भारतीय सेना, पाक प्रायोजित आतंकवाद से पिछले तीन दशकों से कश्मीर घाटी और पूर्वोत्तर के राज्यों में निरन्तर राष्ट्रीय अखंडता एवम् सुरक्षा ...
भारतीय सेना, पाक प्रायोजित आतंकवाद से पिछले तीन दशकों से कश्मीर घाटी और पूर्वोत्तर के राज्यों में निरन्तर राष्ट्रीय अखंडता एवम् सुरक्षा हेतु तत्परतापूर्वक जुटी हुई है। आमतौर पर सेना का कार्य युद्ध के दौरान अपने देश की सरहदों की हिफ़ाज़त करना होता है। लेकिन अब आतंकवादग्रस्त इलाकों में तैनाती के दौरान फौज न केवल आतंकवादियों से दो-दो हाथ कर रही है अपितु वहां के नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार का जिम्मा भी बखूबी उठा रही है।
जिस भारतीय सेना को पाक समर्थक अलगाववादी नेता पानी पी-पी कर कोसते रहते हैं वही फौज़ आज स्थानीय आबादी की सच्ची हमदर्द बनकर रात-दिन न केवल उनकी हिफाजत करती आ रही है बल्कि अपने-अपने इलाकों में कई तरह की कल्याणकारी गतिविधियों द्वारा वहां की तस्वीर बदलने में जुटी हुई है। प्रायः अलगाववादी नेता, फौज़ पर जबर्दस्ती करने, महिलाओं-बच्चों और बूढ़ों का उत्पीड़न करने और युवकों को फर्जी मुठभेड़ों में मारने की झूठी खबरें प्रचारित करते रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत ब्यां करती है कि फौज़ की उपस्थिति की वजह से ही आतंकवादग्रस्त क्षेत्रों में स्थिति सामान्य हुई है। कश्मीर घाटी में जो भी वारदातें हो रही हैं उनमें अधिकतर विदेशी आतंकवादियों का ही हाथ है।
भारतीय सेना ने कश्मीर घाटी और पूर्वोत्तर के आतंकवादग्रस्त क्षेत्रों में मेडीकल कैम्प, स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार देना, पशु चिकित्सा शिविर, महिलाओं/युवाओं को टेलरिंग, कम्प्यूटर की ट्रेनिंग, छोटे रास्तों का निर्माण, दुर्गम क्षेत्रों में सड़कों को बनाना और उनका रख-रखाव करना, कैंटीन सुविधाएं प्रदान करना, बच्चों के लिए स्कूल खोलना और इन बच्चों को भारत के अन्य शहरों में घूमाना-फिराना ताकि के देश की तरक्की से परिचित हो सकें। सेना में भारी बर्फवारी वाले हालातों में फंसे लोगों का निकालकर और उनका पुनर्वास करके अपने जनकल्याणकारी कार्यक्रमों द्वारा अपना मानवीय चेहरा प्रदर्शित किया है।
इतना ही नहीं कृषि में सहायता बीजों, उपकरणों की व्यवस्था, सी.एस.डी. सुविधाएं भी सेना द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही हैं। सामाजिक, वानिकी, औद्योगिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों व विकासात्मक गतिविधियों द्वारा सेना ने सीमान्त क्षेत्रों के लोगों की जिन्दगी का काया कल्प करके रख दिया है। यही वजह भी है कि आतंकवाद प्रभावित इलाकों में पाकिस्तानी आतंकवादियों को कोई हमदर्दी हासिल नहीं हो रही है और उनके सीमापार बैठे आका बुरी तरह बौखलाए हुए हैं।
संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के दौरान विदेशी भूमि पर और श्रीलंका में लिट्टे उग्रवादियों के खिलाफ चलाए गए आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान भी भारतीय सेना ने वहां संकटग्रस्त जनता की भरपूर सहायता की थी और यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में भारतीय सेना को विशेष सराहना अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों, मिशन प्रमुखों से मिलती रही है। जम्मू-कश्मीर में भारी बारिश से हुई जान-माल की तबाही और स्वयं खतरे से घिरी सेना ने तत्काल ‘’आपरेशन मेघ राहत’’ के अन्तर्गत भारतीय वायु सेना के साथ मिलकर रात-दिन एक करके न केवल फंसे हुए नागरिकों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है बल्कि टूटे पुलों, क्षतिग्रस्त सड़कों, रास्तों को दुरूस्त करने का जिम्मा भी उठाया है। इसके अलावा फंसे हुए लोगों तक पीने के पानी, खाने के पैकेट और राहत सामग्री को पहुंचाने की व्यवस्था अलग से की है। ऐसी भीषण आपदाओं में अपनी जान जोखिम में डालकर भारतीय सशस्त्र सेनाओं के जवानों द्वारा कायम की जाने वाली मिसालों को पूरा राष्ट्र सेल्यूट करता है।
वर्ष 2013 में 16 जून को केदारनाथ धाम पर आई भीषण प्राकृतिक आपदा के दौरान भी सेना ने ‘आपरेशन सूर्या होप’ चलाकर अपने साथियों की जाने गंवाकर हजारों लोगों को न केवल सुरक्षित निकालकर उनके गंतव्य तक पहुंचाया अपितु उनके रहने-खाने-ठहरने की भी व्यवस्था की थी। पाक उकसावे में आकर हमेशा भारतीय सेनाओं की छवि बिगाड़ने तथा दोषारोपण करते रहने वाले कश्मीरी अलगववादी नेताओं को भारतीय सेना द्वारा किये जाने वाले यह नेक काम क्यों नहीं दिखाई पड़ते हैं और कश्मीर घाटी में आई हुई भयानक बाढ़ में वे कहां मुंह छिपाकर बैठे हुए थे।
यद्यपि राष्ट्रीय आपदाओं से निपटने के लिए एन.डी.आर.एफ. का गठन किया गया है लेकिन सीमित कार्यबल एवं संसाधनों के चलते वह अभी प्रभावी तरीके से राष्ट्रीय आपदाओं से निपटने में सक्षम नहीं जान पड़ती है। जबकि भारतीय सशस्त्र सेनाओं के तीन अंगों के जवान व अधिकारी बधाई एवं प्रशंसा के पात्र हैं जो अपने ही संसाधनों के बलबूते केदारनाथ, जम्मू-कश्मीर, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश में राष्ट्रीय आपदाओं के वक्त धैर्यपूर्वक राहत एवं पुनर्वास शिविरों का संचालन कर आम आवाम की हिफ़ाजत और देखभाल को यकीनी बना रहे हैं। राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता और नागरिकों की सुरक्षा के लिए कुर्बान होने वाली ऐसी फौज़ के गिल-शिकवे न के बराबर हैं।
आशा की जानी चाहिए कि केन्द्र सरकार ऐसी देशभक्ति के ज़ज्बे से भरपूर फौज़ के अधिकारियों एवं जवानों और उनके परिवारों के कल्याण को अपनी प्राथमिकताओं में रखेगी और बेहतरीन सुविधाओं के साथ-साथ उनके वेतन-भत्तों और पेंशन योजनाओं को तर्कसंगत बनाकर अधिकारियों और जवानों का मनोबल बढ़ाएगी ताकि वे निश्चिंत होकर दोगुने उत्साह के साथ राष्ट्र के प्रति समर्पित सेवा भाव से कार्य करते रहें।
अनुज आचार्य
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