एक बूढ़ा भूत आया। उसने कलुआ को समझाते हुए कहा--- बेटा ! हम भूत जरूर हैं, लेकिन मरे हुए नहीं, हम जिंदा भूत हैं।

कलुवा थर्राते हुए बोला--- जिंदा भूत !

बूढ़ा भूत मुस्कुराया और बोला ---- बेटा ! दर असल हमलोग मरे नहीं, हममें कुछ को सरकार ने सरकारी कागज पर मार दिया और हमारा बृद्धा-पेंशन , भत्ता सब बंद कर दिया ; तो कुछ को हमारे रिश्तेदारों ने मरा घोषित कर , हमारा जमीन-घर हड़प लिये। अब हमलोग जिंदा होने की सबूत देने खुद को यहाँ लेकर आये हैं , लेकिन कोई मानने के लिए तैयार नहीं कि हम जिंदे हैं। बोलो---- अब हम क्या करें ? हमारे लिए सचमुच मरने के सिवा अब कोई और रास्ता नहीं है, इसलिए हमलोग यहाँ भूख हड़ताल पर हैं। हो सकता है, हमारी सरकार, जो कि यहाँ से कुछ ही दूरी पर है, फ़िर से हमें जिंदा मान ले, लेकिन तुम किस लिए आये हो ?

कलुवा ने कहा---- अपने पिता को खोजने !

भूत ने पूछा--- तुम्हारे पिता भी हम सब की तरह , जिंदा रहकर भी मर चुके हैं ?

कलुवा, आँख का आँसू पोछते हुए कहा----नहीं मेरे पिता सचमुच के मर चुके हैं, मैंने खुद अपनी हाथों उनकी मुखाग्नि की है।

भूत, कलुवा की पीठ पर ममता का हाथ फ़ेरते हुए कहा---- बेटा ! जो एक बार दुनिया से विदा हो जाता है , वह लौटकर कभी नहीं आता। इसलिए , तुम अपने घर लौट जाओ।

कलुवा ने बूढ़े भूत का चरण छुआ और कहा---- मेरी माँ का भी यही कहना है, कि जाने वाले लौटकर नहीं आते।

------------------------

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी / भूखों की भूख हड़ताल / डॉ. श्रीमती तारा सिंह
कहानी / भूखों की भूख हड़ताल / डॉ. श्रीमती तारा सिंह
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjY1xxGco3_Nk_9CuCnbq2Wdmk8A_yRswe0stvgMgho8NDiPeZssyzVlZi8ZFhHb11ZiwoqE5iLiVqWFdIvmDanl0nHWSGlG6wuQxcxiIFyW8kM1-jbVS-6Wcy3ztkfo1VGHv4l/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjY1xxGco3_Nk_9CuCnbq2Wdmk8A_yRswe0stvgMgho8NDiPeZssyzVlZi8ZFhHb11ZiwoqE5iLiVqWFdIvmDanl0nHWSGlG6wuQxcxiIFyW8kM1-jbVS-6Wcy3ztkfo1VGHv4l/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/12/blog-post_86.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/12/blog-post_86.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content