लखनऊ महिला महाविद्यालय की शिक्षाशास्त्र की विभागाध्यक्ष दिव्यांग रानी जेस्वानी कहती हैं कि अगर कभी अपनी समस्या को बाहर बताओ तो लोग हमे...
लखनऊ महिला महाविद्यालय की शिक्षाशास्त्र की विभागाध्यक्ष दिव्यांग रानी जेस्वानी कहती हैं कि अगर कभी अपनी समस्या को बाहर बताओ तो लोग हमें जिंदगी से हारा हुआ समझने लगते हैं, जोकि मेरे लिए नाकाबिले बर्दाश्त है। वह आगे बताती हैं कि, हम कहीं न कहीं रोज गिरते हैं यह सच है, लेकिन हम रोज जितनी शिद्दत से बिना पिछली चोट की परवाह किये खडे़ होते हैं, वो भी उतना ही सच है। वस्तुतः अधिकांश दिव्यांग प्रतिदिन इसी स्वाभिमानी सोच के साथ जीते हैं। फिर भी आज के भागा-दौड़ी वाले परिवेश में जनता जनार्दन को दिव्यांग जनों के प्रति अपना नज़रिया बदलने की जरूरत है। जाहिर सी बात है यदि विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर मिलें तथा प्रभावी पुनर्वास की सुविधाएं मिलें तो वे भी बेहतर गुणवत्ता पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 2 करोड़ 68 लाख 10 हजार 557 व्यक्ति विकलांग थे जोकि कुल जनसंख्या का 2.21 फीसदी बैठता है। जबकि विश्व की कुल आबादी के 15 प्रतिशत फीसदी लोग विकलांग है। भारत में 75 प्रतिशत फीसदी विकलांग व्यक्ति ग्रामीण इलाकों में रहते हैं तथा 49 प्रतिशत विकलांग साक्षर है और 34 प्रतिशत व्यक्ति रोजगार प्राप्त हैं। वहीं यदि हिमाचल प्रदेश के सन्दर्भ में देखें तो वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक चुनौती प्राप्त लोगों की कुल संख्या 1 लाख 55 हजार 950 थी और अनुमान है कि 2011 की जनगणना में इनकी संख्या में 10 प्रतिशत की बढ़ौतरी हुई है आज की स्थिती के अनुसार यह आंकड़ा लगभग 1 लाख 70 हजार के आसपास ही बैठता होगा। विकलांग व्यक्तियों में दृष्टिबाधित, श्रवण बाधित, वाक्बाधित, अस्थि विकलांग और मानसिक रूप दिव्यांगजनों के समग्र विकास के लिए सात राष्ट्रीय संस्थान हैं जो कि नई दिल्ली, देहरादून, कोलकात्ता, सिकंदराबाद, मुम्बई, कटक और चेन्नई में स्थापित हैं।
हिमाचल प्रदेश में विकलांग जनों के बौद्धिक और शारीरिक क्षमताओं के दृष्टिगत उनके कौशल विकास के लिए सरकारी, गैर सरकारी संस्थानों के माध्यम से प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करके उन्हें स्वयं रोजगार के अवसर प्रदान करने की कोशिशें की जा रही हैं। जिला विकलांगता पुनर्वास केन्द्रों द्वारा चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के अलावा विकलांगता का आंकलन करवा कर उपयुक्त उपकरण भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में विकलांग जनों के लिए दीन दयाल पुनर्वास योजना के द्वारा सामाजिक न्याय दिलाने के लिए और समान अवसर उपलब्ध करवाने हेतु उनकी शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा उन्हें पुनर्वासित करने के लिए स्वयं सहायता समूह संस्थानों को विभिन्न योजनाएं चलाने के लिए प्रेरित करने का महत्वपूर्ण कार्य अपने हाथ में लिया है। इसके लिए सहकारी पंजीकरण अधिनियम 1860 के अंतर्गत पंजीकृत संस्थाओं, चैरिटेबल ट्रस्टों, भारतीय रेडक्रास शाखाओं को अनुदान प्रदान किया जाता है। इतना ही नहीं 40 प्रतिशत या इसके अधिक विकलांगता से ग्रस्त 18 से 45 आयुवर्ग के व्यक्तियों जिनकी परिवारिक वार्षिक आय 1 लाख से कम हो को विभिन्न कोर्सों में आई.टी.आई के माध्यम से निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान 1000 रूपये की प्रतिमाह वित्तीय सहायता भी दी जाती है। विकलांगों को स्वरोजगार सहायता हेतु हिमाचल प्रदेश अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम के द्वारा आिर्थक अनुदान भी दिया जाता है।
यदि एन.जी.ओ. अथवा कार्पोरेट स्तर पर दिव्यांगजनों की भलाई के लिए किये जा रहे कार्यों की पड़ताल करें तो रविशंकर लेमन ट्री होटल समूह द्वारा देशभर में फैले अपने 27 होटलों में 400 विकलांग कर्मचारियों को नौकरी दी गई है। के.एफ.सी. इंडिया ने भी इस दिशा में पहल की है। शिमला की उमंग फांउडेशन के सहयोग से 22 दृष्टिहीन कालेज जाने वाले दिव्यांगजनों को विशेष आधुनिक उपकरण दिये गए हैं तो इसी संस्था के सहयोग से राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला पोर्टमोर, शिमला में 19 छात्राओं जिनमें 14 मूकबधिर और 5 दृष्टिहीन हैं को आर्थिक सहयोग से शिक्षित किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार द्वारा विकलांगों के लिए राष्ट्रीय नीति है जिसके तहत विकलांगता की रोकथाम, पुनर्वास के उपाय करना, विकलांगता प्रमाण पत्र जारी करना और एन.जी.ओ. को प्रोत्साहन देना इत्यादि शामिल है।
विकलांग जन समाज में अपने उत्तम स्वास्थ्य, अधिकारों, रोजगार एवं आत्मसम्मान के साथ स्वाभिमान पूर्वक सिर ऊंचा करके जियें इस उद्देश्य से सन् 1992 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रत्येक वर्ष 3 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकलांग व्यक्तियों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने की शुरूआत हुई थी। विकलांग व्यक्तियों के लिए समाज में नियम और नियामकों को ठीक से लागू करने के लिए प्रत्येक वर्ष एक नई थीम अपनाई जाती है। इस वर्ष की थीम है “भविष्य जैसा हम चाहते हैं“ को प्राप्त करने के लिए 17 लक्ष्य। विश्व विकलांग दिवस मनाने का महत्वपूर्ण लक्ष्य विकलांगजनों के अक्षमता के मुद्दे की ओर लोगों में जागरूकता और समझ को बढ़ाना है तो वहीं समाज में उनके आत्मसम्मान, लोक कल्याण और सुरक्षा प्राप्ति के लिए विकलांगजनों की सहायता करना भी है। आज भी हमारे समाज में ज्यादातर लोग ये भी नहीं जानते हैं कि उनके घर के आसपास समाज में कितने लोग विकलांग हैं। समाज में उन्हे बराबरी का अधिकार मिल रहा है या नहीं। विकलांगजन विश्व की सबसे बडी अल्पसंख्यक आबादी में आते हैं इसलिए यह समय की मांग है कि हम उन्हें बराबरी के आर्थिक साझेदार के रूप में शामिल करें और उन्हें मुस्कराने का मौका दें। भारत में 2 फरवरी 1996 से लागू विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम-1995 का प्रावधान किया गया है। ताकि विकलांग व्यक्तियों के लिए प्रोत्साहन के अंतर्गत शिक्षा, रोजगार और व्यावसायिक प्रशिक्षण, बाधाओं से मुक्त वातावरण का निर्माण और विकलांगों के लिए पुनर्वास सेवाओं का प्रावधान और बेरोजगारी भत्त्ो देने जैसे आिर्थक सामाजिक सुरक्षात्मक उपाय शामिल हैं। सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र की हर स्तर की नौकरियों में विकलांगों के लिए तीन प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान भी है। तथापि अकेले हिमाचल प्रदेश में ही नौकरियों में दिव्यांगों की 155 सीटें खाली पड़ी हैं। आशा है कि केन्द्र एवं राज्य सरकारें दिव्यागों के प्रति अपने संकल्प को प्रदर्शित करेंगी और उन्हें समग्रता में लागू भी करेंगी तो वहीं आम भारतीय जनमानस भी खुलेमन से ऐसे दिव्यांगों को हेयदृष्टि अथवा दया की दृष्टि से न देखकर उन्हें समाज का उपयोगी अंग मानते हुए उनका उचित रीति-नीति से मान-सम्मान और सत्कार करेगा।
अनुज कुमार आचार्य
बैजनाथ (हि.प्र.)
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