व्यंग्य की जुगलबंदी-9 --------------------------- इस बार की जुगलबंदी का शीर्षक था -एटीएम। देश आजकल एटीएम पर ही खड़ा है। या तो लोग एटीएम की त...
व्यंग्य की जुगलबंदी-9
---------------------------
इस बार की जुगलबंदी का शीर्षक था -एटीएम। देश आजकल एटीएम पर ही खड़ा है। या तो लोग एटीएम की तरफ़ जा रहे हैं या वहां से आ रहे हैं। जो इनमें नहीं शामिल हैं वे वहां लाइन में लगे हुये हैं। जो इनमें शामिल नहीं हैं वे इसके बारे में बतिया रहे हैं।
अरविन्द तिवारी Arvind Tiwari जी ने एटीएम को कई तरह देखा। अपने सारे अनुभव धर दिये चकाचक अंदाज में। व्यंग्य लिखना मानों उनके बायें हाथ का काम हो। लेख में हर तरफ़ नजर रही वरिष्ठ व्यंग्यकार की। मैदान के चारो तरफ लगाए शॉट। उन्होंने अपने लेख का शीर्षक रखा- यहीं कहीं था एटीएम। उन्होंने बताया -"पैसे का दर्द घुटने के दर्द से बड़ा है"। पूरा लेख अरविन्द जी के यहां पहुंचकर बांच सकते हैं (20 नवम्बर की पोस्ट) लेख की कुछ बानगी देखिये:
१. घर और मकान में जो फ़र्क है वही रुपयों वाली और बिना रुपयों वाली मशीन में होता है।कंक्रीट का हर भवन घर नहीं होता उसी तरह ए टी एम् की हर मशीन ए टी एम् नहीं होती।चीन में हमारे खाते से इसी मशीन ने पैसे दे दिए हम नहीं बोले।हिंदुस्तानी चोरों ने हमसे कोड नम्बर पूछकर पैसे निकाल लिए हम नहीं बोले ।हमारे पड़ोस की ए टी एम् मशीन चोर ले गए हम नहीं बोले।पर अब चुप नहीं रहेंगे क्योंकि ए टी एम् की साख का सवाल है।
२.अमीर हो या गरीब सभी ए टी एम् के रेन बसेरे में पड़े हैं।कोई चाय पिला दे तो ठीक है अन्यथा बिना चाय के ही प्रेशर बन रहा है।सुविधा यह है कि ए टी एम् के पास ही सुलभ काम्प्लेक्स है।अपने स्थान पर अपनी चरण पादुकाएं खड़ी करो और रिलेक्स होने चले जाओ।घुटनों के दर्द से पीड़ित लोग बिना कमोड के फ्रेश हो रहे हैं।पैसे का दर्द घुटने के दर्द से बड़ा है।
३.साहब आलम यह है कि इधर ए टी एम् में लाइन है तो उधर छोटी मोटी लाइन सुलभ कॉम्लेक्स के आगे भी है।जब 24 घण्टे रहना है तो कहाँ जाएँ।जब कोई व्यक्ति दैनिक क्रिया में देर करता है तो अपनी बारी के इंतज़ार में प्रेशर से हलकान लोग जोर से हाँक लगाते हैं ए टी एम् में पैसा आ गया ए टी एम् में पैसा आ गया।लोग हड़बड़ाकर सुलभ काम्प्लेक्स से बाहर आ जाते हैं।बाहर आकर जब उन्हें पता चलता है कि पैसा नहीं आया तो उनकी हालत न खुदा ही मिला न विसाले सनम वाली हो जाती है।
रवि रतलामी Ravishankar Shrivastava ने खुद कुछ नहीं लिखा। बस एटीएम पर सीधे भक्तों और आपियों की डायरी पेश कर दी। आप भी देखिये ( http://raviratlami.blogspot.in/2016/11/blog-post_20.html )। लेख के कुछ अंश देखिये:
भक्त एटीएम का रिकवर्ड डेटा मुलाहिजा फरमाएँ:
१. आज नोटबंदी का पहला दिन है. वाह क्या सर्जिकल स्ट्राइक मारा है काले धन और भ्रष्टाचारियों पर. पूरी मुस्तैदी से लगा हूँ, लोगों की सेवा करने में. मजा आ रहा है. इतनी भीड़ देखकर ही मन प्रसन्न हो जा रहा है.
२. सुना है कि बैंकों में लाखों करोड़ रूपए जमा हुए हैं. वर्षों से मुर्दा पड़े खाते जी उठे हैं और गरीबी रेखा वाले जन धन खातों में रुपयों की बरसात हो गई है. बैंक ब्याजदर घटेंगे जिससे महंगाई कम होगी. कैशलेस ट्रांजैक्शन की तरफ भारत बढ़ रहा है. सब्जी भाजी वाले भी पीओएस लेने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. यानी सर्वत्र एक नंबर का मार्केट. भारत में कोई टैक्सचोर नहीं बचेगा. जल्द ही भारत की तस्वीर बदलेगी. नया भारत उभरेगा. शक्तिशाली. समृद्ध. भारत एक बार फिर सोने की चिड़िया बनेगा.
अब एक आपिए एटीएम का रिकवर्ड डेटा पढ़िए –
१. आज नोटबंदी का पहला दिन है. अजीब तुगलकी निर्णय है. न इन्फ्रास्ट्रक्चर न तैयारी. जनता इस निर्णय की तो वाट लगा देगी. दंगा फसाद कर देगी. ये कोई बात हुई – रात से आपका 500 और 1000 का नोट नोट नहीं रहेगा कागज का टुकड़ा रहेगा. हर नोट पर गवर्नर का लिखा व हस्ताक्षरित प्रत्याभूत क्या मजाक है? लोगों की लाइन है कि खत्म ही नहीं हो रही. लाइन में खड़ा हर आदमी इस तुगलकी निर्णय को गरिया रहा है. भीड़ देखकर तो मुझे पसीना आ रहा है. रोते हुए और गुस्से में अपना काम कर रहा हूँ – जानता हूँ कि उनका अपना ही पैसा है, मगर चाहते हुए भी लोगों को उनके पूरे पैसे नहीं दे पा रहा हूँ. जिस काम के लिए बनाया गया हूँ, वही ढंग से नहीं कर पा रहा हूँ!
२.नोटबंदी भारत के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है. अपनों को फायदा पहुँचाया गया, उद्योगपतियों के ऋण आम जनता के पैसों से माफ किए गए और जनता को झांसे में रखा गया. भारत की स्थिति तो अब नाईजीरिया से भी भयावह होने वाली है. उद्योगधंधे चौपट पड़े हैं, व्यवसाय खत्म हो गया है, मंदी की मार में भारत गिरफ्त हो गया है. भारत का सबसे बुरा दिन आया है. एक समय की सोने की चिड़िया भारत को विदेशियों ने लूटा, और एक बार फिर भारत लुट रहा है, कोढ़ में खाज यह कि अब भारतीय ही इसे लूट रहे हैं.
हमें बस यही डर है कि रवि रतलामी की इस पोस्ट को बांचकर कहीं कोई भक्त या आपिया उनके ऊपर उनका डाटा चुराने का आरोप न लगा दे। :)
निर्मल गुप्ता Nirmal Gupta ने अपने अंदाज एटीएम का निरीक्षण किया। एटीएम समस्या को बारहखड़ी वाले चश्मे से देखा। लेख का शीर्षक रखा- ब से बैंक और ए फॉर एटीएम की नई बाराखडी। पूरा लेख उनके यहां पहुंचकर (20 नवम्बर की पोस्ट) बांच सकते हैं। कुछ अंश देखिये यहीं पर:
१. वो दिन भी क्या दिन थे जब ब से सिर्फ बकरी होती थीl उचक उचक कर हरीभरी झाड़ियों की नरम कोपलों को तसल्ली से उदरस्थ करतीl लज़ीज़ मुगलिया व्यंजन के अपरिहार्य कारक बकरों (मटन) की जननी l कभीकभार स्वास्थ्यवर्धक दूध की कमर्शियल वजह से भी लोग बकरी को पाल लिया करते हैंl यह वह समय है जब बकरे की माँ के पास अपनी संतति की खैर तक मनाने तक का अवकाश नहीं l
२.नोटबंदी के इस उत्सवी समय में ब फॉर बकरी की जगह बाकयदा बी से बैंक हो गया है, जो लाल नीले नोट उगलता कम,उन्हें फटे और कुतरे नोटों में बदलता अधिक हैl बैंक के समक्ष लगी लम्बी कतारें बता रही हैं कि कोई उसे चाहे जितना गरिया ले लेकिन कतारबद्ध खड़े रहना, जिन्दगी की बाध्यता और स्थाईभाव हैl
३.लाइनें केवल बैंक के सामने नहीं लगती, नमक के कारण गली मोहल्ले की पंसारी की दुकान तक के सामने भी आ जुटती हैंl नमक को लेकर आम जनता की इस अभूतपूर्व आतुरता को अवसरवादियों की नमकहरामी कहा जाए या नमकहलाली, इसे परिवर्तित जीवन मूल्यों के आलोक में समझ पाना जरा टेढ़ी खीर हैl
समीरलाल उर्फ़ Udan Tashtari खुद भले कैसलेस संसार के बासिंदे हो गये हैं लेकिन एटीएम में खड़े होने वाले लोगों का दर्द अच्छे से महसूसते हैं। उससे ज्यादा उस मशीन का दर्द अनुभव किया जिससे लोग पैसा निकालते हैं। एक मशीन की व्यथाकथा उनके यहां बांच सकते हैं इस लिंक पर पहुंचकर (https://www.facebook.com/udantashtari/posts/10154483955381928)
कुछ अंश यहां बांचिये:
१. कई बार तो एटीएम की हालत देखकर लगता है कि जिस तरह से मौत को यह वरदान प्राप्त है कि उस पर कभी कोई दोष नहीं आयेगा..दोषी कभी एक्सीडॆन्ट, कभी बीमारी तो कभी वक्त का खत्म हो जाना ही कहलायेगा जिसकी वजह से मौत आई...वैसे ही एटीएम को यह शाप मिला होगा कि चाहे गल्ती किसी की भी हो- बिजली चली जाये, नोट खत्म हो जायें, चूहा तार कुतर जाये..दोष एटीएम पर ही मढ़ा जायेगा.
नोट निकालने वाला हमेशा यही कहेगा..धत्त तेरी की...ये एटीएम भी न..चलता ही नहीं.
२. हद तो तब हो गई जब हाल ही में एक एटीएम मशीन, जिस पर ’आऊट ऑफ आर्डर” लिखा था, को एक बुजुर्ग से कुछ यूँ डाँट खाते देखा..कि पहले बैंक जाते थे तो बाबू मटरगश्ती करके हैरान करते थे, कभी चाय पीने गये हैं..कभी पान खाने..और अब मशीन का जमाना हुआ तो सोचा तुम विदेश से आये हो तो मुश्तैदी से काम करोगे मगर बस, चार दिन ठीकठाक से काम किया और अब तुमको भी वही हवा लग गई? हें..काम धाम करना नहीं और जब देखो तब ’आऊट ऑफ आर्डर’...अरे, और कुछ नहीं तो बड़े बुढ़ों का तो सम्मान करो.
३. मैंने मशीन पर नजर डाली तो ऐसा लगा मानो सर झुकाये बस अब सिसक कर बोलने को ही है कि हे मान्यवर, मैं तो आज भी आपकी सेवा करने को तत्पर हूँ मगर मैं नोट छापता नहीं, बस नोट बाँटता हूँ..पहले बैक मुझमें नोट तो डाले तब तो मैं आपको नोट दूँ...और सरकार है कि बड़े साईज के ऐसे नोट छाप लाई है कि बैंक चाह कर भी मुझमें नोट नहीं डाल पा रहा है...
अब किसकी गल्ती गिनायें..जब से आया हूँ, सभी बैंको को कतारमुक्त कराया. आपका धन आपके मुहल्ले के नुक्कड़ पर खड़े हो कर २४x७ हर मौसम में आपको उपलब्ध कराया, तब किसी ने भी धन्यवाद न कहा और आज एक संकट काल से गुजर रहा हूँ तो पुनः वही दोषारोपण कि गल्ती मेरी है.
सहज अंदाज का लेखन है समीरलाल। उनको गजल-उजल छोड़-छाड़कर सीधे व्यंग्य की ट्रेन पकड़ लेनी चाहिये।
अनूप शुक्ल - अपन लिखने में इस बार जरा लेट हो गये। कह सकते हैं एटीएम लाइन में लगे रहे। लेकिन खुदा झूठ न बुलवाये ऐसा था नहीं इसलिये क्यों न लिखें। हमारा लेख यहां पहुंचकर बांचिये अग अभी तक न बांचा हो। (https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10209719334313577) लेख का शीर्षक है-एटीएम मल्लब एक ट्राई और मारो। लेख के कुछ अंश:
१. दुनिया में भले एटीएम आज शुरु हुये हों लेकिन अपने भारत दैट इज इंडिया में दुनिया का हरकाम सबसे पहले हो चुके होने की तर्ज एटीएम का चलन बहुत पहले से था। हमारे मंदिर, मठ धन संपदा के एटीएम ही तो थे। खूब पैसा जमा होता था। जिसको भी पैसा चाहिये होता था वो मंदिर पहुंचकर पैसा निकाल लेता था। महमूद गजनवी ने सोमनाथ वाले एटीएम से कई बार पैसा निकालने की कोशिश की थी। जब कई तरह के पिन फ़ेल हो गये पैसा नहीं निकला तो बेचारे ने शाश्वत एटीएम -लूटपाट का प्रयोग किया और पैसा लेकर चला गया। आजकल जो लोग एटीएम लूटकर ले जाते हैं वे महमूद गजनवी की परम्परा के सच्चे वाहक हैं। मशालची हैं लूटपाट की मशाल मशाल को सुलगाते हुये आगे बढ़ाने का काम के।
२.एटीएम पर हुई भीड़ का उपयोग सभाओं के रूप में करने का चलन शुरु हो सकता है। आसपास माइक लगाकर जब मन चाहा भाइयों, बहनों शुरु हो सकता है। एक ही एटीएम पर विरोधी दलों की सभाओं में भाइयों-बहनों से हुई शुरुआत मां-बहन की ऊंचाइयों तक पहुंच सकती है।
३. एटीएम पर खड़े लोगों को इनाम भी शुरु हो सकते हैं। एटीएम रत्न, एटीएम भूषण, एटीएम श्री की शुरुआत हो सकती है। एटीएम पर लगे-लगे दुनिया से निकल लेने वालों को ’एटीएम शहीद’ की उपाधि से विभूषित किया जा सकता है। क्या पता कोई शायरान अंदाज में जाते हुये कहकर जाये:
कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले ये एटीएम साथियों।
इस बार की व्यंग्य की जुगलबंदी में बस इतना ही। बाकी अगली जुगलबंदी में। आपको कैसी लगी बताइयेगा।
#व्यंग्यकीजुगलबंदी, #व्यंग्य, #vyangya, Arvind Tiwari, Ravishankar Shrivastava, Nirmal Gupta, Udan Tashtari अनूप शुक्ल
COMMENTS