उसने इतिहास का अंग भंग कर दिया। उसने सम्राटों को नष्ट कर दिया और उनके साम्राज्यों का विनाश कर दिया। उसी के कारण नई-दिल्ली भारत की राजधानी...
उसने इतिहास का अंग भंग कर दिया। उसने सम्राटों को नष्ट कर दिया और उनके साम्राज्यों का विनाश कर दिया। उसी के कारण नई-दिल्ली भारत की राजधानी नहीं रही। उसी के कारण पडोसी देश के भौतिकविद और परमाणु बम जनक को लोग गालियाँ देते हैं। मोहम्मद नादिर खाँ हर तरफ घृणा के पात्र हैं। वास्तव में ऐसा –कुछ हुआ नहीं। वह एक् प्रोफेसर था क्वांटम फिजिक्स का और उसने अपने को ही कल्पना के सहारे अवास्तविक बना लिया।
हमने उन विक्षिप्त प्रोफेसरों के विषय में पढा है, जो अपनी प्रयोगशाला में दानव बना देते हैं जो उनकी लडकियों को लेकर भाग जाते हैं पर यहाँ पर उन वैज्ञानिक प्रोफेसरों की नहीं, मैं, विनोद कुमार सक्सेना की बात कर रहा हूँ, प्रो. विनोद कुमार सक्सेना की, जिसकी मित्रता बोल्टमान (आइडियल गैस-नियम के जनक), जैक चार्ल्स और एन्ड्रे एम्पियर आदि से थी।
हम सभी जानते हैं कि विद्युतीय-एम्पियर, एन्ड्रे एम्पियर के शोध के उपलक्ष्य में दिया गया नाम है। प्रसिद्ध आस्टरियन वैज्ञानिक लुडविग बोल्टमान अपने बाडी रेडिएशन सिद्धान्त के लिए विख्यात था और जैक एलेकजेन्डर चार्ल्स , गैस-बैलून के निर्माता थे-चार्ल्स-नियम के जनक थे। यह प्रोफेसर गण सामान्यजन को विक्षिप्त लगते थे, पर यह स्थिति उनके अपने शोध कार्यों में डूबे रहने के कारण होती थी। एक बार एम्पियर को पेरिस में लेक्चर देने जाना था-विज्ञान अकादमी में, ख्यातिनाम वैज्ञानिकों के सम्मुख अपने शोध कार्य के विषय में । यात्रा के समय घोडों जुती बग्घी में उन्हें विद्युत के विषय में एक नवीन विचार आया। अपनी नोट बुक को प्रयोगशाला में भूल जाने के कारण उन्होंने अपने विद्युत सम्बन्धी विचारों को, पेंसिल से बग्घी की दीवार पर लिखना शुरुकर दिया। वह कुछ इस प्रकार था dh= ip dl/r2 जिसमें p परपेन्डीकुलर दूरी है d से और यह इलीमेन्ट dl से सीधी रेखा में है। इस प्रकार dh=isindl/r2। यह समीकरण लाप्लाज नियम के रूप में जाना जाता है। वास्तव में, वैज्ञानिक लाप्लाज, उस मीटिंग में था ही नहीं।
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एकादमी पहुंच कर से भाषण कक्ष में जा कर बैठ गए। उन्हें अपने नवीन विद्युतीय विचारों से, अकादमी में एकत्र हुए वैज्ञानिकों को अवगत कराना था। उन्होंने 'नोट " के लिए जेब में हाथ डाला था, पर वह मिला .नहीं। एकाएक :एम्पियर-को- कुछ ख्याल आया-वे दौडते हुए भाषण कक्ष से बाहर आये। बग्घी थी नहीं। वे पेरिस की सडकों पर बग्घी वाले को ढूंढते रहे। वह मिला नहीं। वे बडबडाते रहे, लगता है इसी प्रकार फेरमेट की प्रसिद्ध गणितीय-थ्योरम भी गुम हो गई होगी।
तथ्य तो यह था कि फेरमेट उनके इस भाषण के दो सौ वर्ष पूर्व मर चुका था।
बोल्टमान कुछ कम विलक्षण नहीं था। आडिएल गैसों पर अपने भाषण के दौरान उसने कैल्कुलस को बजाय स्पष्ट करने के, छात्रों के सम्मुख, वह सारी गणनाएं मस्तिष्क में करके, उनका परिणाम छात्रों को बता देता था। छात्र नोट नहीं ले सकते थे-क्यों कि वे बोल्टमान के मस्तिष्क में हो रही गणनाओं को, लिख नहीं सकते थे।
एक दिन छात्रों ने अपनी समस्या प्रोफेसर बोल्टमान को बताई। भाषण देते हुए उन्होंने क्षात्रों को सम्बोधित किया 'यदि हम व्यॉयल के नियम को चार्ल्स के नियम से संयुक्त कर दे, तो हमें pv=po vo (i+at) प्राप्त होगा। इसी प्रकार sb=f(x) aX(a) उस अवस्था में pv=RT तथा sf (x,y,z) यह जैसे 2+2= 4, उसी प्रकार की सरल गणना है। इतना सब स्पष्ट करने के बाद प्रोफेसर बोल्टमन ने मात्र ब्लैक-बोर्ड पर दो थन दो, बराबर चार के! ही मात्र लिखा, श्रेष गणनाएं मस्तिष्क में ही करके, क्षात्रों को बोल दिया!
असहाय-छात्रगण हतप्रभ से बैठे रहे। आपने चार्ल्स के बारे में नहीं सुना होगा। वह एक अजब सनक के शिकार थे। वे बहुत अच्छे गणितज्ञ थे पर थे विचित्र सनकी । उन्हें पुरानी पाण्डुलिपियों को खोजने की सनक सवार हुयी। फिर क्या था पाण्डुलिपियों का एक जाल साज उन्हें मिल ही गया। उसने मुंह मांगे दामों पर जूलियस सीजर द्वारा लिखित पत्र को, प्रोफेसर चाल्स (गैसों के चार्ल्स-नियम के लिए विख्यात) को बेच दिया। इस तथाकथित पत्र को पेरिस के लूव्र संग्रहालय में रखवाने के प्रयास में, वे असफल हुए, परिणाम स्वरूप, पागल हो गये। इसीलिए मेधावी सत्य के तथ्य को, असमान्य रास्ते पर चल कर प्राप्त करते हैं, ऐसा कहा जाता है। कुछ ऐसा ही प्रोफेसर सक्सेना के साथ हुआ। वे अज्ञात विश्वविद्यालय में एप्लाइड- काम्प्लीकेशन के प्रोफेसर थे। यह कोई जानता नहीं था कि यह अज्ञात-विश्वविद्यालय, जिसके विभिन्न विभागों में दो सौ सनकी प्रोफेसर थे और करीब दो हजार, नाकारा और झक्की छात्र, वहाँ पर है। इस विश्वविद्यालय को लोग उस समय जान सके, जब इसके वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह की सतह पर पहले आदमी को (स्वाभाविक है-वह इस विश्वविद्यालय का प्रोफेसर था) उतारने में सफलता मिली और प्रोफेसर सक्सेना को अपने तीन मित्रों के साथ नोबेल-पुरस्कार दिया गया। यदि आपको कोई ऐसा छात्र मिले, जिससे आपके पूछने पर, यह उत्तर मिले कि मैं अ. वि. का छात्र हूँ तो आप तुरन्त समझ जायें कि वह अज्ञात विश्वविद्यालय का छात्र है।
एक दिन प्रोफेसर सक्सेना अपनी साइकिक कार को ड्राइव करते हुए फिजीकल-डिसकल्चर विभाग में छात्र छात्राओं को देखने नहीं, उनकी क्रीडा को देखने गये। प्रोफेसर को नग्नता में कोई रुचि नहीं थी, वे तो डिसकल्चर विभाग की ट्राफियों को देखने गये थे, जिसे झक्की छात्र छात्राओं ने जीता था। वास्तव में प्रोफेसर साहब-प्रोफेसर सक्सेना साहब, धक्का मुक्की और लालटेन जम्प के विजेता था। आज भी धक्का मुक्की की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में उनका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। वे इस खेल के महारथी थे।
ट्राफियों में कुछ उनके व्यक्ति प्रयास की सफलता को प्रदर्शित करती हुई थीं। उनके जीती गई ट्राफी भी वहाँ थी। यह देखकर प्रसन्न होकर अपनी साईकिक कार चलाते हुए, मस्ती में वे घर में धीरे से घुसे और दरवाजा बन्द कर किया। उनकी पत्नी श्वेता किसी के साथ आलिंगन बद्ध थी।
उस पुरुष की ऐप्रन में, माइकोपिपेट, पैम्फलेट, तथा केमिकल भरे थे। वे अपने प्रगाढ आलिंगन में इतने डूबे हुए थे, कि उन्हें दरवाजे का खुलना, खुलकर बन्द हो जाना, पता ही नहीं चला।
प्रोफेंसर सक्सेना लहीम-शहीम ६ फिट के व्यक्ति थे। चाहते तो एक पल में अपनी पत्नी और उसके प्रेमी को दबाकर मार डालते । आप समझ गए होंगे कि प्रोफेसर साहब की पत्नी मुश्किल से पाँच फिट की थीं तथा उनका प्रेमी पाँच फीट दो इंच लम्बा था। पर प्रोफेसर सक्सेना जीनियस थे। वे क्रोध में भरे हुए, हुँकारते हुए, जैसे कुकर से भाप निकलते समय आवाज होती है, अपनी प्रयोग शाला पहुँचे। उन्होंने एक ड्राअर खोली। उस पर लिखा था....आमाशय। उन्होंने उसमें से एक बधनखा निकाला और अगले ५ मिनट में उन्होंने एक टाइम मशीन बनी डाली। वे अतिमेघावी जो ठहरे। एक सेकेण्ड के बाद उनकी आवाज गूँजी । चलो....मशीन..टाइम मशीन चल पड़ी । प्रोफेसर सक्सेना ने एक डायल को सेट किया और टाइम मशीन को स्टार्ट कर दिया।
उनकी मशीन घने जंगल में बनी एक बडी कुटिया के समीप उतरी। डायल दिखा रहा या समय ११२६ ईसा पूर्व का समय। एक वृद्ध ऋषि जमीन पर बैठा, बालू पर बने, कुछ ज्यामितीय प्रमेयों के समीकरणों पर चिन्तन कर रहा था।
मशीन की आवाज सुनकर उनका ध्यान भंग हो गया।
प्रोफेसर सक्सेना ने उन्हें प्रणाम किया और कहने लगे?"
आचार्य बोधायन आपकी प्रमेय-
"दीर्घ चतुरस स्याक्ष्णया रज्जु: पार्श्वमानी, तिर्यकमानी यप्रृथवयत्पथग्भूते कुरुतस्त दुभंय करोति।' यूनानी पैथागोरस के नाम से जानी जाती है।'
'यह कैसे कह सकते हो तुम।
'आचार्य यह सत्य है।'
''क्या करना चाहिए, इसे रोकने के लिए?"
'आचार्य आप चिन्तन करें, मैं इसका उपाय कर दूँगा।' कहते हुए प्रोफेसर सक्सेना ने अपनी टाइम-मशीन को स्टार्ट कर दिया। वे दूसरे क्षण अपने कमरे में थे और उनकी पत्नी उसी प्रेमी के अंक पाश में पहले की तरह झूल रही थी। प्रोफेसर सक्सेना को ख्याल आया कि वे तो आचार्य बोधायन से यह पूछना भूल गए कि उनकी पत्नी, किसकी पुत्री है? उन्हें अपनी पत्नी की डी.एन.॰ए॰एनालिसिस का स्मरण था-उसमें यूनानी रक्त था, उसकी आंखें गहरी नीली थीं और शरीर पूर्ण रूपेण श्वेत।
यह यादकर वे टाइम मशीन पर सवार हुए और जा पहुँचे पैथागोरस के पास ऐथेंस में। वह एक लकङी के तख्ते पर कुछ लिख रहा था। प्रोफेसर सक्सेना ने कहा 'पैथागोरस! मेरी पत्नी तेरी कौन है?" पैथागोरस ने उन्हें देखा और बोला 'कौन हो तुम?" '
मैं प्रोफेसर सक्सेना हूँ।'
“हूँ”
'क्या तुम शक हो?"
'नहीं मैं भारतीय हूँ।'
आश्चर्य | तो तुम अवश्य शकों के-मध्य एशिया के वासी शकों के वंशज होगे।"
'बेकार की बातें मत करो, बताओ मेरी पत्नी तुम्हारी कौन है?
"मेरी तो वह कुछ नहीं है, पर हो सकता है, वह सेल्यूकस की पुत्री की लड्की.....पाइथागोरस का उत्तर था। ''ओह! कहाँ मिलेगा वह?" प्रोफेसर सक्सेना ने पूछा।
''वह काबुल में गधे पर बैठा हुआ मिलेगा" कह कर पाइथागोरस ने सक्सेना को जाने का संकेत दिया। काबुल की घाटी में टाइम मशीन पर बैठे प्रोफेसर सक्सेना घाटी में घूमते हर गधे पर बैठे आदमी को ध्यान से देख रहे थे। एकाएक उन्हें एक आदमी दिखा जो गधे पर बैठा पक लम्बा भाला लिए जा रहा था। टाइम मशीन ठीक गधे के सामने उतरी। ''सेल्यूकस.....सेल्यूकस'" की आवाज सुनकर वह आदमी और उसका गधा दोनों रुक गए। प्रोफेसर सक्सेना ने कहा ''तुम यह बताओ कि मेरी पत्नी क्या तुम्हारे वहाँ की है?"
''यह सुनकर सेल्यूकस जोर से हँसा और बोला उसका नाम क्या है?'
''श्वेता' प्रोफेसर का उत्तर था।
'वह तो सिकन्दर की लडकी की लडकी,..." है।
"'क्या तुम श्योर हो?" ''सेन्ट पर सेन्ट, क्या उसने उसके डी.एन.ए -पैर्टन में गुआनीन अमीनों एसिडों....के सीक्सेंस को ध्यान से देखा है?"
'नहीं
'देख लेना।"
“क्यों?”
"इसलिए कि यह सीक्वेस सिकन्दर अलेक्जेन्डर की माँ के माइटोकान्ड्रिया के डी॰एन॰ए॰ का है, जो मां से उसकी बेटी में जाता है।"
'देख लूँगा पर सिकन्दर कहाँ मिलेगा?" 'वह तो पोरस के बाणों से घायल होकर अपनी चिकित्सा करा रहा है।' 'कौन है उसका चिकित्सक है?"
'आचार्य जीवक" सेल्यूकस का उत्तर था। ' "प्रोफेसर सक्सेना को जीवक आचार्य जीवक के विषय में जानना था। उनकी टाइम मशीन ने फिर उन्हें उनके घर पहुँचा दिया। उनकी पत्नी अपने प्रेमी के अंक पाश में अब भी झूल रद्दी थी। उन्होंने उसे क्रोध से देखा, टाइम मशीन का बटन दबाया और जा पहुंचे दूसरे क्षण से सिकन्दर के तम्बू में। आचार्य जीवक! सिकन्दर को दवा देकर तम्बू से बाहर आ गये थे।
प्रोफेसर सक्सेना ने उन्हें प्रणाम किया।
आचार्य बोले नहीं...वे चुपचाप चले गए।
प्रोफेसर सिकन्दर के सामने खड्डे हो गए।
'कौन हो तुम, यहाँ कैसे आ गये, मेरे सैनिक कहां हैं" इतने प्रश्न सिकन्दर ने एक साथ पूछ डाले।
'मैं प्रोफेसर सक्सेना हूँ, मैं अपनी टाइम मशीन से तुम्हारे पास आया हूँ। जहाँ तक मुझे पता है, तुम्हारे सैनिक भाँग खाकर लेटे हैं" प्रोफेसर सक्सेना का उत्तर सुनकर सिकन्दर चैतन्य हो गया।
'क्या काम है?"
'क्या मेरी पत्नी तुम्हारे वंश की है?"
''ओह श्वेता! वह तो मेरी चौथी रानी की लडकी, की लडकी की लड्की..।"'
''मैं समझ गया" कुछ क्रोध से प्रोफेसर सक्सेना ने बात काटकर कहा?" 'पैथागोरस को तुम जानते हो?" 'हाँ मैंने उससे संस्कृत पढाने के लिए कहा था'" सिकन्दर अब प्रोफेसर के सामने खडा था।'
''वह चोर है?"
'कैसे?"
'उसने आचार्य बोधायन की प्रमेय को चुराकर अपने नामकर लिया है। यह कापी राइट का उल्लंघन है।'
"हुआ करे?"
'यह गलत है'' प्रोफेसर सक्सेना दहाडे। इनकी दहाड से सिकन्दर कुछ सहम सा गया।
"तुम्हारी चौथी रानी पर्लट थी, इसी कारण उसकी लड़की की लड़की.....की लड़की भी फ्लर्ट है?"
''क्या तुमने अपनी पत्नी श्वेता का डी.॰एन.ए॰प्रोफाइल चेक कराया है?' सिकन्दर ने पूछा। 'हाँ कराया है। वह तुम्हारी चौथी बीबी के प्रोफाइल की तरह ही है'' प्रोफेसर सक्सेना ने कठोर स्वर में उत्तर दिया ।
'तुम गलत कह रहे हो' सिकन्दर ने प्रतिवाद किया।
"तुम मुझे धोखा नहीं दे सकते। तुम यदि भारतवर्ष में लड़ने न आये होते तो महर्षि बोधायन की प्रमेय को पैथागोरस अपने नाम की प्रमेय कहकर कभी प्रचारित कर नहीं पाता।
''यह तो मुझे पता ही नहीं था?" चकित स्वर में सिकन्दर का उत्तर था।
"तुम्हें कैसे पता चले। तुम गणितज्ञ तो हो नहीं और तुम्हारे सैनिकों ने अपना सामान पैक करने के लिए जो भोजपत्र लिया था उसी पर तो बोधायन प्रमेय लिखी थी' प्रोफेसर सक्सेना ने बताया और ग्रीस की राजथानी एथेंस में वह भोजपत्र किसी तरह से पैथागोरस के हाथ पड गया। उसने चोरी की और प्रमेय को अपना नाम दे दिया।" ''यह सरासर गलत है-झूठ है'' कहता हुआ सिकन्दर प्रोफेसर के सामने तनकर खडा हो गया। 'नुम्हारी लडकी की लडकी लडकी की.....ने मुझे थोखा दिया। और तुम अब मुझे बेवकूफ बना रहे हो। सभी अभारतीय इसी तरह के होते हैं क्या?
"चुप रहो। मैं और जोर से चीखूंगा'' प्रोफेसर ने दहाडा।
'लो!" कहकर सिकन्दर ने अपना खंजर हवा में लहराया पर दूसरे पल वह खून से भीगा हुआ था। प्रोफेसर सक्सेना ने बघनखे से उसका पेट फाड दिया था।
तीन नैनों सेकेन्ड बाद...... ।
प्रोफेसर सक्सेना ने अपने ड्रॉइग रूम का दरवाजा खोला। उनकी पत्नी प्रोफेसर के लिए चाय का प्याला लेकर आ रही थी।
प्रोफेसर सक्सेना कह रहे थे मैंने अपने को भूतकाल में बदलकर अपने ही अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया। मेरा अस्तित्व न भूत काल में है और न भविष्य में। टाइम मशीन मेरी कल्पना में है,.....नॉन सेंस ।'
'क्या कर रहे हो तुम?"
प्रोफेसर की पत्नी ने मधुर स्वर में पूछा।
''कुछ नहीं! कुछ नहीं!! मेरी हवा में बात करने की आदत हो गई है...चाय बहुत अच्छी है। मैं जा रहा हूँ, एम्पियर का भाषण सुनने वह मेरी प्रतीक्षा कर रहा है। जीनियस...प्रोफेसर सक्सेना, चल दिये हाथ में चाय का प्याला लिए हुए।
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