यहां वहां की जिंदगी ख्वाब नहीं चुटकुला दिनेश बैस न वम्बर माह के गुणगान करने बैठ जायें तो पूरा महीना केक काटते-काटते खर्च हो जायेगा. महा-म...
यहां वहां की
जिंदगी ख्वाब नहीं चुटकुला
दिनेश बैस
नवम्बर माह के गुणगान करने बैठ जायें तो पूरा महीना केक काटते-काटते खर्च हो जायेगा. महा-महा लोगों ने अवतार लेने के लिये नवम्बर का महीना ही चुना है. ट्रेनों की तरह जन्म लेने के लिये किसी प्रकार के आरक्षण की व्यवस्था होती तो न मालूम कितने लोग वेट लिस्ट में लगे दिखायी देते और नवम्बर निकल लिया होता. शुक्र है कि ऐसा कोई प्रावधान अभी तक नहीं हुआ है. लोग कभी भी, कैसे भी, कितनी भी संख्या में पैदा हो सकते हैं. इस छूट का लाभ उठाकर पहले लोग धड़ाधड़ पैदा होते रहे.बहुत सारे क्लियरेंस सेल शैली में भी आ गये. एक के साथ एक फ्री- जुड़वां पैदा हो गये- कुछ होते हैं जो अकेले नहीं रह पाते हैं. चीथने के लिये कोई न कोई उन्हें चाहिये. ऐसे लोगों ने सोचा होगा, कहां यार अलग-अलग पैदा हों. बोर हो जायेंगे.चलो, एकसाथ पैदा हो लेते हैं. अब समय बहुत खराब आ गया है.कुछ लोग हैं जो खुद पैदा करने में अक्षम हैं. सक्षम हैं तो उन्हें अपना नाम देने से पलायन कर जाते हैं. ऐसे साधू-साध्वी समझा-समझाकर परेशान हैं कि मन लगा कर पैदा करो.पालने वाला तो भगवान है. ऐसे लोग किन्हीं व्यापारी बाबा से सिफारिश करने की बात भी करते हैं कि बाबा बाबू, एक बार में चौका मारने वाली दवाई बनायें. अपने वालों को ही दें. लोग टका सा जवाब दे देते हैं कि वह पालेगा तो वही पैदा कर लेया, उनकी ओर से आप पैदाकर लें. या जो बाबा दवाई बना रहा है, वह अपनी दवाई खुद खा ले और चार नहीं, चौरासी पैदा कर ले.हमारे तो दो हो गये, बहुत हो गये. यों एक से भी काम चल जायेगा. वह भी नहीं होगा तो अनाथ आश्रम से ले आयेंगे.धर्मभ्रष्ट कर रखा है दो हो गये, बहुत हो गये वालों ने. प्रभु की लीला में व्यवधान उत्पन्न कर रहे हैं.
बहरहाल, महापुरुषों के जन्म लेने के सम्बंध में नवंम्बर काम ही ना काफी उदार माना जा सकता है. संतनामदेव, कवि कालिदास से लेकर महारानी लक्ष्मीबाई, पं.जवाहर लाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी और न जाने कितनों ने जन्म लेने के लिये नवम्बर का महीना चुना. नवम्बर पुराण लिखते-लिखते ब्रेकिंग न्यूज आई कि हमारे प्रधान सम्पादक भारत यायावर हो गये हैं.यह जनाब भी महान बनने की ठान कर ही निकले लगते हैं. इसलिये महीना समाप्त होते-होते यह भी उन्तीस नवम्बर को दुनिया में कूद पड़े. जैसे कोई छूटती हुई ट्रेन दौड़कर पकड़ रहा हो. जिस पोथे की शपथ ग्रहण कर, हमें मूर्ख बनाने का अधिकार राजनीति बाज झपट लेते हैं, संविधान नाम का वह महाग्रंथ भी नवम्बर के महीने में ही जन्मा.
इतने सारे अवतारों के बीच मेरे जैसे लोगों के लिये चौदह नवम्बर का कभी बड़ा महत्व रहा है. पं. नेहरू का जन्मदिन है यह. पं. नेहरू से इतने प्रभावित रहे हैं कि उनके जन्म-दिन की प्रतीक्षा में पूरा सालगुजार देते थे. बाल-दिवस के रूप में मनाया जाता है यह दिन. स्कूल में इस दिन कुछ प्रवचन वगैरह पिला कर, हमें उनके बताये मार्ग पर चलना चाहिये जैसे निर्देश दे कर, स्कूल से मुक्ति मिल जाती थी. साथ में दो केले भी थमा दिये जाते थे. अपने लिये इतनी ही बड़ी बात थी कि स्कूल से छुट्टी मिली. केले तो पिता जी के सौजन्य से भीमिल ही जाते. दो नहीं, एक सही. साथ में एक थप्पड़ मुफ्त ससुर पीछे पड़ कर रह गया है. मानता ही नहीं है.
पं. नेहरू न होते तो एक दिन और स्कूल भोगना पड़ता.बचपन निकल गया. बाल-दिवस छूट गया. लेकिन चौदह नवम्बर अब भी जिंदगी से चिपका हुआ है. कारण बदल गये हैं. विद्वानों ने बच्चों को बाल-दिवस की सौगात दी है चौदह नवंबर के रूप में तो जवानी के मुंह मोड़ते-मोड़ते, बुढ़ापे के खटारे में सवार होने वाले लोगों को, चौदह नवम्बर अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह दिवस के रूप में ढोलकी तरह गले में लटका दिया है- लो, बजाते रहो जब तक सांस है. जिदगी की पिपहरी बंद होने के साथ ही मधुमेह के ढोलकी धमाधम भी बंद होगी.
बहुत से लोग इसे मजाक मानते हैं. हां, मजाक में कोई कमी न रह जाये इसलिये नवम्बर के महीने में ही अंतर्राष्ट्रीय चुटकुला दिवस भी आ जाता है- खुद न हंस पाओ तो दूसरों को ही हंसाओ. नहीं हंसाओगे तो आप हास्यस्पद हो जाओगे.जिदगी एक ख्वाब नहीं, चुटकुला बन कर रह जायेगी.
लोग आपस में हैरत से पूछेंगे- न जाने क्यों आये थे.
दूसरे चैन की सांस लेते हुये कहेंगे- चलिये, अच्छा है, निकल लिये थे तो क्या उखाड़ रहे थे. चले गये तो कौन सा तूफान आ गया.
तो, नवम्बर का महीना डायबिटीज को भी समर्पित है.धूमधाम से सेलिब्रेट करें. हमारे देश में कोई भी धूमधाम मिठाई के बिना सम्पन्न नहीं होती है. हमारे तो देवता भी नमक खाना पसंद करते ही नहीं हैं. न जाने ब्लड प्रेशर के हाई जम्प करने का कितना डर रहता है. मिठाई है कि आने दो. आने दो. यहां हाल यह है कि नवम्बर माह में अंतराष्ट्रीय मधुमेह दिवस भी सैलिब्रेट करना है तो नीम और करेले खा कर. शक्कर की बढ़त मापने के लिये देह में सुई टुच्चवाकर. क्या मजाक है, खून में शुगर ही शुगर है मगर जुबान पर चीनी रखने पर भी पहरे हैं.
वहां पत्नी जी इस खुशी में लोगों के बीच लड्डू बांट रही हैं कि जांच में पति जी की शुगर काबू में पाई गई है. लगता है कि पत्नी नाम के प्राणी का निर्माण ही पतिनाम के पालतू पशु को काबू में रखने के लिये किया गया है.
इसलिये, षड्यंत्र ही प्रतीत होता है कि कुम्भकर्ण की परम्परा के वाहक जो देवता दीवाली के पटाखों के धमाकों तथा बारूद के धुंये के दम घोंटू प्रदूषण से भी नींद का पीछा नहीं छोड़ पाते हैं, नवम्बर में अचानक जाग जाते हैं- देव उठान हो जाता है. देवता जाग जाते हैं तो लोग शादियां करने पर टूट पड़ते हैं.शादियां बोले तो, आदमियों को पकड़-पकड़कर पत्नियों के हवाले करने का अभियान शुरू हो जाता है. ताकि आदमी काबू में रहे. अब तो आत्महत्या का ट्रेण्ड चल रहा है. आदमी एन्काउंटर में काम आने के बजाये आत्मसमर्पण में सम्भावनायें तलाशने लगा है- खुद ही शादी कर लेता है. अन्यथा अपने समय में तो फिट फॉर्मूला रहा है कि बचुआ बहुत पंख फड़फड़ा रहा है. किसी के खूंटे से बांध दो. अकल ठिकाने आ जायेगी.अक्ल ठिकाने लाने के इतने सफल उपाय के अस्तित्व में रहने के बावजूद पागल खाने बनाना पागलपन के अलावा और क्या माना जा सकता है. अभी तक किसी ऐसी तकनीकी का विकास नहीं हुआ है जो पत्नी जी के सामने टिक सके. पत्नी जी वह निगरानी करने तथा ठिकाने लगाने वाला तंत्र होती हैं कि आज तक जहां पति महोदय पत्नीजी कि कस्टडी में हों, वहां किसी का यह सूचनापट लगाने का साहस नहीं होता है कि आप क्लोजसर्किट टी वीकैमरा की निगरानी में हैं.
आदमी इतने-इतने इम्मोशनल अत्याचारों से कहीं बगावत न कर दे, चलन दे यह कहते हुये कि हम तो जाते अपने गांव सबको राम-राम-राम. इसलिये उसे बगावत प्रूफ बनाने के लिये सोलह नवंम्बर को ‘अंतर्राष्ट्रीय सहनशीलता दिवस’ आ धमकता है हाथ में आंसू पोंछने के लिये पसीना भरा रूमाल लिये.
सम्पर्कः 3-गुरुद्वारा, नगरा, झांसी-284003
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