14 नवंबर बाल दिवस पर विशेष बच्चों को दें खुशनुमा बचपन ॰ डा. कलाम के संदेश बच्चों के लिए प्रासंगिक हमारे भारत वर्ष में यूं तो दिवसों की...
14 नवंबर बाल दिवस पर विशेष
बच्चों को दें खुशनुमा बचपन
॰ डा. कलाम के संदेश बच्चों के लिए प्रासंगिक
हमारे भारत वर्ष में यूं तो दिवसों की कोई कमी नहीं, किंतु बाल दिवस का एक अलग ही महत्व है। घर परिवार में पल बढ़ रहे 18 वर्ष तक की उम्र के बच्चे इस दिवस का हिस्सा माने जा सकते है। अपने अधिकारों के लिए लड़ मरने वाले हमारे मानवीय समाज के पढ़े लिखे और सभ्य लोगों में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो बच्चों को किसी प्रकार का अधिकार नहीं देना चाहते है। मैं कहना चाहता हूं कि जब हमारे संविधान ने बच्चों को हमारी तरह अधिकार प्रदान किये है, तब हम उन्हें इससे वंचित करने वाले कौन होते है? दुनिया को बहुत गहराई से देखने और समझने वाले समाज के बड़े लोगों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हम बड़ों के अधिकारों के अलावा हमारे संविधान ने बच्चों को कुछ विशेष अधिकार प्रदान किये है। ऐसे ही अधिकारों में बच्चों का सर्वांगीण विकास तथा उनकी समुचित देख-रेख का दायित्व जहां पालकों पर डाला गया है, वहीं यह हमारी आने वाली पीढ़ी का अधिकार भी बना हुआ है। इसी कड़ी में बाल अधिकारों को तवज्जो देना और उनका संरक्षण करना प्रत्येक व्यक्ति और समाज का मुख्य दायित्व भी है। बच्चों का संतुलित और समग्र विकास ही एक सशक्त राष्ट्र की नींव रख सकता है। बच्चे बड़े ही मासूम, कोमल, उम्मीदों से भरे हुए और विश्वास की सहज प्रतिमूर्ति होते है। समाज को इस बात की चिंता करना चाहिए कि बच्चों का बचपन खुशनुमा और प्रेम की बेल से आच्छादित हो।
नौकर, आया या क्रेच के भरोसे न हों बच्चे
परिवार की वह संस्था है, जो बच्चों को सांस्कृतिक मान्यताओं की शिक्षा दे सकती है। समाज में नियंत्रण लाने का आधार भी पारिवारिक संस्था को ही माना जा सकता है। वर्तमान परिस्थितियों में संयुक्त परिवार तो टूट ही रहे है, एकल परिवार भी बच्चों की वह देखभाल नहीं कर पा रहे है, जो जरूरी है। पति-पत्नी दोनों नौकरीपेशा होने के कारण बच्चों को नौकर या आया अथवा फिर क्रेच के भरोसे छोड़ रहे है। बच्चे इन हालातों में उपेक्षित हो रहे है और अनेक प्रकार की संवेगात्मक गंभीर समस्याओं का शिकार हो रहे है। यह बड़े चिंता का विषय माना जाना चाहिए। सांस्कृतिक परिवर्तन इलेक्ट्रानिक मीडिया जिस तरह परोस रहा है, वह बच्चों के मन मस्तिक को प्रदूषित कर रहा है। समाज में उठ रहे सवालों में मुख्य रूप से बच्चों का सर्वांगीण विकास कैसे हो? माता-पिता, शिक्षक इसमें किस प्रकार सहयोग कर सकते है? तेजी से विकसित होती संचार क्रांति के प्रभाव से बच्चों को बचा पाना क्या संभव हो पाएगा? विचारवान लोगों को लगातार चिंतन करने विवश कर रहे है। जरूरत इस बात की है कि आज के बालक जो कल के नागरिक होंगे, उनकी क्षमताओं, योग्यताओं का पता लगाते हुए प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए, ताकि राष्ट्र की समृद्धि में उनके उचित योगदान को चिह्नांकित करने में हमें सफलता प्राप्त हो सके।
सांस्कृतिक मान्यताओं की शिक्षा जरूरी
एक परिवार ही वह कड़ी है, जो बच्चों के सांस्कृतिक विकास में बड़ी भूमिका निभा सकता है। परिवार ही बच्चों को सफल सामाजिक जीवन के लिए तैयार कर सकता है। बच्चों के व्यक्तित्व पर सबसे पहला प्रभाव माता-पिता का ही पड़ता है। परिवार वह आधारभूत संस्था है, जो समाज में नियंत्रण लाने का कार्य कर सकता है। ज्यों-ज्यों एक बालक विकास की सीढ़ी चढ़ता जाता है, वह समाज व समुदाय की शैली को आत्मसात करता जाता है। आज समाज में मिल रहा वातावरण बच्चों को नैतिक मूल्यों के स्थान पर भौतिक मूल्यों का अधिक दर्शन करा रहा है। एक अच्छा इंसान बनने की जगह वह धनवान, सत्तावान, समृद्धिवान बनने की कला सीख रहा है। इसके पीछे जो कारण है, वह स्टेटस सिंबल के रूप में सामने आ रहा है। भौतिक सुख-सुविधाओं का अधिक से अधिक अर्जन ही व्यक्तित्व विकास का मापदंड बन गया है। अब युवाओं का आदर्श आत्म संयम, सेवा-भावना, कर्तव्यबोध, श्रम, त्याग तथा समर्पण आदि नहीं रहा। आज जरूरत इस बात की है कि बच्चों को सही प्रेरणा, सही मार्गदर्शन तथा सही परामर्श पारिवारिक वातावरण में प्रदान किया जाए। प्रत्येक बालक एक अनगढ़ पत्थर की तरह होता है, जिसमें सुंदर मूर्ति छिपी होती है। एक शिल्पी ही उसे बेहतर देख पाता है, और फिर उस पत्थर को तराशकर सुंदर मूर्ति में बदल देता है। माता-पिता और शिक्षक समाज शिल्पी की भूमिका अदा कर बच्चों को सांस्कृतिक मान्यताओं की शिक्षा प्रदान कर खुबसूरत व्यक्तित्व के शिल्पकार बन सकते है।
नेहरू के बाद डा. कलाम बने बच्चों के प्रिय
पं. जवाहर लाल नेहरू ने जहां अपना जन्मदिन बच्चों के नाम कर उसे बाल दिवस बना दिया, वहीं लंबे अंतराल के बाद भारत वर्ष के महान वैज्ञानिक, मिसाईल मेन और पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने बच्चों को जो स्नेह एवं प्यार दिया, वह चाचा नेहरू के बाद किसी राष्ट्र के प्रतिनिधि का बड़ा तोहफा कहा जा सकता है। श्री कलाम के संस्मरणों का लेखा-जोखा टटोला जाए तो हमें जानकारी मिलती है कि प्रतिदिन उन्हें सैकड़ों बच्चे पत्र लिखा करते थे। सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के राष्ट्रपति होने के बावजूद डा. कलाम की कोशिश होती थी कि वे प्रत्येक बच्चे के पत्र का जवाब देकर उसकी उत्कंठा को शांत कर सकें। डा. कलाम द्वारा बच्चों के पत्रों के उत्तर का संकल्प में से चयन कर एक पुस्तक का प्रकाशन भी कराया गया है। ऐसे ही प्रश्नों में एक बच्चे का एक प्रश्न कि भाग्य की कृपा कितनी आवश्यक है? श्री कलाम ने बड़ा ही अच्छा उत्तर देते हुए कहा कि भाग्य से पहले कठिन परिश्रम आता है, भाग्य तुम्हारा साथ तब देगा, जब तुम कठिन तपस्या करोगे। इसी तरह एक बच्चे का एक प्रश्न कि दुनिया का पहला वैज्ञानिक कौन है? इस पर डा. कलाम कहते है कि विज्ञान जन्म लेता है और जीता है केवल प्रश्नों द्वारा। विज्ञान का पूरा दारोमदार प्रश्न करना है। माता-पिता और अध्यापकगण इस बात को अच्छी तरह जानते है कि बच्चे कभी भी न समाप्त होने वाले प्रश्नों के स्त्रोत होते है। अतरू बच्चा ही पहला वैज्ञानिक है। आपके जीवन का सबसे अधिक खुशी का दिन कौन सा था? इस प्रश्न के जवाब में सिद्ध कर दिया कि वास्तव में डा. कलाम के अंदर एक खुशी खोजने वाला इंसान जीता था। डा. कलाम का उत्तर था कि एक बार वे पोलियोग्रस्त बच्चों के कार्यक्रम में गये थे। जब कार्यक्रम के बीच में बच्चों ने दौड़ना, चलना, पैडल मारकर सायकिल चलाना शुरू किया तो उनकी आंखे भर आयी। वह दिन उनके जीवन का सबसे बड़ी खुशी वाला दिन था।
बच्चों के लिए डा. कलाम का संदेश
बच्चों और डा. कलाम के बीच पत्रों के माध्यम से चलने वाले संवाद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अहमदाबाद एवं कैम्ब्रिज अंधेरी मुंबई के बच्चे राहुल मेहता एवं तेजश द्वारा पूछे गये सवाल को माना जा सकता है। बच्चों का यह प्रश्न की भारत के नागरिकों को आप क्या संदेश देना चाहते है? डा. कलाम ने बड़ी ही सहेजता से कहा कि वे युवाओं और बच्चों को दस बिंदुओं की शपथ दिलाना चाहते है, जिन्हें अब बच्चों को अपनाना ही होगा।
1. मैं अपनी शिक्षा पूरी करूंगा और श्रेष्ठ बनूंगा।
2. मैं कम से कम दस लोगों को पढ़ना सिखाऊंगा, जो अक्षर ज्ञान से अनभिज्ञ है।
3. मैं कम से कम दस पौधे लगाऊंगा, और उनकी देखभाल करूंगा।
4. मैं मुसीबत में पड़े साथियों के दुख दूर करूंगा।
5. मैं ग्रामीण क्षेत्रों की यात्रा कर कम से कम पांच लोगों को नशा तथा जुंए से निजात दिलाने का प्रयास करूंगा।
6. मैं खुद ईमानदारी बरतते हुए भ्रष्ट्राचार मुक्त समाज बनाने में सहयोग करूंगा।
7. मैं एक सजग नागरिक बनकर परिवार को कर्मठता प्रदान करूंगा।
8. मैं किसी धर्म, जाति या भाषा में अंतर नहीं करूंगा।
9. मैं हमेशा मानसिक और शारीरिक चुनौती प्राप्त विकलांगों से मित्रवत व्यवहार करूंगा।
10. मैं अपने देश तथा देश के लोगों की सफलता पर गर्व करते हुए उत्सव मनाऊंगा।
आज भले ही पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम हमारे बीच नहीं है, किंतु उनका आदर्श सदैव हमारे साथ रहेगा। डा. कलाम जैसे देशभक्त व्यक्तियों का जन्म सहस्त्र वर्षों में एक बार ही होता है। आज बाल दिवस पर बच्चे यदि उनके दस संदेशों को आत्मसात करने का वचन देते है, तो मैं समझता हूं यह डा. कलाम के लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी।
(डॉ. सूर्यकांत मिश्रा)
जूनी हटरी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
मो. नंबर 94255-59291
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