परदेश और अपने घर-आंगन में हिंदी / बृजेन्द्र श्रीवास्तव ‘उत्कर्ष’

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  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था- "भारत के युवक और युवतियां अंग्रेजी और दुनिया की दूसरी भाषाएँ  खूब पढ़ें मगर मैं हरगिज यह नहीं ...

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था- "भारत के युवक और युवतियां अंग्रेजी और दुनिया की दूसरी भाषाएँ  खूब पढ़ें मगर मैं हरगिज यह नहीं चाहूंगा कि कोई भी हिन्दुस्तानी अपनी मातृभाषा को भूल जाय या उसकी उपेक्षा करे या उसे देखकर शरमाये अथवा यह महसूस करे कि अपनी मातृभाषा के जरिए वह ऊँचे से ऊँचा चिन्तन नहीं कर सकता ।" वास्तव में आज उदार हृदय से,  गांधी जी के इस विचार पर   चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है। हिंदी  भाषा, कुछ  व्यक्तियों के मन के भावों को व्यक्त करने का माध्यम ही नहीं है बल्कि यह भारतीय संस्कृति, सभ्यता, अस्मिता,  एकता-अखंडता, प्रेम-स्नेह-भक्ति और भारतीय जनमानस को अभिव्यक्त करने की  भाषा है। हिंदी भाषा के अनेक शब्द वस्तुबोधक, विचार बोधक तथा भावबोधक हैं ये शब्द संस्कृति के भौतिक, वैचारिक तथा दार्शनिक-आध्यात्मिक तत्वों का परिचय देते हैं । इसीलिए कहा गया है- "भारत की आत्मा को अगर जानना है तो हिंदी सीखना अनिवार्य है ।"

विश्व-ग्राम में बदल रहे सम्पूर्ण विश्व-जगत को  आज भारतीय संस्कृति-सभ्यता, धर्म-योग, सुरक्षा, अर्थव्यस्था और बाजार   की चमक ने सम्मोहित  कर दिया है । भारतीय फिल्मों , कलाकारों, पेशेवर कामगारों, धार्मिक गुरुओं, समाज-सुधारकों, राजनेताओं को चाहने वालों की संख्या करोड़ों में है तथा इन मनीषियों ने  हिंदी भाषा के माध्यम से  वैश्विक परिदृश्य में भारत को महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की ओर अग्रसर किया है । विश्व में नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश,  संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका, यमन, युगांडा, सिंगापुर, न्यूजीलैंड, जर्मनी आदि; लगभग डेढ़ सौ से ज्यादा देशों में हिंदी वृहद् रूप में बोली या समझी या पसंद की जाती है। विश्व के अनेकों विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में हिंदी भाषा और साहित्य को प्रमुख स्थान प्राप्त है।

हिंदी भाषा में साहित्य-सृजन की दीर्घ परंपरा है  और इसकी सभी    विधाएँ वैविध्यपूर्ण एवं समृद्ध हैं । सूर, कबीर, तुलसी, मीरा, रसखान, जायसी, भारतेंदु, निराला, महादेवी, अज्ञेय, महावीर, जयशंकर, प्रेमचंद आदि ने अपनी विविध कलम-कारी से इस भाषा के साहित्य को वैश्विक पटल पर स्थापित किया है तथा विश्व को साहित्यामृत का पान  कराया है ।  "रामचरितमानस" के बिना हिन्दू जनमानस की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हिंदी भाषा पूर्णतया वैज्ञानिक भाषा है तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक संदर्भों, सामाजिक संरचनाओं, सांस्कृतिक विषमताओं  तथा आर्थिक विनिमय की संवाहक है। हिंदी भाषा सरल-सहज दूसरी भाषा के शब्दों को अपने में समाहित करने वाली  है। आधुनिक युग में हिंदी का तकनीक के क्षेत्र में भी वृहद्  योगदान है| हिंदी भाषा में ई-मेल, ई-बुक, सन्देश लिखना हो या इन्टरनेट और वेबजगत में कुछ ढूढना , हिंदी भाषा में बोलकर कम्प्यूटर पर टंकण करना आदि सब  कुछ  उपलब्ध है । भारतीय जनसंचार जगत में हिंदी ही श्रेष्ठ है। भारत में आज भी मनोरंजन जगत में हिंदी का ही बोलबाला है। हिंदी फ़िल्में,  आज भी वैश्विक स्तर पर हिंदी भाषियों को जोड़ने का काम करते हैं तथा दूसरों को हिंदी भाषा सीखने की प्रेरणा देते हैं। भारत की  संस्कृति, धर्म, ज्ञान-विज्ञान एवं भाषा सम्पूर्ण विश्व को विश्व-बंधुत्व का पाठ पढ़ाती  है तथा उनको अपने में आत्मसात करती  है।

विश्व की बड़ी-बड़ी महाशक्तियां,  बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ, बुद्धिजीवी विचारक-चिन्तक, समाजसेवी,  आज उभरती हुई महाशक्ति भारत का साथ पाने को बेक़रार है। भारत से राजनीतिक,  व्यवसायी या आध्यात्मिक  संबंध  करने के लिए ये महाशक्तियां यहाँ की संस्कृति-सभ्यता, भाषा और क्षेत्र को महत्व दे रहीं हैं। किन्तु, हिंदी की यह विडम्बना है कि वैश्विक  स्तर पर सम्मान पाने पर भी, भारत की राजभाषा होने पर भी, भारत को एकता के सूत्र में पिरोने वाली भाषा होने पर भी, आज अपने देश में अपनों की ही उपेक्षा का शिकार है। हमारे देश के कुछ तथाकथित ज्यादा पढ़े-लिखे राजनीतिक-बुद्धिजीवी-समाजसुधारक समझे जाने वाले लोगों की “पाश्चात्य चरण-वंदना नीति” एवं  “मत-विभाजन नीति”  ही हिंदी की उपेक्षा का कारण  है। क्या हमारे देश में किसी राजनेता के द्वारा लाखों की  भीड़ को अंग्रेजी भाषा में संबोधित  कर पाना संभव है ? क्या धार्मिक प्रवचन, पूजा-पाठ, खेत-खलिहान-पंचायत, बाजार-यातायात, गाँव-कस्बों-शहरों, गरीब-किसान-मजदूर या देश की अधिकांश आबादी जो अभी विकास से कोसों दूर है; क्या इन सबसे अंग्रेजी भाषा में सामंजस्य बिठा पाना  संभव है ? क्या देश की शिक्षा व्यवस्था, सरकारी तंत्र, न्यायालय, प्रतियोगी परीक्षाओं, कार्यालयों, बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, सूचनाओं आदि में अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व स्थापित कर राष्ट्रभाषा  हिंदी और अंग्रेजी जानने वालों के बीच वर्ग-भेद और वैमनस्य का संबंध  स्थापित नहीं किया जा रहा है ? विश्व के बहुत से ऐसे राष्ट्र हैं जो अपनी राष्ट्रभाषा के माध्यम से ही विश्व को अपनी श्रेष्ठता का लोहा मनवा रहे है तो विश्वगुरु होने का दंभ भरने वाले हम क्यों नहीं? विनोबा भावे ने कहा था, “मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता।“ आखिर हम कब तक विदेशी दासता को सहते रहेंगे? आखिर कब हम वैचारिक रूप से स्वतंत्र होंगे ? ‘बापू’ ने कहा था, “राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है|”  आखिर हम कब तक गूँगे बने रहेंगे? वास्तव में हिंदी का अपमान देश की सनातन संस्कृति का, देश के संविधान का तथा सम्पूर्ण भारतीय जनमानस का अपमान है। आखिर किसी विदेशी भाषा का किसी स्वतंत्र राष्ट्र के राजकाज और शिक्षा की भाषा होना सांस्कृतिक  दासता नहीं तो और क्या है ?

भवदीय, 

बृजेन्द्र श्रीवास्तव "उत्कर्ष"
206, टाइप-2,
आई.आई.टी.,कानपुर-208016, भारत

Kind Regards,

Brajendra  Utkarsh
206, Type-2
IIT Kanpur-208 016, INDIA
Mo.9956171230
Ph.0512-2598638
Click below for meet me with affection:
http://kaviutkarsh.blogspot.com
                              **********************
मात्-पिता, मातृ-भूमि, मातृ-भाषा, जीवन नैया की मेरी खेवन हार  है,
इनके  चरणों में जीवन निछावर मेरा, यही उत्कर्ष का पहला प्यार है।
इनके आँचल में ही मै फूला-फला, मेरा जीवन तो इनका कर्जदार है,
इनकी  सेवा  जीवन भर करता रहू, ये ही चाहत मेरी बारम्बार है॥
                              *******************
ऐ मेरे देश की माटी, तुझे मैं  प्यार करता हूँ,
तेरी इज्जत हिफाजत को, सदा सर माथे धरता हूँ |
लगाकर जान की बाजी, करूँ रक्षा तेरी हरदम,
शहीदों की शहादत को, नमन सौ बार करता हूँ ||
                             *******************   बृजेन्द्र उत्कर्ष

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: परदेश और अपने घर-आंगन में हिंदी / बृजेन्द्र श्रीवास्तव ‘उत्कर्ष’
परदेश और अपने घर-आंगन में हिंदी / बृजेन्द्र श्रीवास्तव ‘उत्कर्ष’
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