ईश पूजन के प्रमुख उपादानों का महत्व डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता ‘ मानस शिरोमणि’ पूजा का सीधा-सादा अर्थ होता है आराधना या साधना। ...
ईश पूजन के प्रमुख उपादानों का महत्व
डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता
‘मानस शिरोमणि’
पूजा का सीधा-सादा अर्थ होता है आराधना या साधना। पूजा की परम्परा वैदिक काल में यज्ञ से उत्पन्न मानी गई है। यज्ञ करने की परम्परा का ह्रास होने पर लोग मूर्ति निर्माण करने लगे। मूर्ति निर्माण कला ने पूजा करने की परम्परा का श्रीगणेश किया। ईश्वर की पूजा करने वाला पुजारी कहा जाता है। जहाँ पूजा की जाती है वह स्थल घर या मंदिर हो सकता है। निराकार ईश्वर की प्रार्थना के प्रचलन के कम होने से साकार ईश्वर की पूजा की जाने लगी। भारतीय संस्कृति में पूजन करने से मन शांति तथा सकारात्मकता का प्रादुर्भाव होता है। पूजा करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है तथा पूजा करने वाले व्यक्ति में आत्मविश्वास तथा क्रियाशीलता उत्पन्न होने लगती है।
पूजा में अनेकानेक वस्तुओं या सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। पूजा के कई प्रतीक हैं, उनमें से कतिपय प्रतीय है-
1. शिवलिंग - शिवलिंग अर्थात् शिव की ज्योति। शिवलिंग एक प्रकार की मूर्ति जो प्रायः पत्थर, स्फटिक अथवा पारद से निर्मित की जाती है। शिवलिंग के गोलाकार स्वरूप में जनेऊ का विशेष महत्व है। श्रीरामचरितमानस में शिवलिंग की स्थापना का वर्णन है। वर्तमान में कई भक्तजन मिट्टी के शिवलिंग निर्मित कर विधि-विधान से पूजा करते हैं। शिवलिंग का मूर्तियों में विशेष स्थान माना गया है। शिवलिंग सत्यम्-शवम्-सुन्दरम् माना गया है। शिवलिंग घर में सुख-शांतिदायक एवं शुभ माना गया है।
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2. शालिग्राम -काले पत्थर की गोलियाँ या बट्टियों के रूप में जो मूर्ति होती है तथा उस पर चक्र का चिन्ह बना होता है, वह शालिग्राम की मूर्ति होती है। ऐसी मूर्ति जिस पर चक्र का चिन्ह नहीं होता है, वह शालीग्राम के रूप में पूजा नहीं की जाती है। जिस घर में शालिग्राम (शालग्राम) तथा शिवलिंग की पूजा होती है, घर की ऊर्जा में सन्तुलन होता है तथा उस घर में पवित्रता का वास होता है।
3. फूलपात्र या आचमनी - छोटे से ताम्बे के गिलासनुमा बर्तन में जलभर कर उसमें तुलसी की पत्तियाँ डालकर सदैव पूजा स्थल पर रखा जाता है। आचमनी (चम्मच जैसा) से भक्तों को तीन बार चरणामृत दिया जाता है। इसे ग्रहण करने से पूजा का दुगना फल प्राप्त होता है तथा हमारे विघ्न नष्ट हो जाते हैं। चरणामृत लेने के पश्चात् हाथ को सिर से पोंछना नहीं चाहिये, इससे हमारी सकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
4. पंचामृत - पंचामृत का अर्थ पाँच प्रकार के अमृत से होता है। दूध, दही, शहद, घी व शुद्ध जल के मिश्रण को पंचामृत कहते हैं। गाय का दूध एवं घी श्रेष्ठ माना गया है। कतिपय विद्वान दूध, दही, शहद, घी और गन्ने के रस से बने द्रव्य को पंचामृत कहते हैं। आजकल अधिकांश लोग दूध, दही, घी, शकर एवं शहद को मिलाकर पंचामृत बनाते हैं। पंचामृत में रोगनिवारण क्षमता होती है। पंचामृत स्वास्थ्य के लिए पुष्टिकारक है। तीन चम्मच से ज्यादा पंचामृत स्वास्थ्यवर्धक नहीं होता है।
5. चन्दन - चंदन शांति व शीतलता प्रदान करता है। मंदिर या घर में चंदन की एक बट्टी तथा पत्थर की सिल्ली पूजाघर में होती है। चन्दन की सुगन्ध नकारात्मक विचार नष्ट करती है। चंदन घिस कर शालीग्राम एवं शिवलिंग पर अवश्य लगाना चाहिये। पूजा करने वाले को भी अलग से चन्दन घिस कर मस्तक पर लगाना चाहिये। इससे मन-मस्तिष्क शांत बना रहता है।
6. अक्षत - अक्षत श्रम करने से प्राप्त सम्पन्नता का प्रतीक होता है। अक्षत लक्ष्मीजी को भी बहुत पसन्द है। अक्षत ईश्वर को अर्पित करने का अर्थ यह है कि हम मानव सेवा की भावना से प्रेरित है।
7. पुष्प - पुष्प सुन्दरता का प्रतीक होता है। हम ईश्वर की मूर्ति पर पुष्प या फूल समर्पित कर यह प्रार्थना करते हैं कि हमारा जीवन फूल सा सुन्दर बने। पुष्प हमें अन्दर तथा बाहर से सुन्दर बनने का सन्देश देते हैं।
8. नैवेद्य - पूजा तब पूर्ण मानी जाती है जब तक हम हमारे देवता या देवी को नैवेद्य लगा न दें। नैवेद्य में मिठास होती है। नैवेद्य जीवन में मिठास और मधुरता रखने की शिक्षा देता है। इस प्रकार नैवेद्य पूजा करने वाले तथा नैवेद्य प्राप्त करने वाले के जीवन में सरसता, सौम्यता, सरलता और मधुरता उत्पन्न करता है। नैवेद्य में फल, मिठाई, मेवे एवं पंचामृत चढ़ाया जाता है।
9. रोली या कुंकुम - रोली को कुंकुम या कंकू भी कहा जाता है। यह चूने की लाल बुकनी और हल्दी को मिलाकर बनाया जाता है। प्रत्येक पूजा में इसे चावल (अक्षत) के साथ पानी में घोलकर माथे पर लगाया जाता है। यह शुभ माना गया है। अतः पूजा के अतिरिक्त हमारे समस्त त्यौहारों पर मस्तक पर कुुुंकुम लगाने की परम्परा है। लाल रंग वीरता-साहस-शौर्य का प्रतीक है। कंकू लगाने से आरोग्य प्राप्त होता है। कंकू को सदैव माथे पर नीचे से ऊपर की ओर लगाना चाहिये तथा उस पर अक्षत लगाना श्रेष्ठ होता है।
10. धूप - धूप सुगन्ध उत्पन्न करती है। इसके जलाने से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। मन में और घर में वातावरण शुद्ध होता है। सुगन्ध का जीवन में महत्व है। घर में बाँस से बनी अगरबत्ती के स्थान पर धूप का प्रयोग करना शुभ माना गया है।
11. दीपक - दीपक में पाँच तत्त्व मिट्टी, आकाश, जल, अग्नि और वायु होते हैं अतः दीपक मिट्टी का होना चाहिये। पूरी सृष्टि इन्हीं पाँच तत्त्वों से निर्मित हुई है। दीपक के नीचे अक्षत रख कर उस पर दीपक रखना चाहिये।
12. गरुड़ एवं घण्टी - गरुड़ अथवा घण्टी की ध्वनि वायुमण्डल में बजाने से नकारात्मकता को समाप्त करती है। वातावरण इस ध्वनि से शुद्ध एवं पवित्र बन जाता है। नकारात्मकता समाप्त होने से जीवन में समृद्धि आने लगती है। इसीलिये घर या मंदिर में गरुड़ या घण्टी रखी जाती है।
13. शंख - शंख मंदिर में अथवा घर में रखने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती है तथा वहाँ उनका वास होता है। शंख को सूर्य-चन्द्रमा के समान माना गया है। शंख के मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्रभाग में गंगा और सरस्वती नदियों का वास होता है। शंख के दर्शन एवं पूजन से तीर्थाटन का लाभ मिलता है।
14. जलकलश-जल कलश को मंगल कलश भी कहते हैं। एक कांस्य या ताम्रकलश में जल भर उसमें आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा जाता है। कलश पर कंकू का स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर उसके गले पर नाड़ा बांधना चाहिये। जल कलश में पान और आखी सुपारी डालना चाहिये। जल कलश देवताओं का आसन होता है इसके रखने से ईश्वर आकृष्ट होकर प्रसन्न होते हैं।
15. ताम्बे का सिक्का - ताम्बे के सिक्के को कलश में डालना चाहिये। इससे घर में समृद्धि की वृद्धि होती है। कलश में उठती हुई लहरें वातावरण में प्रवेश कर जाती है तथा घर में सात्विकता उत्पन्न करती है। ताम्बे में अन्य धातुओं की तुलना में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अधिक होती है।
उपर्युक्त वर्णित पूजा के उपादान आपके घर में सुखसमृद्धि उत्पन्न करेंगे। यह पढ़ने में छोटी बात है किन्तु महत्वपूर्ण है।
डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता ‘मानस शिरोमणि’
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