सच, मैं सुन्दर हूँ? / कहानी / विष्णु प्रभाकर

SHARE:

सच, मैं सुन्दर हूँ मुकुल ने निश्चय किया कि इस बार होली की छुट्टियों में वह धर नही जाएगा । लेकिन छुट्टियों आएँ इससे पूर्व ही मंजरी का पत्र आ...

image

सच, मैं सुन्दर हूँ

मुकुल ने निश्चय किया कि इस बार होली की छुट्टियों में वह धर नही जाएगा । लेकिन छुट्टियों आएँ इससे पूर्व ही मंजरी का पत्र आ पहुंचा,

'मनीषी भाभी का आग्रह है कि सदा की भांति इस बार भी वे आपकी राह देखेंगी ।'

उसकी प्रतिज्ञा और भाभी का आग्रह, इन दोनों में कौन शक्तिशाली है यह वह जानता था । इसीलिए मन में अवसाद लेकर भी उसे जाना' पड रहा है । ट्रेन में अपार भीड़ है । शोर है, बदतमीजी है लेकिन सब ओर से आँखें मूँदें वह ऊपर की बर्थ पर लेटा हुआ सिगरेट के लम्बे-लम्बे कश खींचता और उठते हुए सर्पाकार धुएँ में राह भटक-भटक जाता । स्वभाव से वह अल्हड़ था । जहां वह है वहां विषाद नहीं है । मृत्यु के मुख सर भी एक बार मुस्कान बिखर जाती । लेकिन आज उसके स्मृति पटल पर ऐसा कम्पन है जैसा सम्भवत: रडार में होता है । किसी संकट की सूचना... लेकिन वह संकट की बात सोचना नहीं चाहता । पर ज्यों-ज्यों वह उसे स्मृति पटल से मिटाने की चेष्टा करता है त्यों-त्यों उसकी रेखाएं और: स्पष्ट होती है और उभरती है । विस्मृति की चेष्टा में ही स्मृति का जन्म होता है । रात वर्ष उल्लास से भरा-भरा वह धर पहुंचा था तो मंजरी ने मनी भाभी से मुस्करा कर कहा था-'जानती हो भाभी, मुकुल भैया क्यों आए हे ?'

मनी भाभी बोली, अपने घर कोई क्यों आता हैं, यह जानने की भी क्या कोई जरूरत होती है ?'

मंजरी हँस पड़ी, 'होती है भाभी, होती। है ।'

अब भाभी मुस्कराई, 'तो तुमसे मिलने आए होंगे ।'

- ऊँहूँ । मुझसे नहीं, तुमसे।

-तो फिर क्या बात है । भाभी से मिलने जाना क्या अनधिकृत है ।

-जी अनधिकृत तो नहीं, अद्‌भुत अवश्य है । विशेषकर इन दिनों ।

ओफ् ।' भाभी खुल कर हँसी, 'तो यह बात है ।'

मंजरी ने भैया की ओर देखा । कहा, 'कहती थी ना, भाभी जानती है ।'

मुकुल की उत्फुल्लता पूर्णता की ओर थी । बोला, 'जानती क्यों नहीं ।' सहसा धुएँ में एक तीव्र कम्पन हुआ, कल्पना का महल तिरोहित हो गया और मस्तिष्क में एक विचार जाग आया । न जाने किस शास्त्र ने भाभी के साथ होली खेलने का अधिकार दिया है । शायद यह परम्परा है और परम्परा की शक्ति विधि विधान, धर्म और शास्त्र सबसे ऊपर होती है । न जाने कब किस देवर ने किस भाभी के साथ पहली बार होली खेली होगी... उसने एकाएक करवट बदली । फिर हँस आया-हूँ न मूर्ख । इसमें खोज की क्या बात है । इस परम्परा के पीछे शाश्वत यौन आकर्षण है ।

सिगरेट का धुंआ फिर नए मेघों का निर्माण कर रहा था । और उनके पटल पर मंजरी कुछ गम्भीर होकर कह रही थी, 'मुकुल भैया । हमारी भाभी इन बातों को पसन्द नहीं करती ।'

- क्यों?

-क्यों क्या । देखा नहीं तुमने । कितनी सादी रहती हैं । कभी-कभी तो डर लगता है । उस दिन हमारे घर आई थीं । मैंने भोजन के लिए कहा तो आ बैठी । दाल में नमक ज्यादा था लेकिन वह बोली नहीं । मैं जानती थी । मैंने उनसे कहा, तो हँस दीं । बोली, 'यदि कभी-कभी ज्यादा नमक न पड़े तो ठीक का पता कैसे लगे ।'

मुकुल ने बड़ी तीव्रता से सिगरेट के कश खींचे । फिर बुदबुदा उठा- मैं.-. सचमुच कभी-कभी ओवरडोज की जरूरत होती है । वही जीवन का आनन्द है । समता तो थका देने वाली होती है ।

धुएँ के बादल घहरा उठे । उनके पीछे मनी भाभी की सलोनी आँखें उभर आई । उस दिन उन्‌होंने पूछा था, 'देवरजी आखिर होली क्यों खेली जाती है?' और तब मुकुल ने अपना संचित ज्ञान कोश जैसे भाभी के चरणों में उंडेल दिया था । सारे इतिहास का रत्ती-रत्ती वर्णन उसने रस विभोर होकर किया था और उस तमाम समय भाभी अचरज से मुस्कराती उसकी ओर देखती रही । मुकुल बोला, 'सच तो यह है भाभी, यह प्रकृति का त्यौहार है । प्रकृति हंसती है, मधु ऋतु मुस्काती है, किसान उन्मत हो उठता है । हम हँसते हैं । हँसना ही तो जीवन है । वर्ष भर जीवन की विषमताओं में हम डूबे रहते हैं । एक दिन मुक्त होकर खूब हंसे, ऐसा सोच कर ही किसी दूरदर्शी पुरातन पुरुष ने इस त्यौहार का आविष्कार किया था ।

-हाँ लाला । वर्ष भर रोकर एक दिन हँसना । या एक दिन हँस कर वर्ष भर रोना, सौदा काफी मंहगा है । है ना देवरजी ।

-भाभी ।

-झूठ कहती हूँ मैं । हँसना रोना क्या कभी एक साथ होता है । जब एक रोता है तभी दूसरे को हँसी आ जाती है ।

-नहीं भाभी, आज के दिन कोई नहीं रोता । सभी हँसते हैं ।

सहसा वह उठ बैठा । दृष्टि नीचे की ओर गई । पाया, अधिकांश यात्री ऊंघ रहे हैं । कुछ पढ़ भी रहे हैं । कुछ दीवार से सटे खड़े हैं । और गाड़ी है कि अपनी रफ्‌तार से चली जा रही है । निर्मुक्त निर्द्वन्द्व, । सोचा- - सभी हँसते हैं । सचमुच क्या सभी हँसते हैं । आज भी चारों ओर रोना ही कुछ अधिक है । भूख, अभाव, आत्महत्याएँ, पुलिस, जेल, सभी कुछ पूर्ववत है ' लेकिन फिर भी हँसने वाले हँसते हैं । लेकिन जिनके प्रिय बिछुड़ गए हैं वे भी क्या हँस सकते हैं । उनके लिए रोना ही सत्य है । वे रोएंगे तभी तो हंसने वाले हँसेंगे । कैसी विडम्बना है । कैसा चक्रव्यूह है । हंसना रोना, रोना हँसना । सहसा भाभी की एक और बात याद आ जाती है. 'देवर जी, हंसना और रोना, क्या यही जीवन के मूल तत्व हैँ ?'

-तो!

-आत्म समर्पण ।

-भाभी!!

पल के उस सहस्र्वें, भाग में कह कर भाभी लजा आई और मुकुल हो उठा आत्म विभोर । प्रेम की सिहरन जैसे उसकी शिराओं मैं उमड़ आई । भाभी मुस्कराई । बोली, 'किसी के होना चाहते हो ?'

-किसका?

-किसी के भी

अनायास ही जैसे अपने से ही कहता हो-मुकुल बोल उठा, 'तुम्हारा ' ।

भाभी तनिक भी चकित नहीं हुई । जैसे वह यही सुनना चाहती हो । सहज स्वाभाविक स्वर में बोली, 'मेरे भी हो सकते हो । लेकिन अब मुझ में आत्म समर्पण कहाँ है । तुम नहीं चाहोगे'..'

आत्म विस्मृत-सा मुकुल एकाएक बोल उठा, 'तुमने मेरी बात नहीं मानी भाभी ।'

- कौन-सी बात?

-तुमने होली खेलने से इंकार किया ।

भाभी की मुस्कान में जैसे इन्द्रधनुष चमक उठा, 'होली खेलना चाहते हो, तो खेलो ।'

-सच ।

-हाँ, सच ।

मुकुल तुरन्त दौड़ कर रंग ले आया । लाल, पीला, नीला, हरा । भाभी वहीं उसी तरह बैठी रही, मन्द-मन्द मुस्काती, उसी की राह देखती । मुकुल ने पिचकारी भरी । बोला, 'हो जाओ तैयार ।'

भाभी ने कहा, 'बैठी तो हूँ ।'

मुकुल एकाएक ठिठक गया, 'नहीं नहीं, मंजरी ठीक कहती थी । तुम होली खेलना नहीं पसन्द करतीं । तुम होली खेलना नहीं चाहतीं । चुपचाप बैठकर भी होली खेली जाती है ।'

भाभी ने उठने का जरा भी प्रयत्न नहीं क्रिया । बोली, 'देवरजी, मैं न चाहूँ तुम तो चाहते हो । तुम्हारी चाह का मैं सम्मान क्यों न करूँ?'

-'नहीं, भाभी । जो तुम नहीं चाहतीं उसमें रस कहाँ से उँडेलोगी -'क्या कहते हो देवरजी? संसार में ऐसा ही तो होता है । सदा एक की चाह दूसरे पर लाद दी जाती है ।'

मुकुल तीव्र गति से काँप आया । बोला, 'नहीं भाभी, नहीं । मैं अपनी चाह तुम पर न लादूंगा ।

भाभी हर्ष और विषाद के झूले में जैसे झूलती हो । चेहरे पर एक रंग आया एक गया । बोली-देवर जी, तुम तो पागल हो । जितना चाहे रंग डालो, मैं बुरा न मानूंगी ।

कहते-कहते वह विद्युत की गति से उठी, एक बाल्टी उठाई और मुकुल को सराबोर कर दिया । और उसके बाद...

यही सब सोचते-सोचते मुकुल कुछ पिघला, कुछ हर्षित हुआ, कुछ खिन्न भी हुआ, लेकिन स्मृति का राजरथ तीस गति से आगे बढ़ता चला गया । वह रंग खेल ही रहे थे, कि मंजरी आ गई । बोली, 'अरे भैया. यह क्या हुआ? मैं तो समझती थी कि भाभी केवल ज्ञान की बातें बघारती हैं । देखती हूँ कि दह तो रंगीली भी हैं । पुरुष को हरा सकतीं हैं । बाप रे बाप । नारी को क्या यह शोभा देता है?'

और वह खिलखिला कर हँस पड़ी । भाभी भी हंसी । बोली, इसमें अशोभन क्या है मंजरी । पुरुष ने सदा नारी के संग होली ही खेली है । और किसी योग्य तो वह उसे मानता नहीं ।

दोनों भाई-बहन जैसे सिहर-सिहर उठे, कि उसी क्षण बड़े भैया वहाँ आ गये । गीले बालों पर आँचल सरका कर भाभी चुपचाप किवाड़ों के पीछे हो गई । एक क्षण कोई कुछ नहीं बोला । फिर मंजरी जैसे बरबस हंसी । बोली, 'भैया, आज भाभी ने मुकुल भैया की खूब परीक्षा ली । पहले तो उपदेश दिया, फिर यह दुर्गति कर दी ।'

भैया हँस आये । बोले, 'मंजरी, जीत मुकुल की ही हुई है । उसने अपनी भाभी को होली खेलने के लिए विवश कर दिया । मैं नहीं कर सका ।' मुकुल ने सहसा अपने ममेरे भैया की ओर देखा । वह अत्यन्त कुरूप थे और हँसी उस कुरूपता को और भी उजागर कर देती थी । वह कुछ नहीं बोल सका । केवल सन्ध्या को जब भाभी को प्रणाम करने आया तो कहा. 'परीक्षा समीप है । अब जा रहा हूँ ।'

भाभी सकपकाई, 'अभी, इतनी जल्दी ।'

-हां भाभी!

भाभी ने एक दीर्घ निःश्वास खींचकर केवल इतना ही कहा. 'अच्छा देवरजी, जीवन में सफल होओ यही मैं चाहती हूँ ।'

उसने सिगरेट का आखिरी कश खींचा और बचे हुए टुकड़े को आराम से डिब्बे में एक हुक में रख दिया । फिर गाल हथेली पर टिका, सामने निगाह जमा दी । सोचने लगा उस पत्र की बात जो अगले ही दिन भाभी ने लिखा था...

''क्षण कितना प्रबल है, यह मैंने उस दिन जाना । सोचती हूं कि इसमें जो शक्ति है, जो उद्दाम उद्वेग है वह वर्षों की घुटन का परिणाम है । जिस बात की हम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते कह अनायास ही हो जाती है । कल का उन्माद भी क्षणजीवी नहीं था । न जाने कब से मेरे अन्तर में रमता जा रहा था । मानूंगी कि मैं प्यासी हूँ । चेतन रहते कभी इस पर नहीं सोची । सोचना वर्जित जो था ।

तुम्हारे भैया जैसे हैं, मेरे पति है, देवता हैं । लेकिन देवरजी, नारी को क्या पति और देवता की ही आवश्यकता होती है? वे पूजा के पात्र हो सकते हैं लेकिन प्यार के नहीं । और नारी चाहती है प्यार, रस, उन्माद । किसी का होने या' किसी को अपना बनाने की साथ । यही साथ नारी को सधवा बनाती है अन्यथा वह चिर विधवा हैं'..

मुकुल फुसफुसा उठा। न जाने ऐसी कितनी चिरविधवाएं इस देश में भरी पड़ी हैं । क्या इन्हीं के अन्तर सें निकले अभिशापों से ही दासता की शृंखला का निर्माण नहीं हुआ? ...

सोचते सोचते अन्तर में भाभी के लिए अगाध सहानुभूति उमर भाई ।

लेकिन वह फिर घर नहीं जा सका । छुटिटयों में मसूरी चला गया लेकिन वहाँ पहुँचने पर भी भाभी क्या उसे मुक्ति दे सकी । वह अन्तर्मुखी हो चला । चिन्तन ने उसकी वाणी को अवरुद्ध कर दिया । मित्रों ने कहा-यह प्रेम का रूप है । प्रोफेसर बोले- यह सनक है । लेकिन भाभी ने भी स्वयं फिर उसे कोई पत्र नहीं लिखा । मंजरी के पत्रों में भी उनकी बहुत् कम चर्चा रहती थी । उसके चारों ओर जैसे एक घुटन घिरती जा रही हो और उसे कोई राह नहीं दिखाई दे रही हो । तभी सहसा देश एक भयंकर भूकम्प से हिल आया । हिमालय के उस पार के पड़ोसी, चिरकाल के मित्र ने उसकी पीठ में छुरा भोंक दिया । युगों से दबी हुई उसकी रक्त की प्यास मानो जाग उठी । और चिरशाश्वत श्वेत-हिम लज्जा सें रक्तिम हो आया । इतना बड़ा मित्रघात निकट विगत में हिटलर की ही याद आती है । मुकुल ने सोचा, शायद यह भी होली है । रंग इसमें भी है और अमिट है । होली खेलना मानव का स्वभाव है । पुरुष नारी के संग होली खेलता है, धनी निर्धन के साथ । ज्ञानी मूर्ख का उपहास उड़ाता है । बली निर्बल का रक्त पीता है । यह सहज है, शाश्वत है...।

तभी अचानक मंजरी का पत्र आ पहुंचा । लिखा था 'तुमने सुना, भैया सेना में भर्ती होकर नेफा चले गये हैं ।'

मुकुल को सहसा विश्वास नहीं आया । कालेज के दिनों में वह कभी एन० सी० सी० में थे । शक्ति उनमें थी, पर उसको उन्होंने कभी पहचाना नहीं था । जीवन को कभी एक लकीर से अधिक नहीं समझा । जैसे अपने में सिमटे लीक पर चलते रहे हों । कोई उद्वेग नहीं, उल्लास नहीं । भीतर जैसे घुटन हो, सीलन हो । वे भैया एकाएक मोच पर कैसे चले गए?

वह तुरन्त पत्र लिखने बैठ गया । चाहा, भाभी को पत्र लिखे पर लिख नहीं पाया । मंजरी को ही लिखा- भाभी से कहना कि आज वे गर्विता हैं । भैया देश के लिए मोर्चे पर गए हैं । जो देश की रक्षा के लिए प्राणों की चिन्ता नहीं करता वही सचमुच जीता है । मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ...

पत्र पढ़कर भाभी मुस्करा आई । बोली, 'मुकुल को लिख देना कि मैं सचमुच गर्विता हूँ । बहुत प्रसन्न हूँ । केवल कभी-कभी याद आती है । लेकिन उस याद का हर क्षण प्रेम को पवित्र करता रहता है ।'

मुकुल जैसे सिहर उठा, जैसे आत्म-विस्मृत, किसी भय से आक्रान्त, किसी अनचीन्हे दर्द से पीड़ित वह आडोलित हो आया । तभी नीचे कहीं कुछ कोलाहल उठा । क्षणिक व्यवधान के कारण कल्पना-पट हिल गया, 'सुस्थिर हुआ तो मंजूरी का एक महीने बाद का दूसरा पत्र सामने था, ‘भारत सरकार ने सूचित किया है कि भैया लापता हैं और भाभी के लिये जैसे इसका कोई अर्थ ही नहीं है । न रोती है। न सुनती हैं । पत्थर की प्रतिमा जैसी यन्त्रवत काम में लगी रहती हैं ।''

उसे खूब याद है कि वह फुसफुसाया थी-भाभी रोई नहीं, क्यों क्यों नहीं रोई? क्योंकि...क्योंकि.. .।

जैसे तूफान गर्ज उठा । उनचास पवन एक साथ उमड़-घुमड़ आये । कई क्षण वह आलोड़ित रहा फिर स्तब्ध हो गया । बहुत चाहा कि तुरन्त भाभी को लिखे परन्तु तीन दिन के प्रयत्न के बाद दो ही पंक्ति लिख सका । ''भैया अवश्य लौटेंगे । जगदीश्वर इतने निर्दयी नहीं होंगे ।'

उत्तर में इतना ही पाया-मैं जानती हूँ ।

सोचा, भाभी के पास चलूं । पर जब चला तो देखा पथ दक्षिण की ओर मुड् गया है । निमित्त उसका था, पर निमित्त क्या स्व-निर्मित होता है । वह तो किसी भी क्षण निर्मित कर लिया जाता है । दो माह तक इसी निरुद्देश्य निमित्त के सहारे घूमता रहा. यही एक दिन अचानक मंजरी का पत्र फिर मिला-सुनो भैया, एक खुशखबरी है । बड़े भैया का पता चल गया । नेफा में वे वीरतापूर्वक लड़े। खूब लड़े, पर इतने घायल हो गए कि साथी मृत समझ कर छोड़ आये । दुश्मन ने तो मिट्‌टी का तेल डाल कर आग भी लगा दी । लेकिन उसी आग से जैसे उनके प्राण लौट आये । होश में आने पर सबसे पहले उन्होंने जलती हुई जाकेट उतार फेंकी और फिर धीरे-धीरे रेंगते हुए रात के अन्धकार में अपनी चौकी पर लौट आये । ओफ, उस छोटी-सी यात्रा की कहानी । मैं लिख नहीं सकूंगी । रोमांच हो उठता है । ' 'अब वह सैनिक अस्पताल में हैं । हम सब वहां गए थे । भाभी वहीं पर है । भैया की अवस्था बहुत अच्छी नहीं है । शत्रु की गोली ने नाक का कुछ भाग काट दिया है । प्लास्टिक सर्जरी हुई है । सुनते हैं एक हाथ और एक पैर भी काट देने की बात है ।

'वे लौट आये यही क्या कम बात है ' परन्तु जानते हो, भाभी ने जब भैया के जीवित होने का समाचार सुना तो बहू संज्ञाहीन हो गई थीं । कई धंटे बाद आँख खोल सकीं । नहीं जानती थी कि हर्ष भी इतना घातक होता है । बात बात में रो उठती हैँ । लेकिन भैया के सामने बराबर हँसती रही । आँसुओं के धार के पीछे उनकी हंसी नहीं रुकती ।

सैनिकों के लिये और उनके परिवारों के लिये उन्होंने जितना कुछ किया है उसका लेखा-जोखा मेरे यश का नहीं है । अभी-अभी लौटी हूँ क्योंकि होली फिर आने वाली है । उनका आग्रह है कि सदा की भांति इस बार भी वह आपकी राह देखेंगी? ...

न जाने कितनी बार मुकुल ने उस पत्र को पढ़ा । स्तब्ध हुआ, रोया' । एक बार तो चीख उठा-मैं नहीं जाऊंगा, नहीं जाऊँगा ।

लेकिन जाना न जाना क्या उसके वश में था. ..।

उसने तेजी से फिर करवट बदली पर तभी पाया कि गाडी की गति धीमी पड़ रही है । पटरी बदलने के कारण शड़ाक्छूं-सडाक्छूं की आवाज में खरखराहट भर आई । केबिन पास से गुजर गया । नीचे के यात्री बोल उठे-स्टेशन आ गया । मुकुल को यहीं उतरना था । सामान उसके पास बहुत् ही सीमित था । बाहर जाने पर पाया कि मंजरी पागलों की तरह उसी को ढूंढ़ रही है । देखते ही बावली-सी चीख उठी, 'भैया ।'

मुकुल ने प्यार से उसे थपथपाकर पूछा, 'तू अच्छी है ।'

-हां ।

-भाभी कैसी है?

-प्रसन्न हैं । खूब प्रसन्न हैं । इस बार होली खेलने की उन्होंने बहुत तैयारी की है । नाना प्रकार के रंग, केसर का लेप, स्वादिष्ट मिठाइयाँ । मुकुल बोल उठा, 'क्या कह रही है तू ।'

मंजरी ठीक ही कह रही थी । जब वह भाभी के पास पहुँचा तो सहसा पहचान न पाया । शरीर पर धवल उज्जवल साड़ी, मुख पर रहस्यमयी मुस्कान, आँखों में तरल चंबलता । मुकुल को देखा तो मानो कमल खिल आया । बोली, 'जानती थी इस बार अवश्य आओगे ।'

मुकुल ने मस्कराना चाहा पर मुस्करा नहीं सका । गम्भीर स्वर में बोला, .भैया ने तो.. .' भाभी तुरन्त बोली, 'वही किया जो प्रत्येक पुरुष को करना चाहिये । और कहते-कहते वह फुर्ती से मुड़ी । रंग की एक बाल्टी उठाई । मुकुल के ऊपर उलट दी । वह संभले-संभले तब तक दूसरी-तीसरी और चौथी बाल्टी खाली हो चुकी थी । उसने सँभलने का प्रयत्न किया लेकिन भाभी उसका हर प्रयत्न विफल कर देती थी । उसने पाया कि जैसे उसका विषाद दूर हो गया है । हृदय में एक रहस्यमयी हिलोर उठकर उन्माद पैदा करने लगी है । देखता है कि बाल्टी उसके हाथ में भी आ गई है । अब तो भाभी आगे है और वह पीछे । गन, दालान, बैठक, रसोई सभी से होते हुए दोनों अन्दर के कमरे में जा पहुंचे । आगे दीवार थी । उसी से सट कर भाभी खड़ी हो गई । बोली; -अच्छा लो, डाल लो ।'

दूसरे ही क्षण सर से पैर तक रंग में सराबोर हो आई । साड़ी बदन से

चिपक गई । कुन्दक-सी मांसल देह चमक आई । यह हँस रही थी । इसलिये शिराओं में थिरकन थी । रंगों ने उन्हें और भी मोहक बना दिया था । अस्त-व्यस्त वस्त्रों के कारण आकर्षण और भी गहरा हो उठा था । मुकुल सस्मित पुकार उठा, 'भाभी! '

-बस लाला जी, और रंग नहीं डालोगे ।

'भाभी' विद्युत् की गति से आगे बढ्‌कर उनके दोनों कन्धों पर अपनें हाथ रख दिये । फुसफुसाया, 'भाभी ।'

भाभी तनिक भी नहीं झिझकी, मुक्त मन बोली, 'कहो देवर जी!'

-तुम... तुम... इतनी सुन्दर हो ।

-सच!

मेरी आँखों में झाँको ।

ओह! तुम कवि हो ।

भाभी मुस्कराई । सहज-सरल भाव से उसके दोनों हाथ हटा दिये । बोली, 'सच कहते हो । मैं सुन्दर हूँ । मैं तो समझी थी कि मैंने अपने आपको उनकी याद में मिटा दिया है । लेकिन देवरजी, तुमने मेरी भ्रम दूर कर दिया । धन्यवाद...'

कहते-कहते भाभी का वक्ष उभरा, नेत्र दीप्त हुए । हर्ष ने जैसे नववधू को जकड़ लिया हो और मुकुल थरथर कम्पित अपलक पृथ्वी पर दृष्टि गड़ाये वहीं का वहीं स्थिर हो गया कि पूथ्वी फटे और वह उसमें समा जाए । लेकिन यह क्या? यह कैसा स्वर? भाभी को क्या हो गया?

भाभी सिसक रही हैं । सिसके जा रही हैं ।

ओर मुकुल स्तब्ध है । समूचा विश्व स्तब्ध है ।

--

(डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ़ इंडिया से साभार)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: सच, मैं सुन्दर हूँ? / कहानी / विष्णु प्रभाकर
सच, मैं सुन्दर हूँ? / कहानी / विष्णु प्रभाकर
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjz1itVedTfKRKOF9ce2NXKBitptYTjMG8CCIkTawxRXMnKnFfKS9ZFqlGvPngV9S8-HydfsWlAZOzOR994OA1eo3Hj0COylTZ1vTUP7xRG1RXPF_unc0V27XJT4NW7fCWrOKB3/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjz1itVedTfKRKOF9ce2NXKBitptYTjMG8CCIkTawxRXMnKnFfKS9ZFqlGvPngV9S8-HydfsWlAZOzOR994OA1eo3Hj0COylTZ1vTUP7xRG1RXPF_unc0V27XJT4NW7fCWrOKB3/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/09/blog-post_5.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/09/blog-post_5.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content