व्यंग्यकार, वृत्तांतकार अनूप शुक्ल व्यंग्य के बहाने सम-सामयिक व्यंग्य और व्यंग्यकारों पर अपनी ही शैली में ग़ज़ब की समीक्षा कर रहे हैं, और ज...
व्यंग्यकार, वृत्तांतकार अनूप शुक्ल व्यंग्य के बहाने सम-सामयिक व्यंग्य और व्यंग्यकारों पर अपनी ही शैली में ग़ज़ब की समीक्षा कर रहे हैं, और जीवंत विमर्श को न्यौता दे रहे हैं. उनके फ़ेसबुक से साभार, ताकि सनद रहे. पूर्व की चर्चाएँ भी यहीँ अन्यत्र उपलब्ध हैं. व्यंग्य लेबल पर क्लिक कर थोड़ी खोजबीन करें, हासिल हो जाएंगी.
अनूप शुक्ल बिना अच्छे मन के बड़े काम नहीं होते। महसूस कर रहा है.
व्यंग्य के बहाने -4
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इतवार को सुधीश पचौरी ने अपने स्तम्भ ’तिरछी नजर’ में लिखा:
" हिन्दी के सभी ’सम्मानों’ की एक लिस्ट बनाई जाये तो उनकी कुल संख्या एक हजार भी न बैठेगी। अगर मिलने वाली कुल रकम का टोटल किया जाये, तो वह रकम एक करोड़ तक भी न पहुंचेगी।"
आगे अपनी बात कहते हुये उन्होंने लिखा:
" यह भी कोई सम्मान है? एक घटिया सा शाल मरे से कन्धे पर डलवा, और 20 रुपये वाला ना्रियक थाम जो हिन्दी वाला अपने को अहोभाग्य समझता है , वह हिन्दी का दुश्मन नंबर एक है।"
जब से हमने यह लेख पढा तबसे हम हिन्दी के कई दुश्मन नंबर एक को पहचान चुके हैं। :)
साहित्य की बात को व्यंग्य तक सीमित किया जाये तो सम्मानों की संख्या 50 तक पहुंचेगी। दो साल पहले जबलपुर में ’व्यंग्य यात्रा’ पर निकले लालित्य ललित ने कहा था कि ’आजकल करीब 30 लोग व्यंग्य लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैंं।’ मतलब अगर इनाम कायदे से बांटे जायें और एक साल में एक लेखक को एक ही इनाम मिले तो हर साल एक लेखक के पल्ले डेढ इनाम आ जायेगा। इस लिहाज से देखा जाये तो इनाम ज्यादा है। लिखने वाले कम। भौत असन्तुलन है इनाम के क्षेत्र में।
लेकिन ऐसा है नहीं। लिखने वाले कुछ ज्यादा हैं शायद। इसीलिये जब भी किसी इनाम की घोषणा होती है, बड़ा हल्ला मचता है। जिसको इनाम दिया जाता है उसकी सारी कमियां सामने आ जाती हैं। जितने लोग तारीफ़, बधाई देते हैं उससे कम लोग उसकी कमियां बताने वाले नहीं होते हैं। किसी लेखक का अगर अगर कोई सच्चा मूल्यांकन करना चाहे तो उसके नाम एक इनाम की घोषणा कर देनी चाहिये।
पिछले साल जो व्यंग्य के जो भी इनाम घषित हुये उनमें से (मेरी जानकारी में) सबसे ज्यादा बवाल ’अट्टहास सम्मान’ पर हुआ। हरि जोशी और नीरज वधबार को अट्टहास पुरस्कार मिले। इनाम की घोषणा होते ही दोनों को इनाम की बधाई और इनाम के लिये अपात्र घोषित करने की कवायद शुरु हो गयी।
अपात्र घोषित करने वालों ने नीरज वधबार को वनलाइनर तक सीमित बताया और हरि जोशी पर सपाटबयानी की धारा तामील की। बहुत हल्ला मचा। लेकिन इनाम मिलकर रहा। फ़ोटो-सोटो भी शानदार हुये।
बाद में पता चला कि जो लोग हल्ला मचा रहे थे और जिन्होंने बहिष्कार भी किया उसके पुरस्कृत लेखकों के विरोध से ज्यादा इस बात की पीड़ा थी इनाम उनके हिसाब से क्यों नहीं बांटे गये। और भी कारण रहे होंगे जो मुझे नहीं पता लेकिन विरोध के सीन से काफ़ी मनोरंजन हुआ।
साहित्य की अन्य विधाओं की तरह व्यंग्य में भी इनाम का सिलसिला शहर, प्रदेश और देश के हिसाब चलता है। इनामों का इलाकाई बंटवारा होता है अधिकतर। मुंबई की संस्था को महाराष्ट्र के बाहर के लेखक नजर नहीं आते, राजस्थान वालों की नजर राजस्थान से होते हुये दिल्ली तक ठहर जाती है। लखनऊ के लेखकों के वर्चस्व वाले समूह वलेस को तो सम्मान के लिये लखनऊ के ही लोग सुपात्र नजर आते हैं। पिछले साल और इस साल ( निरस्त हुये) घोषित कुल 5 इनामों में 4 लखनऊ से हैं। अब तो मैं बाहर हो गया इस समूह से वर्ना इस शानदार प्रवृत्ति के साथ न्याय करने के लिये इस अंतर्राष्ट्रीय समूह का नाम वलेस की बजाय ललेस (लखनऊ लेखक समिति) रखने का प्रस्ताव रखता (भले ही प्रस्ताव रखने के फ़ौरन बाद समूह से निकाल दिया जाता :) )
साल दो साल पहले तक जब तक मैं बड़े व्यंग्य लेखकों से जुड़ा नहीं था तब तक उनके लेखन के हिसाब से उनकी छवि मेरे मन में थी। लेकिन सोशल मीडिया की कृपा से लेखकों के प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संपर्क में आया तो इस तरफ़ भी ध्यान गया। लेखन-तपस्या के साथ इनाम- यज्ञ के लिये भी मंत्रोच्चार करते देखा लोगों को। इनाम देने में प्रभावी भूमिका रख सकने वाले लोग पटाये जा रहे हैं। लेखकों को देवता बनाया जा रहा है। देवता को पता ही नहीं चल रहा है। जब तक पता चलता है तब तक उसका मंदिर बन जाता है। बेचारा देवता विवश मंदिर में कैद होकर रह जाता है।
पहले जब फ़ोन कम थे, संपर्क साधन कम थे तब तक यह सब हसीन व्यवहार काफ़ी दिनों तक छिपे रहते थे। पता भी चलते थे तो बहुत देर में। लेकिन आज आपने किसी से बात की नहीं कि वह जरूरी लोगों तक फ़ौरन पहुंच जाती है। अब वह लिहाज का भी जमाना नहीं कि लोग चुप रह जायें। फ़ौरन प्रतिक्रिया होती है। कभी-कभी तीखी भी।
खैर यह सब तो चलता रहता है। हम जिस समय में जी रहे हैं वह घात-प्रतिधात और चिरकुटैयों का समय है। बड़ी लकीर खींचने का समय कम है लोगों के पास इसलिये अगले की लकीर मिटाकर काम चलाया जा रहा है। लेकिन इस समय में भी तमाम लोग हैं जो अपने व्यवहार से बताते रहते हैं कि समय की छलनी से छनकर केवल वह आगे जायेगा जिसमें कुछ तत्व होगा। इसलिये घात-प्रतिघात, चिरकुटैयों से विलग रहकर काम किया जाना चाहिये- अच्छा काम।
लेकिन सम्मान प्राप्त करना एक बात है और अच्छा लिखना दूसरी बात। आज जितने लोग सक्रिय हैं व्यंग्य लेखन में और जिनकी भी चार-छह किताबें आ गयी हैं उनकों कम-ज्यादा सम्मान मिलकर ही रहेंगे। व्यवहार और मेल जोल जितना अच्छा रहेगा , इनाम उतनी जल्दी मिलेगा।
लेकिन अच्छा और बहुत अच्छा लिखने में इनाम-सिनाम कोई सहायता नहीं करते। मेरा यह मानना बिना अच्छे मन के नियमित अच्छा लेखन नहीं हो सकता है। बहुत अच्छा लिखने के लिये मन बहुत अच्छा , उद्दात (कम से कम लेखन के समय ) होना चाहिये। बिना अच्छे मन के बड़े काम नहीं होते।
यह सब ऐसे ही लिखा। गड्ड-मड्ड टाइप। आपका सहमत होना जरूरी नहीं। आपकी अपनी राय होगी। बताइये क्या कहना है आपका इस बारे में ? :)
71संतोष त्रिवेदी, Alok Puranik और 69 अन्य लोग
टिप्पणियाँ
Alok Puranik समय की छलनी के पार सिर्फ काम जाता है, वही असली सम्मान है। काम पर ध्यान लगाना चाहिेए,मतलब अपने काम पर, इस पर नहीं कि अलां ने क्या लिखा, फलां ने वईसा ही क्यों ना लिखा। इनाम काम पर मिल जाये, तो ठीक पर इनाम के लिए रैकेटबाजी में समय नष्ट करना खुद की रचनात्म...और देखें
12 · बीते कल 11:49 पूर्वाह्न बजे · संपादित
अर्चना चतुर्वेदी एकदम सही
Govind Gautam बहुत सही
अनूप शुक्ल सहमत। हम भी यही मानते हैं। :)
Subhash Chander आलोक पुराणिक जी का कमेन्ट इस पोस्ट की उपलब्धि है
अर्चना चतुर्वेदी कई बार अच्छे संबंधो के साथ साथ टच थेरेपी भी काम आती है ;) टच फोन का जमाना है जी ..सो कुछ लोग टच में रहकर बाजी मारने में लगे हैं...लिखने मेंवक्त जाया करने की जरुरत ही नहीं ...टच से ही जीत है :)
7 · बीते कल 08:09 पूर्वाह्न बजे · संपादित
अनूप शुक्ल 'टच थेरेपी' भी (अगर है तो) सम्बन्धों का एक आयाम है। लेकिन यह टच में रहने वाले लोगों के बीच का मामला है। इस बारे में टिप्पणी कभी-कभी पूर्वाग्रह ग्रस्त भी हो सकती है। नजर-नजर और समझ-समझ का भेद भी। इसलिए कुछ कहना ठीक नहीं लगता मुझे।
अर्चना चतुर्वेदी हम पूर्वाग्रह पीड़ित क़तई नहीं हैं बिना सबूत बात उठाते नही हैं
अनूप शुक्ल हम अपनी बात कह रहे। कोई किसी के टच में कैसे रहता है उसके बारे में बिना जाने कुछ कहना ठीक नहीं लगता मुझे। :)
Nirmal Gupta पुरस्कार और सम्मान के प्रति लेखकों की लालसा में कुछ भी अस्वभाविक नहीं।जहाँ गुड़ होगा वहां चींटे तो कतार लगाते ही हैं☺
अनूप शुक्ल हम भी कहां अस्वभाविक कह रहे। हम यही कह रहे कि गुड़ बहुत है, चींटे तसल्ली से रहें। एक दूसरे के ऊपर कूदकर हड्डी न तुड़वाये। अभी चींटों के लिए कोई अस्पताल नहीं खुला। संतोष त्रिवेदी को जो लिखा वह फिर से।
"सम्मान करने वाले और कराने वाले भी अपने मित्रगण हैं। सबके लिये पर्याप्त मात्रा में सम्मान की व्यवस्था है। हड़बड़ी न मचाएं। गड़बड़ी हो सकती है। व्यवस्था बनाएं रखें। :)"
Nirmal Gupta मेरा जी कर रहा है कि कहूँ कि क्या शुगरफ्री गुड़ की ओर भी चींटे लपकते हैं?
अनूप शुक्ल कह डालिये कहने में क्या राशनिंग। जो होगा देखा जाएगा। :)
Arvind Tiwari बेहतरीन टिप्पणी इनामों पर।सच बात यह है कई बार बहुत अच्छा लिखने वाले सम्मान पुरस्कार से वंचित रहते हैं जैसे व्यंग्य में अजातशत्रु।कुछ लोगों को सम्मान दर सम्मान मिलते चले जाते हैं व्यंग्य में दो नाम हैं।आपका यह कहना सही है कि किसी का मूल्यांकन करना हो तो उसे इनाम दिलवा दो।ललेस की आप जानो पर यह सच है कि इस समय व्यंग्य में 50 से अधिक सक्रिय लेखक हैं।कई अच्छा लिख रहे हैं।
2 · बीते कल 09:09 पूर्वाह्न बजे
अनूप शुक्ल सम्मान का गणित लेखन के गणित से कितना अलग होता है यह आप मुझसे बेहतर जानते हैं। :)
हिंदी में पढ़ने लिखने का रिवाज कम होना भी एक कारण है कुछ लोगों को इनाम मिलने और किताबों की चर्चा कुछ पुस्तकों तक सीमित होते चले जाने का। ...और देखें
Arvind Tiwari सम्मान का गणित सचमुच मुझे नहीं पता क्योंकि लगभग 8 पुरस्कार सम्मान मुझे मिले जिनमें सिर्फ़ हालिया सम्मान बड़ी राशि का था।अब तक भी मैं यही समझता हूँ कि मुझे लक से मिले चाहे आर्य स्मृति सम्मान हो या कोई और।पूरी तरह मेरिट से।जहाँ तक इस बड़े सम्मान की बात है त...और देखें
अनूप शुक्ल गणित जानने से मेरा आशय यह था कि आपको यह जानकारी होना कि आपको इनाम कैसे मिला और कैसे आप छंट गए। इनाम का गणित पता होना और उसको पाने के लिए जुगाड़ भिड़ाना दो अलग बातें हैं। :)
Arvind Tiwari जी आशय समझा धन्यवाद
Mazhar Masood इनाम का लेखन से क्या तालुक ,
वेतन का काम से क्या तालुक,
चिरकुटई घात प्रतिघात जीवन का...और देखें
5 · बीते कल 08:06 पूर्वाह्न बजे
अनूप शुक्ल न , न। निराश किसलिए ? हमने तो आज के समय के बारे में लिखा। :)
1 · बीते कल 08:11 पूर्वाह्न बजे
Mazhar Masood हम जहां तक समझते हैं , आप निराश कभी न होंगे और सब कुछ खुद चलकर आएगा ऐसा हमको यकीन है
Surendra Mohan Sharma व्यंगकार ही जब व्यंग को परिभाषित करके एक दूसरे की श्रेष्ठता पर प्रश्न चिन्ह लगाने लगें तो फिर पाठक वर्ग की क्या जरुरत है । वो काम भी व्यंगकार खुद ही कर लें तो कितना अच्छा हो ।
अच्छा , आप लोग को नहीं लगता अधकचरे व्यंग्यकारों की संख्या अनायास ही कुछ ज्यादा नहीं बढ़ गयी है ।।
Subhash Chander ये मारा
अनूप शुक्ल अरे आप तो वरिष्ठ लेखकों की तरह बातें करने लगे। अधकचरे (अगर बढ़ भी रहे हैं ) ही आगे बढ़कर पूर्णकचरे में बदलेंगे और उनमें से कुछ अच्छे लेखक के रूप में स्थापित होंगे। अच्छे खराब लेखक हर समय होते हैं। आज भी हैं। पर चूंकि आज ज्यादा लोग लिख रहे हैं तो और सभी...और देखें
संतोष त्रिवेदी अनूप शुक्ल जैसे आलोचक ही बढ़ा रहे हैं।
Surendra Mohan Sharma अनूप शुक्ल जी , बड़ी बड़ी बातें क्यों न करेंगे आखिर शागिर्द किसके है ?
( अब सर्जीकल स्ट्राइक की तरह यह भी आफिशियल सीक्रेट है कि हमारा उस्ताद कौन है । )
वैसे हमने तो केवल ग़त्ते से हवा करी थी अंगीठी सुलगाने के लिए ।
संतोष त्रिवेदी ललेस की लालसा
सब ठीक लिखा।अट्टहास का हल्ला वनलाइनर से अधिक इस बात का था कि क्या मसखरेपन को व्यंग्य का अधिकृत दर्जा मान लिया जाए ? अट्टहास ने ऐसा ही किया।दूसरे भी वही कर रहे हैं।जबलपुर में व्यंग्य पर भाषण पिलाने वाले खुद यही कर रहे हैं।
आप लिखिए,मस्त रहिए।देवता भी खुश रहेंगे।
4 · बीते कल 08:19 पूर्वाह्न बजे
अनूप शुक्ल व्यंग्य के मामले में जब अभी यही तय होना बाकी है कि यह विधा है कि प्रवृत्ति तब यह कैसे तय होगा कि वनलाइनर लिखने वाले भी व्यंग्यकार माने जाएंगे कि नहीं। यह बहस का विषय है जिसका कोई नतीजा नहीं निकल सकेगा शायद।
नीरज वधवार को जिस तरह वनलाइनर बताकर खारिज ...और देखें
Arvind Tiwari अनूपजी बहुत अच्छा लिखा।नीरज वधवार के अख़बारों में मैं कालम पढ़ता रहा हूँ।नवभारत टाइम्स में कभी कभी उनका वन लाइनर हास्य होता है व्यंग्य नहीं तो क्या इसी आधार पर उनके लेखन को ख़ारिज कर दें फ़िर तो त्यागीजी के पी सक्सेना जी को भी व्यंग्य इतिहास से ख़ारिज कर जी पी श्रीवास्तव की तरह हास्य की श्रेणी में गिना जायेगा।
Anup Srivastava अनूप जी ! माध्यम साहित्यिक संस्थान ने 1990 से सर्व से श्री शरद जोशी,मनोहर श्याम जोशी गोपाल प्रसाद व्यास सहित 27 व्यंग्यकारों को शिखर और 27 युवा व्यंग्यकारों को बिना ब्रेक के 2016 तक सम्मान दियेहैं।इनमें मात्र 6 शिखर सम्मान श्रीयुत श्रीलाल शुक्ल, के पी ...और देखें
3 · बीते कल 11:45 पूर्वाह्न बजे · संपादित
अनूप शुक्ल आप अपने स्तर और सामर्थ्य के अनुसार जो काम अट्टहास के माध्यम से हर साल करते हैं वह काबिलेतारीफ है। व्यंग्य विधा से आपका जुड़ाव है जो अनवरत अदम्य ऊर्जा से यह काम करते रहते हैं। पुरस्कारों के लोकलाइजेशन वाली बात आपके लिए नहीं लिखी थी।
आप पर लोगों ने क्या ...और देखें
Anup Srivastava सादर !आपके उत्तर से अभिभूत हूँ !
संतोष त्रिवेदी अट्टहास या माध्यम बिलकुल दूध की धुली है,झक सफ़ेद।इसमें न कभी मोल तोल हुआ न सौदेबाज़ी।
Anup Srivastava संतोष त्रिवेदी जी!आभारी हूँ अपकीं सदाशयता का । माध्यम अपने पुरुस्कारों की व्यवस्था के लिए कभी भी किसी पर आश्रित नही रहा है और वह अपने सदस्यों से इतर किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है । नियम, विधान के प्रति जिनकी आस्था नही है उनकी बात का संज्ञान नही ही लिया जा सकता है ।
अपकीं भाषा और सोंच आप को मुबारक ।
सादर !
संतोष त्रिवेदी माननीय व्यक्तिगत रूप से आप आदरणीय हैं पर मेरी दृष्टि में जब कोई संस्था सार्वजनिक कार्यों को अंजाम देती है तो उसकी जवाबदेही भी बनती है।आप चाहें तो हर चीज़ को खारिज़ कर सकते हैं।
Anup Srivastava आभार त्रिवेदी जी ! मै भी अपकीं सदाशयता का प्रसंशक हूँ ।लेकिन माध्यम न तो जनता की गाढ़ी कमाई पर खड़ी है और न ही आप जैसे समर्थ सदाशयी महानुभावों के दान या सहायता की आकांक्षी रही है फिर भी माध्यम आप की टिप्पणियों के लिए आभारी है ।हम आप के आरोपो को संज्ञान में नहीं ले सकते यह हमारी विवशता है । सादर !
संतोष त्रिवेदी चिंता न करें।हमें गम्भीरता से कोई लेता भी नहीं।हाँ ,आपकी मेहमाननवाजी के कायल हम भी हैं।
Anup Srivastava हहहाहाहःहाझा।
साभार !
Krishn Adhar इनामों पर इतनी वड़ी शोध....आप अगर रेस में न होते तो इतनी विशद जानकारी से वंचित रहते।पर सर,यह सव लेखन का वहुत घटिया पक्ष है,-कितने ही सितारों का कोई नाम नहीं है.....क्योंकि वे वहुत दूर हैं,वरना सूरज की औकात ही क्या।
4 · बीते कल 10:56 पूर्वाह्न बजे
अनूप शुक्ल रेस में नहीं हैं। बस देख रहे हैं सो जैसा समझा वैसा लिखा। बाकी तो आपने कह ही दिया। :)
Subhash Chander बाप रे ,आपने तो इनामो परबढ़िया शोध किया है ..मज़े की बात है की इस बार भी हमेशा की तरह किसी को नहीं बख्शा ..सलाम
अनूप शुक्ल बख्शने का क्या काम। सभी तो प्रिय मित्र , बंधु वांधव , सखा-सखी, बुजुर्ग आदरणीय वंदनीय है। जो छूट जाएगा , भुनभुनायेगा। इसलिए अपनी समझ जो लिखा सच लिखा। :)
Suresh Sahani एक सम्मान आप ही चला दीजिये सर!एक बार उज्जैन के सारस्वत सम्मान समारोह में हम भी आमन्त्रित थे।कुछ मुद्रा न बना पाने से सम्मान से चूक गए।
अनूप शुक्ल हम सम्मान चलाएंगे तो यूनियन हल्ला मचाएंगी कि हमारी यूनियन वाले को देव। :)
Arvind Tiwari अनूपजी ने कहा है कि पुरस्कार का गणित आप अच्छी तरह जानते होंगे।मुझे यह गणित बिलकुल नहीं आता पूरे ईमान से कह रहा हूँ।दरअसल उन्होंने इसलिए कहा क्योंकि अभी मिलेसम्मान सहित मुझे आठ छोटे छोटे पुरस्कार सम्मान मिल चुके थे।इस बड़े सम्मान जो राशि के हिसाब से बड़ा...और देखें
अनूप शुक्ल गणित जानने से मेरा मतलब जो जोड़ तोड़ , व्यक्तिगत पसंद- नापसंद और अन्य आधारों पर कई लोगों को लगातार इनाम मिलते रहते हैं और कुछ लोग वंचित बने रहते हैं। उसका अंदाज होगा आपको। मेरा मतलब यह थोड़ी था कि आपने इनाम गणित लगाकर हासिल किये। पर अच्छा हुआ कि इसी बहाने आपने अपनी यादे साझा कीं। :)
विनय कुमार तिवारी "मेरा यह मानना बिना अच्छे मन के नियमित अच्छा लेखन नहीं हो सकता है। बहुत अच्छा लिखने के लिये मन बहुत अच्छा, उदात्त (कम से कम लेखन के समय) होना चाहिए। बिना अच्छे मन के बड़े काम नहीं होते।"
1 · बीते कल 10:42 पूर्वाह्न बजे
अनूप शुक्ल :)
Vimal Maheshwari मेरी तो एक ही राय है। मैं आपको आपके साहित्यिक मित्र अलोक पुराणिक से श्रेष्ठ व्यंगकार और कथाकार मानता हूँ , नाम भले ही उनका ज्यादा हो।
अनूप शुक्ल यह आपका मेरे प्रति लगाव का परिचायक है। हम लोग एक ही कालेज और शहर के हैं इसलिए और भी। मल्लब इनाम का 'लोकलाइजेशन' वाली बात।
लेकिन यह सचाई है कि आज के समय में व्यंग्य लेखन के क्षेत्र में आलोक पुराणिक जैसी धनात्मक रचनात्मक ऊर्जा वाला लेखक मेरी नजर में कोई दूसरा नहीँ है। वे एक बेहतरीन इंसान भी हैं ऐसा उनके लेखन के आलोचक भी मानते हैं । इसीलिये हमको आलोक पुराणिक बहुत पसंद हैं। :)
Vimal Maheshwari आपके अबतक के लेखन की खूबी ये है कि वो पूर्वाग्रहों से ग्रस्त नहीं है और निश्छल है। यहीं आप का पलड़ा भारी हो जाता है।
Nirmal Gupta आलोक पुराणिक जी की व्यंग्य के प्रति समर्पण और निष्ठां असंदिग्ध है.वह हमारे समय के बेहतरीन रचनाकार हैं.
Vimal Maheshwari संत-महात्मा से लेकर , कलाकार , साहित्यकार , स्तंभकार , अखबार नवीस सब सत्ता की चापलूसी में लगे हैं , ऐसे में अनूप जी के लेखन का किसी की चापलूसी से अछूता रहकर निश्छल प्रवाह एक नई ताजगी देता है।
Nirmal Gupta थोड़ी देर में सिर फुटव्वल की नौबत आ सकती है ☺जिनके पास हेलमेट हो वही टिके रहें।
5 · बीते कल 08:15 पूर्वाह्न बजे
अनूप शुक्ल हमारा हेलमेट मिल नहीँ रहा इसलिए अपन तो फूट लिए कलकत्ता दो दिन के लिए। :)
Nirmal Gupta यह आपने ठीक किया।बचाव ही सुरक्षा है।कोलकाता से कुछ संदेस और एक ठो तृणमूल मार्का हेलमेट लेते आईयेगा।☺
ALok Khare idhar to POK se bhi jbardast surjical strike chal riya hai, dadda
अनूप शुक्ल अरे सब दोस्तों से मजे और मोहब्बत के लिए है :)
ALok Khare :)
संतोष त्रिवेदी सम्मान लूटने और लुटाने वाले गैंग सक्रिय हैं।कहाँ बचकर जाओगे ?
2 · बीते कल 08:27 पूर्वाह्न बजे
अनूप शुक्ल सम्मान करने वाले और कराने वाले भी अपने मित्रगण हैं। सबके लिये पर्याप्त मात्रा में सम्मान की व्यवस्था है। हड़बड़ी न मचाएं। गड़बड़ी हो सकती है। व्यवस्था बनाएं रखें। :)
Ram Kumar Chaturvedi नर हो न निराश करो मन को।नंबर आजायेगा।
2 · बीते कल 11:43 पूर्वाह्न बजे
अनूप शुक्ल हम बिल्कुल निराश नहीं हैं। मजे ले रहे सचबयानी करके। :)
Narain Pandey वाह भई वाह ।हमारी राय माँग कर अचानक हमें एहसास दिला दिया आपने कि हमारी राय भी आपकी जिज्ञासा का कारण हो सकती है ।जो भी हो हमारी राय ः
इनाम देना ,इनाम लेना गुलाम और मालिक वाली मानसिकता लगती है ।
ज्याँ पाँल सात्र ने नोबल पुरुस्कार यह कहकर ठुकराया था कि जिस तरह मुझे एक बोरा आलू की जरूरत नहीं है , उसी तरह इस पुरुस्कार की भी जरूरत नहीं है ।...और देखें
Santosh Srivastava पानी बनल रहें दीं,कंकड़ न मारीं,उपर होते उपरा जालें लोग.
राजेश सेन वाह सर ..!
Nisha Shukla घात प्रतिघात..और चिरकुटों का समय..!
D.d. Mishra यह आपके व्यंग से अधिक धारदार है
Prahlad Singh बिलकुल सहमत.
Amit Purwar Rampura Sahi likha aapne .
1 · बीते कल 07:57 पूर्वाह्न बजे
Kamlesh Pandey सम्मान लेना देना मज़े की चीज़ है. अगर किसी सम्मानित को आपने प्रतिभा से इतर वजहों से सम्मानित हुआ बताया तो तय है कि आपको कुंठित और 'सुलग रहा' करार दिया जाएगा. सम्मानित को बधाई देना ही सबसे उत्तम प्रतिक्रिया है.. सोशलमीडिया और सस्ते सुलभ संचार माध्यमों ने बड़प्पन का आभामंडल क्षीण कर दिया है..एक दशक पहले तक के सैकड़ों प्रतिमान बदल गए हैं.. पुरुस्कारों पर होने वाले बवाल भी अब बंद होने चाहिए..
Anshuman Agnihotri उत्कृष्ट लेखन और इनाम प्राप्ति विधि, दोनो अलग अलग पुरुषार्थ हैं . इनाम प्राप्ति और दुर्नाम ख्याति और प्रसिद्धि के लिए चाहिए .गोलबंदी, दलबंदी, घटिहाई, छिनालपन, जातिगत परिचय का लौह कवच , कुटिलता , राजनीति और किसी हद तक घूस प्रदानकरण क्षमता
वहीं अच्छे लेखन के लिये केवल एक गुण ....जीव को जगत से जोड़ने का गुण
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