आयुष के घर में एक गौरैया का घोंसला था। घर के बीच के दरवाजे के ऊपर गौरैया ने घोंसला बना कर रखी थी। इसकी तैयारी गौरैया दो महीने से कर रही थी।...
आयुष के घर में एक गौरैया का घोंसला था। घर के बीच के दरवाजे के ऊपर गौरैया ने घोंसला बना कर रखी थी। इसकी तैयारी गौरैया दो महीने से कर रही थी। करीब दो महीने पहले की बात है, गौरैया और नर गौरैया दोनों ने मिलकर तिनका चुनना शुरू किये थे, जनवरी का महीना खत्म होते-होते घोंसला बनाने का काम खत्म हो गया। एक दिन गौरैये ने दो अण्डे दिये। गौरैया दिन रात अण्डों को सेती रही,नर गौरैया ने भी रात दिन पहरेदारी करता रहा।
जब अण्डे फोड़ कर बच्चे बाहर निकले तो गौरैया तथा नर गौरैया का खुशी का ठिकाना नहीं रहा। चीं-चीं, चीं-चीं से पूरा घर चहचहा गया। छोटे- छोटे बच्चों के लिए दोनों चुनचुन कर दाने ले आते, दाने खाकर बच्चे भी शोर मचाते शायद खुश होकर चहचहाते थे।
आयुष का घर खुशियों से भर गया। रोज सुबह-सुबह चीं-चीं के शोर से घर खिल जाता, इसी के साथ आयुष की सुबह की निंद भी खुलती, सुबह जल्दी नहा धोकर स्कूल के लिए तैयार होता, रास्ता करता फिर स्कूल की बस पकड़ कर स्कूल चला जाता। जब स्कूल से घर आता तो गौरैया के बच्चो का चहचहाहट सुना करता था, शायद आयुष को बहुत अच्छा लगता। अब गौरैया का परिवार आयुष के घर के सदस्य की तरह हो गये थे। लोग कहते है कि गौरैया जिस घर में घोंसला लगाती है वो घर खुशहाल हो जाता है, ये बात सच लग रहा था।
धिर-धिरे गौरैया के बच्चे बड़े होने लगे, रोज गौरैया तथा नर गौरैया बच्चों के लिए दाने, कीड़े-मकोड़े ले आकर खिलाते, फिर बच्चे खुश होकर बच्चे गाना गाने लगते।
मार्च का महीना शुरू होने को थे, आयुष की परीक्षा शुरू होने को थी आयुष दिन-रात मेहनत करता, इधर गौरैया भी दिन-रात मेहनत करके बच्चों को बड़ा करने पर लगे थे। बच्चे अब थोडा पंख फड़फड़ाने लगे थे। माँ बाप जैसे सिखाते वैसे भी बच्चे भी करते। अब धिरे-धिरे बच्चे अब उड़ने लगे, लेकिन ज्यादा दूरी नहीं जा पाते।
मार्च के अन्तिम सप्ताह में आयुष की परीक्षायें खत्म हो गयी अब रिज्लट आने को था। आयुष बहुत ही खुश था अगली क्लास में जाने के लिए।
रिजल्ट के लिए स्कूल से उनतीस मार्च का दिन निर्धारित स्कूल से किया गया था। आयुष उस दिन सुबह ही स्कूल पहुँच गया। आयुष का मेहनत रंग लायी और आयुष पूरे क्लास में प्रथम आया था। खुशी-खुशी घर आया, वह आज बहुत ही प्रसन्न था। पूरे घर में उछल-कूद कर रहा था, लेकिन आज उसको एक बात की कमी आ रही थी। उसको आज गौरैया के बच्चों की आवाजें चीं-चीं की नहीं सुनाई दे रही थी। आयुष को कुछ शंका हुआ, उसने पूरा घर छान मारा फिर भी न तो गौरैया के बच्चे, गौरैया और न ही नर गौरैया ही दिखाई दे रहे थे। उसने आस-पास छतों पर भी जाकर देखा कही अता पता न चला। वह निराश होकर घर में प्रवेश किया।
आज खुशी के दिन आयुष को अच्छा नहीं लग रहा था। शायद गौरैया पिछले तीन-चार महीने से एक परिवार का हिस्सा हो गयी थी। आयुष आज खुश होकर भी आज बहुत दुखी था। उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। कभी इस घर में जाता तो कभी उस घर में जाता, सोचा हाथ पैर धोकर आराम करते है इसलिए वह बाथरूम में गया। बाथरूम जाकर उसने ज्योंही नल खोला तो नीचे लगी बाल्टी की तरफ ध्यान गया। उसने देखा बाल्टी में कुछ तैर रहा है। आयुष ने ध्यान से देखा तो वही गौरैया का एक मरा हुआ बच्चा था। शायद उड़ने के प्रयास में या पानी पीने के प्रयास में वह गिरकर मर गया था। आयुष को मन बहुत ही दुख: और ग्लानि से भर गया।
वह बेड़रूम में आकर सोफे पर बैठ गया, वह मन में तरह-तरह की बाते सोच रहा था और खिड़की की तरफ देख रहा था, तभी उसका ध्यान एक पेड़ पर बैठा कौवा पर गया, वह कोई चीज नोच-नोच कर खा रहा था। शायद गौरैया का वही दूसरा बच्चा था। गौरैया तथा नर गौरैया वही आस-पास चीं-चीं कर रहे थे शायद असहाय....। आयुष ने उस कौवा की तरफ दौड़ा तब तक कौवा बच्चा को लेकर उड़ चुका था।
गौरैया तथा नर गौरैया उस घटना के बाद फिर दो सालो तक नहीं आये, लेकिन आज नर गौरैया मेरे घर में आकर फिर एक बार घरौंदा की तलाश कर रहा था और उनको पसंद भी आया वही घर के बीच दरवाजे के ऊपर। आयुष आज पढ़ते-पढ़ते नर गौरैया की गतिविधियाँ देख रहा था, और सोच रहा था कि जीवन में कभी भी हार नहीं मानना चाहिए और गौरैयों से सीख़ लेनी चाहिए।
एक महीने कैसे बीत गया आयुष को पता ही नहीं चला। एक दिन स्कूल से आने के बाद आयुष हाथ पैर धोकर सोफे पर बैठा खिड़की में बाहर का नजारा देख रहा था तभी आयुष की नजर गौरैया पर गयी, उसने देखा गौरैया, नर गौरैया तथा उसके दो-तीन प्यारे-प्यारे बच्चे स्वच्छंद आसमान में अठखेलियाँ कर कर रहे थे।
आयुष का मन आज गद-गद हो गया, सोच रहा था कि मेहनत के आगे सारी दुनिया झुकती है, सलाम करती है और सदा उसकी ही जीत होती है। इसलिए असफलता से कभी भी हार नहीं मानना चाहिए, मन में एक आशा की किरण हमेशा जगाये रहना चाहिए।
आयुष की आँखें एक खुशहाल जिन्दगी के सपने देख रही थी वो भी खुली आँखों से।
समाप्त
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सोमवार, 7 अप्रैल 2014
सिलीगुड़ी
गिरधारी राम, फोनः 9434630244, 851577444
ईमेलः giri.locoin@gmail.com
पताः 3/E, D.S.कालोनी न्यूजलपाईगुड़ी,भक्तिनगर,जलपाईगुड़ी (प. बं.) पिनः734007
लेखक के विचार निजी है, लेखक का उद्देश्य शिक्षा देना है किसी की भावनाओ को ठेस पहुँचाना नहीं है।
लेखक परिचय
नामः गिरधारी राम
पिताः मिश्री राम
जन्मः 25.07.1974 गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
शिक्षाः स्नातक
पताः 3/E, D.S.कालोनी, न्युजलपाईगुड़ी, भक्तिनगर,
जलपाईगुड़ी, प.बं, पिनः734007
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