भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद से पिछले 67 वर्षों में एक भी लम्हा ऐसा नहीं बीता है जिसे इन दोनों मुल्कों की मैत्री के नज़रिए से खुशग़वार क...
भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद से पिछले 67 वर्षों में एक भी लम्हा ऐसा नहीं बीता है जिसे इन दोनों मुल्कों की मैत्री के नज़रिए से खुशग़वार कह सकें। 1947-48, 1965, 1971 और 1999 के कारगिल युद्धों के अलावा पिछले 25 वर्षों से पकिस्तानी सेना और वहां की कुख्यात खुफिया ऐजेन्सी आई.एस.आई. द्वारा पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में विभिन्न जेहादी संगठनों के आतंकवादियों को प्रशिक्षित करके उनके जरिये भारतीय सरजमीं पर निर्दोष नागरिकों की हत्याएं करवाकर बेवजह खून-खराबा करवाया जा रहा है।
पिछले कुछ महीनों से जम्मू के साथ लगती अंतर्राष्ट्रीय सीमा और एल.ओ.सी. पर कुपवाड़ा सेक्टर में पाकिस्तानी रेंजर्स और सेना द्वारा युद्ध विराम समझौते का उल्लंघन कर निरन्तर गोलीबारी की आड़ में आतंकवादियों की घुसपैठ करवाकर भारतीय क्षेत्र में अशांति फैलाने की कोशिशें जारी हैं। जिसका हमारे अर्ध-सैनिक बल, पुलिस और भारतीय सेना मुंह तोड़ जवाब भी दे रहे हैं।
05 दिसम्बर, 2014 को जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पहले दो चरणों के चुनाव में कश्मीरी नागरिकों द्वारा बढ़-चढ़कर मतदान करने की खबरों से बौखलाकर पाकिस्तानी आकाओं की शह पर विदेशी आतंकवादियों के हमले में एक सैन्य अफ़सर और 7 जवानों सहित 3 पुलिस कर्मचारियों की मौत के बाद भारतीय आवाम द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ सख्त काररवाई की मांग उठना एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। अमूमन सेना को पड़ोसी मुल्कों से युद्ध होने की स्थिति में निपटने के लिए तैयार किया जाता है लेकिन कश्मीर घाटी और पूर्वोत्तर राज्यों में पिछले कई वर्षों से जारी आतंकवादी घटनाओं एवम् उपद्रवों से दो-दो हाथ करने के लिए सेना को निरन्तर दिन-रात, घात-प्रतिघात, कम तीव्रता वाली झड़पों के चलते लगातार आपरेशन्स में व्यस्त रहना पड़ रहा है। सैन्य अधिकारियों और जवानों को इन अशांत क्षेत्रों में अपनी तैनाती के दौरान आपरेशन, एम्बुश, सर्च अभियानों और मीलों लम्बे जिम्मेवारी के इलाकों में गश्त करने और डयूटी पर तैनात रहना पड़ता है।
भारत में बढ़ती आतंकवादी घटनाएं, सीमा पर चलने वाली कम तीव्रता वाली झड़पें, नक्सलवादी घटनाएं, कई वर्षों से जारी हैं। बड़ी मुश्किल से पंजाब में हालात काबू में आ पाए हैं लेकिन कश्मीर घाटी तथा पूर्वोत्तर में आतंकवादी घटनाओं से भारत के सामान्य जनजीवन को पंगु बनाने की कोशिशें जारी हैं। ‘‘ग्लोबल टैरेरिज्म डाटाबेस’’ के आंकड़ों के अनुसार, 1970 से 2007 के बीच भारत में 4318 बार आतंकवादी हमले हुए, जिनमें लगभग 47,000 लोग मारे जा चुके हैं।
जबकि विकिपीडिया के मुताबिक अकेले जम्मू और कश्मीर में आज तक 7,000 पुलिस और सैन्य कर्मी और 21,000 से ज्यादा आतंकवादी मारे जा चुके हैं जबकि निर्दोष लोगों के मारे जाने का आंकड़ा 29,000 से 1,00,000 के बीच में है। जम्मू और कश्मीर के गृह मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर फरमाएं तो पिछले 23 वर्षों में अकेले जम्मू और कश्मीर में सुरक्षाबलों ने आतंकवादियों से 49,627 हथियार बरामद किये हैं। जिनमें 30859 ऐ.के. असाल्ट रायफलेें, 11,576 पिस्तौलें, 1028 यूनिवर्सल मशीनगनें, 80 कारबाईन, 2264 राॅकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड लांचर्स, 221 लाईट मशीन गनें, 306 एस.एल.आर., 394 स्नाइपर्स राइफलें, 69 जनरल पर्पज मशीन गनें, 2830 राॅकेट बूस्टर्स और लाखों की संख्या में गोलियां बरामद की गई हैं। संभवतः इन आंकड़ों में अब तक और भी बढ़ौतरी हो चुकी होगी। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार इतने भारी सैनिक साजो-सामान से सेना की एक कोर के सैनिकों को हथियारों से लैस किया जा सकता है।
यद्यपि आतंकवादग्रस्त राज्यों में सेना की तैनाती, नागरिक प्रशासन की मदद के दृष्टिकोण से की जाती है तथापि सेना को यह भी सुनिश्चित करना होता है कि वह सामान्य जनता को आतंकवाद के साये में से उबारकर, उनमें पुनः आत्मविश्वास का संचार करे। सेना ने सीमा पर सतत् चैकसी बरतते हुए न केवल अलगाववादियों की घुसपैठ को रोका है वरन् सीमा पार करते समय दहशतगर्दों के साथ हुई मुठभेड़ों में सैंकड़ों की संख्या में इन विघटनकारियों को मौत के घाट उतारने और पकड़ने में सफलता हासिल की है।
आज आतंकवाद जिन परिस्थितियों में पनप रहा है या लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है, उसको देखते हुए, सभी का सामूहिक दायित्व व कर्तव्य बन जाता है कि यदि राष्ट्र को जोड़े रखना है तो सम्पूर्ण देश को एक सूत्र में बंधकर इसका मुकाबला करना होगा। आतंकवाद आज किसी एक देश के लिए नहीं वरन् पूरे विश्व व सारी मानवता के लिए एक ऐसा संक्रामक रोग बन गया है जिसका सभी ने एकजुट होकर विरोध या उपचार न किया तो विश्व शान्ति की कामना को लेकर आयोजित किये जाने बड़े-बड़े सम्मेलनों का कोई औचित्य नहीं रह जायेगा। आतंकवाद के प्रायोजक पाकिस्तान को भी यह अच्छी तरह से समझ लेना होगा कि उसके द्वारा तैयार किये गए भस्मासुर उसके अपने देश व नागरिकों को ही जलाकर ख़ाक करेंगे। भारतीय सेना तो निर्विवाद रूप से अपने दायित्वों का पालन करने के लिए आतंकवाद के विरूद्ध कमर कसे हुए है। आतंकवादी और उनके आकाओं को भी अब यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि समस्त भारतवासी एकजुट होकर अपनी बहादुर सेना के साथ खड़े हैं और भारत की सरजमीं से उनको जड़ से उखाड़ फैंक दिया जायेगा।
अनुज कुमार आचार्य
बैजनाथ
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