ज्यों ही जिंदगी की बस जिंदगी की सड़क से डीबस हुई और जिंदगी में मंजिल की तमन्ना लिए सफर पर निकले बाबूलाल का सफर खत्म हो गया। सरकार ने आव देखा...
ज्यों ही जिंदगी की बस जिंदगी की सड़क से डीबस हुई और जिंदगी में मंजिल की तमन्ना लिए सफर पर निकले बाबूलाल का सफर खत्म हो गया। सरकार ने आव देखा न ताव परंपरा का निर्वाह करते हुए बाबूलाल की मृत आत्मा की तस्सली हेतु रूटीनन हादसे की न्यायिक जांच घोषित कर दी।
बाबूलाल की आत्मा अपने घरवालों को औनी- पौनी राहत राशि सौंप न चाहते हुए भी भटकती हुई, दूसरी आत्माओं की नजरों में खटकती हुई टूटी- फूटी यमराज के दरबार में जा पहुंची। उसकी आत्मा को समय से पहले अपने दरबार में आया देख यमराज के त्यौर चढ़ गए। हद है यार! समय तय होने के बाद भी समय से पहले बाबूलाल यहां?? एटीएम समझ रखा है यहां को भी?
'बाबूलाल तुम यहां? कायदे से तो तुम्हें इस वक्त एटीएम की लाइन में होना चाहिए था। आखिर ये सब है क्या?' यमराज बाबूलाल को देख गुस्साए।
' हुजूर, गुस्ताखी माफ! होना तो कायदे से मुझे वहीं था पर बस हादसे ने एटीएम की लाइन के बदले आपके सामने लगी लाइन में खड़ा कर दिया,' बाबूलाल ने कांपते हुए कहा। उसके कांपते कहने से साफ लग रहा था कि मरने के बाद भी उसके भीतर हादसे का भय अभी भी जिंदा था।
'मतलब??' यमराज चौंके।
'हद है साहब! वहां इतना बड़ा हादसा हुआ है और आप?? आपका टीवी खराब तो नहीं गया है?' ये यमराज हैं या लोकतंत्र की सरकार! उसने मन ही मन अपने को कोसा।
'तो जांच पूरी होने तक तो वहीं रह लेते। उसके बाद आते तो..... 'यमराज ने हिम्मत से झेंपते हुए पूछा।
'काहे की जांच हुजूर! आम जनता के नसीब में तो बिन आंच जीना है, बिन जांच मरना बदा है,' बाबूलाल ने कहा तो यमराज ने चित्रगुप्त की ओर देखते गंभीर मुद्रा में बोले,' चित्रगुप्त! ये हम क्या सुन रहे हैं? जब तक बाबूलाल वाले हादसे के कारणों का पता नहीं चल जाता, उसकी जिम्मेदारी तय नहीं हो जाती ,तब तक कोर्ट एडर्जन्ड! बसमंत्री को तत्काल बुलाया जाए? नहीं आएं तो उन्हें हमारे आदेशों की अवमानना का नोटिस भी साथ ही भेज दिया जाए,' चित्रगुप्त ने सुना तो परेशान हो गए। खैर ! सरकार का हुक्म था, सो तामील तो करना ही था। इसलिए तामील हो गया।
पहले तो बस मंत्री उनके आदेशों को लेकर आनाकानी करते रहे, कभी अपनी व्यस्तताओं की दुहाई देते रहे तो कभी सेशन चले होने की। पर जब उनका कोई वश न चला तो यमराज के कोर्ट में पेशी पर आना ही पड़ा। कटघरे में खड़े कर यमराज ने उनसे पूछा,' ये बस हादसा किसकी जिम्मेदारी है मंत्री महोदय?'
' मैं तो बसमंत्री हूं हुजूर! और वह भी फुल फ्लैज्ड! हादसे मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आते। मैं निर्माण के लिए जिम्मेदार हूं, हादसों के लिए नहीं। इसके लिए मेरे बस राज्यमंत्री से पूछा जाए। यह उनकी जिम्मेदारी है। वही हादसे की जिम्मेदारी के लेटेस्ट अपडेट्स दे पाएंगे आपको। उनको ही हमने हादसों की जिम्मेदारी लेने की जिम्मेदारी दी है। नैतिक- अनैतिक तौर पर उनकी ही इस हादसे को अपने ऊपर लेने की जिम्मेदारी बनती है।'
'धन्यवाद! क्षमा करना, आपका कीमती समय बरबाद किया ,' यमराज ने बसमंत्री को इज्जत के साथ दिल्ली छोड़ आने के आदेश दिया तो उनकी जान में जान आई। तब उन्होंने आदेश दिया कि अविलंब बस राज्यमंत्री को यमलोक में पेश किया जाए।
यमलोक के आदेश पर दूसरे दिन बस राज्यमंत्री यमराज के दरबार में हाजिर हुए तो यमराज ने उनसे पूछा,' महोदय, बस हादसा किसकी जिम्मेदारी है? इसके लिए जिम्मेदार कौन है? आप?'
'हुजूर! मैं नहीं, सीधे तौर पर बस चलाने वाला ही जिम्मेदार है। हम लोग तो दिल्ली में रहते हैं। हमें क्या मालूम फील्ड में क्या हो रहा है ,'बस राज्यमंत्री ने बेधड़क कहा तो वहां खड़ी आत्माएं ठहाके लगाने लगीं।
' तो ठीक है। तुम जा सकते हा। पर देश से बाहर मत जाना। तुम्हारी जरूरत कभी भी पड़ सकती है,' यह सुन बस राज्यमंत्री वहां से उल्टे पांव ऐसे भागे कि दिल्ली आकर ही सांस ली। वे तो समझे थे कि अबके हादसे की जिम्मेदारी का घड़ा उनके ही सिर फूटने वाला है।
'चित्रगुप्त! तो हादसे वाली बस को चलाने वाले को यहां हाजिर होने के आदेश दो।'
' जो हुक्म मेरे आका!'
अगले दिन बस चलाने वाला हाजिर हुआ तो यमराज ने उससे दहाड़ते पूछा,' एक संास में बस हादसे की जिम्मेदारी लेते हो कि भेजूं नरक में?'
' मैं जिम्मेदारी क्यों लूंगा हुजूर? हद है, आप तो तानाशाही पर उतर आए हैं। आप तो लोकतांत्रिक देश के सरकारी कर्मचारी और वह भी केंद्र सरकार के से इस तरह पेश आ रहे हैं जैसे..... जानना ही है तो सुनो साहब! बस हादसा सड़क पर काम करने वालों की गलती से हुआ है । आप भी क्या यही सोचते हैं कि उनकी तरह डरा -धमका कर मुझे बलि का बकरा बनने को मना लेंगे? हादसे चलाने वालों की पूरी यूनियन है मेरे साथ। न वे सड़क चेक करने में लापरवाही करते, न बस हादसा होता हुजूर,' उसने सीना चौड़ा कर कहा तो यमराज उसका मुंह ताकते रह गए।
' चित्रगुप्त! इसे छोड़ सड़क पर तैनात सड़क की रिपेयर को लगाए मजदूरों को पेश किया जाए। तुरंत।'
सड़क की रिपेयर को तैनात मजदूरों ने आते ही दोनों हाथ जोड़ यमराज से गिड़गिड़ाते हुए निवेदन करते कहा,' प्रभु! हम बेकसूर हैं। जब कहीं जिम्मेदारी डालने को जगह न मिली तो इन्होंने हम पर..... असल में बस को ही जल्दी लगी थी। वह सीमा से कई गुणा अधिक तेज दौड़ रही थी। उसकी अंधी दौड़ के चलते ये हादसा हुआ और बाबूलाल सौभाग्य से इस हादसे का शिकार हो गया। इस हादसे में बस का सारा दोष है। वही इस हादसे की जिम्मेदार है। काश! हम भी बाबूलाल की तरह शहीद हो जाते तो घरवालों को कुछ तो मिलता।'
' तो ठीक है। तुम भी जाओ। .......तो अब बस को तत्काल हाजिर होने को कहा जाए चित्रगुप्त। अगर वह नहीं आती तो उसे यमराज के आदेशों को न मानने के अपराध में इस हादसे का पूरा जिम्मेदार करार दिया जाए अविलंब। '
'पर हुजूर बस यहां नहीं आ सकती,' चित्रगुप्त ने हंसी रोकते कहा।
'क्यों?? ' पूछने के बाद यमराज अपना सोने का टोप उठा सिर खुजलाने लगे।
'क्योंकि वह यहां नहीं आ सकती। वह मृत्यु से परे है। उसमें आत्मा नहीं है। इसलिए वह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आती।'
' तो इसका मतलब??' वे मात्र मुट्ठियां भींच कर रह गए।
' मतलब यह कि जांच जैसे चल रही है उसे वैसे ही चलने दें हुजूर! वहां जो कुछ घटता है उसके लिए भगवान के सिवाय और कोई जिम्मेदार नहीं। ये लोग अपने ऊपर सबकुछ ले सकते हैं पर कोई जिम्मेदारी नहीं। जहां किसी भी तरह की जिम्मेदारी की बात आती है, वहां ये ऐसे ही बड़ों- बड़ों को उलझा कर रख देते हैं। आपकी तो बात ही क्या ! ये सरकारी धन से जिम्मेदारी के नाम पर डट कर मौज मस्ती करते हैं। पर ज्यों ही किसी जिम्मेदारी को अपने ऊपर लेने की बात आती है तो ये जिम्मेदारी से ऐसे भागते हैं जैसे सांप को देख चूहा भागता है, कुत्ते को देख बिल्ली भागती है। या ये तब तक जिम्मेदारी एक दूसरे पर डालते रहते हैं जब तक जिम्मेदारी किसी अबोध- असहाय के गले खुद ही नहीं पड़ जाती। जिम्मेदारी से भागना इनका धर्म है। इसलिए हुजूर ,मृत्युलोक में दिन रात होते वांछित- अवांछित हादसों की जिम्मेदारी न लेने वालों की टांगों के बीच अपनी टांग अड़ाने का मतलब है...... कहीं ऐसा न हो कि आप मृत्युलोकियों की जिम्मेदारी फिक्स करते- करते अपनी ही जिम्मेदारी भूल जाएं,' कह चित्रगुप्त ने देशभर के सारे एटीएमों के आगे लगी सब लाइनों को मिलाकर बनने वाली से भी लंबी लग चुकी आत्माओं की लाइन की ओर संकेत किया तो यमराज जैसे नींद से जागे।
अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड़
नजदीक मेन वाटर टैंक, सोलन-173212 हि.प्र.
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