लघु कथाः चुनमुन हाँ भई! आप सच सुन रहे हैं, हम बात “चुनमुन” की ही कर रहे है, बड़ी-बड़ी खूबसूरत काली-काली आँखे, रंग एकदम सांवलि...
लघु कथाः चुनमुन
हाँ भई! आप सच सुन रहे हैं, हम बात “चुनमुन” की ही कर रहे है, बड़ी-बड़ी खूबसूरत काली-काली आँखे, रंग एकदम सांवलिया लेकिन बहुत ही सुन्दर, जो एक बार देखता तो वह ठगा सा रह जाता, उम्र कोई ज्यादा न थी । वह हमको सड़क के किनारे पर मिली थी। हम उसको अपने घर पर ले आए , नहला- धुलाकर अच्छी तरह से, फिर उसे खाना खिलाया, लगता था वो तीन-चार दिनों से खाना नहीं खायी थी। जब खाना खाकर तृप्ति हुई तो जी भर कर सोई। कुछ दिनों के बाद वह घर की एक सदस्य की तरह हो गयी ।
प्यार दुलार देने से हर कोई अपना हो जाता है अगर उसके अन्दर समझदारी हो तो। जब वह सड़क के किनारे मुझे मिली थी तब उसका कोई नाम न था। वह थी ही इतनी प्यारी कि देखते ही मुँह से अचानक निकल आया “चुनमुन” तभी से उसका नाम चुनमुन ही पड़ गया , मुहल्ले वाले भी उसे चुनमुन नाम से ही बुलाते। वह उछलते- कूदते हर किसी के पास चली जाती।
चुनमुन जब थोडी बड़ी हुई तो पूरा घर में धूम-चौकड़ी मचाती, पूरा घर तहस-नहस हो जाता पर कोई भी उसे दुत्कारता नहीं। कभी-कभी तो वह धर के बाहर भी चली जाती। वह मुहल्ले के आस-पास के लोगों से भी अब परिचीत हो गय़ी थी। हर कोई उससे प्यार दुलार करता, उसे खाना खिलाता, पूरे मुहल्ले में बस एक चुनमुन ही तो थी जिसे हर कोई उसे जानता था । वह इतनी निडर थी कि, क्य़ा मजाल कि उसके रहते मुहल्ले में कोई भी अजनबी प्रवेश कर जाए! य़ह हो ही नहीं सकता ।
धीरे-धीरे समय़ गुजरता गय़ा, चुनमुन अब वय़स्क हो गय़ी। वह घर पर ही रहती। घर की देखभाल करती बहुत सुकून था। इतना तो य़कीन था कि घर मे चुनमुन के रहते चोर- उचक्के घर मे प्रवेश नहीं कर पाय़ेंगे। जिंदगी काफी अच्छी गुजर रही थी।
कुछ दिनों बाद मेरा तबादला पटना हो गय़ा। मैं अपना समान लेकर वहाँ व्य़वस्थित हो गय़ा। लेकिन किसी कारण बस चुनमुन को न ला सका। मेरे बगैर चुनमुन अनाथ हो गय़ी। अब उसका कोई नाथ न रहा ,ईश्वर के सिवा।
कहा जाता है कि अगर ब्राम्हाण्ड मे कोई तारा अपना गुरूत्व खोता है तो वह नष्ट हो जाता है यही हाल चुनमुन के संग भी हुआ, अब उसका कोई मालिक नहीं रहा। अब उसे कोई खाना देने वाला भी नहीं रहा। दिन-भर ,इधर-उधर भटकती, एक-दो रोटी कोई दे देता उसी पर अपना जीवन व्य़तीत करती। लेकीन वह अपनी वफादारी नहीं छोडी । फिर भी मजाल कि बाहरी कोई भी व्यक्ति मुहल्ले मे प्रवेश कर जाए।
एक दिन कुछ कूड़ा बटोरने वाले कुछ लडके मुहल्ले में आए। चुनमुन ने उसे काट लिय़ा। आए दिन ऐसी रोज घटनाएं होने लगी। रोज खबरें आने लगी कि चुनमुन ने फलाँ को काट लिय़ा । जो भी शिकाय़त करता वह सभी बाहरी लोग हुआ करते और मेरे पुराने मकान मालिक को शिकाय़त किय़ा करते। मकान मालिक ने सोचा कि किस-किस से झगडा किय़ा जाय एक उपाय सूझा क्यों न चुनमुन को पकड़ कर कहीं दूर छोड़ दिया जाय! एक हफ्ते किसी तरह से बीते फिर चुनमुन मुहल्ले में आ गयी और फिर मुहल्ले के आस-पास रहने लगी।
मैं एक दिन उस शहर मे किसी जरूरी काम से गया था और पुराने मकान मालकिन के यहाँ जाने का मौका मिला। जब मैं वहाँ पहुँचा तब मकान मालिक पूरे समय़ चुनमुन की ही बात करते रहे। वह बता रहे थे कि चुनमुन तो अब लोकल टी.वी.चैनल पर भी छा गय़ी है। दरअसल चुनमुन इतने लोगों को काटी थी कि मीडिया के लोग “चुनमुन का आतंक” नाम से रोज समाचार प्रसारित करने लगे थे।
मैं मुहल्ले से बाहर निकल ही रहा था तभी चुनमुन से मुलाकात हो गयी। वह देखते ही पहचान गयी, और पूंछ हिलाती मेरे शरीर को चाटने लगी। शायद इस आशा में कि मेरे पुराने मालिक खाने के लिये कुछ देंगे या शिकायत का लहजा रहा होगा।
मैं दुकान से बिस्कुट खरीद कर उसे खिलाया। मैं जब चुनमुन कि शिकायत जब सुना था तो कुछ देर के लिए तो सन्न रह गया था । पर ये सोच रहा था कि चुनमुन जैसी भी हो पर चुनमुन मुहल्ले के लोगो की हिफाजत तो करती थी। आदमी का इस दुनियां में क्या भरोसा पर आप जानवर पर पूरा भरोसा कर सकते हो निसंकोच।
मैं यही सोच रहा था कि काश मैं चुनमुन को अपने पास ले आता! शायद ये मेरी बड़ी भूल थी। और मन ही मन कह रहा था कि चुनमुन भले ही आज मेरे पास नहीं पर मुहल्ले के लोगों की रक्षा तो कर रही है लाख दूसरे लोग बुरा क्यों न कहे।
मैं उस शहर से अपने शहर लौट आया और मेरे पास रह गयी तो बस चुनमुन की यादें, जब कभी उसकी याद आती है तो याद आता है उसकी बस चमकीली आंखें ,मेरीे आंखों के सामने नाचने लगती, और दुम इधर-उधर, बस यही तो प्रेम है।
अब तो आप समझ ही गये होगे "चुनमुन" को हाँ भई वही चुनमुन नाम की कुतिया। आज उसके दो बच्चे भी हैं यदि कभी आपको मौका मिले तो जाकर जरूर देख आईयेगा, शहर बक्सर मुहल्ला ठाकुरबाडी। शायद आपकी आँखों को बहुत सुकून मिलेगा, तब आप बताइयेगा कि चुनमुन कैसी थी और उसके बच्चे कैसे थे। यदि आपको पसंद आए तो उसके बच्चे जरूर ले आ सकते हैं लेकिन आप वो मत करियेगा जो मैंने किया था।-*-
दिनांकः 06 March 2014 ,सिलीगुड़ी
गिरधारी राम फोनः 9434630244, 8518077444
पताः 3/E, D.S. कालोनी, न्यूजलपाईगुड़ी, भक्तिनगर,जलपाईगुड़ी,प.बं. पिनः734007
ईमेलः giri.locoin@gmail.com
हाँ भई! आप सच सुन रहे हैं, हम बात “चुनमुन” की ही कर रहे है, बड़ी-बड़ी खूबसूरत काली-काली आँखे, रंग एकदम सांवलिया लेकिन बहुत ही सुन्दर, जो एक बार देखता तो वह ठगा सा रह जाता, उम्र कोई ज्यादा न थी । वह हमको सड़क के किनारे पर मिली थी। हम उसको अपने घर पर ले आए , नहला- धुलाकर अच्छी तरह से, फिर उसे खाना खिलाया, लगता था वो तीन-चार दिनों से खाना नहीं खायी थी। जब खाना खाकर तृप्ति हुई तो जी भर कर सोई। कुछ दिनों के बाद वह घर की एक सदस्य की तरह हो गयी ।
प्यार दुलार देने से हर कोई अपना हो जाता है अगर उसके अन्दर समझदारी हो तो। जब वह सड़क के किनारे मुझे मिली थी तब उसका कोई नाम न था। वह थी ही इतनी प्यारी कि देखते ही मुँह से अचानक निकल आया “चुनमुन” तभी से उसका नाम चुनमुन ही पड़ गया , मुहल्ले वाले भी उसे चुनमुन नाम से ही बुलाते। वह उछलते- कूदते हर किसी के पास चली जाती।
चुनमुन जब थोडी बड़ी हुई तो पूरा घर में धूम-चौकड़ी मचाती, पूरा घर तहस-नहस हो जाता पर कोई भी उसे दुत्कारता नहीं। कभी-कभी तो वह धर के बाहर भी चली जाती। वह मुहल्ले के आस-पास के लोगों से भी अब परिचीत हो गय़ी थी। हर कोई उससे प्यार दुलार करता, उसे खाना खिलाता, पूरे मुहल्ले में बस एक चुनमुन ही तो थी जिसे हर कोई उसे जानता था । वह इतनी निडर थी कि, क्य़ा मजाल कि उसके रहते मुहल्ले में कोई भी अजनबी प्रवेश कर जाए! य़ह हो ही नहीं सकता ।
धीरे-धीरे समय़ गुजरता गय़ा, चुनमुन अब वय़स्क हो गय़ी। वह घर पर ही रहती। घर की देखभाल करती बहुत सुकून था। इतना तो य़कीन था कि घर मे चुनमुन के रहते चोर- उचक्के घर मे प्रवेश नहीं कर पाय़ेंगे। जिंदगी काफी अच्छी गुजर रही थी।
कुछ दिनों बाद मेरा तबादला पटना हो गय़ा। मैं अपना समान लेकर वहाँ व्य़वस्थित हो गय़ा। लेकिन किसी कारण बस चुनमुन को न ला सका। मेरे बगैर चुनमुन अनाथ हो गय़ी। अब उसका कोई नाथ न रहा ,ईश्वर के सिवा।
कहा जाता है कि अगर ब्राम्हाण्ड मे कोई तारा अपना गुरूत्व खोता है तो वह नष्ट हो जाता है यही हाल चुनमुन के संग भी हुआ, अब उसका कोई मालिक नहीं रहा। अब उसे कोई खाना देने वाला भी नहीं रहा। दिन-भर ,इधर-उधर भटकती, एक-दो रोटी कोई दे देता उसी पर अपना जीवन व्य़तीत करती। लेकीन वह अपनी वफादारी नहीं छोडी । फिर भी मजाल कि बाहरी कोई भी व्यक्ति मुहल्ले मे प्रवेश कर जाए।
एक दिन कुछ कूड़ा बटोरने वाले कुछ लडके मुहल्ले में आए। चुनमुन ने उसे काट लिय़ा। आए दिन ऐसी रोज घटनाएं होने लगी। रोज खबरें आने लगी कि चुनमुन ने फलाँ को काट लिय़ा । जो भी शिकाय़त करता वह सभी बाहरी लोग हुआ करते और मेरे पुराने मकान मालिक को शिकाय़त किय़ा करते। मकान मालिक ने सोचा कि किस-किस से झगडा किय़ा जाय एक उपाय सूझा क्यों न चुनमुन को पकड़ कर कहीं दूर छोड़ दिया जाय! एक हफ्ते किसी तरह से बीते फिर चुनमुन मुहल्ले में आ गयी और फिर मुहल्ले के आस-पास रहने लगी।
मैं एक दिन उस शहर मे किसी जरूरी काम से गया था और पुराने मकान मालकिन के यहाँ जाने का मौका मिला। जब मैं वहाँ पहुँचा तब मकान मालिक पूरे समय़ चुनमुन की ही बात करते रहे। वह बता रहे थे कि चुनमुन तो अब लोकल टी.वी.चैनल पर भी छा गय़ी है। दरअसल चुनमुन इतने लोगों को काटी थी कि मीडिया के लोग “चुनमुन का आतंक” नाम से रोज समाचार प्रसारित करने लगे थे।
मैं मुहल्ले से बाहर निकल ही रहा था तभी चुनमुन से मुलाकात हो गयी। वह देखते ही पहचान गयी, और पूंछ हिलाती मेरे शरीर को चाटने लगी। शायद इस आशा में कि मेरे पुराने मालिक खाने के लिये कुछ देंगे या शिकायत का लहजा रहा होगा।
मैं दुकान से बिस्कुट खरीद कर उसे खिलाया। मैं जब चुनमुन कि शिकायत जब सुना था तो कुछ देर के लिए तो सन्न रह गया था । पर ये सोच रहा था कि चुनमुन जैसी भी हो पर चुनमुन मुहल्ले के लोगो की हिफाजत तो करती थी। आदमी का इस दुनियां में क्या भरोसा पर आप जानवर पर पूरा भरोसा कर सकते हो निसंकोच।
मैं यही सोच रहा था कि काश मैं चुनमुन को अपने पास ले आता! शायद ये मेरी बड़ी भूल थी। और मन ही मन कह रहा था कि चुनमुन भले ही आज मेरे पास नहीं पर मुहल्ले के लोगों की रक्षा तो कर रही है लाख दूसरे लोग बुरा क्यों न कहे।
मैं उस शहर से अपने शहर लौट आया और मेरे पास रह गयी तो बस चुनमुन की यादें, जब कभी उसकी याद आती है तो याद आता है उसकी बस चमकीली आंखें ,मेरीे आंखों के सामने नाचने लगती, और दुम इधर-उधर, बस यही तो प्रेम है।
अब तो आप समझ ही गये होगे "चुनमुन" को हाँ भई वही चुनमुन नाम की कुतिया। आज उसके दो बच्चे भी हैं यदि कभी आपको मौका मिले तो जाकर जरूर देख आईयेगा, शहर बक्सर मुहल्ला ठाकुरबाडी। शायद आपकी आँखों को बहुत सुकून मिलेगा, तब आप बताइयेगा कि चुनमुन कैसी थी और उसके बच्चे कैसे थे। यदि आपको पसंद आए तो उसके बच्चे जरूर ले आ सकते हैं लेकिन आप वो मत करियेगा जो मैंने किया था।
दिनांकः 06 March 2014 ,सिलीगुड़ी
गिरधारी राम फोनः 9434630244, 8518077444
पताः 3/E, D.S. कालोनी, न्यूजलपाईगुड़ी, भक्तिनगर,जलपाईगुड़ी,प.बं. पिनः734007
ईमेलः giri.locoin@gmail.com
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