व्यंग्य की जुगलबंदी-10 --------------------------- इस बार की व्यंग्य की जुगलबंदी का विषय था- नये नोट, पुराने नोट। जुगलबंदी में Yamini Chatu...
व्यंग्य की जुगलबंदी-10
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इस बार की व्यंग्य की जुगलबंदी का विषय था- नये नोट, पुराने नोट। जुगलबंदी में Yamini Chaturvedi ने लिखना शुरु किया। इस तरह कुल छह लोग शामिल हुये जुगलबंदी में:
1. Arvind Tiwari
2. Nirmal Gupta
3. Ravishankar Shrivastava
4. Udan Tashtari
5. Yamini Chaturvedi
6. अनूप शुक्ल
Arvind Tiwari ने पुराने नोट की बेहाली और नये नोट की अकड़ के सीन खैंचे और खूब खैंचे। लेख का हासिल पंच रहा - " बाराती उलझे पड़े हैं भैया यह वर यात्रा है शव यात्रा नहीं।क़ायदे से धुन निकालो।"
उनके लेख (27 नवंबर की पोस्ट से देखें) के कुछ अंश:
1. हर जगह हमारी सत्ता थी।सत्ताधारी नेता से लेकर विपक्ष तक हमें बेहिसाब सम्मान देता था।दफ़्तर का बाबू फूल सा खिल उठता था हमें देखकर।हमें देखकर अच्छे अच्छे क्रन्तिकारी अपनी विचारधारा बदल देते थे।
2.हम उस निकम्मी औलाद की तरह हो गए जिसकी खूब आमदनी है पर उसका बाप रोटी के लिए दर दर ठोकरें खा रहा है।हम जिस तकिये में भरे थे वह कबाड़े में पड़ा है।मालिक ने कितने पापड़ बेलकर हमें इकठ्ठा किया था।पांच सौ का नोट सौ में चल रहा है।हज़ार वाले की तो और भी दुर्दशा है।
3. नए नोट किसी रईस की बिगड़ैल औलाद की तरह दबंगई दिखा रहे हैं।दो हज़ार की बात ही मत करो ।वह ऐसे इतरा रहा है जैसे ओलम्पिक में कई पदक जीत कर देश में लौटा हो।
4.नए भी नकली आ गए।नकल करने के मामले में इस देश का कोई सानी नहीं है।आर बी आई को रोज स्पष्टीकरण देना पड़ता है।हम पुराने वालों ने उन्हें कभी परेशान नहीं किया।सब परेशान हैं फिर भी पब्लिक हम पुराने वालों को हाथ में ऐसे लेती है जैसे बिछू हाथ में ले लिया हो।
Nirmal Gupta ने नोटबदली के मामले में रंग के किस्से को बयान किया और लेख का विषय रखा - "पर्पल कलर का नया नोट और कच्चे रंग।" लाइन में लगने के अलग-अलग तरह के अंदाज से शुरुआत करते हुये लेख लिखा निर्मल गुप्त ने। उनके लेख के कुछ अंश:
1. एक हज़ार और पांच सौ के नोट ‘लाइन हाज़िर’ हुएlदो हज़ार और पांच सौ के नये नोट लाने का आश्वासन मिला । जनता देखते ही देखते बैंकों के सामने कतारबद्ध हो ली । लाइन में लगना आमजन का प्रारब्ध है और लाइन मारना शोहदों का कालजयी पासटाइम।
2. पूरा मुल्क कतार में खड़ा हैl फ़िलहाल अधिकांश भावुकतावादी दिलों में एक ही जिज्ञासा विद्यमान है कि इस दो हज़ार वाले नोट को छूने से देह में झुरझुरी सी क्यों अनुभव होती है? इसको जेब में रखते ही जेब का तापक्रम क्यों बढ़ जाता हैl
3. देखते ही देखते खबर वायरल हुई कि नोट का रंग तो कच्चा है। इसे तो जो लेगा रंगेहाथ पकड़ा जाएगा । सुना है कि यह नोट भक्ति भावना से भरा है । थोडा –सा हिलाने डुलाने पर मजीरे सा बजता है ।थाप देने पर ढोलक की तरह बजता है ।एकदम कन्फर्म टाइप की खबर यह है कि इसमें ऐसी ‘चिप’ है, जिसमें धारक की सारी पर्सनल जानकारी खुद-ब-खुद दर्ज हो जाती है । पर्सनल बोले तो सब कुछ ।
4. इस नोट के रंग का कच्चापन ही इसकी तमाम खामियों पर भारी है l वक्त रहते रंग बदलने की तकनीक की बाज़ार में सदा बड़ी डिमांड रहती है ।
पूरा लेख आप निर्मल गुप्त की वाल पर 27 नवंबर की पोस्ट में बांच सकते हैं।
Ravishankar Shrivastava उर्फ़ रविरतलामी ने अखबार में खबर देखी जिसका शीर्षक था- 22% लेकर बदल रहे थे पुराने नोट !
देखते ही उनका माथा सटक गया और उन्होंने लिख मारा - नया रुपया, पुराना रुपया। नये नोट के बढिया फ़ीचर ने लॉयन को उसकी नकल बनाने का चैलेंज दिया। पूरा लेख यहां पर बांचिये (http://raviratlami.blogspot.in/2016/11/blog-post_27.html) इस लेख के कुछ अंश:
1. “बॉस अब अपना क्या होगा? सरकार ने देश में पुराने नोट बंद कर दिए हैं और बदले में नए नोट चलाने का फैसला कर लिया है. इस तरह तो हमारा धंधा चौपट हो जाएगा. मार्केट में हमारे फ्रेश नक़ली नोट जो असली कटे-फटे, सड़े-गले वोटों की तुलना में ज्यादा आथेंटिक दिखते हैं उसका तो डिब्बा ही गोल हो जाएगा. ऊपर से बहुत सारा माल मार्केट में आने को तैयार है उस स्टाक का क्या होगा? हम तो कहीं के न रहेंगे”
2. लॉयन हँसा था. वह भी टीवी के सामने जमा हुआ था. वह भी वही समाचार देख रहा था. परंतु उसके चेहरे पर हमेशा मौजूद रहने वाली कुटिलता और बढ़ गई थी. वह बोला था – “बेवकूफ़ ! सरकार ने बहुत दिनों बाद यह एक अच्छा काम किया है. दरअसल बिजनेस का चार्म इधर खत्म होता जा रहा था. लाइफ़ में कोई चैलेंज साला बचा ही नहीं था. अब आएगा मजा.
3. नए नोटों के बंडल ऑन में बिकने लगे. किसी जमाने में सिनेमा टिकटों की कालाबाजारी जैसी होती थी वैसी इन रुपयों की काला बाजारी होने लगी. भ्रष्टाचार और कालाधन मिटाने के चक्कर में सरकार ने देश की मासूम जनता के हाथ में भ्रष्टाचार करने का एक और सरल किस्म का, आसान सा औजार थमा दिया था.
4. अचानक बहुतों का जमीर भी जाग गया था. बड़े अकड़ वाले अफसर और नेता अचानक रिश्तेदारी निभाने लग गए थे. चार्टर्ड अकाउंटैंट और बैंकर्स को जिन्हें लोग साल में एकाध बार भी दुआ-सलाम नहीं करते थे. अचानक सबके दुलारे बन बैठे. हर कोई उनसे रिश्तेदारी निभाने, निकालने और जमाने में लग गया था.
समीरलाल मने कि Udan Tashtari ने नोटबदली की घटना को आधार बनाकर उपन्यास लिखने का खतरनाक इरादा जाहिर कर दिया। इसके पहले भी वे एक उपन्यास लिख चुके हैं। इस उपन्यास को आप यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
http://www.amazon.in/Dekh-Loon-Chaloon-Sameer-…/…/8190973479
लेकिन बात उनके उपन्यास लिखने के इरादे की हो रही थी जो उन्होंने लेख में जाहिर किये। लीजिये उसके लेख के कुछ अंश आप भी बांच लीजिये:
1. लुगदी साहित्य, वो उपन्यास जो आप बस एवं रेल्वे स्टेशन पर धड्ड़ले से बिकता दिखते है, से जुड़े उपन्यासकार अक्सर ऐसा फड़कता हुआ शीर्षक पहले चुनते हैं जो बस और रेल में बैठे यात्री को दूर से ही आकर्षित कर ले और वो बिना उस उपन्यास को पलटाये उसे खरीद कर अपनी यात्रा का समय उसे पढ़ते हुए इत्मेनान से काट ले.
2. मेरठ में बैठा प्रकाशक नित ऐसा नया उपन्यास बाजार में उतारता हैं. इनके शीर्षक की बानगी देखिये – विधवा का सुहाग, मुजरिम हसीना, किराये की कोख, साधु और शैतान, पटरी पर रोमांस, रैनसम में जाली नोट.. आदि..उद्देश्य मात्र रोमांच और कौतुक पैदा करना..
3. दूसरी ओर ऐसे उपन्यासकार हैं जिन्हें जितनी बार भी पढ़ो, हर बार एक नया मायने, एक नई सीख...पूरा विषय पूर्णतः गंभीर...समझने योग्य.पीढी दर पीढी पढ़े जा रहे हैं. शीर्षक उतना महत्वपूर्ण नहीं जितनी की विषयवस्तु. ये आपकी लायब्रेरी का हिस्सा बनते हैं. आजीवन आपके साथ चलते हैं. प्रेमचन्द कब पुराने हुए भला और हर लायब्रेरी का हिस्सा बने रहे हैं और बने रहेंगे..शीर्षक देखो तो एकदम नीरस...गबन, गोदान, निर्मला...भला ये शीर्षक किसे आकर्षित करते...मगर किसी भी नये उपन्यास से ऊपर आज भी अपनी महत्ता बनाये हैं...
4. और शीर्षक जो दिमाग में आया है वो है..
’तहखाने वाली तिजोरी के नये मालिक’
-अब इसके आसपास कहानी बुनना है..आप भी सोचें..
ये मालिक क्या २००० का नया गुलाबी नोट है या दो साल पहले आये नये साहेब जी या उनके खास खास मित्र....
अब ये तो उस सस्पेन्स भरे उपन्यास के पूरा होने पर ही खुलासा होगा..
तब तक आप अनुमान लगाये ...कौन नया और कौन पुराना!!
नये नोट और पुराने नोट का सिलसिला तो अनवरत है..बस, वजह अलग अलग है!!!
पूरा लेख बांचने के लिये यहां पहुंचिये (http://udantashtari.blogspot.in/2016/11/blog-post_26.html )
Yamini Chaturvedi पहली बार जुगलबंदी में शामिल हुईं। इंडिया टुडे के 30 वें वर्षगांठ विशेषांक में पिछ्ले 30 वर्षों में व्यंग्य का फ़ार्मेट कैसे बदला है इस पर चर्चा करता हुये व्यंग्य के अखाड़े के सबसे तगड़े पहलवान Alok Puranik ने लिखा है:
“अब व्यंग्य का जिक्र करें , तो ऐसे कई नाम हैं , जिन्होंने अखबार-पत्रिकाओं में अपने व्यंग्य नहीं भेजे, पर उनके फ़ेसबुक-ट्विटर खाते से लेकर उनके व्यंग्य ट्वीट कई अखबारों ने छापे। ऐसे कई व्यंग्य-रचनाकारों में महिलायें बहुत हैं। रंजना रावत, रिचा श्रीवास्तव, सोमी पांडे, यामिनी चतुर्वेदी ऐसी व्यंग्य रचनाकार हैं सोशल मीडिया युग की, जो पहले सोशल मीडिया के जरिये ही पाठकों तक पहुंचीं।“
यामिनी ने जुगलबंदी में अपनी बात कहते हुये लिखा वो उनकी वाल पर 27 नवंबर की पोस्ट में बांचिये। हम तो यहां कुछ अंश पेश कर रहे हैं:
1. 8 नवंबर की नोटबंदी के एलान से पहले किसी भी बटुए में बड़े और छोटे नोटों के बीच एक वर्ग संघर्ष सा चलता ही रहता था। 1000 और 500 के नोट की एक टोली थी जो 50, 20,10, 5और 1 के नोटों को मुंह नही लगाती थी। ये छोटे नोटों की टोली गरीब बच्चों की हुड़दंगी टोली सी थी जिसे कभी कभी कोई धनाढ्य कंजक जिमाने के लिए बुला लेता था। इनमें से 1 रूपये की कद्र जरूर थोड़ी अधिक थी क्योंकि शादी ब्याह के मौसम में लिफाफों में बड़े नोटों की संगत कुछ देर के लिए मिल जाती थी।
2. 100 रु के नोट की स्थिति कुछ बेहतर थी। वो बड़े नोटों की टोली में बारहवे खिलाडी की तरह था जिसे सिर्फ पानी पिलाने के लिए टीम में रखा जाता है। हाँ, लेकिन छोटों नोटों की टोली में वो सरदार था। उसके आगे सब ऐसे चुप हो जाते थे जैसे शोर मचाते बच्चों की कक्षा में अचानक से मरखोर मास्साब आ जाएं।
3. नए नोटों की कमी के कारण सत्ता के उलटफेर का सा मामला बन नही पाया । 2000 का एक नोट 100, 50, 20,10 की टोली में ऐसे अजूबे सा देखा जाता जैसे कोई अप टू डेट विदेशी झोपड़पट्टी पे डाक्यूमेंट्री बनाने आया हो।
4. फिलहाल 1000 के नोट की हालत टीबी के मरीज जैसी हो गयी है, कोई जिसके पास बैठना भी पसंद नही करता। भले ही सरकार कितने ही विज्ञापन दे ले कि टीबी संक्रामक नही । वैसे ही 1000 का नोट भ्रष्टाचार के आरोप में पदच्युत नेता सा कालकोठरी में बैठा है। 2000 और 500 के नोट अपनी जमीन तलाश रहे हैं और छुटभैयों की सरकार है ।
लेख पर रंजना रावत की प्रतिक्रिया और उस यामिनी का जबाब भी देख लीजिये:
Ranjana Rawat: बस अब उतर जाओ आप भी छपाई वाले व्यंग्यों के मैदान में ... पहले ही स्ट्रोक पे सिक्सर है ये
Yamini Chaturvedi: चलो संग चलते हैं :D
Ranjana Rawat: आप तैयार हो चुकी हैं...आप निकलो मुझे मेकअप करने में भौत टाइम लगता है
इंतजार है सोशल मीडिया के व्यंग्य के मैदान में उतरने का अग्रिम शुभकामनाओं सहित।
अनूप शुक्ल ने भी लिखा नये नोट, पुराने नोट पर। जो लिखा उसे पूरा यहां (https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10209774755539073)बांच सकते हैं।
लेख के कुछ अंश यहां पेश हैं:
1. धर्म, क्षेत्र, भाषा, जातिभेद भूलकर लोग लाइनों में लग गये। नोटबंदी ने लोगों को एकात्म कर दिया। लोगों के शरीर भले अलग दिखे लेकिन ध्येय एक ही - “किसी तरह नोट निकल आयें एटीएम से।“
2. सम्पूर्ण राष्ट्र एटीएम से नोट पाने के एकमात्र ध्येय को पूरा करने में जुट गया। ऐसी दुर्लभ राष्ट्रीय एकता की भावना पर दुनिया के सारे सुख न्यौछावर। ऐसी एकता देखकर हमारे प्रचार से परहेज करने वाले मित्र ने नाम न बताने की शर्त पर सुझाव दिया -“जब भी देश में कभी राष्ट्रीय एकता पर कोई आंच आये, फ़ौरन नोटबंदी लागू कर देनी चाहिये।“
3. जो बड़े नोट कभी बाजार के बादशाह थे उनके हाल कौड़ी के तीन भी न रहे। जिनको तिजोरियों, तहखानों में छिपाकर रखते थे उनको लोग अवैध बच्चों की तरह कूड़ेदान में फ़ेंककर चलते बने। जिनके बिना बाजार का पत्ता तक न हिलता था वे खुद ही चलने-फ़िरने के मोहताज हो गये।
4. नये नोट के हाल घर में आई संयुक्त परिवार की उस बहू सरीखे हैं जिसकी चुटिया-कंधी की उमर बीतते ही ऐसे घर में शादी कर दी गयी हो जहां आते ही उसकी सास खतम हो गयी हों। हरेक की फ़र्माइश पूरी करते-करते बेचारे के हाल खराब हैं। कुल नोटों की जरूरत का 14% नोट बाजार में मौजूद हैं। बाजार के हाल ऐसे टापर बच्चे जैसे हैं जिसका एन इम्तहान के पहले पूरा सिलेबस और विषय बदल दिया गया हो फ़िर भी आशा की जाये कि वह इम्तहान में टाप ही करे। बेचारे के दिन की नींद और रात के चैन हराम हैं।
फ़िलहाल व्यंग्य की जुगलबंदी में इतना ही। आपको कैसी लगी यह जुगलबंदी अपनी राय बताइयेगा।
॑#व्यंग्यकीजुगलबंदी, #व्यंग्य, #vyangy, Arvind Tiwari, Nirmal Gupta, Ravishankar Shrivastava, Udan Tashtari, Yamini Chaturvedi,
टिप्पणियाँ -
Ravishankar Shrivastava वाह! क्या बात है. यामिनी जी का पुरजोर स्वागत है. और तमाम नए-पुराने, वुड-बी व्यंग्यकारों का भी आह्वान करते हैं कि आगामी विषयों पर अपने व्यंग्य की धारें और तेज करने का प्रयास करें. :)
Ranjana Rawat व्यंग्य की यह जुगलबंदी आबाद रहे, ज़िंदाबाद रहे ... मेरे नाम का वारंट जारी किए बग़ैर, रिपोर्ट में क़ैद करने का तहे दिल से आभार :)
अनूप शुक्ल शुक्रिया ! वारंट भी जारी होगा ! तैयार होकर आइये जुगलबंदी में, जल्दी से ! :)
Surendra Mohan Sharma और इतनी सारी जुगलबंदियाँ सुनने के बाद 1000/ के नोट ने मीठी नींद से बाहर आकर जम्हाई लेते हुए छोटे नोटों को ताना दिया --------@
भैय्या बुजुर्ग कह गए हैं मरा हाथी भी सवा लाख का होता है । अब मुझे ही देख लो 500/ की कीमत में सफ़ेद होने का हुनर तो अभी भी रखता हूँ मैं ।
अनूप शुक्ल अकड़ जायज है 1000 के नोट की ! :)
Vimlesh Chandra अब ये नजारा बहुत दिनों तक रहेगा कि ए टी एम् में लाइन पहले और मंदिर में बाद में लगती है। कहते है न बाप बड़ा न भैया; सबसे बड़ा रुपैया।
अनूप शुक्ल देखिये क्या होगा आगे ! :)
Vijay Wadnere ...काय दादा, ये नए बाले नोट घर पेईच पीरिन्ट कर रयेओ क्या?
अनूप शुक्ल न घर में काये करने ! सरकार छाप रही है हमाये लाने ! :)
Anshu Mali Rastogi धासूं पहल। और व्यंग्य की जुगलबंदी से जुड़े सभी पहलवानों को बधाईयां-बधाईयां।
अनूप शुक्ल धन्यवाद ! अब आप भी अगली बार उतरिये अखाड़े में ! :)
Anshu Mali Rastogi जरूर सर...
Arvind Tiwari बढ़िया संख्या बढ़ रही है।
अनूप शुक्ल धन्यवाद ! :)
Yamini Chaturvedi आभार :)
अनूप शुक्ल स्वागत ! अब नियमित लिखिये जुगलबंदी में ! :)
ALok Khare bhot badhiya se describe kiya hai! dadda
अनूप शुक्ल धन्यवाद !
Udan Tashtari जोत से जोत भिड़ाते चलो...व्यंग्य की गंगा बहाते चलो... :)
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