समस्याओं को सुलझाना एक रचनात्मक काम है इसलिए शायद हम हर जगह समस्याएँ खोजते हैं लेकिन उपलब्धियों की ओर नजर डालना वास्तव में प्रेरणादायक और उ...
समस्याओं को सुलझाना एक रचनात्मक काम है इसलिए शायद हम हर जगह समस्याएँ खोजते हैं लेकिन उपलब्धियों की ओर नजर डालना वास्तव में प्रेरणादायक और उत्साहवर्धक होता है इसलिए इंटरनेट की दुनिया में हिदी की संभावनाओं और उपलब्धियों पर भी आज के समय में निगाह डालना जरूरी है ।
पंद्रह साल पहले यह लगभग असंभव ही था कि आप हिंदी में इंटरनेट पर कुछ लिख पाएं । आज की तारीख में मोबाइल और टैबलेट पर तो है ही, लैपटॉप और डेस्कटॉप पर भी हिंदी में देवनागरी में लिखना बहुत आसान हो गया है । निश्चित रूप से इसे और भी आसान किया जा सकता है ।
कम-से-कम 15 साल हो गए हैं कागज की नाम-पते वाली कितबिया थी, जिसमें सब पते पैंसिल से लिखे जाते थे, ताकि किसी का पता या नंबर बदले तो उसे मिटाकर नया लिखा जा सके । वह कितबिया तो पता नहीं कहां गायब हो गई और उसकी कमी महसूस भी नहीं हुई । आज की तारीख में मेरे सारे पते देवनागरी में लिखे हुए हैं और इंटरनेट पर, या वहां से अपने स्मार्टफोन पर उतारकर किसी का भी नंबर डायल कर सकता हूं । पते खोज भी सकताहूं । चौधरी नाम है, तो इसी नाम से देवनागरी में खोज सकता हूं । रोमन में चौधरी को 18 तरह से लिख सकते हैं, लेकिन देवनागरी में एक ही तरह से । सारे चौधरी एक ही खोज में सामने ।
एक समय था कि इंटरनेट के जरिये हिंदी में अपनी बात कह पाना मुश्किल-सा लगता था, लेकिन अब तमाम तरीकों से लोग हिंदी में अपने मन की बातें दुनिया भर में इंटरनेट के सहारे फैला रहे
हैं । ब्लॉग और वेबसाइटें हिंदी की नई कहानी लिख रहे हैं । 2००7 में हिंदी-यूनिकोड में काम शुरू हुआ, तो इसने ब्लॉगरी को भी आसान कर दिया । हिंदी में वेबसाइटें भी धड़ल्ले से बनाई जा रही हैं । फेसबुक- जैसे माध्यम पर करीब 12 करोड़ हिंदी वाले लोग जुड़ चुके हैं । इन सारे माध्यमों ने हिंदी कै पक्ष में दुनियाभर में माहौल बनाया है और राजनीति, साहित्य, विज्ञान. फिल्म आदि अन्यान्य विषयों पर सशक्त ढंग से नए विचारों का सृजन किया है । आइए अब जरा देखते हैं कि इंटरनेट के संसार में उस प्रयोक्ता को, जिसे केवल हिंदी और देवनागरी आती है. किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और इससे पार पाने का रास्ता क्या है?
सबसे पहली अड़चन है कंप्यूटर पर बने हुए या उसके साथ जुड़े हुए कीबोर्ड । अधिक संभावना यही है कि उनमें छप अक्षर देवनागरी में नहीं होंगे । पहली हतोत्साहित करनेवाली चीज तो यही है । अस्सी फीसदी नहीं, तो आधे लोग तो इस कीबोर्ड को देखकर ही रफूचक्कर हो जाएंगे । द्विभाषीय कीबोर्ड, जिनमें देवनागरी के अक्षर छपे हों, एक विश्वास दिलाते हैं ।
कई देशों में आप कीबोर्ड खरीदने निकलें. तो आपको द्विभाषीय ही मिलेगा । क्या यह बात हिंदीभाषी क्षेत्रों में लागू नहीं हो सकती? सार्वजनिक नीति निर्माताओं को इस बारे में सोचने की जरूरत है ।
खुशकिस्मती से, जब आप नया मोबाइल खरीदकर उस शुरू करते हैं, तो पहला सवाल अमूमन यही पूछा जाता है कि आपकी पसंदीदा भाषा क्या है? अगर आप हिंदी चुनते हैं, तो मोबाइल में अधिकतर स्क्रीनें और निर्देंश आपको हिंदी में, देवनागरी में दिखने शुरू हो जाएंगे, लेकिन एक दिक्कत अभी भी है कि हो सकता है आपको किसी प्रकार का लागिन, पासवर्ड या ईमेल भरना हो और वह देवनागरी में संभव न हो । यों तो देवनागरी के डोमेन नेम अब हैं, लेकिन वे अभी उतने लोकप्रिय नहीं हैं ।
खैर, मोबाइल पर तो हिंदी आ गई, लेकिन अगर कंप्यूटर, यानी डेस्कटॉप या लैपटॉप हो, तब क्या होगा? नया लेते वक्त बहुत ही कम ऐसा होगा कि कंप्यूटर में .ऑपरेटिंग सिस्टम-प्रचालन तंत्र-पहले से न हो । और अगर होगा, तो हिंदी में नहीं होगा । एक बेहद आसान-से रोजमर्रा के काम परनिगाह डालिए-जैसे कि बिजली का बिल भरना । पहले तो आपको बिजलीवालों की साइट पर जाना होगा, जिसके लिए किसी ब्राउजर की मदद लेनी होगी । ब्राउजर तक ' के बाद बिजली वालों का पता लिखना होगा, कि बेंगलुरु शहरके लिए जब पन्ना खुलता है,तो कन्नड़ में खुलता है । अति उत्तम । लेकिन वही चीज उत्तरप्रदेश के बिजली विभाग के लिए करें, तो पन्ना केवल अंग्रेजी में खुलता है और हिंदी का विकल्प पन्ने पर दूर-दूर तक है ही नहीं । ऊपर जो वाकया या स्थितियां, जिस शैली में वर्णित की गईं उसे कंप्यूटर की दुनिया में यूजेबिलिटी स्टडी कहते हैं, यानी प्रयोग की सरलता का अध्ययन । यहां यूजेबिलिटी स्टडी तो नहीं की गई, केवल अंदाजा लगाया गया कि यदि ऐसी स्टडी हो, तो उससे क्या निष्कर्ष निकलने की संभावना है? पर अक्सर होता यही है कि वास्तव में यूजेबिलिटी स्टडी करने पर जो नतीजे सामने आते हैं, वे इतने अनपेक्षित होते हैं कि सबकी आंख खोल देते हैं ।
वास्तव में हिंदी प्रयोक्ताओं की 8० फीसदी समस्याएं बहुत आसानी सैं हल भी की जा सकती हैं । वे उतनी मुश्किल नहीं हैं जितनी दिखती हैं । दिक्कत वही है कि सार्वजनिक नीति-निर्माता इन सब पर सोचते ही नहीं । ऐसा भी नहीं कि इन कामों के लिए बहुत ज्यादा सरकारी पैसा खर्च हो ।
अंतत : मैं सोचता हं कि हमारा- आपका फर्ज है कि इंटरनेट पर हिंदी कोी सामग्री को बढ़ाएं । इसका सबसे .अच्छा तरीका है विकिपीडिया । ऑनलाइन सर्वोपलब्ध, निशुल्क, इनसाइक्लोपीडिया में योगदान देना । विकिपीडिया की साइट पर जाकर अपनी पसंद के लेख लिखें और पुराने लेखों का संपादन करके उन्हें बेह्तर बनाएं । आनेवाली पीढ़ियों के लिए यही सबसे बड़ा योगदान होगा । यह दान की बछिया तो है, लेकिन हम सबकी बदौलत गुणवत्ता में कहीं से कम नहीं!
(लेखक हिंदी के पहले ब्लॉगर माने जाते हैं)
(कादम्बिनी सितम्बर 2016 से साभार)
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