व्यंग्य की जुगलबंदी 4 - बदलता मौसम

SHARE:

16 अक्तूबर 2016 की व्यंग्य की जुगलबंदी (क्र. 4) का विषय था – बदलता मौसम निर्मल गुप्त का व्यंग्य : बदलता मौसम और फेस्टिव सीजन सर्दी लगभग जा ...

16 अक्तूबर 2016 की व्यंग्य की जुगलबंदी (क्र. 4) का विषय था – बदलता मौसम

निर्मल गुप्त का व्यंग्य :

बदलता मौसम और फेस्टिव सीजन
सर्दी लगभग जा चुकी है। या शायद ढंग से आ भी गई हो, क्या पता? लोग युद्ध- युद्ध खेलने में इस कदर मशगूल हैं कि उसका जिक्र तक कोई नहीं कर रहा। तोते पिंजरे का दरवाज़ा खुला होने के बावजूद मजे से हरी मिर्च कुतरते हुए ‘आज़ादी आज़ादी’ की रट लगाये हैं। इस समय पूरा देश तरह–तरह के सवालों के घेरे में है। जिसे देखो उसी की जेब में प्रश्नों की पुड़िया है। भक्त टाइप लोगों के पास मुल्क की अस्मिता और देशभक्ति का मुद्दा है। उनके हाथों में लाठियां डंडे हैं जिन पर झण्डे टंगे हैं। जुबान पर तेजाबी बयान हैं। चेहरे पर कर्तव्यपरायणता की दमक है। आस्तिक हर नास्तिक सोच और मंशा वालों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटने का जबरदस्त कौशल दिखा रहे हैं। वैसे पिटने वालों के लिए यह ट्रेजडी किंग बनने का सही समय है इसलिए पिट जाने के बावजूद मजे में हैं।

मौसम बदलने के साथ गर्म ऊनी कपड़े शोकेस के हैंगर से लेकर फुटपाथी रेलिंग पर टंग गये हैं। गर्मी वाले सूती झीने कपड़े अभी अलमारियों में तह लगा कर रख दिए गये हैं। फिर भी राजनीतिक माहौल गरमा गया है,पर इतना भी नहीं कि माथे पर पसीना चुहचुहाता हो। देह पसीने के नमक से इतनी नमकीन नहीं हुई है कि अपनी-अपनी आइडियोलाजी के अनुसार नमक हलाली के सवाल उठने लगें। वैसे भी राजनीति में नमकहलाली और नमकहरामी में कोई मौलिक भेद नहीं होता। यह बदलते हुए मौसम का संगीन समय है। ऐसे में एहतियात ही बचाव है। वस्तुत: यह भविष्य की ग्रीष्म ऋतु के लिए कम खर्च पर बेहतरीन ब्रांडेड डिजाइनर्स सूती कपड़ों की खरीददारी की अक्लमंदी से भरा मौका है। यह आने वाले कल के सपनों में निवेश का वक्त है।

पूरे मुल्क में भागमभाग और धरपकड़ मची है। मीडिया की मंडी में बड़ी हलचल है। सब अपने - अपने चैनल के लिए टीआरपी बटोरने के लिए पारदर्शी जाल बिछाए बैठे हैं। सबको पता है कि आजकल सूचना प्रधान ‘सीजन’ आने ही वाला है। मनगढंत ग्राफिक्स और रिसर्च के ज़रिये मनमाफिक सिंथेटिक सच और झूठ सामने आ रहे हैं। यह ठीक उसी तरह का सीजन है जैसे डेंगू जैसी महामारी फैलने पर डाक्टरों और दवा विक्रेताओं का बन आती है। जैसे मिठाई भरे थाल के ऊपर रखी चादर के जरा-सा उघड़ते ही मक्खियाँ भिनभिना उठती हैं। जैसे मनमाफिक थानेदार के तैनात होते ही इलाके के सटोरियों की मौज आ जाती है। यकीनन तमाम तरह के स्वप्नजीवियों के लिए यह मुरादों भरे दिन हैं।

बदलती फिज़ा के हिसाब से बाज़ार करवट लेता है। विजय ध्वजा की तरह फेस्टिवल सेल, महासेल और मेगा सेल के पट लहराने लगते हैं। राजनीतिक सरोकारों के अनुसार बदलाव और क्रांति की नवीनतम अवधारणायें प्रकट होती है। वातावरण इंस्टेंट कॉफ़ी के झाग और अजब उमंग से भर जाता है। क्रांतिधर्मी पोस्टर योद्धाओं के होठों और मूंछों से चिपक कर यही झाग नवजागरण के गीत गुनगुनाता है। राजनीति के हाट पर इस तरह के रणबांकुरों की डिमांड बढ़ जाती है। मुल्क के भीतर कुछ चटखता है तो लोग नई सोच के नये नेता के स्वागत में पलक पांवड़े बिछा देता है। नये रैपर में नये समीकरण सामने आते हैं। सोच भी मौसमी होती है, बदलते वक्त के साथ बदल जाती है।

होली जब आएगी तब आएगी। बजट सत्र से पहले इस पर्व के साथ जुड़ा हुडदंग सामने आ गया है। एक दूसरे के मुंह पर कालिख पोतने की होड़ लगी है। जगह-जगह मजीरे बज रहे हैं। सब अपने –अपने एजेंडे का फाग गाने की अभी से प्रेक्टिस कर रहे हैं। गायन के मुकाबले वादन का ‘पिच’ इतना अधिक है कि इसकी धमक में असल मंतव्य हवा में गुम हो गये हैं। देशद्रोह और देशभक्ति के नारों से अभिमंत्रित फुलझड़ियाँ चहुँ ओर चमक बिखेर रही हैं।

बदलते मौसम के साथ मुखौटे भी बदल रहे हैं पर लक्ष्मी जी की आरती फिर भी पूर्ण भक्तिभाव और मिष्ठान भरी प्लेट सजाकर पूर्ण विधि विधान के साथ गाने की तैयारी चल रही है।

---

अनूप शुक्ल का व्यंग्य :

मौसम है आशिकाना
-------------------------

कल एक मित्र से बात हो रही थी। उन्होंने पूछा –’ तुम्हारे उधर का मौसम कैसा है?’

हमने कहा – आशिकाना।

यह कल की ही बात नहीं। हमसे कोई भी मौसम के बारे में पूछता है हमारा जबाब हमेशा एक ही रहता है- आशिकाना। मौसम बदलता रहे उसकी बला से। भीषण गर्मी पड़ रही हो। भयंकर लू चल रही हो। भद्दर जाड़ा पड़ रहा हो। दांत के साथ शरीर भी किटकिटा रहा हो। लेकिन हमसे मौसम की जब भी किसी ने बात की हमारा जबाब हमेशा एक सा ही रहा - आशिकाना।

यह कुछ ऐसा ही है कि भले ही अमेरिका कहीं भी बम बरसा रहा हो। किसी देश को तबाह कर रहा हो। आतंकवादियों को हथियार मुहैया करा रहा हो लेकिन जब भी उसकी नीतियों की बात चलेगी वह बयान जारी करेगा-’अमेरिका शांतिप्रिय देश है।’

एक तरह से सही ही कहता है अमेरिका भी। जब सब लोग मर खप जायेंगे तो हल्ला कौन मचायेगा। परसाई जी भी लिखते थे- “अमरीकी शासक हमले को सभ्यता का प्रसार कहते हैं। बम बरसते हैं तो मरने वाले सोचते है, सभ्यता बरस रही है।“

हमने एकाध बार सोचा भी कि हमको हर मौसम ’आशिकाना’ ही क्यों लगता है। कारण समझ में नहीं आया। एक मित्र ने अपनी राय बताई –’ जिसको जो सुविधा हासिल नहीं होती वह उसका हल्ला मचाता रहता है। तुम शायद आशिकी से महरूम रहे इसलिये उसका नाम लेकर काम चलाते हो। सींकिया लोग ही अपनी पहलवानी के किस्से सुनाते हैं। साहब के चैम्बर में डांट खाकर निकले लोग बाहर सबको बताते हैं-’ आज हमने साहब को कस के हड़का दिया।’

हम मित्र की बात का क्या जबाब देते? कहते खूब आशिकी किये हैं तो फ़र्जी किस्से सुनाने पडते। उसमें भी दोहरा नुकसान। पहले तो हमारा ’शराफ़त इंडेक्स’ फ़ौरन कम होता। इश्क करना खराब माना जाता है न अपने यहां। इसके बाद जब किस्सों का झूठ सामने आता तो और बवाल होता।

लेकिन बात बदलते मौसम की हो रही है। आजकल मौसम इतनी तेजी से बदलने लगा है कि बेईमान से भी ज्यादा बेईमान हो गया है। बरसात का मौसम निकल जाता है पानी नहीं बरसता नहीं लेकिन अचानक जाड़े में धुंआधार हो जाता है। इसके अलावा पहले मौसम समाजवादी टाइप होता है। पूरे शहर में एक सा मौसम। अगर भन्नानापुरवा में धूप खिली है तो बांसमंडी में भी कपड़े सुखाने के डाल दिये जाते थे। अगर अफ़ीमकोठी में बारिश हो रही है तो ये नहीं हो सकता था कि गन्देनाले में छतरियां न खुलीं हो। मतलब सब जगह एक सा मौसम होता था।

लेकिन आजकल अक्सर ऐसा नहीं होता है। पता चलता है चेन्नई में झमाझम हो रहा होता है उधर कश्मीर में बर्फ़ गिर रही होती है। एक ही शहर तक में भी यही नजारा दिखता है। अक्सर होता है कि आर्मापुर में पानी बरस रहा है उधर कैंट में धूप खिली होती है। मौसम का यह बदलता अंदाज खाते में सीधे सब्सिडी जाने जैसा है। आर्मापुर का आधारकार्ड बारिश के लिये रजिस्टर है तो पानी बरसा दिया कैंट का नंबर धूप के लिये जुड़ा है तो वहां किरणें खिल गईं। यह भी हो सकता है कि मौसम के पास भी पानी और धूप का स्टाक सीमित हो या सर्विस एजेंट कम हो जाते हों इसलिये एक-एक करके सप्लाई करता हो। लोग कहते हैं आदमी प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करता रहता है इसलिये कुदरत भी डर-डरकर निकलती है बाहर! टुकडों-टुकड़ों में सहमते हुये। इसीलिये कहीं धूप दिखती है, कहीं बारिश।

यह तो कुदरत के नजारे हैं। मौसम कैसा भी रहे उसका असर मन पर परिस्थिति के हिसाब होता है। इस लिहाज से इधर देश-दुनिया का मौसम बड़ी तेजी से बदल रहा है। कुछ लोग बहुत तेजी से अमीर हो रहे हैं, बहुत ताकतवर हो रहे हैं, सारी खुशियां कुछ लोगों तक सिमटकर रह गयीं हैं। संतुलन बनाये रखने के लिये तमाम लोग बहुत तेजी से गरीब, कमजोर और बेहाल हो रहे हैं।

पहले अपराध, धतकरम और तमाम बुराईयां डरी-सहमी सी रहती थीं। सबके सामने आने में उनको उसी तरह डर लगता था जिस तरह आज एक लड़की को अकेले बाहर निकलने में लगता होगा। लेकिन आज बदलते समय में अपराध, धतकरम और तमाम बुराईयों ने सत्ता और पूंजी के साथ गठबंधन सरकार बना ली है। गुंडे, बाहुबली जो पहले पर्दे के पीछे से सत्ता की सहायता करते थे वे अब खुद सरकार बनाने लगे हैं। माफ़िया मसीहा बनकर सामने आ रहे हैं। दुर्बुद्धि, गुंडई , अराजकता अपनी तेजी से बढती ताकत के साथ न्यायबुद्धि, भलमनसाहत और सज्जनता को पटकनी दे रही हैं। सच्चाई मुंह छिपाये कहीं कोने में खड़ी है। झूठ लिपा-पुता मंच पर अट्ठहास करते हुये सम्मानित हो रहा है। जनता भौंचक्की सी इस बदलाव को देखती है। उसको झटका तब लगता है जब उसको बताया जाता है कि इस सब की जिम्मेदार वही है! उसी ने झांसे में आकर अपनी बदहाली का इंतजाम किया है!

इधर मौसम बहुत तेजी से बदल रहा है।

लेकिन मौसम का बदलना भी एक शाश्वत सच है। मौसम हमेशा एक सा कहीं नहीं रहता। यह समय भी बदलेगा। पर बदलाव के लिये मौसम की मेहरबानी से ज्यादा मन की मजबूती चाहिये। रमानाथ अवस्थी के शब्दों में- ’कुछ कर गुजरने के लिये, मौसम नहीं मन चाहिये।’ या फ़िर परसाई जी के कहे के अनुसार –’ मौसम की मेहरबानी पर भरोसा करेंगे, तो शीत से निपटते-निपटते लू तंग करने लगेगी। मौसम के इन्तजार से कुछ नहीं होगा। वसन्त अपने आप नहीं आता ; उसे लाया जाता है। सहज आनेवाला तो पतझड़ होता है, वसन्त नहीं। अपने आप तो पत्ते झड़ते हैं। नये पत्ते तो वृक्ष का प्राण-रस पीकर पैदा होते हैं। वसन्त यों नहीं आता। शीत और गरमी के बीच से जो जितना वसन्त निकाल सके, निकाल लें। दो पाटों के बीच में फंसा है, देश का वसन्त। पाट और आगे खिसक रहे हैं। वसन्त को बचाना है तो ज़ोर लगाकर इन दोनों पाटों को पीछे ढकेलो - इधर शीत को, उधर गरमी को। तब बीच में से निकलेगा हमारा घायल वसन्त।’

यह तो हुई हमारे इधर के मौसम की बात ! अब आप बताइये आपके इधर कैसा मौसम है।

#व्यंग्यकीजुगलबंदी, #व्यंग्य, Nirmal Gupta, Udan Tashtari, रविरतलामी

------------.

समीर लाल का व्यंग्य :

clip_image001

बदलता मौसम
----------------
एक सामान्य जीव के संज्ञान में मात्र तीन मौसम होते हैं. सर्दी, गर्मी और बरसात और इन तीन मौसमों के भीतर प्रति मौसम के दो स्वरुप- एक तो ठीक ठाक और दूसरा भीषण.
आप जब कभी उनसे पूछें कि मौसम कैसा है? तो जबाब में या तो वो कहेंगे कि ठीक ठाक ही है या फिर भीषण गर्मी पड़ रही है या भीषण ठंड या भीषण बारिश. डिग्री, सेल्सिया या मिलिमीटर आदि से उनका कोई साबका नहीं होता. उनकी नजर में ये सब मौसम विभाग के चोचले हैं और इससे मौसम पर कोई फरक नहीं पड़ता.


इनसे इतर कुछ ऐसे जीव है तो एक खास तबके के बीच ज्ञानी मात्र इसलिए कहलाये जाते हैं कि उन्हें मौसमों के वो नाम आज भी याद हैं जो कभी दर्जा छ की किताबों में पढ़कर, हिन्दी वर्णमाला की तरह, प्रायः सभी के द्वारा भुला दिये जाते है. उनके द्वारा जब महफिलों में, मौसम के नाम शरद, शिषित, हेमन्त, गीष्म, बर्षा और बसंत गिनाये जाते हैं तो महफिल में उपस्थित सभी लोग अपना बचपन का पाठ याद कर, मूँह बाये बतानें वाले की विद्वता को ताकते नहीं अघाते. महफिल में खुद मूर्ख नज़र न आयें इसलिए बगल में बैठे व्यक्ति को कोहनी मारकर बताते हैं कि भाई साहब ठीक बता रहे हैं.


सामान्य जन द्वारा इन मौसमों के साहित्यिक नामों को भुला दिया जाना स्वभाविक सा भी है. जिस चीज का इस्तेमाल आम भाषा में नहीं होता और जो प्रचलन से बाहर हो चुकी हों, उहें कोई याद भी रखे तो कैसे और क्यूँ? इसी तरह हिन्दी श्ब्दकोष कें न जाने कितने शब्द आम प्रचलन ओर बोलचाल के आभाव में विलुप्त हो शाब्दकोष के भीतर कैद हो गुमनामी की जिन्दगी बसर कर रहे हैं.


विचारणीय एवं चिन्तनीय मुद्दा यह न्हीं है कि प्रचलन के आभाव से क्या विलुप्त हो रहा है या प्रचलन के प्रभाव से क्या स्थापित हो रहा है. विचार करने योग्य मुद्दा यह है कि आने वाली पीढ़ी, ऐसे मौसम के नाम सुन, प्रचलन के प्रभाव से प्रभावित हो, पड़ोसी को कोहनी भी मारने योग्य न रह जायेगी.


आने वाली पीढ़ी का बड़ा प्रतिशत अंग्रेजी माध्यम स्कूलों से आयेगा और वो शायद इस तरह के शरद, हेमन्त आदि नामों से कभी परिचित भी न हो पायेगा. वो भी एक अलग सा ही मौसम होगा जहाँ, हिन्दी रोजगार की भाषा होने के आभाव में, अधिकाशतः मात्र बोलचाल की भाषा बन कर रह जायेगी.


प्रचलन के प्रभाव में आकर आने वाले समय में शायद मौसम के नाम कुछ नये तरीके के लिए जाने लगें –मसलन चुनाव का मौसम, परीक्षा का मौसम, डैंगू का मौसम, त्यौहारों का मौसम, विवाह का मौसम, घूमने का मौसम...आदि आदि. इन मौसमों में हवायें भी अपना स्वरुप बदलेंगी जैसे पछुवा और पुरबिया हवा के बदले चुनाव कें मौसम में मोदी की हवा या अखिलेश की हवा, त्यौहारों के मौसम में मंदी और तेजी की हवा आदि चला करेंगी.


प्रचलन के आभाव का प्रभाव देखना हो तो हिन्दी के मौसम में, हिन्दी दिवस के आसापास, हिन्दी साहित्य कें तथाकथित वरिष्ठ साहित्यकारों को हिन्दी कें सम्मेलनों में हिन्दी की बिगड़ती स्थिति पर चिन्ता व्यक्त करने के बाद, मंच से उतार कर हिन्दी वर्णमाला पूछकर देखिये ओर बदलते मौसमा का लुत्फ उठाईये या सर फोडिये, सब आप पर निर्भर है.
मौसम कब एक सा रहा है वो तो स्वभावतः बदलता ही रहेगा.


-समीर लाल ’समीर’

#व्यंग्यकीजुगलबंदी, #व्यंग्य, Nirmal Gupta, Ravi Ratlami, Anup अनूप शुक्ल

-----------------.

रवि रतलामी का व्यंग्य :

बदलता मौसम


मालवा क्षेत्र में मौसम के बदलाव का पूर्वानुमान या फिर यूं कहिए कि बदलते मौसम की भविष्यवाणी हवा का रूख देख कर किया जाता रहा है। कुरावन नाम की हवा की दशा-दिशा और गति को भांप कर बुजुर्ग आज भी सटीक भविष्यवाणियां करते हैं कि पानी कब, कितना गिरेगा और ठंडी गर्मी कितनी पडे़गी। मगर आज के जमाने का आदमी अपनी इंद्रियों की अपेक्षा वेदर डॉट कॉम पर ज्यादा भरोसा करने लगा है। वो घर से निकलने से पहले लोटा भर पानी पी कर, हाथ में छतरी लेकर या रैनकोट डाटकर निकलने के बजाए गूगल नाओ पर मौसम चेक कर निकलता है। क्योंकि वैसे भी उसे अब कहीं पानी की किल्लत कहीं नहीं होती। धन्य हो बोतलबंद पानी बनाने वाली कंपनियों का। बीस रुपल्ली निकालो और एक बोतल पानी हाजिर। कभी भी कहीं भी। हां, अगर कहीं बिन बुलाए बरसात हो गई, आंधी-तूफान आ गया और पास में छतरी या रेनकोट न हो तो उसका प्रोग्राम बरबाद हो सकता है। इसलिए बदलते मौसम के पूर्वानुमान पर अपडेट, एक अदद पानी के लोटे से ज्यादा जरूरी है।


साथ ही, अचानक कहीं चटख धूप के बीच पानी की बौछारें होने लगे तो एक अदद छतरी का जुगाड़ होना मुश्किल है। पर यह भी सत्य है कि ऐसी चटख धूप में भी कोई बंदा यदि छतरी लिए या रेनकोट पहने दिख जाए तो यह समझें कि उसने पक्के तौर पर मौसम ऐप्प पर मौसम का मिजाज चेक कर लिया है और उसे अपने मौसम भविष्यवाणी करने वाले ऐप्प पर अपने आप से ज्यादा भरोसा है कुछ इस तरह कि हिंदी का कवि इस पक्के भरोसे में रहता है कि 250 प्रतियों के प्रिंट आर्डर में, सहयोग राशि के सहयोग से प्रकाशित उसके इकलौते कविता संग्रह के लाखों पाठक हैं और वो दुनिया में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध कवियों की कतार में खड़ा है ।


भारत में यूं तो प्रकट रूप में तीन मुख्य मौसम हैं - ठंडी, गर्मी और बरसात। परंतु इधर कुछ सालों में भारत के मौसम में बहुत बड़ा बदलाव आया है। एक नया, सुहावना, सबके फायदे का मौसम  पैदा हो गया है - चुनाव का मौसम।


चुनाव का मौसम बहुत से परिवर्तन लाता है। चुनाव के मौसम में कहीं पैसों की बारिश होती है, कहीं टीवी, रेडियो, स्मार्टफ़ोन और लैपटॉप की। भारत की जनता के लिए यही मौसम सबसे बेहतर होता है। इसी मौसम में कई नई योजनाएं अवतरित-स्वीकृत होती हैं। पुरानी रूकी फंसी पड़ी योजनाएं द्रुतगति पाती हैं। कभी-कभी दस-बारह वर्षों से रूके फंसे पुलों के काम तो इतनी द्रुतगति पाते हैं कि भरभराकर ढह भी जाते हैं।


सोशल मीडिया के आभासी संसार के वास्तविक मौसम के तो क्या कहने! यहाँ का मौसम प्रकाश की रफ्तार से भी अधिक गति से बदलता है, बनता-बिगड़ता है। यहां का मौसम परिवर्तन ब्रह्मांड के किसी नियम कानून को नहीं मानता। दरअसल यहां पर हर नियम फट जाता है। ऊपर से बड़े अजीब अजीब, अब तक के अनदेखे अनसुने मौसम आते-जाते हैं। कभी कन्हैया मौसम तो कभी वेमुला मौसम तो कभी पुरस्कार लौटाऊ मौसम। कुछ समय पहले तोता-तोती कविताई का ऐसा बिगड़ा मौसम आया कि कोई बच न पाया। किसी सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में, वर्तमान में अचानक ही, बेमौसम बरसात की तरह, आलुओं का, बल्कि सड़े गले आलुओं का मौसम यहां छाया हुआ है।


ओह, मौसम की बात करते-करते यहां का अच्छा भला मौसम भी मोनोटोनस हो गया। तो क्यों न, यह लेख व्यंग्य है कि हास्य, कि महज बकवास, इस बात पर, आइए, गर्मागर्म बहस करें और यहां के मौसम के मिजाज को थोड़ा बदलें।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: व्यंग्य की जुगलबंदी 4 - बदलता मौसम
व्यंग्य की जुगलबंदी 4 - बदलता मौसम
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEwUE8_XIKjj5wtd_VxYAR9v7K08N2NEfiowt82Vi-s0ml_RJbRLSdhfHrgYhFGAHcFRTkS7x2moY4H17_Ngh5ztWAzJ65TftY4zimgpSRFXDgj8QGc77_oDxXVKo0G4rwzuk8/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEwUE8_XIKjj5wtd_VxYAR9v7K08N2NEfiowt82Vi-s0ml_RJbRLSdhfHrgYhFGAHcFRTkS7x2moY4H17_Ngh5ztWAzJ65TftY4zimgpSRFXDgj8QGc77_oDxXVKo0G4rwzuk8/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/10/4_23.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/10/4_23.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content