बाल विज्ञान-कथा नरबल का रहस्य जीशान हैदर जैदी अपने सामने मौजूद उस खतरनाक दैत्य को मारने के लिये रवि ने फुर्ती के साथ गन सीधी की। गन ...
बाल विज्ञान-कथा
नरबल का रहस्य
जीशान हैदर जैदी
अपने सामने मौजूद उस खतरनाक दैत्य को मारने के लिये रवि ने फुर्ती के साथ गन सीधी की। गन से पीले रंग की आग निकली और सामने मौजूद दैत्य उसकी आग में भस्म हो गया।
''याहू!'' रवि ने अपने हाथों को हिलाकर खुशी का नारा लगाया, ''बस अब आखिरी दरवाजा और उसके बाद कामयाबी मेरी मुट्ठी में होगी।''
आखिरी दरवाजा धीरे खुल रहा था। दरवाजा खुला और इसी के साथ ताबड़तोड़ अन्दर से गोलियां चलने लगी। अगर रवि जरा भी चूकता तो गया था काम से। उसका बचना बहुत जरूरी था। क्योंकि वह उन पचास बच्चों की उम्मीदों का सहारा था जो नरबल की कैद में थे।
नरबल निहायत खतरनाक राक्षस था और उसकी प्यास छोटे बच्चों के खून से बुझती थी और इस वक्त भी पचास बच्चे उसकी कैद में मौजूद थे। जिनमें से हर रोज कम से कम दो बच्चे उसकी खून की प्यास की भेंट चढ़ जाते थे।
लेकिन आज नरबल के सितारे गर्दिश में थे। क्योंकि रवि ने उसके रचे हुए पूरे चक्रव्यूह को पार कर लिया था और अब मुकाबला आमने सामने का था। गोलियों से बचते हुए रवि ने अपनी गन से फायर किया और नरबल के हाथ में मौजूद गन के परखच्चे उड़ गये।
लेकिन यह क्या? अब नरबल के हाथों में एक वज्र जैसा हथियार नजर आ रहा था। उस हथियार को नरबल ने रवि की ओर किया और उसमें से खतरनाक रंग की नीली किरणें निकलीं। रवि ने फुर्ती के साथ अपने को साइड में किया।
वह किरणें पीछे मौजूद दीवार से टकराई और पूरी दीवार भाप बनकर उड़ गयी। इस का मतलब कि नरबल के हाथ में मौजूद हथियार निहायत खतरनाक था। रवि ने उसपर अपनी गन से फायर किया। गन से निकलने वाली किरणें नरबल के जिस्म से टकराईं। लेकिन नरबल पर कोई असर नहीं हुआ।
एक किरण नरबल के ब्रज पर भी पड़ी लेकिन उसका भी कुछ नहीं बिगड़ा।
अब रवि अपने को असहाय महसूस कर रहा था। नरबल धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रहा था। लेकिन उसे मारने को कोई तरीका उसकी समझ में नहीं आ रहा था।
'अगर किसी तरह उसका वज्र मेरे हाथ में आ जाये तो. ..,' उसने सोचा और चारों तरफ नहर दौड़ायी। फिर एक तरकीब उसकी समझ में आयी। इस बार उसने सीधे नरबल पर फायर करने की बजाये उसके पैरों के पास जमीन पर फायर किया। इस बार परिणाम उसकी आशा के अनुरूप था। उसके फायर करने से जमीन पर एक बड़ा सा गडढा बन गया था, नरबल के ठीक सामने। नरबल को इसका एहसास तक नहीं हुआ और वह पहले की तरह रवि को निशाने पर रखकर आगे बढ़ा चला आया।
जैसे ही उसका पैर गडढे में पहुंचा उसका बैलेंस बिगड़ गया और वह औंधे मुंह जमीन पर आ गया। वज्र नुमा हथियार उसके हाथ से छूट गया। फिर उस हथियार को उठाना रवि के लिये कुछ मुश्किल नहीं था।
जैसे ही हथियार रवि के हाथ में आया रवि ने बिना देर किये उसका रुख नरबल की ओर करके फायर झोंक दिया। दूसरे ही पल नरबल के परखच्चे उड़ चुके थे।
नरबल के मरने के साथ उसका तिलिस्म टूट चुका था। जिस कैदखाने में बच्चे बन्द थे उसका दरवाजा खुद ब खुद खुल गया और तमाम बच्चे खुशियां मनाते हुए रवि के पास इकटठा होने लगे।
और इसी के साथ उसके सामने एक संदेश चमकने लगा- 'बधाई हो। आप इस खेल को जीत गये हैं। क्या आप इस खेल को दोबारा चाहते हैं?'
ये संदेश उसकी कम्प्यूटर स्क्रीन पर चमक रहा था। रवि कम से कम सौ पच्चीस बार यह गेम खेलने के बाद आज पहली बार जीता था। उसने कम्प्यूटर की साइड पर मौजूद घड़ी देखी। रात का एक बज चुका था।
'उफ! इस गेम को खेलने में समय का पता ही नहीं चला।' जब वह कम्प्यूटर पर यह गेम खेलने बैठा था उस वक्त आठ बजे थे। यानि पूरे पाँच घंटे लगातार खेलने के बाद यह खेल खत्म हुआ था। लेकिन उसे खुशी इस बात की थी कि आज उसने इस गेम को जीत लिया है। उसके हाईस्कूल के इग्जाम खत्म हो चुके थे और अब उसका ज्यादातर वक्त कम्प्यूटर गेम्स खेलने में बीत रहा था।
'अब सोना चाहिए' उसने इरादा किया और कम्प्यूटर बन्द कर दिया। फिर वह लाइट बन्द करने के लिये उठा। उसने खिड़की से बाहर देखा तो आसपास के तमाम फ्लैटस की लाइटस बन्द हो चुकी थीं। सिर्फ उसी के कमरे की लाइट जल रही थी। उसने लाइट बन्द की और चारों तरफ घुप्प अँधेरा छा गया।
लेकिन नहीं, पूरी तरह अँधेरा नहीं छाया था बल्कि उसके कमरे में एक हल्की सी रोशनी फैली हुई थी। हरे रंग की।
'ये रोशनी किधर से आ रही है? मैंने तो सारी बत्तियाँ बुझा दी हैं?' उसे आश्चर्य हुआ। रोशनी के स्रोत की तलाश में उसने इधर उधर नजरें दौड़ायीं। फिर उसने देखा कि रोशनी उसके कम्प्यूटर के मानिटर से निकल रही है।
'लेकिन कम्प्यूटर तो मैंने बन्द कर दिया था?' शायद वह मानिटर ऑफ करना भूल गया था।
वह फिर से कम्प्यूटर के पास पहुंचा। उसने देखा पूरा कम्प्यूटर बन्द था लेकिन मानिटर खुला हुआ था और उस मानिटर के ऊपर नरबल की एक छोटी सी तस्वीर नजर आ रही थी। वह नरबल जिसे अभी उसने मारकर गेम को जीता था।
यह आश्चर्य की बात थी कि कम्प्यूटर बन्द होने के बावजूद उसकी स्क्रीन पर नरबल की तस्वीर नजर आ रही थी।
'हो सकता है गेम के साफ्टवेयर में कोई ऐसी बात हो' उसने मानिटर का बटन उसे ऑफ करने के लिये दबाया।
लेकिन यह क्या? ऑफ करने के बावजूद मानिटर पहले की तरह चमक रहा था और साथ में नरबल की तस्वीर थी।
और न सिर्फ चमक रही थी बल्कि उसका आकार भी धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था। फिर उसका आकार इतना बड़ा हो गया कि पूरी स्क्रीन पर छा गया।
लेकिन आकार का बढ़ना फिर भी नहीं रुका। बल्कि अब वह तस्वीर बड़ी हो गयी थी कि मानिटर के बाहर निकल आयी थी।
रवि घबरा कर कई कदम पीछे हट गया। 'य..ये क्या हो रहा है?'
अब नरबल की तस्वीर इतनी बड़ी हो गयी थी कि पूरा कम्प्यूटर उसके पीछे छुप गया।
'ये क्या हो रहा है?' रवि की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तस्वीर का आकार बढ़ता ही जा रहा था। कम्प्यूटर व उसकी मेज सभी उसके पीछे छुप चुके थे। फिर बढ़ते बढ़ते उसका सर कमरे की छत से टकराने लगा।
अब रवि अपने सामने नरबल को उसके पूरे साइज में देख रहा था। जिंदा, अपने पूरे भयानकपन के साथ।
''हो हो हो'' वह एक भयानक हंसी हंस रहा था। ''क...कौन हो तुम?'' घबराये हुए रवि के मुंह से अनायास ही निकला।
''इतनी जल्दी भूल गये! अभी तो तुम मुझसे खेल रहे थेवह अपनी भयानक आवाज में बोला।
''ल..लेकिन, वह तो कम्प्यूटर गेम था और उसमें मैंने तुम को मार दिया था।''
''वह कम्प्यूटर गेम नहीं मुझे इस दुनिया में लाने का तरीका था। उस गेम के बनते समय अन्दर हमने कुछ ऐेसे बदलाव कर दिये हैं कि जैसे ही कोई उसके द्वारा नरबल को मारता है, वह नरबल इस दुनिया में प्रवेश कर जाता हे।''
''लेकिन वह गेम तो जापान की एक कंपनी ने बनाया है?'' रवि ने अविश्वास के भाव में कहा।
''हाँ! गेम उसकी ने बनाया है। लेकिन उस कंपनी को भी नहीं मालूम कि उसके गेम में एक अज्ञात दुनिया के वासियों ने अपने मनमाफिक बदलाव कर दिये हैं।''
''तुम इस दुनिया में आकर क्या करना चाहते हों?'' नरबल को सामने देखकर रवि की सिटटी पिटटी गुम थी।
''मैं इस दुनिया से तुम जैसे पृथ्वीवासियों को अपनी दुनिया में ले जाकर एक खास जगह बसाना चाहता हूं। वह एक ऐसी जगह है जैसे कि तुम्हारी पृथ्वी पर चिड़ियाघर। जिसमें हर तरह के जानवरों के नमूने तुम लोग इकटठा करते हो। इसी तरह हम लोग हर तरफ घूम घूमकर ऐसी जातियों के नमूने इकटठा कर रहे हैं जो विकास में हमसे कमतर हैं और तुम मेरे साथ चलने के लिये तैयार हो जाओ'' कहते हुए उसने रवि को घूरा।
अब रवि के होश पूरी तरह गुम हो चुके थे। नरबल से बचने का कोई रास्ता उसकी समझ में नहीं आ रहा था। ये क्या मुसीबत थी नरबल उसे अपनी दुनिया के चिड़ियाघर में रखने जा रहा था। फिर उन लोगों के बच्चे उन्हें जानवरों की तरह देखते और तालियां पीटकर खुश होते।
''नहीं, मैं कहीं नहीं जाऊंगा'' रवि चीख पड़ा। ''अब तुम्हारी कोई मर्जी नहीं चलने वाली'' कहते हुए नरबल ने अपने हाथ में पकड़ा अजीब सा हथियार रवि की ओर किया और उसमें से अजीब सी रस्सी निकलकर रवि के जिस्म से लिपटने लगी।
रवि ने उससे बचने की कोशिश की लेकिन जितना वह उससे बचने की कोशिश कर रहा था रस्सी उतनी ही ज्यादा उसके चारों तरफ कसती जा रही थी।
''प्लीज मुझे मत ले जाओ। मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं। मेरे मम्मी डैडी मेरे बगैर जी नहीं पायेंग'' रवि उससे विनती कर रहा था लेकिन नरबल के ऊपर कोई असर नहीं हो रहा था। अब वह कमरे के दरवाजे की ओर बढ़ रहा था। इसी के साथ रवि को भी उसी दिशा में जबरदस्ती बढ़ना पड़ रहा था। क्योंकि रस्सी उसे बलपूर्वक खींच रही थी।
नरबल ने कमरे का दरवाजा खोला और अब सामने दिख रही गैलरी में अपनी कदम बढ़ाये।
''रुक जाओ। वरना....!'' अचानक सामने से आवाज आयी।
रवि ने खुश होकर देखा। क्योंकि ये आवाज उसके डैडी की थी। उसने देखा कि उसके डैडी एक अन्य स्मार्ट व्यक्ति के साथ नरबल के रास्ते में खड़े हुए थे।
उस व्यक्ति के साथ में एक अजीब सा हथियार था, ठीक किसी इंजेक्शन की सीरिंज की तरह, और उस हथियार का रुख नरबल की तरफ था।
''अब मुझे कोई नहीं रोक सकता। मैं इस लड़के को ले जा रहा हूं'' कहते हुए नरबल आगे बढ़ा।,
अचानक डैडी के साथ खड़े हुए व्यक्ति ने अपने हथियार का बटन दबा दिया। दूसरे ही पल उस सीरिंजनुमा हथियार से पानी जैसे किसी लिक्विड की फुहार निकली थी। जैसे ही वह फुहार नरबल पर पड़ी वह आग पर रखे घी की तरह पिघलने लगा साथ ही वह चीख चिल्ला रहा था।
और फिर कुछ ही देर बाद वहाँ नरबल का नामोनिशान नहीं था बल्कि थोड़ा सा पानी जैसा लिक्विड जमीन पर पड़ा दिखाई दे रहा था। अब डैडी के पास खड़े व्यक्ति ने सीरिंज नुमा हथियार का रुख रवि की तरफ किया और बटन एक बार फिर दबा दिया।
रवि ने डर कर अपनी आँखें बन्द कर लीं। जैसे ही लिक्विड रवि के ऊपर गिरा, एक अजीब सी ठंडक रवि को अपने पूरे जिस्म में महसूस हुई। वह बुरी तरह काँप रहा था। ''रवि....रवि बेटे। मेरे रवि को क्या हो गया है'' डैडी की परेशानी भरी आवाज सुनकर उसने आँखें खोल दीं।
लेकिन यह क्या? यहाँ तो दृश्य ही बदला हुआ था। वह तो किसी हास्पिटल के बेड पर मौजूद था और सामने वही स्मार्ट सा हाथ में सीरिंज लिये हुए मौजूद था। दरअसल वह उस अस्पताल का डाक्टर था।
''म...मैं कहाँ हूं?'' उसने कमजोर आवाज में कहा। ''रवि बेटे। तू हास्पिटल में हैं। तू रात को कम्प्यूटर पर काम करते करते बेहोश हो गया था तो हम तुझे यहाँ ले आये'' उसके डैडी ने बताया।
''ओह! तो इसका मतलब नरबल सिर्फ कम्प्यूटर गेम के अन्दर ही था। बाहर नहीं आया था'' रवि ने सुकून की गहरी साँस ली।
''क्या मतलब? ये नरबल का क्या किस्सा है?'' डैडी ने चौंक कर पूछा। जवाब में रवि ने पूरी कहानी सुनायी।
''दरअसल यही है असली समस्या'' इस बार डाक्टर ने डैडी को मुखातिब किया, ''रवि को कम्प्यूटर गेम्स एडिक्शन हो गया है। यानि एक तरह का सिण्डोंम, जो कम्प्यूटर गेम्स को बहुत ज्यादा खेलने से होता है। ये बहुत खतरनाक है जिसमें इंसान अपनी पर्सनालिटी भूलकर आभासी दुनिया में रहने लगता हैं।''
''मैंने कई बार मना किया कि कम्प्यूटर की जरूरत भर इस्तेमाल किया करो। लेकिन मेरी बात मानी ही नहीं जाती।'' डैडी ने परेशानी भरे लहजे में कहा।
''देखो रवि बेटे। कम्प्यूटर गेम्स में जब तुम हारते या जीतते हो तो वो सिर्फ नकली हार या जीत होती है। लेकिन असली जिंदगी में जीतने के लिये तुम्हें असली हीरो बनना होगा और यह तभी मुमकिन है जब तुम शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में शक्तिशाली बनो'' डाक्टर सयाहब ने रवि को समझाया।
''और यह तभी हो सकता है जब तुम शारीरिक खेल जैसे कि फुटबाल या हॉकी वगैरा खेलो। सुबह की ठंडी जाती हवा में जागिंग करो। इससे तुम्हारा दिमाग भी खुलेगा और शारीर भी मजबूत होगा। जबकि कम्प्यूटर गेम्स की अधिकता तुम्हें शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में ही कमजोर कर देती है'' डैडी ने भी समझाया।
रवि ने समझने के अंदाज में सर हिलाया, '' आप ठीक कहते हैं। आज से कम्प्यूटर गेम्स बन्द। मेरी समझ में आ गया
है कि ये सिर्फ सेहत को बिगाड़ते हैं, बनाते नहीं।''
रवि की बात पर रवि के डैडी ने सुकून की साँस ली। यह कोई अंजान दुनिया थी। जिसका पता पृथ्वी वासियों को हरगिज नहीं था और इस दुनिया में ऐसे बेशुमार लोग इधर उधर घूम रहे थे जिनका हुलिया नरबल जैसा था। उन ही में से एक व्यक्ति अपने बादशाह के सामने सर झुकाये खड़ा था। ''तुम्हें उस पृथ्वीवासी लड़के को परेशान नहीं करना चाहिए था। ऐसा करके तुमने हमारी दुनिया के नियम को तोड़ा है।
''मैं माफी चाहता हूं सम्राट। लेकिन हम लोग उन पृथ्वीवासियों से बहुत परेशान हैं। जब वे कम्प्यूटर गेम्स खेलते हैं तो हम लोग बहुत ज्यादा डिस्टर्ब हो जाते हैं'' उस व्यक्ति ने सर झुकाकर कहा।
''हाँ, परेशानी हम सब को होती है। लेकिन इसके बाद भी हम उनकी दुनिया में कोई दखलअंदाजी नही कर सकते। यह नियम विरुद्ध है'' सम्राट ने सख्ती से कहा।
''मैं माफी चाहता हूं। आइंदा आपको कोई शिकायत नहीं मिलेगी।''
''शुक्रिया सम्राट। वैसे भी वह लड़का अब कम्प्यूटर गेम्स खेलना बन्द कर चुका है।'' उस व्यक्ति ने सम्राट के सामने सर झुकाया और फिर बाहर निकल गया।
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अनुमति से साभार प्रकाशित - विज्ञान कथा अक्टूबर-दिसम्बर' 2016 अंक
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