सामान्यत: शरीर का अर्थ देह से है, किसी भी वस्तु या व्यक्ति की कद-काठी से है, उसकी काया से है | व्यक्ति के भौतिक संस्थान से है | अस्थि,मांस, ...
सामान्यत: शरीर का अर्थ देह से है, किसी भी वस्तु या व्यक्ति की कद-काठी से है, उसकी काया से है | व्यक्ति के भौतिक संस्थान से है | अस्थि,मांस, मंजा आदि, से निर्मित प्राणी की काया है | शरीर एक ऐसा सावयव संस्थान है जिसके कई अंग होते हैं जो एक दूसरे से आंगिक (आर्गेनिक) रूप से जुड़े होते है | शरीर सम्पूर्ण अंगों का एक समुच्चय है | शरीरधारी प्राणी जलचर, नभचर या स्थलचर होते हैं |
किसी भी शरीर की एक सबसे बड़ी खूबी यह है की समय के साथ क्षीण होता जाता है | शरीर मूलत: एक संस्कृत का शब्द है जो वस्तुत: ‘क्षीण’ से ही बना है | जो क्षीण हो जाए, वह शरीर है | शरीर को कितना ही सजाओ, चन्दन लगाओ, फूलमालाएं पहनाओ, कितना ही चाहो कि वह चिरजीवी हो, लेकिन एक न एक दिन वह मरे बिना नहीं रहता | कभी स्वस्थ रहते हुए ही चल बसेगा, तो कभी रोगी बनाकर मर जाएगा | क्षीर्ण तो उसे होना ही है |
भारतीय मनीषा ने शरीर के बारे में काफी सोच-विचार किया है | यों तो शरीर के साथ स्थूलता जुडी हुई है लेकिन “सूक्ष्म शरीर” और /या “लिंग शरीर” की भी कल्पना की गई है | स्थूल-शरीर यदि नश्वर और व्यक्त है, सूक्ष्म-शरीर अनश्वर, अव्यक्त है | भारतीय दर्शन बुद्धि, अहंकार,मन,ज्ञानेन्द्रियाँ, कर्मेन्द्रियाँ तथा तन्मात्राओं को भी शरीर ही मानता है लेकिन ये स्थूल शरीर न होकर “सूक्ष्म शरीर” कहे गए हैं |
दर्शनशास्त्र में शरीर और आत्मा के सम्बन्ध में बहुत माथापच्ची की गई है | इन्हें प्राय: दो अलग अलग विरोधी तत्व माना है | आत्मा शरीर (matter/body) नहीं हो सकती और शरीर आत्मा (soul/ mind ) नहीं है | इस बात को अंग्रेज़ी में बहुत ही विनोदपूर्वक कुछ इस तरह कहा गया है –
What is mind? Doesn’t matter. कृपया What is matter? Never mind.
हिन्दी/ संस्कृत भाषा में शरीर से अनेक शब्द भी बने हैं | जो देहधारी है, वह ‘शरीरी’ है | ‘शारीरिक’ वह है जिसके पास काया या जिस्म है | ‘अशरीरी’ अपांग, या अकाय है | शरीर से जुड़े कितने ही शब्दों का हम प्रयोग करते हैं | पूरी की पूरी एक ‘शरीर-चर्या’ है ; हमारी ‘शरीर घड़ी’ बहुत ही सुव्यवस्थित है | हम उसको अनदेखा कर दें यह अलग बात है | हमारे शरीर के अनेक द्वार बताए गए हैं | इन्हें ‘शरीर रन्ध्र’ कहा गया है | २ आँखें, २कान, २ नाक, १-१ मुख, गुदा, और जननेंद्रिय. कुल ९ –‘शरीर-द्वार’ बताए गए हैं | आप भले ही शब्दों में कहें न, लेकिन आपकी ‘शरीर-भंगिमा’ बहुत कुछ कह जाती है | हमारी जीवन-यात्रा ‘शरीर यात्रा’ भी कहलाती है | हम सब कोई न कोई आजीविका अपनाते ही हैं | इसी आजीविका को ‘शरीर-वृत्ति’ कहा गया है |
हिन्दुओं में जन्म से लेकर मृत्यु तक कई संस्कारों का विधान है | इन संस्कारों को ‘शरीर संस्कार’ भी कहते हैं | ‘शरीर संज्ञा’ व्यक्ति की चेतना है | स्नान-ध्यान से ‘शरीर शुद्धि’ होती है | इसी तरह ‘शरीर सौष्ठव’ ‘शरीर प्रभा’ ‘शरीर शास्त्र’, शरीर- विज्ञान’ ‘शरीर दंड’ ‘शरीर ग्रहण’ ‘शरीर त्याग’ आदि, शब्द भी हैं |
उर्दू भाषा और हिन्दी में कोई ख़ास अंतर नहीं है | बस, उर्दू में अरबी और फारसी के कुछ शब्द अपना लिए गए है जो कमोबेश हिन्दी में भी आ गए हैं | शब्द,’शरीर’ अरबीभाषा का एक ऐसा ही लव्ज़ है | अरबी में इसको काया या देह के लिए इस्तेमाल न कर (काया के लिए वहां जिस्म शब्द है जो हिन्दी में भी इस्तेमाल किया जाने लगा है) दुष्ट, नटखट, पाजी,के अर्थ में प्रयोग करते है | इस ‘शरीर’ से ही ‘शरारत’ बना है | शरारत चंचलता है, छेड़छाड़ है, दुर्जनता है | शरारती वह है जो नटखट हो, ऊधमी हो | कहा जा सकता है, जहां शरीर है, वहां शरारतें भी हैं | एक हाइकु देखिए –
“यह शरीर / करता शरारतें / बाज़ न आता !”
इस हाइकु में संस्कृत और अरबी दोनों भाषाओं में शरीर के जो अलग अलग अर्थ हैं,एक साथ देखने को मिलते हैं | इससे पता चलता है कि किस तरह हिन्दी ने संस्कृत और हिन्दी दोनों के ‘शरीर’ को अपना लिया है !!
-डा. सुरेन्द्र वर्मा (९६२१२२२७७८) १०, एच आई जी /१, सर्कुलर रोड, इलाहाबाद – २११००१
किसी भी शरीर की एक सबसे बड़ी खूबी यह है की समय के साथ क्षीण होता जाता है | शरीर मूलत: एक संस्कृत का शब्द है जो वस्तुत: ‘क्षीण’ से ही बना है | जो क्षीण हो जाए, वह शरीर है | शरीर को कितना ही सजाओ, चन्दन लगाओ, फूलमालाएं पहनाओ, कितना ही चाहो कि वह चिरजीवी हो, लेकिन एक न एक दिन वह मरे बिना नहीं रहता | कभी स्वस्थ रहते हुए ही चल बसेगा, तो कभी रोगी बनाकर मर जाएगा | क्षीर्ण तो उसे होना ही है |
भारतीय मनीषा ने शरीर के बारे में काफी सोच-विचार किया है | यों तो शरीर के साथ स्थूलता जुडी हुई है लेकिन “सूक्ष्म शरीर” और /या “लिंग शरीर” की भी कल्पना की गई है | स्थूल-शरीर यदि नश्वर और व्यक्त है, सूक्ष्म-शरीर अनश्वर, अव्यक्त है | भारतीय दर्शन बुद्धि, अहंकार,मन,ज्ञानेन्द्रियाँ, कर्मेन्द्रियाँ तथा तन्मात्राओं को भी शरीर ही मानता है लेकिन ये स्थूल शरीर न होकर “सूक्ष्म शरीर” कहे गए हैं |
दर्शनशास्त्र में शरीर और आत्मा के सम्बन्ध में बहुत माथापच्ची की गई है | इन्हें प्राय: दो अलग अलग विरोधी तत्व माना है | आत्मा शरीर (matter/body) नहीं हो सकती और शरीर आत्मा (soul/ mind ) नहीं है | इस बात को अंग्रेज़ी में बहुत ही विनोदपूर्वक कुछ इस तरह कहा गया है –
What is mind? Doesn’t matter. कृपया What is matter? Never mind.
हिन्दी/ संस्कृत भाषा में शरीर से अनेक शब्द भी बने हैं | जो देहधारी है, वह ‘शरीरी’ है | ‘शारीरिक’ वह है जिसके पास काया या जिस्म है | ‘अशरीरी’ अपांग, या अकाय है | शरीर से जुड़े कितने ही शब्दों का हम प्रयोग करते हैं | पूरी की पूरी एक ‘शरीर-चर्या’ है ; हमारी ‘शरीर घड़ी’ बहुत ही सुव्यवस्थित है | हम उसको अनदेखा कर दें यह अलग बात है | हमारे शरीर के अनेक द्वार बताए गए हैं | इन्हें ‘शरीर रन्ध्र’ कहा गया है | २ आँखें, २कान, २ नाक, १-१ मुख, गुदा, और जननेंद्रिय. कुल ९ –‘शरीर-द्वार’ बताए गए हैं | आप भले ही शब्दों में कहें न, लेकिन आपकी ‘शरीर-भंगिमा’ बहुत कुछ कह जाती है | हमारी जीवन-यात्रा ‘शरीर यात्रा’ भी कहलाती है | हम सब कोई न कोई आजीविका अपनाते ही हैं | इसी आजीविका को ‘शरीर-वृत्ति’ कहा गया है |
हिन्दुओं में जन्म से लेकर मृत्यु तक कई संस्कारों का विधान है | इन संस्कारों को ‘शरीर संस्कार’ भी कहते हैं | ‘शरीर संज्ञा’ व्यक्ति की चेतना है | स्नान-ध्यान से ‘शरीर शुद्धि’ होती है | इसी तरह ‘शरीर सौष्ठव’ ‘शरीर प्रभा’ ‘शरीर शास्त्र’, शरीर- विज्ञान’ ‘शरीर दंड’ ‘शरीर ग्रहण’ ‘शरीर त्याग’ आदि, शब्द भी हैं |
उर्दू भाषा और हिन्दी में कोई ख़ास अंतर नहीं है | बस, उर्दू में अरबी और फारसी के कुछ शब्द अपना लिए गए है जो कमोबेश हिन्दी में भी आ गए हैं | शब्द,’शरीर’ अरबीभाषा का एक ऐसा ही लव्ज़ है | अरबी में इसको काया या देह के लिए इस्तेमाल न कर (काया के लिए वहां जिस्म शब्द है जो हिन्दी में भी इस्तेमाल किया जाने लगा है) दुष्ट, नटखट, पाजी,के अर्थ में प्रयोग करते है | इस ‘शरीर’ से ही ‘शरारत’ बना है | शरारत चंचलता है, छेड़छाड़ है, दुर्जनता है | शरारती वह है जो नटखट हो, ऊधमी हो | कहा जा सकता है, जहां शरीर है, वहां शरारतें भी हैं | एक हाइकु देखिए –
“यह शरीर / करता शरारतें / बाज़ न आता !”
इस हाइकु में संस्कृत और अरबी दोनों भाषाओं में शरीर के जो अलग अलग अर्थ हैं,एक साथ देखने को मिलते हैं | इससे पता चलता है कि किस तरह हिन्दी ने संस्कृत और हिन्दी दोनों के ‘शरीर’ को अपना लिया है !!
-डा. सुरेन्द्र वर्मा (९६२१२२२७७८) १०, एच आई जी /१, सर्कुलर रोड, इलाहाबाद – २११००१
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-12-2016) को गांवों की बात कौन करेगा" (चर्चा अंक-2566) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-12-2016) को गांवों की बात कौन करेगा" (चर्चा अंक-2566) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'