विज्ञान-कथा नए दौर में..... अभिषेक मिश्र, रत्ना रॉय तीसरी सहस्राब्दी का सोरोना मंडल- वह दौर जब पृथ्वी के विभिन्न भागों में माइग्रेशन...
विज्ञान-कथा
नए दौर में.....
अभिषेक मिश्र, रत्ना रॉय
तीसरी सहस्राब्दी का सोरोना मंडल- वह दौर जब पृथ्वी के विभिन्न भागों में माइग्रेशन कर रहे लोगों ने सौर मंडल के अलग-अलग ग्रहों-उपग्रहों में पृथक छोटी-बड़ी मानव बस्तियाँ बसा ली थीं। विज्ञान के अभूतपूर्व विकास के बावजूद मानव अपनी विशिष्ट पहचान और वजूद कायम रखने के बुनियादी स्वभाव को मिटा न सका था। विज्ञान पर आधारित यह समाज अब धर्म, जाति जैसी विभाजक पहचान से मुक्त था और अलग-अलग ग्रहों में बसी ये विभिन्न सभ्यताएँ विभिन्न तनावों और गंभीर बहसों आदि के नतीजे के रूप में पहली बार एक साझी व्यवस्था के अंतर्गत एक संघ के रूप में एक साथ आने पर सहमत हुइर्ं; किन्तु अपनी व्यक्ति पहचान और श्रेष्ठता सिद्ध करने की भावना उनमें कहीं न कहीं छुपी ही थीं। इस पूरे मंडल के विभिन्न क्रियाकलापों के सुचारू संचालन हेतु सभी सदस्य इकाईयों के प्रतिनिधि सदस्योें की एक कार्यपरिषद गठित की गई थी। इस परिषद में अलग-अलग क्षेत्रों में विशिष्ट मुकाम हासिल कर चुकी हस्तियों को चयनित किया गया था जिसमें 16 वर्ष से लेकर 60 वर्ष तक के स्त्री-पुरुष शामिल थे। सोरोना संघ के गठन के बाद यह पहला आयोजन है जिसमें सभी ग्रहों के प्रतिनिधि एक उन्मुक्त और खुशनुमा माहौल में भाग लेंगे। इस आयोजन का उद्देश्य है इस मंडल के एक आदर्श को चुनना। एक आदर्श चरित्र की उपयोगिता सभ्यता के प्रारम्भिक काल से ही रही है। समाज और आने वाली पीढ़ियों को एक प्रतीकात्मक संदेश देने के लिए इनकी जरूरत सदा से रही है। यही कारण है कि किसी समाज के मौलिक ढांचे को चोट पहुँचाने वाली शक्तियाँ सबसे पहले उनके आदर्शों को ही अपना निशाना बनती रही हैं। यही पृष्ठभूमि थी इस आयोजन की कि नए सिद्धांतों पर आधारित इस नई दुनिया के लिए भी एक ऐसा चरित्र ढूँढा जाए जो इसकी विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता हो। जाहिर है इस आयोजन के प्रति उत्सुकता के साथ इस नवीन संघ में अपनी पहचान पाने की प्रेरणा भी अंतस में कार्य कर रही थी। चर्चा का विषय सिर्फ
प्रतियोगिता ही नहीं बल्कि इसमें प्रतिभागिता और चयन प्रक्रिया भी थी। प्रतियोगिता में न तो किसी प्रकार के नोमिनेशन का प्रावधान था न ही कोई आयु सीमा। आयोजन समिति के अध्यक्ष मिखाईल ने समिति के अन्य सदस्यों के लंबी बहस के बाद कुछ नियम तय किए थे, जिनका अब अनुपालन सुनिश्चित होना था। सुपर कम्प्यूटर में संरक्षित डेटाबेस से ही नोमिनेशन चुने जाने थे। और चयन समिति खुद ही विजेता का चयन करने वाली थी। बिना नोमिनेशन और वोटिंग के ऐसी प्रतियोगिता के स्वरूप को लेकर सभी में स्वाभाविक उलझन और अनिश्चितता भी थी। आखिर प्रतियोगिता का वो दिन भी आ ही पहुँचा जिसकी सभी को बेसब्री से प्रतीक्षा थी। पृथ्वी की प्राचीनतम सभ्यताओं में एक भारतीय ग्रंथों में देवगुरु के रूप में प्रतिष्ठापित बृहस्पति ग्रह ही मेजबान था इन अनूठे आयोजन का। प्रतियोगिता के विजेता को दी जाने वाली उपाधिका नाम भी गुरु ही था। आयोजन स्थल पर उपस्थित दर्शकों के अलावा सोरीना मंडल के सभी निवासी टेलीपैथिक तरंगों के माध्यम से इस आयोजन को देख पा रहे थे। इस प्रक्रिया में आयेाजन स्थल में कुछ विशेष तरंगें प्रक्षेपित की जा रही थीं, जिसे इस आयोजन को देखने में इच्छुक कोई भी व्यक्ति अपने मानस पटल पर केन्द्रित कर कर एक छवि की रचना कर सकता था। यहीं से वो अपने विचारों को इन्हीं तरंगों के माध्यम से आयोजन से जुड़े अधिकारियों तक पहुँचा भी सकता था।
तय समय पर कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। प्रतियोगिता समिति के अध्यक्ष मिखाईल के सधे हुए स्वरों में कार्यक्रम की रूपरेखा रखनी शुरू की- ‘‘मित्रों, जैसा कि आप सब जानते हैं हम यहाँ इस मंडल के एक आदर्श व्यक्तित्व के चयन के लिए एकत्र हुये हैं। अपनी प्राचीन मानव सभ्यता की कुछ प्राचीन परंपराओं के अनुक्रम में हम एक सौंदर्य प्रतियोगिता सदृश्य कोई आयोजन भी कर सकते थे। मगर आज के इस विकसित दौर में हमारी राय में प्रतियोगिता जैसी अवधारणा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। यह नया मंडल जो जाति, धर्म असमानता आदि
अवधारणाओं से मुक्त समाज का उदाहरण है- हर व्यक्ति अपने-आप में विशिष्ट है। इसलिए यह एक प्रतियोगिता नहीं अपितु चयन है ऐसे व्यक्तित्व का जो आदर्श और प्रेरणा बन सके समाज का भी। स्त्री हो अथवा पुरुष- उसके व्यक्तित्व के निर्माण में निश्चित रूप से प्रकृति प्रदत्त गुणों के अलावा उसकी खुद की विकसित क्षमताओं, आत्मविश्वासों आदि की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हम आज इन्हीं गुणों के आधार पर प्रतिभागी का समग्र मूल्यांकन करेंगे और इसी आधार पर आदर्श का चयन करेंगे।
दर्शकों में से एक प्रश्न उभरा- मगर आपने प्रतियोगिता के नोमिनेशन में किन्हें और किस आधार पर शामिल किया है? तनिक हमें भान तो हो कि हमारे प्रतिनिधि कौन हैं और क्यों?’’ मिखाईल ने शांति से प्रत्युत्तर दिया- ‘‘आपका प्रश्न बिल्कुल उचित है। जैसा कि आप जानते हैं इस मंडल के लाखों सदस्य हैं। इनमें से हमने 21 वर्ष से कम आयु के सदस्यों को नोमिनेशन में भी शामिल नहीं किया है।’’ यह सुनते ही सभा स्थल में खुसर-फुसर की आवाजें तेज हो गइर्ं। हों भी क्यों न! यही तो वो उम्र होती है जब सौंदर्य के साथ कई अन्य विशेषताएँ अपने तमाम मापदंडों के साथ अपनी ओर एक आकर्षण रच रही होती हैं। मगर इसी आयु वर्ग के सदस्यों को ही नोमिनेशन में शामिल नहीं किया जाएगा। मिखाईल ने शायद उनके मन में उभर रहे विचारेां को उनके चेहरे के भावों में पढ़ लिया और पुनः कहना आरंभ किया- ‘‘जूरी की राय में यह आयु अभी उनके स्वयं को समझने, सीखने और एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में खुद को ढालने की है। एक जागरूक और जिम्मेदार नागरिक ही किसी राष्टं-राज्य के अलंकार हो सकते है।’’ दर्शकों का एक बड़ा वर्ग निराश तो था, मगर वो जूरी इस राय से असहमत भी नहीं था। आयोजन का उनका मुख्य आकर्षण तो अब कम ही हो गया था, किन्तु उनकी उत्सुकता अब इस मायने में बढ़ गई थी अब इसके आगे किन आधारों पर और किसे विजेता चुना जाएगा।
मिखाईल ने आगे कहा- मैं जानता हूँ कि अब आपकी उत्सुकता शेष प्रतिभागियों में से विजेता को चुनने की प्रक्रिया को जानने में होगी। जूरी ने इस विषय पर काफी विचार-विमर्श किया कि क्या रूप, युवावस्था, रंग-रूप ही सुंदरता अथवा किसी व्यक्ति के आदर्श होने के प्रतिमान हैं या व्यक्तिगत गुण, भावनाएँ, अनुभव, चारित्रिक दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ते हुये दुनिया को बेहतर बनाने के उद्देश्य में अपने योगदान का भी कुछ महत्व है? त्वचा का रंग मात्र एक भौतिक पक्ष है जो भोगौलिक, जेनेटिक आदि कारणों पर निर्भर है। मात्र रंग-रूप और शारीरिक बनावट ही सौंदर्य और श्रेष्ठता का एकमात्र पैमाना कदापि नहीं हो सकता। व्यक्ति और उसके व्यक्तित्व का समग्र सौंदर्य उसकी मानवीय विशेषताओं में निहित होता है। दुनिया को आज के इस स्वरूप में पहुँचाने वालों में सिर्फ गोरे और सुंदर लोग ही नहीं थे। भाँति-भाँति के रंग-रूप, शारीरिक बनावट आदि के लोगों के योगदान ने हमें आज यहाँ तक पहुँचाया है। हमारा आज का यह आयोजन समर्पित है ऐसे व्यक्त्विों को, और हमारे विजेता प्रतिनिधित्व करेंगे मनुष्य की विकासयात्रा में अपना अमूल्य योगदान देने वाले ऐसे ही जाने-अनजाने व्यक्तियों का।’’ नई दुनिया की इस नई पहल को सभी कहीं-न-कहीं स्वीकार भी कर रहे थे और उनके अंदर अब इस नई व्यवस्था के पहले और नए प्रतिनिधि को देखने की उत्सुकता चरम पर थी।
मिखाईल भी अब इस विषय को औ लंबा न खींचते हुए मुख्य बिन्दु पर आ रहे थे- ‘‘अब मैं आपको ये बता ही दूँ कि हमारे इस आयोजन का प्रथम सम्मान एक स्त्री को प्राप्त हुआ है। क्या आपने ये सोचा कि इस परिषद के पहले आयोजन में एक स्त्री ही क्येां और किस प्रकार चयनित हुई? हमारी राय में स्त्री को ईश्वर ने विशेष गुण और क्षमताएँ दी हैं, जो पुरुषों को भी नहीं दीं। शायद तभी एक वक्त हमारी सभ्यता भी मातृसत्तात्मक थी। लगभग प्रत्येक प्राचीन सभ्यता में स्त्री को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। स्त्री की प्रजनन शक्ति जो इस दृष्टि के चक्र की धुरी है को स्वीकारने और सम्मान देने की अनेकानेक परम्पराएँ हमारी वैश्विक संस्कृति में रही हैं इस मुख्य दायित्व को निभाने के साथ-साथ भी स्त्री ने अपनी कई अन्य भूमिकाओं में बखूबी निभाया है। अपने परिवार, अपने बच्चों को उचित संस्कार देने, उन्हें भविष्य को बेहतर नागरिक बनाने, विश्व की बेहतरी में अपने योगदान हेतु तैयार और प्रेरित करवाने के अलावा इस दिशा में अपने व्यक्तिगत प्रयासों भी महिलाएं करती आई हैं जिसके लिए मानव सभ्यता उनकी ऋणी है। आज हमारे इस मुकाम तक पहुँचने में युद्ध आदि विभीषिकाओं से उबरने और समग्र विकास के लक्ष्य के साथ यहाँ तक पहुँचने में भी स्त्रियों का अकथनीय योगदान रहा है। इस पूरी विकास यात्रा के दौरान नारी कभी स्वतंत्रत अस्तित्व में हो या माँ, बहन, पत्नी, प्रेयसी अथवा बेटी के रूप में- हमारी मार्गदर्शक और प्रेरणा बनती आई हैं एक गुरु- एक नेतृत्वकर्ता के रूप में भी उसने समय-समय पर अपनी भूमिका निभाई है। नारी के इस समग्र रूप और उसके योगदान को स्वीकार करते हैं और पूर्ण सम्मान देते हुए इस अंतरग्रहीय परिषद के प्रथम आदर्श का सम्मान और इसके प्रतीक के रूप में ‘गुरु’ सम्मान से अरुंधति जी को सम्मानित करेंगे। अरुंधति जी न सिर्फ एक कुशल गायिका और वीणा वादिका हैं, अपितु एक गूढ़ दार्शनिक भी है। अंतरग्रहीय परिषद में सिद्धान्त को व्यावहारिक रूप देने में इनकी महती भूमिका रही हैं इन्होंने अपने जीवन में स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया, किन्तु अपनी जिम्मेदारियों से नहीं। इनसे प्रेरणा पाते हुए कई युवक आदि कला, विज्ञान, अंतरिक्ष आदि कई क्षेत्रों में अपना योगदान दे रहे हैं। इन्हें इस परिषद का प्रथम ‘गुरु’ सम्मान प्रदान करते हुए हम स्वयं भी सम्मानित महसूस कर रहे हैं।
मिखाईल के संबोधन के बाद देर तक होती हर्षध्वनि इस निर्णय की सर्वस्वीकृति की परिचायक थी। विभिन्न ग्रहों-उपग्रहों से चयनसमिति और अरुंधति जी के लिए बधाई और इस चयन प्रक्रिया से सहमति के संदेश आ रहे थे। अरुंधति जी भी चयनसमिति के इस निर्णय को पूर्ण गरिमा से स्वीकार करने के साथ आने वाली जिम्मेदारियों के प्रति खुद को तैयार कर रही थीं। एक नई व्यवस्था में एक नई पहल मानवीय सभ्यता के एक नए मोड़ की ओर बढ़ने का ईशारा कर रही थी, जिसे सभी निवासियों का एकमत से संपूर्ण समर्थन प्राप्त था।
संपर्क_
abhi.dhr@gmail.com
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