आपने कहा है हिन्दी की प्रथम कहानी कौन? ‘‘प्राची’’ के जुलाई अंक में प्रकाशित पं. रामचन्द्र शुक्ल की कहानी ‘‘ग्यारह वर्ष का समय’’ के पूर्वव...
आपने कहा है
हिन्दी की प्रथम कहानी कौन?
‘‘प्राची’’ के जुलाई अंक में प्रकाशित पं. रामचन्द्र शुक्ल की कहानी ‘‘ग्यारह वर्ष का समय’’ के पूर्ववाक् के रूप में टिप्पणी में पहले- पंडित जी ने अपने इतिहास ( टिप्पणीकार का आशय निश्चित रूप से कहानी लेखक पं. रामचन्द्र शुक्ल लिखित हिन्दी साहित्य के इतिहास से है) में अपनी इस कहानी को हिन्दी की प्रथम कहानी के दावेदारों में माना है, का उल्लेख है, इसका
सीधी सरल भाषा में अर्थ तो इसे हिन्दी की प्रथम कहानी माने जाने का समर्थन ही प्रतीत होता है. डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल द्वारा शिल्प विधि की दृष्टि से और आचार्य द्विवेदी द्वारा आधुनिकता के लक्षणों से युक्त कथन से भी इस कहानी को हिन्दी की प्रथम कहानी होने का आशय ही ध्वनित होता है और उसके बाद का निर्णायक वाक्य- ‘‘हिन्दी की पहली कहानियों में मौलिकता के गुणों से भरपूर यह कहानी शीर्ष पर है, के बाद दुलाई वाली को नंबर तीन पर और इस कहानी- (ग्यारह वर्ष बाद) को नंबर दो पर तो स्वयं शुक्ल जी (लेखक जिनने हिन्दी साहित्य के उनके स्वयं के लिखित इतिहास में इसे ही हिन्दी की प्रथम कहानी के दावेदारों के रूप में सम्मिलित किया है) ने सहर्ष स्वीकार किया है, तो फिर हिन्दी की पहली कहानी कौन सी है. मेरे विचार से इस टिप्पणी का समापन अंश इस तरह होता- यद्यपि दुलाई वाली को नम्बर तीन और इस कहानी को नम्बर दो पर होना तो शुक्ल जी ने भी सहर्ष स्वीकार किया है, किन्तु- ‘‘हिन्दी की पहली कहानियों में मौलिकता के गुणों से भरपूर होने के कारण यह कहानी शीर्ष पर ही है’’ तो अधिक समीचीन होता. पं. शुक्ल द्वारा उनके लिखित इतिहास में इस कहानी को हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी के दावेदारों में सम्मिलित करने के उपरान्त उसे दो पर स्वीकार करना विद्वान लेखक की विनम्रता का परिचायक है, किन्तु साहित्य के विद्यार्थी पाठकों के समक्ष तो एक अनुत्तरित प्रश्न ही छोड़ देता है.
मनोरंजन सहाय सक्सेना, जयपुर-302015
(आदरणीय सक्सेनाजी, आपकी टिप्पणी उचित और समीचीन है, परन्तु ‘‘ग्यारह वर्ष का समय’’ कहानी को हिन्दी की प्रथम कहानी प्राप्त होने का गौरव इसलिए नहीं प्राप्त हो सका, क्योंकि हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी के विषय में आलोचकों में बहुत मतभेद रहा है. इस कहानी के दो वर्ष पूर्व 1901 में माधव राव सप्रे की एक लघु कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ में छपी थी. कई आलोचक इसे ही हिन्दी की प्रथम कहानी मानते हैं, परन्तु इसके लघु स्वरूप के कारण कई आलोचकों ने इसे हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी मानने से इंकार कर दिया है. इतिहास में मतभेद रहे हैं और होते रहेंगे, परन्तु मतभेदों के चलते किसी साहित्यिक रचना का महत्त्व कम नहीं हो जाता. पं. रामचन्द्र शुक्ल की कहानी ‘ग्यारह वर्ष का समय’ का अपना महत्व है और इसे नंबर एक या दो पर रखने का आशय केवल यह था कि पाठक हिन्दी की आरम्भिक कहानियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकें, वरना आजकल हिन्दी साहित्य पढ़ने वाले कहां हैं.
पत्र लिखने के लिए आपका साधुवाद ! संपादक)
इसीलिए प्राची से जुड़े हैं
‘प्राची’ का सूरज अपनी साहित्यिक रश्मियों से चारों ओर उजाला फैला रहा है. अच्छा लगता है. संपादकीय में गंभीर चिंतन झलकता है. रचनाओं में परिपक्वता दिखती है. आपके श्रम और निष्ठा का यह सुखद परिणाम है. कोई आपसे सीखे कि व्यस्ततम समय में लेखन कैसे किया जाता है. यह प्रशंसा नहीं, आपके व्यक्तित्व की सच्चाई है. आखिर हम भी तो प्राची से इसीलिए
जुड़े हैं.
अरविन्द अवस्थी, मीरजापुर
रोचक और ज्ञानवर्धक पत्रिका
आपकी मासिक पत्रिका ‘प्राची’ मई, 2016 का अंक राजस्थान साहित्यिक अकादमी, उदयपुर के पुस्तकालय में पढ़ा. बड़ी रोचक व ज्ञानवर्द्धक स्तरीय रचनाओं से सुसज्जित पत्रिका है. साहित्य सेवा के लिए आपको व आपकी पूरी टीम को साधुवाद!
पं. मनमोहन ‘मधुकर’ उदयपुर (राज.)
सर्वश्रेष्ठ पत्र
प्राची की पहुंच विदेशों तक है
‘प्राची’ अगस्त 2016 अंक सराहनीय है. माह में पड़ने वाले स्वतन्त्रता दिवस की उमंगों व देशप्रेम को दर्शाता आमुख आकर्षक बन पड़ा है. पाठकीय पत्रों से लगता है कि पत्रिका का प्रबुद्ध पाठकवर्ग है. डॉ. मधुर नज्मी सजग पाठक हैं. उनके पत्र को सर्वश्रेष्ठ पत्र के रूप में पुरस्कृत किया जाना पत्रिका की निष्पक्ष नीति को प्रकट करता है. नज्मी साहब को बधाई. सर्वश्रेष्ठ पत्र पुरस्कृत करके पाठकों को प्रोत्साहन देना भी एक सम्पादकीय गुण है.
मैं 5 वर्षों से ‘प्राची’ का पाठक हूं. मैं देखता हूं, सम्पादकीय बेबाक होते हैं और प्रशंसनीय भी. इसमें जो भी मुद्दे उठाये जाते हैं, उन्हें गहराई तक खंगालकर पाठकों के समक्ष रख दिये जाते हैं. पाठक निर्णय करने को बाध्य हो जाते हैं कि क्या सही है और क्या गलत! पाठकों के पत्रों में भी अक्सर सम्पादकीय का जिक्र होता है.
पत्रिका की विषेशता ही है कि हमारी विरासत, धरोहर कहानी के अन्तर्गत जो भी सामग्री आप प्रकाशित करते हैं, वो अन्यत्र आसानी से उपलब्ध नहीं होती. यहां तक कि पुराने कथाकारों के कथा-संकलन में भी नहीं. हो सकता है, जीवित कथाकार अपनी कहानी को देखकर चौंक भी उठते हों. हास्य-व्यंग्य में कृश्न चन्दर के उपन्यास ‘एक गधे की वापसी’ को पढ़ने से जो पाठक वंचित रहे होंगे, उनके लिए आपने सुलभ कर दिया है. इसके लिए धन्यवाद.
प्रवासी भारतीय रचनाकारों की उपस्थिति से पता चलता है कि ‘प्राची’ की पहुंच विदेशों तक भी है. यूं तो अंक की कहानियां अच्छी हैं, पर डॉ. श्याम सखा ‘श्याम’ की कहानी ‘अदावत’ ने बहुत प्रभावित किया. कहानी जिस रोचक ढंग से कही गई और उसका चौंकाने वाला जो अन्त है, कथाकार की सिद्धहस्तता को दर्शाते हैं. तेजेन्द्र शर्मा की कहानी ‘मर्द अभी जिन्दा है’, ईमानदार फिल्म पत्रकार के जमीर को बखूबी पेश करती है. शिवकुमार कश्यप की कहानी ‘अनोखा रिश्ता’ की शुरुआत रोचक है और जिस तरह समाज सुधार को विषय बनाया है, वह भी ठीक है, परन्तु कथ्य व घटनाक्रम को विश्वसनीय बनाया होता तो कहानी और प्रभावशाली हो जाती.
जुलाई अंक में व्यंग्यकार सुभाष चन्दर का साक्षात्कार बहुत अच्छा रहा. सहायक सम्पादक भावना शुक्ला साक्षात्कार के
माध्यम से रचनाकार के विषय में बहुत कुछ ज्ञात कराने में सफल होती हैं. पाठकों की अभिरुचि को ध्यान में रखते हुए, साक्षात्कार के लिए यदि सुपरिचित रचनाकारों का चुनाव करें तो अति उत्तम रहेगा.
काव्य जगत व लघु रचनाएं ठीक हैं. श्रद्धांजलि, समीक्षा व साहित्य समाचार को स्थान मिलने से पत्रिका दूर तक शब्दकर्मियों में पैठ बनाने में सफल है. विषय-वस्तु के चयन से लगता है कि प्राची सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विचारों का मासिक है. पत्रिका की ऐसी ही निरन्तरता के लिए शुभकामनाएं.
बृज मोहन, झांसी (उ.प्र.)
(श्री बृज मोहन जी को अंशलाल पन्द्रे की पुस्तक ‘सबरंग हरसंग’ की प्रति निःशुल्क प्रेषित की जाएगी. संपादक)
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