मुख में राम बगल में छुरी...। यह उक्ति सुनते ही मन में एक कपटाचारी व्यक्ति की छवि उभर कर सामने आती है। मैं उक्ति के संदर्भ में समाज से प्रश्न...
मुख में राम बगल में छुरी...। यह उक्ति सुनते ही मन में एक कपटाचारी व्यक्ति की छवि उभर कर सामने आती है। मैं उक्ति के संदर्भ में समाज से प्रश्न करना चाहूंगा कि सनातन परम्परा में वर्णित देवी - देवता सत्य व धर्म के अवतार माने जाते है फिर उन सबके बगल में हथियार क्यों है ? क्या यह मिथ्याचारी है ? इन प्रश्नों के उत्तर देना, क्या उक्ति कहने वालों के लिए आवश्यक नहीं है ?
सत्य तो यह है कि हम लकीर के फकीर है, जो हमने कभी उक्ति के मूल भाव को समझने कि आवश्यकता ही नहीं समझी। साधारण जन तो यह कह कर मुक्ति पा लेगा कि हमें ज्ञान ही नहीं है, पर समाज के अग्रदूत साहित्यकार, पत्रकार, नेतृत्ववृंद, व बुद्धिजीवियों के बचने का कोई उपाय नहीं है। कल जब इस पर नूतन शोध हो जाएगा, तब वे हमारी अक्ल पर ठहाके लगाएंगे। मैं भावी पीढी को कदापि अवसर नहीं देना चाहता कि हम निपट मूढ़ है। पूर्ण नहीं तो कम से कम कुछ अंश तो भावी पीढ़ी के शोधार्थ रखे। यदि उक्ति कहने वालों से आदर्श चरित्रों से साक्षात्कार हो गया, तो उनके प्रश्नों क्या उत्तर देंगे। हमने उनके सत कर्मों फल कपट के रूप चित्रित करके दिया। अत: इस उक्ति पर शोध करना अतिआवश्यक है।
मुख शब्द के शब्द शब्दार्थ एवं भावार्थ पर विचार करे। प्रथम मुख शब्द का अर्थ मुंह :- जीभ दांत की पंक्ति युक्त शरीर का अंग। द्वितीय मुख माने हुआ मुख्य :- सभी में से खास या प्रमुख। तृतीय मुख यानी प्रथम :- मुख पृष्ठ, मुखिया या प्रथम नागरिक। इन तीनों का गूढार्थ एक ही है। जिसका प्रथम लक्ष्य या मुख्य उद्देश्य अथवा मध्य बिन्दु यानी प्रमुख कार्य हैं। उक्ति में कहा गया है कि मुख में राम यानी जिसके जीवन का मूल उद्देश्य या लक्ष्य राम हो। जिसकी वाणी में राम विराजमान हो। राम जैसा आदर्श को जिन्होंने अंगीकार कर लिया हो।
अब राम शब्द के निर्माण के विज्ञान को समझना हो। इसका निर्माण एक नकारात्मक शब्दावली से है। साहित्य में कहा गया है कि एक जड़ बुद्धि युक्त मानव देहधारी जीव को कुछ व्यष्टि सत् पथ पर लाने की चेष्टा कर रहे थे, उस समय उनके सभी यंत्र मंत्र व तंत्र निष्फल सिद्ध हो जाने पर नाम रूपी साधन का उपयोग किया गया। पर यह उपयोग भी उसके लिए कारगर नहीं हुआ, तब उसके दैनिक जीवन का खास तुका मरा को नाम रूप में उपयोग किया गया। उसकी निष्ठा की बुनियाद पर यह मंत्र बन गया। जब वह व्यक्ति साधना में बैठा तब मरा मरा उच्चारण कर रहा था लेकिन जब वह योग निन्द्रा से उठा तो राम राम उच्चारण करते हुए अपने को पाया। वही कालान्तर में मंत्र बन गया। जो लाखों व्यष्टियों के त्राण का माध्यम बना। मरा माने मृत्यु। उसका विलोम राम माने हुआ जीवन, नूतन चेतना। उक्ति कहती है कि मुख में राम अर्थात जिसके जीवन का मुख्य उद्देश्य राम हो यानी समाज व प्राणी जगत का जीवन हो तथा उसके सभी व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए कृत संकल्प हो। जो सर्व जन हितार्थ सर्व जन सुखार्थ का आदर्श ग्रहण किये हो। उसके बगल में छुरी होनी चाहिए। छुरी का माने हुआ रक्षार्थ उपयोग की गई शक्ति :- छ = छत्रक, रक्षक । उरी = औजार या हथियार छत्रपाल मानी रक्षार्थ नियुक्ति सैनिक। रक्षार्थ ही नव दुल्हा को शस्त्र दिया जाता है। तलवार पर मायान उसकी नियंत्रक शक्ति के लिए ही डाली जाती है। शस्त्र जब रक्षार्थ उठाये जाते है तब कल्याणकारी होते है। धर्म रक्षार्थ, समाज रक्षार्थ, नारी रक्षार्थ व गौ रक्षार्थ शस्त्र उठाने वाले समाज नायक हुए है। इसलिए गुरू गोविन्द सिंह ने सिखों को कटार दी थी। नारी को उग्र सुरक्षा की जरूरत होती है अतः त्रिशूल दिया जाता है। जिसकी तीनों शूलें भूत, वर्तमान व भविष्य की सुरक्षा करता है। जो आकाश पाताल व धरती में सुरक्षा का उपाय खोज निकालता है।
बगल माने हुआ पास में, एक ओर, दोनों ओर, मुख्य नहीं गौण रूपेण व प्राथमिक नहीं द्वितीयक। अगल - बगल माने दोनों ओर। मुख में राम बगल में छुरी अर्थात जिसका मुख्य उद्देश्य राम राज्य हो तथा पास में शक्ति हो। वही समाज में कुछ नूतन कर गुजरता है। इतिहास गवाह कि यदि किसी का आदर्श महान लेकिन उनके पास शक्ति नहीं है तो धरती की कठोर माटी पर कोई आदर्श फलीभूत नहीं होता है। समाज उसे हर्ष परिहास में उडा देगा। धरती का सत्य है कि कई विद्वान अपनी भावना को अपने ही आंचल में छिपाये इस धरती से विदा हो गये। कई आदर्श शक्ति के अभाव में धरती पर महान कार्य किये बिना ही काल के गोद में समा गये है। धरती पर कुछ अच्छा कर गुजरना है तो जीवन का मूल लक्ष्य रामराज्य यानी सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ आदर्श जो नव्य मानवतावाद की आधार की शीला पर स्थापित विश्व बन्धुत्व कायम कर सकने वाला आदर्श प्रगतिशील उपयोगी तत्व हो। तथा पास में समग्र शक्ति का संचय करे ताकि वह समाज का का चक्रनाभी सदविप्र बन सकता है। आनन्द मार्ग के संस्थापक श्री श्री आनन्द मूर्ति जी ने प्रउत का महान आदर्श दिया तथा सदविप्र की वर्दी में ही छुरी का समावेश करते हुए शक्ति संचय का आदेश दिया है ताकि एक मानव समाज बनाने की उनकी योजना पूर्ण हो सके।
मुख में राम, बगल में छुरी।
यही है, समाज की धुरी।।
--ः-- श्री आनन्द किरण
यह सूत्र कहता है कि समाज उसी के इर्द गिर्द घूमता है जिसके मुख में राम सासा आदर्श हो। राम जिसके मन में भरत के लिए जितना स्नेह है उतना ही रावण के लिए भी है। वह भरत को स्नेहशील भेट चरण पादूका दे देता है तो दुष्ट रावण के लिए भी अंगद को शान्ति दूत बनाकर भेज सकता है। राम वह चरित्र जिसके दिल में पिता महाराजा के दु:ख एवं वचन की कीमत है उतनी ही साधारण धोबिन के दु:ख की, वह पिता महाराजा के लिए जन्मभूमि अयोध्या का परित्याग कर सकता है तो धोबिन के खातिर प्राण प्रिया सीता का भी परित्याग कर लेता है। राम राज्य अर्थात सभी के लिए कल्याणकारी व्यवस्था सर्वजन हितार्थ एवं सर्वजन सुखार्थ प्रगतिशील उपयोगी तत्व जिसका मुख्य उद्देश्य हो एवं पास में शक्ति हो शक्ति का अर्थ अस्त्र शस्त्र की होड नहीं शक्ति का अर्थ छुरी से है अर्थात व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जिसका उपयोग किया जाता है। लोकतंत्र में जनमत सबसे बड़ी शक्ति है। जिसके पास में जनमत की शक्ति जिसके पास है एवं मूल उद्देश्य या लक्ष्य राम राज्य का आदर्श हो। राम राज्य अर्थात सर्वजन हितार्थ एवं सर्वजन सुखार्थ व्यवस्था प्रउत हो। वही इस समाज की धुरी है। समाज में यही व्यक्ति कुछ कर गुजर सकते हैं। इसलिए समाज में यदि सत व्यवस्था देना चाहते हो तो मुख में राम एवं बगल में छुरी रखनी होगी।
लेखक -- श्री आनन्द किरण (करण सिंह) शिवतलाव
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