अनूप शुक्ल व्यंग्य की जुगलबंदी-12 ------------------------- मजाक-मजाक में 12 व्यंग्य की जुगलबंदियां हो गयीं। कुल जमा साठ (60) लेख हो...
अनूप शुक्ल
व्यंग्य की जुगलबंदी-12
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मजाक-मजाक में 12 व्यंग्य की जुगलबंदियां हो गयीं। कुल जमा साठ (60) लेख हो गये इन जुगलबंदियों में 12 हफ़्ते के समय में।
व्यंग्य की बाहरवीं जुगलबंदी का विषय था - ’सर्दी की वापसी।’ इस बार कुल जमा आठ लोगों ने जुगलबंदी की। बीहड़ सर्दी के बावजूद। व्यंग्यकार इन्द्रजीत कौर और फ़िल्म निर्देशक संजय झा मस्तान ने इस बार से जुगलबंदी शुरु की।
समकालीन हिन्दी व्यंग्य लेखन में इंद्रजीत कौर जाना-पहचाना नाम है। उनका एक व्यंग्य संग्रह ’ईमानदारी का सीजन’ आ चुका है। कई व्यंग्य संग्रह आने हैं। हिन्दी के व्यंग्यकारों में शायद वे अकेली हैं जो अपने व्यंग्यपाठ बिना कागज देखे पढती हैं।
संजय झा मस्तान से इसी हफ़्ते परिचय हुआ मेरा। उनकी साइट से पता चला कि वे तीन फ़िल्में बना चुके हैं। प्रान जाये पर जान न जाये (2003) और स्ट्रिन्ग बाऊंड बाई फ़ेथ (2006) रिलीज हो चुकी हैं। 2009 में बनी फ़िल्म ’मुम्बई चकाचक’ अभी रिलीज होनी है। ’चकाचक’ अपन का तकिया कलाम है इसलिये इस पिक्चर के रिलीज होने का इंतजार है। मिथिलांचल के रहवासी संजय झा मस्तान के बारे में विस्तार से जानने के लिये उनकी साइट http://www.sanjayjhamastan.com/ पर पहुंचिये। इसमें उनके उवाच संकलन में से दो आपके लिये पेश हैं
(i) सुबह होने में एक रात लगती है।
(ii) दुख से निकलने का निर्णय ही दुख से निकलने का रास्ता है।
इस बार कुल आठ लोगों ने जुगलबंदी में व्यंग्यबाजी की। Arvind Tiwari, Nirmal Gupta, Udan Tashtari, Ravishankar Shrivastava, Anshu Mali Rastogi,@Indrajeet Kaur Sanjay Jha Mastan और अनूप शुक्ल। Yamini Chaturvedi किसी समारोह में व्यस्त होने के चलते लिख नहीं पायीं शायद। लेकिन उनको लिखना है। जैसे ही वे लिख लेंगी उनका लेख इस जुगलबंदी चर्चा में शामिल कर लिया जायेगा। अगर नहीं लिखेंगी तो उनके शहर निवासी Surendra Mohan Sharma से लिखवाया जायेगा ’सर्दी की वापसी’ पर लेख। आखिर शहर की इज्जत का ’स्वाल है’ भाई ! :)
आइये जरा आपको झलकियां दिखायें जुगलबंदी की।
Arvind Tiwari अरविंद तिवारी
ने सर्दी पर व्यंग्य लिखने के खतरे बताते हुये बात शुरु की -“सर्दी पर व्यंग्य लिखना आसान नहीं है। सर्दी को पता चल गया तो वह लिखने वाले में निमोनिया भर देगी।“ एक बार जब शुरु हुये तो हर तरफ़ निगाह दौड़ा डाली। उनके लेखन के मुख्य अंश देखिये तो जरा:
(1) भारत भर की गर्मी जब दलालों और भ्रष्ट बेंकर्स की जेबों में शिफ़्ट हो जाये तो सर्दी बेहद मारक हो जाती है। ठण्ड आने से पहले ही जी डी पी ठिठुर गयी थी ।ठण्ड खत्म होते होते यह बहुत छोटी रह जाने वाली है। ख़ाली जेबों के बावजूद खुशहाली का सपना देख रहे लोगों पर सर्दी की यह सर्जिकल किसी स्ट्रोक से कम नहीं है।
(2) ठण्ड में सुबह घूमने निकलो तो 4 बजे से बैंकों के आगे लगी लाइने हमें धिक्कारतीं हैं।तू घण्टा आधा घण्टा घूमने में कांप रहा है इन्हें घण्टों तक ठण्ड में खड़े रहना है।शर्म आनी चाहिए तुझे।शर्म तो नगरपालिका वालों को आनी चाहिए क्योंकि वे वहाँ अलाव जलवा रहे हैं जहां आदमी हैं ही नहीं।अर्थात अलाव की व्यवस्था पूंजीवादी सिद्धांतों पर चल रही है।
(3) ठण्ड में रेलगाडियां कांपती हुई आगे बढ़ रहीं हैं।रेलगाड़ियों में समाजवाद आ गया।राजधानी और शटल एक ही स्पीड से चल रहीं हैं। कई बार शटल आगे निकल जाती है।जिन मेहमानों के आने की संभावना थी वे टिकट केंसिल करवा चुके हैं। ठण्ड फायदा भी देती है।ठण्ड के मारे स्वीप मशीनें तक कांप रहीं हैं।डर है कहीं ज्यादा पैसे न निकल जाएँ।
पूरा लेख बांचने के लिये आप Arvind Tiwari जी वाल पर पहुंचिये।
निर्मल गुप्त
मूलत: कवि और उसके बाद व्यंग्यकार Nirmal Gupta जी का अंदाजे बयां ही कुछ और। उनका दूसरा व्यंग्य संग्रह बस इसी जनवरी में आने ही वाला है। नाम धरा गया है ’हैंगर में टंगा एंगर’। आज ही उनकी कविता भी छपी है जागरण वाले पुनर्नवा में -’साठ पार का आदमी।’ निर्मल गुप्त ने लेख का शीर्षक रखा ’ सर्दी का मौसम और करेंसी की छीना झपटी’। उनके लेख के कुछ अंश देखिये:
(1) जिसे देखो उसी की जेब में प्रश्नों की पुड़िया है और निरंतर कतार में लगे रहने की कातर विवशता।भक्त टाइप लोगों के पास मुल्क की अस्मिता और देशभक्ति का मुद्दा है।उनके हाथों में लाठियां डंडे हैं जिन पर झण्डे टंगे हैं।जुबान पर तेजाबी बयान हैं।चेहरे पर कर्तव्यपरायणता की दमक है।आस्तिक हर नास्तिक सोच और मंशा वालों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटने का जबरदस्त कौशल दिखा रहे हैं।वैसे पिटने और लुटने वालों के लिए यह ‘ट्रेजडी किंग’ बनने का सही समय है इसलिए पिट जाने के बावजूद मजे में हैं।
(2) राजनीति में नमकहलाली और नमकहरामी में कोई मौलिक भेद नहीं होता।यह बदलते हुए मौसम का संगीन और सनसनीखेज समय है। ऐसे में एहतियात ही बचाव है।वस्तुत: यह भविष्य की ग्रीष्म ऋतु के लिए कम खर्च पर बेहतरीन ब्रांडेड डिजाइनर्स सूती कपड़ों की खरीददारी की अक्लमंदी से भरा मौका है।यह आने वाले कल के सपनों में निवेश का वक्त है और निवेश के लिए कैशलैस विकल्प हैं।
(3) बदलते मौसम के हिसाब से बाज़ार करवट लेत रहा है।विजय ध्वजा की तरह फेस्टिवल सेल, महासेल और मेगा सेल के पट लहराने रहे हैं।राजनीतिक सरोकारों के अनुसार बदलाव और क्रांति की नवीनतम अवधारणायें प्रकट होती है। वातावरण इंस्टेंट कॉफ़ी के असमंजस भरे झाग से भरपूर है। क्रांतिधर्मी पोस्टर योद्धाओं के होठों और मूंछों से चिपक कर यही झाग नवजागरण के गीत गुनगुना रहा है।
पूरा लेख बांचने के लिये इस लिंक को क्लिक कीजिये https://www.facebook.com/gupt.nirmal/posts/10210614029562576
समीरलाल
उर्फ़ Udan Tashtari लगता है लेख लिखकर स्विटजरलैंड के लिये उड़ लिये काहे से कि उनका फ़ेसबुक उनकी मौजूदगी वहीं बता रहा है। हो सकता है भाव मारने के लिये लिखे हों रजाई में मुंडी घुसाये-घुसाये। जो हो उनका राग वे खुद जानें। फ़िलहाल तो उनके लेख के मुख्य अंश देखिये:
(1) घर वापसी का देश भर में ऐसा अभियान चलाया कि देश सांप्रदायिकता और असहिष्णुता की आग में जलने लगा. घर और धर्म पर्यायवाची हो गये. जिसे देखो वो अपना राजनेतिक कद बढ़ाने के लिए नित नया परचम लहराने लगा कि फलाने गांव में २००० लोगों की घर वापसी, ढिकाने गाँव में ३००० लोगों की घर वापसी.
(2) सारी लिमिट, सारे नियम आम जनता की नोट वापसी के लिए और नेताओं के घर पर डायरेक्ट सप्लाई? बिना इसके ५०० करोड़ और १०० करोड की शादी, ८० लाख, ६० लाख के नये नोट का ठिकाने लगाते हुए पकड़ा जाना बिना मिली भगत के संभव है क्या? इन सब अपवादों का आशीष भी राजनीति के गलियारे से ही बरसता है.
(3) ऋण वापसी में किसान नें आत्म हत्या कर ली और उससे कई लाख गुना ऋण लिया सांसद लंदन जा कर बैठ गया और बैंक है कि उसका ऋण माफ किए जा रही है. गजब अपवाद की ऐसी स्थिती कि अवसाद घेर ले आम जन को.
समीरलाल का पूरा लेख बांचने के लिये इस लिंक पर पहुंचिये https://www.facebook.com/udantashtari/posts/10154551373506928
रवि रतलामी
Ravishankar Shrivastava उर्फ़ रविरतलामी लगता है पहले ही माखनलाल जी माफ़ी मांग कर कविता पैरोडी लिख चुके थे। इसीलिये लेख का विषय तय होते ही चेंप भी दिये। उनके लेख के कुछ अंश क्या दिखायें पूरा लेख ही देख लीजिये इस लिंक पर पहुंचकर http://raviratlami.blogspot.in/2016/12/blog-post_10.html
पर तुकबंदी तो यहीं पढ़वा देते हैं आपको
गुलुबन्द यानी मफलर की अभिलाषा
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चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गले में लिपट जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-कंधे में फहर
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं जनता के कानों में
हे हरि लपेटा जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
बंधूं भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे बांध कर हे! राजनेता,
उस पथ पर चल देना तुम!
क्षुद्र निकृष्ट राजनीति करने,
जिस पथ पर जावें नेता अनेक!
(स्व. श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी की आत्मा से क्षमायाचना सहित)
अंशुमाली रस्तोगी
Anshu Mali Rastogi ने सर्दी की वापसी का उपयोग अपने मफ़लर से संबंध सुधारने में किया। रजाई को भाव देने के चलते मफ़लर खफ़ा रहता था उनका। इस बार उन्होंने ’मफ़लर मनौव्वल’ की। उनके लेख ’सर्दी और मफ़लर’ के कुछ अंश :
(1) आज के टोपी-वादी युग में लोगों ने मफलर के प्रति अपने ‘स्नेह’ को कम नहीं किया है। तरह-तरह के डिजाइनर मफलरों को फैशन का हिस्सा बना लिया है। जैसे सालभर में सर्दी वापसी करती है ऐसे ही मफलर भी। मफलर की वापसी सबसे सुखद अनुभव देती है सर्दियों में। केजरीवालजी ने तो मफलर पहनते-पहनते दिल्ली वालों को टोपी ही पहना दी। उन्होंने तो मफलर और टोपी दोनों को एक साथ नुकसान पहुंचाया।
(2) मेरे तईं मफलर का महत्त्व हमेशा उत्ता रहेगा जित्ता कृश्न चंदर के लेखन में ‘गधे की वापसी’ और ‘एक गधे की आत्मकथा’ का। किश्न चंदर को पढ़के ही जानी थी पहली दफा ‘गधे की महत्ता’। मैं किश्न चंदर के गधे और अपने मफलर के बीच अद्भूत वैचारिक, व्यवहारिक एवं आत्मीय कॉम्बिनेशन देखता हूं।
(3) मेरा प्रिय मफलर मुझे निरंतर ऊर्जा देता रहा है। हालांकि वक्त के साथ उसके रंग में थोड़ा फीकापन जरूर आया है पर गरमाहट बरकरार है। यह गरमाहट जित्ती मेरे साथ उसके रिश्ते की है, उत्ती ही उसकी मेरे प्रति वफादारी की भी। दुनिया या परिवार वाले चाहे जो कहते रहें लेकिन मैं मेरे मफलर का साथ कभी नहीं छोड़ सकता। दिमाग में ढेरों टाइप के वन-लाइनर टाइप आइडियाज मफलर पहनके ही तो आते हैं मुझे। सच्ची।
पूरा लेख बांचने के अंशुमाली रस्तोगी की वाल पहुंचिये इस लिंक के सहारे https://www.facebook.com/photo.php?fbid=154381828375513&set=a.127739881039708.1073741828.100014110890413&type=3&theater
इंद्रजीत कौर
Indrajeet Kaur ने इस बार जुगलबंदी में शुरुआत की। शानदार की। उनके लेख के कुछ अंश:
(1) यूँ तो सर्दी हर बार आती है। इस बार भी आ गयी पर न जाने कितनी सर्दियाँ मरी होंगी तो यह वाली सर्दी पैदा हुई होगी। इस 'कितनीे' में पिछले नोटबन्दी वर्ष से लेकर पिछले वर्ष तक के सर्दीयाना मौसम को गिना जा सकता है। आप तुनक के कह सकतें हैं कि इसके अलावा गिनने को बचा ही क्या है?
(2) जीवन का यह 'पाज' भी अजीब सा है। सब कुछ जम सा गया है। ठंड में ऐसी ठंडाई पिलायी गयी है कि पूछो मत। बिल्कुल 'सियाचिन अफेक्ट' । अरे माफ करें, ठंडाई नहीं पिलाई गयी गर्मायी हटायी गयी है। न जाने कितनों की गर्मी माफ हुयी, कितनों की साफ हो गयी है।
(3) 'रुम हीटर' का वजूद खत्म । बस ठंड ही.ठंड।सर्द और गर्म धारायें बहती रहतीं हैं जिसका ज्यादा 'परभाव' हो वो दूसरे को काट देता है पर यहाँ तो गर्म धारा ही गायब कर दी गयी है। इस सियाचिन अफेक्ट का तड़का ऐसा कि न जाने कितने राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक सैनिक जम गयें हैं।
पर कोई बात नहीं, सभी अगली गर्म धाराओं के लिये बाट जोह रहें हैं। पुनरुद्धार शुरू होगा...ठंड रक्ख ठंड।'
हम ठंड रख के अगले लेख के लिये इंतजार कर रहे इंद्रजीत! इंद्रजीत कौर का लेख पूरा इधर बांचिये आकर। https://www.facebook.com/indrajeet.kaur.14
संजय झा मस्तान
Sanjay Jha Mastan ने फ़िल्म निर्देशक होने के अपने रुतबे का इस्तेमाल करते हुये ऑस्कर विजेता अभिनेत्री जुलिया राबर्ट्स को अपनी पोस्ट में शामिल किया और तब ’सर्दी की वापसी’ पिच्च्रर शूट की। मौसम विभाग पहुंच गये ’सर्दी की वापसी’ के लिये। उनके लेख के कुछ अंश आप भी देखिये:
(1) एक लाईन से निकलकर दूसरी लाईन में लगना ही जीवन का सार है।
(2) " मुझे सर्दी से शिकायत है, सर्दी की वापसी करनी है " मैंने कहा !
" आप हमारे ऑनलाइन स्टोर से खरीदे गये उत्पादों से बहुत खुश होंगे " जवाब आया !
" हर विवरण झूठा है, मौसम की मार से मैं परेशान हूँ ,आप मुझसे मेरी सर्दी वापस ले लें, मुझे सर्दी नहीं चाहिए " मैंने कहा !
" आपने इस सर्दी के लिए कितने रुपये भरे थे ? ''
" मैंने तो रुपये नहीं भरे ! मुझे लगा मौसम मुफ्त में मिलता है "
" रुपये नहीं भरे ? "
" नहीं "
" ठीक है फिर फॉर्म भरिये "
यंग मैन ने मुझे ग़ौर से देखा और बोला " सर्दी साथ लाये हैं ? "
" जी " मैंने कहा !
" कहाँ है ? "
" नाक में भरा है " मैंने भारी आवाज़ में जवाब दिया !
" ये क्या हाल बना रखा है, कुछ लेते क्यों नहीं ? " अचानक उसके मुँह से ये सुना सुनाया वाक्य निकला ! सर्दी से मेरी आँखें भर गयी ! उसने समझा मैं भावुक हो गया हूँ ! उसने मुझे टच किया और वो टच्ड हो गया, पर रोने की जगह छींकने लगा ! "
(3) आँखों से निकल कर आँसुओं की वापसी कभी नहीं हुई, आँसू चाहे दुःख - सुख के हों या सर्दी के ! पता नहीं मैं हंस रहा था या रो रहा था ! बैंक में पैसे नहीं थे और मेरी जेब खाली थी, सर्दी से मेरा बुरा हाल था ! मैंने मौसम विभाग में यूँ ही टाइम पास के लिए लाइन लगाने की ठानी, बदले में मुझे एक फॉर्म भरने के लिए मिला और मौसम की जानकारी वाली जुलिया राबर्ट्स की कोई सी डी !
संजय झा मस्तान का पूरा लेख यहां पहुंचकर बांचिये: https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=10154831184812658&id=640082657
अनूप शुक्ल
अब आखीर में अपन मतलब अनूप शुक्ल मल्लब खाकसार का लेख। हमने जो लिखा उसको पूरा बांचने का मन और हिम्मत हो तो इधर पहुंचिये https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10209923521618132
लेख के कुछ अंश हम यहीं पढवाये देते हैं। मुफ़्त हैं। कोई पैसा थोड़ी पड़ना है। बांच लीजिये :
(1) नोटबंदी के समय में ’कैसलेस भीख’ की व्यवस्था का इंतजाम किया ही नहीं है महिला ने। कैसे मिलती भीख? भीख मांगने के लिये भिखारियों को भी वोट मांगने वाले लोगों की तरह आधुनिक होना पड़ेगा।
(2) सर्दी से मुकाबले के लिये जगह-जगह अलाव की जगह इस बार भाषणों से आग उगलने की व्यवस्था की गयी है। लोग भाषण सुनकर गरम हो रहे हैं। उबल रहे हैं। ठंड से मुकाबले की यह नयी तकनीक विकसित हुई है। आगे चलकर इसका उपयोग पेट की आग बुझाने के लिये भी किया जायेगा। शुरुआती दौर में कुछ समस्यायें आ रही हैं लेकिन लोग लगे हुये हैं इस तकनीक में महारत हासिल करने में। कुछ दिन बाद देश की हर समस्या का इलाज भाषणों से ही होना संभव हो जायेगा। तब शायद हम दुनिया में पहले देश होंगे जहां भाषणों के माध्यम से समस्याओं के हल निकाले गये। अपना देश एक बार फ़िर दुनिया का सिरमौर बन जायेगा।
(3) सर्दी का मौसम है। खुद को बचाकर रहिये। पहन-ओढकर घर से निकलिये। मफ़लर कसकर रखिये। कपड़े न हों तो कोई बात नहीं, सिकुड़कर रहिये। जितना सिकुड़ेंगे, आपके जिन्दा रहने की संभावनायें बढती जायेंगी।
क्या सोच रहे हैं भाई ! सिकुड़िये जल्दी से । आपके सिकुड़ने से जो जगह निकलनी है उस पर कब्जा करने के लिये अकड़े हुये लोग इंतजार कर रहे हैं। देरी करेंगे तो जनहित/देशहित में वे आपको रगड़ देंगे।
जिन्दा रहने के लिये सिकुड़कर रहना सीखना आना चाहिये।
यह रही इस बार की जुगलबंदी की रपट ! आपको कैसी लगी? बताइयेगा। अरे आराम से बताइयेगा कोई जल्ली नहीं है।
फ़िलहाल इतना ही। शेष अगली जुगलबंदी में।
#व्यंग्यकीजुगलबंदी, #vyangy #व्यंग्य
Indrajeet Kaur बढ़िया प्रयोग है। सभी की शैलियाँ एक साथ पढ़ने को मिली। मजा आ गया। क्रम चलता रहे। सभी प्रतिभागियों को शुभकामनाएं।
अनूप शुक्ल धन्यवाद ! प्रयोग जारी आहे! आप लिखती रहिये। मजा आता रहेगा। :)
Kiran Mishra बहुत बढ़िया रपट....
जिसकी वजह से सारी जुगलबंदी एकसाथ पढ़ ली।
सब ने बहुत बढ़िया लिखा ।
अनूप शुक्ल धन्यवाद पढ़ने और सराहने के लिये ! :)
संतोष त्रिवेदी इनमें बमुश्किल आधे ही व्यंग्य के खाँचे में फिट होंगे।पर इससे साफ होता है कि व्यंग्य की जुगलबन्दी के नाम पर कुछ भी जुगाली की जा सकती है।व्यंग्य इतना भी निरीह नहीं।
Nirmal Gupta खांचे व्यंग्य के किसने खींचे?☺
संतोष त्रिवेदी जिसने कविता,कहानी या उपन्यास के खाँचे खींचे।
अनूप शुक्ल ओ संतोष बाबू, आठ में चार व्यंग्य के खाचे में अगर फ़िट हो गये तो भौत है यार ! लिखना पहले होता है भाई जी। खांचे-फ़ांचे में फ़िट तो होता रहेगा। ठंड रख मास्टर ! :)
Ravishankar Shrivastava Nirmal Gupta मेरा भी यही प्रश्न है - खांचे किसने खींचे. :)
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Ramesh Tiwari निर्मल गुप्त के बारे में आपकी राय से सहमत हूँ | मूलत: कवि बाद में व्यंग्यकार | अरविंद तिवारी का व्यंग्य भी मँजा हुआ है | आपकी भाषिक रवानगी भी मजेदार है | बाकी मित्रों को बहुत पढ़ नहीं सका हूँ अभी |
अनूप शुक्ल पढने और राय देने के लिये शुक्रिया। बाकी के लेख भी बांचियेगा। समय मिले तो उनके लेख पर या यहां राय दीजियेगा। :)
Ramesh Tiwari जी कोशिश करूँगा | समय की कड़की है बस !
Indrajeet Kaur Intzaar rahega
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Arvind Tiwari बेहतरीन।सजंय झा मस्तान ने प्रभावित किया।
अनूप शुक्ल धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया का अरविन्द तिवारी जी ! :)
DrAtul Chaturvedi बढ़िया प्रयास है । विषय बताईयेगा मैं भी आपको कुछ भेजूंगा
अनूप शुक्ल विषय हम आपको बतायेंगे। आप अपनी वाल पर ही लिखियेगा। इतवार को प्रकाशित करिएयेगा। पाठक और हम भी वहीं बांच लेंगे फ़िर ”जुगलबंदी चर्चा’ में शामिल कल्लेंगे। :)
DrAtul Chaturvedi जी जरूर
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Udan Tashtari sahi reporting
अनूप शुक्ल शानदार टिप्पणी ! :)
एम.एम. चन्द्रा हार्दिक बधाई
अनूप शुक्ल हार्दिक धन्यवाद ! :)
Yamini Chaturvedi सभी ने बहुत बेहतरीन लिखा है .... मैं इस बार कुछ भी लिख पाने में असमर्थ थी, अगली बार प्रयास करती हूँ :)
Ramesh Tiwari इंद्रजीत कौर यदि बिना पर्चा देखे व्यंग्य पाठ करती हैं तो निश्चय ही श्रोताओं से बेहतर कनेक्ट होती होंगी | आलोक पुराणिक जी को भी हमने बिना देखे पाठ करते देखा है कई बार |
Indrajeet Kaur ने जवाब दिया · 1 जवाब
Nirmal Gupta संजय झा के पास कहने का बढ़िया अंदाज़ है।
Sanjay Jha Mastan आपकी तारीफ़ से बेहतर कॉम्पलिमेंट नहीं हो सकता ! इस स्नेह के लिए तत्पर रहूँगा :)
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