पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के तीनों इदारों अर्थात् छद्म लोकतांत्रिक सरकार, आतंकवादी तंजीमों और सेना के बीच में इन दिनों भारत के जम्मू-...
पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के तीनों इदारों अर्थात् छद्म लोकतांत्रिक सरकार, आतंकवादी तंजीमों और सेना के बीच में इन दिनों भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में कैसे आतंकवाद बढ़े पर एक से बढ़कर एक व्यानबाजी देने की होड़ मची हुई है। नवाज शरीफ, पाक अधिकृत कश्मीर में एक रैली में भारतीय कश्मीर के पाकिस्तान में विलय का राग अलापते हैं तो जमात-उल-दावा का प्रमुख मोहम्मद हाफिज सईद टी.वी. पर सरेआम भारत में आतंकवादी हमलों की जिम्मेवारी लेते नज़र आता है।
पाक सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ की नवम्बर में प्रस्तावित रिटायरमेंट से पहले पाकिस्तान के बड़े शहरों के चैक-चोराहों में उनके समर्थन में तख्ता पलट कर सत्ता हथियाने के पोस्टर लगना इस बात की तसदीक करते हैं कि पाकिस्तानी हुक्मरानों के लिए अपनी आवाम की भलाई और विकास कार्य जाएं भाड़ में लेकिन भारत विरोध की नीति पर चलते हुए सत्ता पर कब्जे की उनकी जंग कमजोर नहीं पड़नी चाहिए। एक विफल राष्ट्र के रूप में अग्रसर पाकिस्तान आज वैश्विक आतंकवाद का सबसे बड़ा पोषक और पालनहार देश बना हुआ है। पाकिस्तान के मरहूम छठे राष्ट्रपति और सैनिक तानाशाह जनरल मोहम्मद जियाउल हक ने 1977 में मार्शल ला लगाने के बाद अपनी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. को भारत के खिलाफ आतंकवादी तंजीमों की मदद से ‘आपरेशन टोपेक’ द्वारा कश्मीर घाटी को अस्थिर करने का एक षडयंत्र रचा था। तब से लेकर आज तक कश्मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं में हुए खून खराबे के बीच हजारों जानें जा चुकी हैं।
1999 में कारगिल युद्ध में मुंह की खाने के बाद भी पाकिस्तानी हुक्मरानों के रव्वैय्ये में कोई तबदीली नहीं आई है। भारतीय सरकारों द्वारा समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों एवं सम्मेलनों में भारत में हो रहे आतंकवादी हमलों के पीछे पाकिस्तानी सबूतों को सिरे से खारिज़ करते आ रहे पश्चिमी देशों ने पिछले कुछ सालों से अपने देशों पर होने वाले आतंकवादी हमलों के बाद अब वास्तविकता को स्वीकारना शुरू कर दिया है। और तो और हाल ही में अमेरिका ने भारतीय जांच ऐजेंसी एन.आई.ए. को 1000 पृष्ठों मंे पठानकोट पर हुए हमले के सबूत वाला डोजियर सौंपा है।
पिछल दिनों कश्मीरी आतंकवादी बुरहान वानी की सुरक्षाबलों के साथ हुई मुठभेड़ में मौत के बाद पाक फंडिंग से भारतीय सुरक्षाबलों एवं पुलिस दस्तों पर पत्थरबाजी की घटनाओं से घाटी अशांत रही और लगातार दो हफ्तों तक कश्मीर घाटी के सभी 12 जिलों में कफ्र्यू लगाना पड़ा। कश्मीर में भड़काई गई हिंसा का खामियाजा वहां की भोली भाली मेहनतकश जनता को ही भुगतना पड़ रहा है। एक तरफ पर्यटक सीजन में कम सैलानियों का आना और ऊपर से अमरनाथ यात्रियों पर पथराव-दुव्र्यवहार की घटनाओं के चलते यात्रा में विघ्न पड़ा तो वहीं अमरनाथ यात्रा में श्रद्धालुओं की सेवा करके पूरे साल भर का खर्चा निकालने वाले मुस्लिम कामगारों का धंधा भी चौपट हो गया।
कट्टरवाद, अलगाववाद एवं आतंकवादी घटनाओं का खामियाजा घाटी के पाकिस्तानी सीमा से सटे दुर्गम क्षेत्रों यथा-करनाह, तंगधार, उड़ी, केरन, पुंछ, गुरेज, किश्तवाड़ और नौगाम सेक्टर के मेहनतकश, शरीफ नागरिकों को भी उठाना पड़ रहा है। इन इलाकों के बाशिंदे पहाड़ी मुस्लिम नागरिकों की बोलचाल, रहन-सहन और खानपान कश्मीरी मुसलमानों से कतई भिन्न है और कश्मीरी मुसलमानों से इनके सामान्य कामकाजी एवं व्यापारिक रिश्ते हैं। इन इलाकों के नागरिक भारत में ही रहना पसन्द करते हैं और आतंकवाद के पुरजोर विरोधी भी रहे हैं। इन क्षेत्रों के आवाम की भारत से नजदीकियों का ही परिणाम है कि जम्मू और कश्मीर की ज्यादातर सरकारों ने इन इलाकों में बुनियादी सुविधाओं की बहाली और विकास के लिए न तो राज्य सरकार के बजट से और न ही केन्द्रीय बजट का आबंटन यहां के लिए किया है।
इन इलाकों में रास्तों की बहाली, रोजगार एवं खाने-पीने की वस्तुओं की उपलब्धता के लिए यहां के लोग खुलेआम भारतीय सेना का धन्यवाद करते मिल जाएंगे। पाकिस्तान से धकेले जाने वाले अधिकांश आतंकवादी इन्हीं इलाकों की सीमाओं से भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करते हैं और कुपवाड़ा और बारामुल्ला में बैठे अपने गाइड एवं हैण्डलर्स की मदद से भारतीय सुरक्षा बलों पर हमले करते हैं। बुरहान वानी घटनाक्रम को छोड़ दें तो पिछले 10-15 वर्षों से कश्मीरी युवाओं ने आतंकवाद से मुंह मोड़ लिया था और अभी पाकिस्तान में बैठी तंजीमें भारत में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के लिए पाकिस्तानी दहशतगर्दों पर ही निर्भर है।
भारतीय संसद में समय-समय पर हमारे पक्ष-विपक्ष के नेतागण पाकिस्तान की आतंकवाद परस्त नीति का विरोध करते रहे हैं और संसद में पाक अधिकृत कश्मीर को पाकिस्तान के कब्जे से छुड़ाने का संकल्प भी पारित किया हुआ है। आज जबकि केन्द्र में भाजपा नीत श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में एक मजबूत सरकार मौजूद है और यह समय की भी मांग है कि अब सभी भारतीय राजनीतिक दलों को आपसी राजनीतिक फायदे एवं मतभेद भुलाकर जम्मू कश्मीर में लागू धारा 370 को समाप्त करने के लिए एकजुट हो जाना चाहिए। जम्मू कश्मीर को प्राप्त विशेष राज्य का दर्जा एवं दोहरी नागरिकता वाला प्रावधान खत्म होना चाहिए।
भारतीय कानूनों के दायरे में लाकर हुरिर्यत कांफ्रेंस के अलगाववादी नेताओं को घरों में नज़रबंद करने के बजाए भारतीय जेलों में डाला जाना चाहिए। पत्थरबाज और आतंकवादियों के समर्थक पाक परस्त लोगों से सख्ती से पेश आना चाहिए और सुरक्षा बलों को आत्मरक्षार्थ उपद्रवियों से निपटने के लिए खुली छूट मिलनी चाहिए। ‘अफस्पा’ के प्रावधानों को वहां से कतई हटाने की जरूरत नहीं है। जम्मू-कश्मीर राज्य के झंडे की जगह वहां भारतीय तिरंगा लहराया जाए। वहां की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष के बजाए 5 वर्ष किया जाए। राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान करने वालों को अनुकरणीय दण्ड दिया जाए। भारतीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों की जम्मू-कश्मीर में अक्षरशः अनुपालन करने की व्यवस्था होनी चाहिए।
आर.टी.आई और सी.ए.जी. के प्रावधान भी अमल में लाए जाएं। जम्मू-कश्मीर में उच्चतम स्तर पर भ्रष्टाचार फैला हुआ है फिर क्यों ऐसे देशद्रोहियों को बैठे-बिठाए मुफ्त में और सस्ता राशन खिलाया जा रहा है ? हिमाचल प्रदेश, भूतपूर्व सैनिकों, सेवारत्त सैनिकों और अर्ध सैनिक बलों में सेवारत्त बहादुर अधिकारियों एवं जवानों की जन्म स्थली रही है। आजादी से पहले और बाद की प्रत्येक लड़ाईयों में बहादुर हिमाचलियों ने अपनी वीरता का परिचय देते हुए राष्ट्र रक्षा हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग किया है।
आतंकवाद का ना कोई महजब होता है, न कोई जाति और न ही कोई धर्म। भूतपूर्व हिमाचली सैनिकों की भी यह पुरजोर मांग है कि सीमा पार से आने वाले आतंकवादियों का न कोई अंतिम संस्कार होना चाहिए और न ही उन्हें दफनाने के लिए जमीं दी जानी चाहिए। यही इनके सरपरस्तों और आकाओं को माकूल भारतीय जबाव हो सकता है। यह वक्त का तकाजा है कि केन्द्र सरकार सभी राजनीतिक दलों की सर्वानुमति से आतंकवाद के विरूद्ध एक राष्ट्रीय नीति बनाए और उसके अनुरूप ही राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर फैसले भी हों।
अनुज कुमार आचार्य
बैजनाथ
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