चरणामृत एवं पंचामृत क्या है? डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता ‘मानस शिरोमणि’ चरणामृत हमारे पुराणों में कहा गया है कि -‘‘जल तब तक जल ह...
चरणामृत एवं पंचामृत क्या है?
डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता
‘मानस शिरोमणि’
चरणामृत
हमारे पुराणों में कहा गया है कि -‘‘जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता है तथा जैसे ही भगवान के चरणों से लगा या स्पर्ष हुआ तब वह अमृत रूप होकर ही चरणामृत बन जाता है।’’ चरणामृत के सम्बन्ध में वामन पुराण में एक प्रसिद्ध कथा है-
जब विष्णु भगवान का वामन अवतार हुआ और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गये तब उन्होंने मात्र तीन पग में तीन लोक नाप लिए। जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे में ऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्मलोक में उनका चरण गया तो ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल में से जल लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने ही कमण्डल में सुरक्षित रख लिया। वह चरणामृत ही हमारी पवित्र गंगाजी बन गई जो आज भी सारे संसार के पापों को धो रही है। जब हम बांके बिहारीजी की आरती करते हैं तब गाते हैं-
चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने सारी दुनिया तारी
प्रभु के चरणामृत का केवट का उदाहरण सर्वश्रेष्ठ है-
दोहा- पदपखारि जलु पान करि आपु सहित परिवार।
पितर पारु करि प्रभुहि पुनि मुदित गयउ लेई पार॥
-श्रीरामचरितमानस अयो./दो 101
केवट ने श्रीराम के चरणों को धोकर और सारे परिवार सहित स्वयं उस जल(चरणामृत-चरणोदक) को पीकर पहले उस महान पुण्य के द्वारा अपने पितरों को भवसागर से पार कर फिर आनन्दपूर्वक प्रभु श्रीरामचन्द्रजी को गंगाजी के पार ले गया।
हम मंदिर में जाते हैं तब पंडितजी हमें चरणामृत देते हैं। हमने इसकी महिमा और बनाने की प्रक्रिया को कभी भी विशेष रूप से ध्यान नहीं दिया। शास्त्रों में वर्णित है कि चरणामृत आखिर है क्या?
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णो पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते॥
इसका अर्थ है कि भगवान विष्णु के चरणों का अमृतरूपी जल सभी तरह के पापों का नाश करने वाला है। यह औषधि के समान है, जो चरणामृत का सेवन करता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता है।
श्रीरामचरित्मानस में भी चरणामृत का वर्णन किया गया है। यथा-
चौ. एक बार बसिष्ट मुनि आए। जहाँ राम सुखधाम सुहाए॥
अति आदर रघुनायक कीन्हा। पद पखारि पादोदक लीन्हा॥
-श्रीरामचरितमानस उत्तर काण्ड. 47.1
एक बार मुनि वसिष्ठजी वहाँ आये जहाँ सुन्दर सुख के धाम श्रीरामजी थे। श्री रघुनाथजी ने उनका बहुत ही आदर सत्कार किया और उनके चरण धोकर चरणामृत लिया।
चरणामृत श्रद्धापूर्वक हमेशा दाएँ हाथ में लेना चाहिये तथा मन को शांत कर ग्रहण करना चाहिये। चरणामृत ग्रहण करने के पश्चात् कभी भी उसके बाद हाथ से सिर को पोछना नहीं चाहिये। इससे सकारात्मकता के स्थान पर नकारात्मकता की वृद्धि होती है। चरणामृत पीकर जीवन में शुभकार्य करने से निश्चित सफलता प्राप्त होती है।
चरणामृत का सिर्फ धार्मिक ही नहीं अपितु चिकित्सकीय महत्व भी है। आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है, जो उसमें रखे जल या चरणामृत में आ जाती है। तुलसीपत्र इसमें डालने की परम्परा है, जो कि रोगनाशक क्षमता उत्पन्न करता है। तुलसी चरणामृत मेधा-बुद्धि, स्मरण शक्ति वर्द्धक है।
पंचामृत
पंचामृत का अर्थ है ‘‘पांच अमृत’’। दूध, दही, घी, शहद एवं शकर को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है। देशी गाय का दूध, दही एवं घी पंचामृत के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक एवं अति पवित्र ही नहीं श्रेष्ठतम माना गया है। पंचामृत का सेवन करने से शरीर पुष्ट ही नहीं अपितु रोगमुक्त होता है। भगवान को पंचामृत से स्नान कराना चाहिये।
पंचामृत आत्मोन्नति एवं आध्यात्मिक जीवन की सफलता में सहायक है। पंचामृत हमारी आत्मोन्नति के पाँच प्रतीक है यथा-
1- दूध - देशी गाय का दूध पंचामृत का प्रथम भाग है। यह शुभ्रता-पवित्रता का प्रतीक है। अर्थात् हमारा जीवन दूध की तरह निष्कलंक होना चाहिये।
2- दही - दही का गुणा है कि यह दूसरों केा अपने जैसा बनाता है। स्निग्ध एवं शीतल दही चढ़ाने का तात्पर्य यही है कि पहले हम ईश्वर के समक्ष निष्कलंक हो तथा दूसरों को भी ऐसा बनाने का प्रयास करें।
3- घी- घी भी देशी गाय का होना चाहिये क्योंकि ये स्निग्धता और स्नेह का प्रतीक है। हम परिवार व समाज में स्नेहयुक्त सम्बन्ध बनाये।
4- शहद-शहद मीठा, शक्तिवर्द्धक होता है। इससे हमें शक्ति प्राप्त होती है। शक्तिशाली व्यक्ति ही समाज का कल्याण कर सकता है। शहद जीवन में मीठीवाणी बोलने की प्रेरणा देता है।
5- शकर-शकर मिठास का प्रतीक है। शकर जीवन में मिठास उत्पन्न करती है तथा राग-ईर्ष्या-द्वेष की कड़वाहट को समाप्त कर मधुर व्यवहार की प्रेरणा देती है।
ये ही पाँचगुण पंचामृत के है, जो कि हमारे जीवन को संसार में जन्म लेने उसके कर्त्तव्यों को पूरा करने की प्र्रेरणा देते है। (पंचामृत मात्र 3 चम्मच लेना स्वास्थ्यवर्धक माना गया है।)
दिनांकः डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता ‘मानस शिरोमणि’
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डॉ0 नरेन्द्रकुमार मेहता ‘‘मानसश्री से सम्मानित’’
डॉ0 नरेन्द्र कुमार मेहता को परम पूज्य ब्रह्मर्षि श्री श्री मौनीबाबा महाराज के जन्मोत्सव महापर्व पर मौन तीर्थ सेवार्थ फाउण्डेशन दशाश्वमेघ घाट (गंगा घाट) उज्जैन पर साहित्य साधना की निर्झरिणी से श्रीराम एवं श्रीहनुमान्जी की अल्पज्ञात कथाओं के प्रसंगों पर शोधपूर्ण लेखन का मानस वन्दन एवं मानस स्तम्भ मासिक पत्रिकाओं में सत्त लेखन पर वर्ष का श्रेष्ठ पुरस्कार ‘‘मानसश्री’’ से पूज्य संत श्री डॉ0 सुमनभाई जी एवं श्री हीरालालजी त्रिवेदी मुख्य सूचना आयुक्त (आई.ए.एस.) म.प्र. शासन ने सम्मान पत्र एवं फलक प्रदान कर सम्मानित किया ।
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