आलेख आखिर हिरण को कब मिलेगा न्याय ? आकांक्षा यादव हि रणों से जुड़ी तमाम बातें लोकोक्तियों से लेकर साहित्य और हमारी परंपराओं में भरी पड़ी ह...
आलेख
आखिर हिरण को कब मिलेगा न्याय?
आकांक्षा यादव
हिरणों से जुड़ी तमाम बातें लोकोक्तियों से लेकर साहित्य और हमारी परंपराओं में भरी पड़ी हैं. हिरण में बड़ा चुम्बकीय आकर्षण होता है. हिरनी सी आंखें सौंदर्य का एक खूबसूरत उपमान हैं. कहते हैं कि कस्तूरी मृग की नाभि में छुपा होता है और वह इसकी तलाश बाहर करता है. कई बार इसे आध्यात्मिक रूप में भी कहा जाता है कि ईश्वर हम सबके भीतर है और हम उसे बाहर ढूंढ़ते फिरते हैं. कभी जंगल के राजा शेर का पसंदीदा शिकार बनता है हिरण, तो कभी मृग-छाल के रूप में किसी ऋषि-मुनि या महाराजा की शोभा बढ़ाता है. कभी इसके अन्दर बसी कस्तूरी ही इसकी जिंदगी की लीला खत्म कर देती है तो कभी इसकी सींग और अन्य अंगों से बनने वाली दवाइयां इसकी मौत का कारण बनती हैं. वर्तमान में हिरण के शिकार का सबसे चर्चित मामला अभिनेता सलमान खान से जुड़ा है. सितंबर 1998 में अभिनेता सलमान खान ने राजस्थान के जोधपुर में अपनी फिल्म ‘‘हम साथ-साथ हैं’’ की शूटिंग के दौरान काले हिरण और चिंकारा के शिकार किए थे. इस मामले में निचली अदालत ने उन पर आरोप तय करते हुये जेल की सजा भी सुनाई, पर उच्च न्यायालय ने 25 जुलाई, 2016 को उन्हें आरोपों से बरी कर दिया. इस मामले को लेकर पक्ष-विपक्ष में तमाम तर्क-वितर्क हैं, पर सवाल अभी भी वहीं है कि आखिर सदियों से हिरण ही क्यों प्रताड़ित हो रहा है.
हमारे यहां लोक गीतों में (सोहर) श्रीराम के जन्म पर उनकी छठी के अवसर पर कौशल्या जी और हिरणी के बीच वार्ता का एक मार्मिक प्रसंग आता है, जो कि बेहद भाव विभोर कर देने वाला है. श्रीराम के जन्म और उनकी छठी की खबर जब वन में पहुंचती है तो हिरणी उदास होकर एक वृक्ष के पास खड़ी हो जाती है. तभी वहां हिरण आता है और उससे उदासी का कारण पूछता है. हिरणी उसे बताती है कि राजमहल में श्रीराम का जन्म हुआ है और आज उनकी छठी है, अतः इस अवसर पर वहां ढेरों पकवान बनेंगे, जिनमें हिरण का मांस भी होगा. मुझे डर है कि कहीं राजमहल के लोग तुम्हारा शिकार करके न ले जाएं. हिरण बोलता है कि, चलो इसी बहाने हम प्रभु के काम आएंगे. पर हिरणी उदास ही रहती है और अंततः वही होता है, जिसका उसे डर होता है.
जब हिरण का मांस निकालकर राजमहल में उसे पकाने के लिए ले जाया रहा होता है तो हिरणी वहां पहुंचती है और माता कौशल्या से गुहार लगाती है, ‘‘मेरे हिरण का मांस तो आपने ले लिया, पर उसकी खाल मुझे दे दीजिये, ताकि मैं उसे पेड़ पर टांगकर उसके अपने पास होने का सुकून पा सकूं.’’ उसकी गुहार सुनकर माता कौशल्या ने कहा, ‘‘जा यहां से हिरणी! इस खाल से तो मैं खजड़ी बनवाऊंगी, जिससे मेरे राम खेलेंगे.’’ हिरणी कर ही क्या सकती थी, वह उदास होकर वहां से वन में चली जाती है. पर श्रीराम जब भी उस खजड़ी को बजाते तो वह हिरणी अनमयस्क भाव से वहां खिंची चली आती और उसे सुनकर अपने हिरण से सामीप्य का भाव महसूस करती.
आज भी गांवों में जब बच्चे का जन्म होता तो यह सोहर गाई जाती है. पता नहीं कभी किसी ने इस सोहर में छुपे दर्द को महसूस किया या नहीं, पर हमारी परंपराओं में इसे शुभ अवसर पर गाना कई बार विचलित भी कर देता है. यह वास्तव में इस बात का प्रतीक है कि किस तरह से दूसरों के घर को उजाड़कर हम अपना घर बसा रहे हैं. कई बार यह प्रसंग सोचने पर मजबूर भी कर देता है कि क्या यह अनायास ही था कि रामायण का पूरा प्रसंग हिरणों पर ही टिका हुआ है. वनवास के समय, रावण ने सीता का हरण किया था. रावण एक राक्षस तथा लंका का राजा था. रामायण के अनुसार, सीता और लक्ष्मण कुटिया में अकेले थे तब एक हिरण की वाणी सुनकर सीता परेशान हो गयीं. वह हिरण रावण का मामा मारीच था. उसने रावण के कहने पर सुनहरे हिरण का रूप बनाया. सीता उसे देख कर मोहित हो गईं और श्रीराम से उस हिरण का शिकार करने का अनुरोध किया. श्रीराम अपनी भार्या की इच्छा पूरी करने चल पड़े और अपनी अनुपस्थिति में लक्ष्मण से सीता की रक्षा करने को कहा. मारीच श्रीराम को बहुत दूर ले गया. मौका मिलते ही श्रीराम ने तीर चलाया और हिरण बने मारीच का वध किया. मरते मरते मारीच ने जोर से ‘‘हे सीता! हे लक्ष्मण’’ की आवाज लगायी. उस आवाज को सुन सीता चिन्तित हो गयीं और उन्होंने लक्ष्मण को श्रीराम के पास जाने को कहा. लक्ष्मण जाना नहीं चाहते थे, पर अपनी मातृस्वरूपा भाभी की बात को इंकार न कर सके. लक्ष्मण ने जाने से पहले एक रेखा खींची, जो लक्ष्मण रेखा के नाम से प्रसिद्ध है. इसके बाद का प्रसंग जगजाहिर है.
क्या यह मात्र संयोग है कि लोकगीतों में हिरण से जुड़ी जिस घटना का जिक्र किया जाता है, जहां श्रीराम के जन्म पर मनाई जाने वाली खुशी में हिरणी को अपने हिरण का बिछोह सहना पड़ता है. संयोगवश, बनवास के दौरान एक हिरण के कारण ही श्रीराम और सीता को बिछोह सहना पड़ा?
जब हम दो साल के लिए अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में थे तो यह देखकर आश्चर्य होता था कि वहां के खतरनाक आदिवासी तक हिरणों का शिकार नहीं करते, बल्कि एक तरह से उन्हें पूज्य मानते हैं. पोर्टब्लेयर के नजदीक स्थित रॉस द्वीप पर तो आप इन हिरणों के साथ मुक्त विहार भी कर सकते हैं. पर दुर्भाग्यवश, अंडमान के इन द्वीपों में आपको चोरी से हिरण का मांस बिकते हुये दिखेगा और ऐसा करने वाले वहां के आदिवासी समुदाय के लोग नहीं हैं, बल्कि बाहर से आए हुये तथाकथित सभ्य लोग हैं.
पश्चिमी राजस्थान में बिश्नोई समुदाय के लोग प्रकृति और प्राणियों के प्रति अपनी सद्भावना और उनकी रक्षा के लिए मर-मिटने के लिए प्रसिद्ध हैं. बिश्नोई समाज को ये नाम भगवान विष्णु से मिला. बिश्नोई समाज के लोग पर्यावरण की पूजा करते हैं. इस समाज के लोग ज्यादातर जंगल और थार के रेगिस्तान के पास रहते हैं. जिससे यहां के बच्चे जानवरों के बच्चों के साथ खेलते हुए बड़े होते हैं. ये लोग हिंदू गुरु श्री जम्भेश्वर भगवान को मानते हैं. वे बीकानेर से थे. इस समाज के लोग उनके बताए 29 नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं.
बिश्नोई समुदाय से जुड़ा एक प्रसंग जग-प्रसिद्ध है, जब
जोधपुर से सटे खेजड़ली गांव में वर्ष 1736 में खेजड़ी की रक्षा के लिए बिश्नोई समाज के 363 लोगों ने अपनी जान दे दी थी. उस वक्त खेजड़ली व आसपास के गांव पेड़ों की हरियाली से भरे थे. जब दरबार के लोग खेजड़ली में खेजड़ी के पेड़ काटने पहुंचे और ग्रामीणों को पता चला तो उन्होंने इसका विरोध किया. उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि पेड़ नहीं काटें, लेकिन वे नहीं माने. तभी खेजड़ली की अमृतादेवी बिश्नोई ने गुरु जम्भेश्वर महाराज की सौगंध दिलाई और पेड़ से चिपक गईं. इस पर बाकी लोग भी पेड़ों से चिपक गए. फिर संघर्ष में एक के बाद एक 363 लोग मारे गए. बिश्नोई समाज ने इन्हें शहीद का दर्जा दिया और इनकी याद में हर साल खेजड़ली में मेला भी लगता है. अमृता देवी के नाम केंद्र व कई राज्य सरकारें पुरस्कार देती हैं.
राजस्थान में करीब 500 सालों से बिश्नोई समाज के लोग जानवरों को अपने बच्चों की तरह पालते आए हैं. ये आज भी यहां पाये जाने वाले प्राणियों- हिरण, चिंकारा, काला हिरण इत्यादि की रक्षा के लिए अपनी जान देने तक से नहीं चूकते. बिश्नोई समाज की महिलाएं न सिर्फ जानवरों को पालती हैं, बल्कि अपने बच्चे की तरह उनकी देखभाल करती हैं. महिलाओं के साथ-साथ इस समाज के पुरुष भी लावारिस और अनाथ हो चुके हिरण के बच्चों को अपने घरों में परिवार की तरह पालते हैं. बिश्नोई समुदाय की महिलाएं खुद को हिरण के इन बच्चों की मां कहती हैं और जरूरत पड़ने पर हिरणों को अपना दूध भी पिलाती हैं. करीब डेढ़ दशक पहले एक बिश्नोई युवक निहालचंद वन्य जीवों की रक्षा की कोशिश में शिकारियों से लड़ते हुए अपनी जान पर खेल गया. बाद में इस घटना पर ‘विलिंग टू सैक्रीफाइस’ फिल्म भी बनाई गई. फिल्म को स्लोवाक गणराज्य में हुए फिल्म महोत्सव में पुरस्कृत भी किया गया.
हिरण का शायद सबसे बड़ा दोष यही है कि वह मासूम है, बेपरवाह है, अल्हड़ और अपनी जिंदगी में मस्त है. यही कारण है कि जंगली खूंखार जानवर से लेकर राजे-रजवाड़े तक इसका शिकार करने से बाज नहीं आए. अब न तो जंगलों में जगह बची और न ही राजे-रजवाड़े रहे, पर हिरण का शिकार अभी भी
धड़ल्ले से हो रहा है. यहां तक कि इनकी रक्षा में खड़े बिश्नोई समुदाय के कई लोग भी मारे गए हैं. हिरण अभी भी अपनी डबडबाई आंखों और कातर निगाहों से यही पूछ रहा है कि कब तक मेरी खूबसूरती लोगों की आंखों में खटकती रहेगी. सलमान खान तो सिर्फ एक उदाहरण हैं, हिरण को तो रामायण-काल से लेकर आज तक का न्याय चाहिए.
सम्पर्कः टाइप 5, निदेशक बंगला, पोस्टल ऑफिसर्स कॉलोनी
जेडीए सर्किल के निकट, जोधपुर, राजस्थान-342001
मोः 09413666599
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