गांधी / शब्द संधान / डा. सुरेन्द्र वर्मा

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गांधी विचार से जुड़े कतिपय साधारण शब्द, जैसे चरखा, खादी, नमक, हड़ताल, धरना, आख़िरी आदमी आदि, ऐसे पद हैं जिन पर मानों गांधी का पेटेंट सा हो गय...

गांधी विचार से जुड़े कतिपय साधारण शब्द, जैसे चरखा, खादी, नमक, हड़ताल, धरना, आख़िरी आदमी आदि, ऐसे पद हैं जिन पर मानों गांधी का पेटेंट सा हो गया है. इन शब्दों ने एक गरिमा प्राप्त कर ली है. इन शब्दों में गांधी की याद चेतन-अचेतन रूप से एक अहसास की तरह जुड़ गई है. कुछ ऐसे ही शब्द प्रस्तुत हैं. ]

अनशन

सामान्यत: किसी विशेष संकल्प के साथ व्रत के रूप में आहार-त्याग ‘अनशन’ कहलाता है. इसे उपवास भी कहा गया है. संस्कृत में ‘अशन’ का मतलब भोजन या भोज्य पदार्थ से है. ‘अनशन’ इस प्रकार, ‘अशन’ में नकारात्मक प्रत्यय, ‘अन’ लगाकर ही बना है. इसका अर्थ हुआ, भोजन न करना. रोचक बात यह है कि हिन्दी ने अनशन शब्द को तो अपना लिया लेकिन भोजन के लिए हिन्दी-भाषियों में ‘अशन’ शब्द नकार दिया गया. भारत में निर्धारित तीज-त्योहारों पर उपवास करने का विधान है. यदि कोई बच्चा गलत काम करता है तो भारत में माताएं अपने लाढले को सुधारने के लिए बच्चे को दंड देने की बजाय स्वयं कुछ समय के लिए भोजन त्याग देती हैं. इसका बालक पर तत्काल सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और वह अपनी माता को भूखा-प्यासा देखकर सही रास्ता पकड़ लेता है. गांधीजी ने अनशन की इस परम्परा को एक राजनैतिक हथियार के रूप में अपनाया. यह हथियार प्रेम और अहिंसा का, सत्याग्रह का हथियार बन गया.

चरखा

हाथ से सूत कातने का, लकड़ी का बना, एक छोटा सा यंत्र चरखा कहलाता है. एक ज़माना था जब भारत में घर घर चरखा काता जाता था. हाथ का कता बारीक कपड़ा इंगलेंड में खूब पसंद किया जाता था. लेकिन अंगरेजी साम्राज्य ने धीरे धीरे विदेशी मिलों का कपड़ा लाकर चरखा बेमतलब कर दिया. ग्राम्य-जीवन में चरखा एक ऐसा शब्द है जो कई सन्दर्भों में इस्तेमाल किया जाता है. ऊख का रस निकालने के लिए जो यंत्र है, चरखा ही कहलाता है. कुए से पानी निकालने के लिए गराड़ी भी चरखा कही जाती है. स्वास्थ्य बनाने के लिए गाँव-गाँव में अखाड़े होते थे जिनमें कुश्तियां होती थीं, कुश्तियों का एक पेंच चरखा भी है. वस्तुत: कोई भी एक चीज़ जो घूमती हो, या घुमा दे, चरखा कहलाती थी. गांधी जी ने सूत कातने वाले चरखे को भारत में स्वावलंबन का प्रतीक बनाया और इस बेडौल पहिए ने गांधी के हाथ में आकर ब्रिटिश साम्राज्य को ही घुमा दिया.

खादी-खद्दर

जब चरखा सामने आया तो खादी भला पीछे कैसे रहती ! खद्दर या खादी वह कपड़ा है जिसका सूत हाथ से ही काटा जाता है और करघे पर हाथ से ही लूम पर बुना भी जाता है. ‘खादी शब्द कैसे बना कहना मुश्किल है. संभवत: यह ‘खद्द’ से बना है. खड्ड अर्थात वह गड्ढा जो करघे के नीचे बना होता है और जिसमें पाँव लटकाकर जुलाहा बुनता है. इस तरह हाथ के कते और हाथ के बुने कपडे को खद्दर कहा जाने लगा. हाथ के बुने वस्त्र के लिए ‘खादी’ नाम संभवत: सबसे पहले गांधी जी ने ही प्रयोग किया. व्यापारी अंगरेज़ जब भारत में आए तो उनकी व्यापार सामग्री में पहला स्थान यहाँ के सूती और रेशमी हाथ के कते-बुने कपडे का ही था. पर इंगलेंड में मशीनों के आविष्कार ने खादी की कमर ही तोड़ दी. स्वतंत्रता की लड़ाई में गांधीजी ने खादी को हथियार की तरह इस्तेमाल किया और उसके खोए गौरव को पुनर्प्रतिष्ठित किया. उसे सादगी और आत्म निर्भरता का प्रतीक बना दिया.

नमक

प्रतिदिन के खाने में नमक एक ज़रूरी तत्व है. इसके बिना खाना बेस्वाद लगता है. जंगलों में रहने वाले आदिवासी आज भी अधिकतर केवल नमक लेने के लिए शहर आते हैं और जंगल में मिलने वाली बहुमूल्य बूटियाँ, कन्द और शहद आदि नामक के बदले में व्यापारियों को थमा जाते हैं. ब्रिटिश साम्राज्य ने जब भारत में नमक पर कर लगाया तो गरीबों के दृष्टिकोण से गांधीजी को यह एक अत्यंत अन्यायपूर्ण कानून लगा. उन्होंने वायसराय से घुटने टेक कर निवेदन किया कि अन्य अन्यायपूर्ण कार्यों के साथ साथ नमक-कर को वापस ले लिया जाय ताकि नमक कानून भंग करने के लिए हमें आन्दोलन न करना पडे. वायसराय ने चुटकी भर नमक से सरकार का तख्ता पलटने की गांधी की ‘पागल योजना’ का मज़ाक उड़ाया. गांधीजी को लगा की उन्होंने घुटने टेक कर रोटी मांगी थी मगर उन्हें पत्थर मिला ! नामक आन्दोलन शुरू हुआ जो अंतत: भारत की स्वतन्त्रता के लिए अनेक कारकों में से एक महत्वपूर्ण कारक बना. गांधी ने इस प्रकार नमक को एक नई गरिमा और पहचान दी, वह केवल स्वाद की वस्तु न रहकर, स्वतन्त्रता आन्दोलन का एक अटूट हिस्सा बन गया.

बहिष्कार (‘बायकाट’)

बहिष्कार एक बहुत ही मामूली शब्द है. इसमें बाहर करने या अलग करने का भाव है. बिरादरी से बाहर करना या सम्बन्ध-त्याग बहिष्कार है. बहिष्कार के पीछे अधिकतर कटुता की भावना रहती है. भारत के गाँवों में जब अक्सर किसी व्यक्ति से नाराज़गी हो जाती थी तो उसका ‘हुक्का-पानी बंद’ कर दिया जाता था, अर्थात उसे बिरादरी से बहिष्कृत कर दिया जाता था. बहिष्कार किसी का भी किया जा सकता है, व्यक्ति का, वस्तु का, वर्ग का, संस्था का इत्यादि. गांधीजी को बहिष्कार में अनेक सामाजिक-राजनैतिक संभावनाएं नज़र आईं. अन्याय के जितने भी क्षेत्र थे गांधीजी ने उन्हें बहिष्कृत करने का बीड़ा उठा लिया और न्याय के लिए आवाज़ उठाई. गांधीजी के लिए सबसे बड़ा मूल्य अहिंसा या प्रेम था. लेकिन बहिष्कार में अधिकतर कटुता और घृणा होती है. गांधी जी ने बहिष्कार को तो अपनाया लेकिन उसे कटुता से दूर रखा. उनके हाथों इस प्रकार, बहिष्कार का परिष्कार हुआ. गांधीजी ने विदेशी कपडे और माल का, और शराब जैसी चीजों का बहिष्कार किया लेकिन अछूतों को जो मंदिरों से बहिष्कृत थे, उनके लिए मंदिरों के द्वार भी खुलवाए.

हड़ताल

‘हड़ताल’ शब्द मूलत: ‘हटताल’ है. यह दो शब्दों से मिलकर बना है – हट्ट + ताल. हट्ट/हाट बाज़ार को कहते हैं. जब बाज़ार में ताला जड़ दिया जाए तो यह ‘हटताल’ हो गया. आज के राजनैतिक माहौल में विरोध की एक प्रचलित पद्धति के रूप में ‘हड़ताल’ से हर कोई त्रस्त है. लेकिन यही हड़ताल गांधीजी के लिए अन्याय के खिलाफ लड़ने का एक बड़ा कारगर हथियार था. पर उन्होंने इसका कभी बेजा इस्तेमाल नहीं होने दिया. आज अपने अपने दुराग्रहों के लिए सत्याग्रह का नाम लेकर राजनैतिक दल और निहित स्वार्थ हड़ताल कराते हैं और आन आदमी को परेशानी में डालते हैं.

धरना (‘पिकेटिंग’)

यूं तो धरने का अर्थकिसी चीज़ को रख देने, धर देने, या धारण करने से है, किन्तु आग्रहपूर्वक किसी बात को लेकर अड़ जाना भी धरना ही है. यह किसी के द्वार पर अपनी बात मनवाने के लिए हठपूर्वक बैठ जाना है. जब तक मांग या कार्य पूरा न हो, प्रार्थना स्वीकार न कर ली जाए, वहीं डटे रहना है. धरना देने में सामान्यत: ज़बरदस्ती और बल-प्रयोग की ध्वनि आती है. लेकिन गांधीजी ने धरने को अहिंसक प्रतिरोध के एक साधन के रूप में प्रयोग करने को कहा. धरने में यदि बल प्रयोग होता है या डाटने-धमकाने और किसी प्रकार की अशिष्टता दिखाने की बात आती है, तो ऐसे धरने को वे हिंसक और बर्बरतापूर्ण बताते थे. उनके अनुसार धरना यदि शान्त न रह सके तो उसे एक दम बंद कर देना चाहिए. गांधीजी ने शराब, अफीम आदि, नशीली चीजों के बहिष्कार के लिए घर घर जाकर धरना देने की अनुशंसा की थी. उनका मानना था ऐसी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए धरने का असर अधिक होता है और करीब करीब स्थाई होता है. धरना देने का उनका उद्देश्य शायद समस्या का हल उतना न था जितना लोक-मत का निर्माण था. बहरहाल, गांधीजी ने हड़ताल, बहिष्कार और धरना जिसे विषयों में संलग्न जोर-ज़बरदस्ती और हिंसक आचरण को झटककर इन्हें अहिंसक प्रतिरोध का माध्यम बनाया.

अंतिम व्यक्ति

भारत ही नहीं सारे विश्व में ‘प्रथम-पुरुष’ के सम्मान में तो सभी झुक जाते हैं, लेकिन आख़िरी आदमी के बारे में कोई चिंता नहीं करता. गांधीजी के वैचारिक पदानुक्रम में प्रथम-पुरुष अंतिम व्यक्ति है. जब भी हम संदेह में हों या हमारा अहं हम पर हावी होने लगे तो गांधीजी ने हमें एक जंतर दिया और यह कसौटी आज़माने के लिए कहा की हमने जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी देखा हो उसकी शक्ल याद करें और अपने दिल से पूछें कि जो कदम हम उठाने का विचार कर रहे हैं क्या वह उसे कुछ लाभ पहुंचा सकेगा? अंतिम व्यक्ति की चिंता को गांधीजी ने इस प्रकार हमारे व्यवहार की कसौटी बना दिया और उसे पायदान में सबसे ऊपर उठा दिया.

- सुरेन्द्र वर्मा १० एच आई जी, १, सर्कुलर रोड, इलाहाबाद, २११००१

मो. ९६२१२२२७७८

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रचनाकार: गांधी / शब्द संधान / डा. सुरेन्द्र वर्मा
गांधी / शब्द संधान / डा. सुरेन्द्र वर्मा
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